विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/३२
रामनाम मोहनदास करमचंद गाँधी के राम नाम से संबंधित आलेखों, विचारों एवं पत्रों का संग्रह है जिसका पहला संस्करण अहमदाबाद के नवजीवन प्रकाशन मंदिर द्वारा १९४९ ई. में प्रकाशित किया गया था।
"छह-सात सालकी अुम्रसे लेकर १६ वर्ष तक विद्याध्ययन किया, परन्तु स्कूलमे मुझे कही धर्म-शिक्षा नहीं मिली। जो चीज शिक्षकोके पाससे सहज ही मिलनी चाहिये, वह न मिली। फिर भी वायुमडलमे से तो कुछ न कुछ धर्म-प्रेरणा मिला ही करती थी। यहा धर्मका व्यापक अर्थ करना चाहिये। धर्मसे मेरा अभिप्राय है आत्म-भानसे, आत्म-ज्ञानसे।
वैष्णव सप्रदायमे जन्म होनेके कारण बार-बार वैष्णव मदिर (हवेली) जाना होता था। परन्तु अुसके प्रति श्रद्धा न अुत्पन्न हुअी। मन्दिरका वैभव मुझे पसन्द न आया। मदिरोमे होनेवाले अनाचारोकी बाते सुन-सुनकर मेरा मन अुनके सम्बन्धमे अुदासीन हो गया। वहासे मुझे कोअी लाभ न मिला।
परन्तु जो चीज मुझे अिस मन्दिरसे न मिली, वह अपनी धायके पाससे मिल गयी। वह हमारे कुटुम्बमे अेक पुरानी नौकरानी थी। अुसका प्रेम मुझे आज भी याद आता है। मैं पहले कह चुका हूं कि मै भूत-प्रेत आदिसे डरा करता था। अिस रम्भाने मुझे बताया कि अिसकी दवा रामनाम है। किन्तु रामनामकी अपेक्षा रम्भा पर मेरी अधिक श्रद्धा थी। अिसलिअे बचपनमे मैने भूत-प्रेतादिसे बचनेके लिअे रामनामका जप शुरू किया। यह सिलसिला यो बहुत दिन तक जारी न रहा, परन्तु जो बीजारोपण बचपनमे हुआ, वह व्यर्थ न गया। रामनाम जो आज मेरे लिअे अेक अमोघ शक्ति हो गया है, अुसका कारण अुस रम्भाबाअीका बोया हुआ बीज ही है।..."(पूरा पढ़ें)