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विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/४८

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कुँवर उदयभान चरित इन्शा अल्ला खां द्वारा रचित सामाजिक उपन्यास है जिसका प्रकाशन १९०५ ई॰ में लखनऊ के एंग्लो-ओरियंटल प्रैस द्वारा किया गया था।


"सिर झुकाकर नाक रगड़ता हूं उस अपने बनानेवाळे के साम्हने जिस ने हम सबको बनाया और बातकी बातमें वह सब कर दिखाया जिसका भेद किसीने न पाया। आतियां जातियां जो सांसें हैं। उसके बिन ध्यान सब यह फांसें हैं॥ यह कलका पुतला जो अपने उस खिलाड़ी की सुध रक्खे तो खटाईमें क्यों पड़े और कडुवा कसैला क्यों हो। उस फलकी मिठाई चक्खै जो बड़ोंसे बड़े अगलोंने चक्खी है। देखनेको आखैं दीं और सुन्नेको यह कान दिये नाक भी ऊंची सबमें करदी मूरतोंको जी दान दिये मिट्टीके बासनको इतनी सकत कहां जो अपने कुन्हारके करतब कुछ बतासके। सच है जो बनाया हुवा हो सो अपने बनानेवालेको क्या सराहे और क्या कहे यों जिसका जी चाहे पड़ा बके।..."(पूरा पढ़ें)