विकिस्रोत:निर्वाचित पुस्तक/अक्टूबर २०१९
गोदान, प्रेमचंद का सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसे भारतीय कृषक जीवन का महाकाव्य भी माना जाता है। इसका प्रथम प्रकाशन १९३६ ई० में हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा हुआ था। कथा का नायक होरी है जिसकी निराशा, धर्मभीरुता, स्वार्थपरता और बैठकबाजी, बेबसी तत्कालीन किसान जीवन को बखूबी चित्रित करती है। उसकी गर्दन जिस पैर के नीचे दबी है उसे सहलाता, 'मरजाद' की भावना पर गर्व करता, ऋणग्रस्तता के अभिशाप में पिसता, भारतीय समाज का मेरुदंड किसान कितना शिथिल और जर्जर हो चुका है, यह गोदान में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। नगरों के कोलाहलमय चकाचौंध ने गाँवों की विभूति को कैसे ढँक लिया है, जमींदार, मिल मालिक, पत्र-संपादक, अध्यापक, पेशेवर वकील और डाक्टर, राजनीतिक नेता और राजकर्मचारी जोंक बने कैसे गाँव के इस निरीह किसान का शोषण कर रहे हैं और कैसे गाँव के ही महाजन और पुरोहित उनकी सहायता कर रहे हैं, गोदान में ये सभी तत्व नखदर्पण के समान प्रत्यक्ष हो गए हैं। ( गोदान पूरा पढ़ें)