विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/१४
दुर्गेशनन्दिनी बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित प्रथम बांग्ला उपन्यास है। सन १८८२ में इस उपन्यास का हिंदी अनुवाद गदाधर सिंह ने किया है।
बङ्गदेशीय सम्वत् ९९८ के ग्रीष्मकाल के अन्त में एक दिन एक पुरुष घोड़े पर चढ़ा विष्णुपुर से जहानाबाद की राह पर अकेला जाता था। सायंकाल समीप जान उसने घोड़े को शीघ्र हांका क्योंकि आगे एक बड़ा मैदान था यदि दैव संयोग से अंधेरा होजाय और पानी बरसने लगे तो यहां कोई ठहरने का अस्थान न मिलेगा। परन्तु संध्या हो गई और बादल भी घिर आया और रात होते २ ऐसा अँधेरा छा गया कि घोड़े का चलाना कठिन होगया केवल कौंधे के प्रकाश से कुछ कुछ दिखाई देता था और वह उसी के सहारे से चलता था। थोड़े समय के अनन्तर एक बड़ी आंधी आई और बादल गरजने लगा और साथही पानी भी बरसने लगा और पथिक को मार्ग ज्ञान कुछ भी न रहा। पथिक ने घोड़े की रास छोड़ दी और वह अपनी इच्छानुसार चलने लगा। कुछ दूर जाकर घोड़े ने ठोकर ली, इतने में बिजली भी चमकी और आगे एक भारी श्वेत वस्तु दिख पड़ी। ...पूरा पढ़ें)