विकिस्रोत:सप्ताह की पुस्तक/५१
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चन्द्रकांता सन्तति 3 बाबू देवकीनन्दन खत्री का द्वारा रचित उपन्यास है जिसका प्रकाशन सन् १८९६ ई॰ में दिल्ली के भारती भाषा प्रकाशन द्वारा किया गया था।
"अब वह मौका आ गया है कि हम अपने पाठकों को तिलिस्म के अन्दर ले चलें और वहाँ की सैर करावें, क्योंकि कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह तथा मायारानी तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जा विराजे हैं जिसे एक तरह तिलिस्म का दरवाजा कहना चाहिए। ऊपर के भाग में यह लिखा जा चुका है कि भैरोंसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ और राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ रवाना करने के बाद इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, तेजसिंह, तारासिंह, शेरसिंह और लाड़िली को साथ लिए हुए कमलिनी तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जा पहुँची और उसने राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार देवमन्दिर में, जिसका हाल आगे चलकर खुलेगा, डेरा डाला।..."(पूरा पढ़ें)