सत्य के प्रयोग/ खेड़ामें सत्याग्रह

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सत्य के प्रयोग  (1948) 
द्वारा मोहनदास करमचंद गाँधी, अनुवादक हरिभाऊ उपाध्याय

[ ४५७ ]*ు अात्म्म-कथा : भाग ५ त्र्प्रौर निष्फल हुए । दो-तीन मिनट ठीक-ठीक चले त्र्प्रौर फिर बंधी-बंधाई पंक्ति टूट जाती । मजदूरोंके नेतात्र्प्रौंने खूब प्रयत्न किया, मगर वे कुछ इंतजाम नहीं कर सके । अन्तमें भीड़, शोरगुल त्र्प्रौर हमला ऐसा हुत्र्प्रा कि कितनी ही मिठाई कुचलकर बरबाद गई । मैदानमें बांटना बंद करना पड़ा त्र्प्रौर बची हुई मिठाई मुश्किल से सेठ त्र्प्रंबालाल के मिर्जापुर वाले मकानमें पहुंचाई जा सकी। यह मिठाई दूसरे दिन बंगलेके मैदानमें ही बांटनी पड़ी । इसमेंका हास्यरस स्पष्ट है । ‘एक टेक' वाले पेड़के पास मिठाई बांटी न जा सकनेके कारणोंको ढूंढ़नेपर हमने देखा कि मिठाई बंटनेकी खबर पाकर त्र्प्रहमदाबादके भिखारी वहां आ पहुंचे थे और उन्होंने कतार तोड़कर मिठाई छीनने की कोशिशें कीं । यह करुण रस था । यह देश फाके-कशीसे ऐसा पीड़ित है कि भिखारियोंकी संख्या बढ़ती ही जाती है और् वे खाने-पीनेकी चीजें प्राप्त करनेके लिए आम् मर्यादाको तोड़ डालते हैं । धनिक लोग ऐसे भिखारियोंके लिए काम ढूंढ़ देनेके बदले उन्हें भीख दे-देकर पालते हैं । २३ खेड़ामें सत्याग्रह मजदूरोंकी हड़ताल पूरी होनेके बाद मुझे दम मारनेकी भी फुरसत न मिली और् खेड़ा जिलेके सत्याग्रहका काम उठा लेना पड़ा । खेड़ा जिलेमें अकालके जैसी स्थिति होनेसे वहांके पाटीदार लगान माफ करवानेके लिए प्रयत्न कर रहे थे । इस संबंधमें श्री त्र्प्रमृतलाल ठक्करने जांच करके रिपोर्ट भेजी थी । मैंने कुछ भी पक्की सलाह देनेके पहले कमिशनर से भेंट की । श्री मोहनलाल पंड्या त्र्प्रौर श्री शंकरलाल परीख त्र्प्रथक परिश्रम कर रहे थे । स्व० गोकुलदास कहानदास परीख और् श्री विट्ठलभाई पटेलके द्वारा वे धारासभामें हलचल करा रहे थे । सरकारके पास शिष्ट मंडल गये थे । इस समय मैं गुजरात-सभाका अध्यक्श था । सभाने कमिशनर और् गवर्नरको त्र्प्रजियां दीं, तार दिये, कमिशनरके अप्मान सहन किये; उनकी धयकियां पी गई। उस समय के अफसरोंका रोबदाब त्र्प्रब तो हास्यजनक लगता है । त्र्प्रफ[ ४५८ ]अध्याय २३ : खेड़ा में सत्याग्रह ४४१ सरोंका तबका बिलकुल हलका व्यवहार त्र्प्रब तो त्र्प्रसंभव-सा जान पड़ता है । लोगोंकी मांग ऐसी साफ त्र्प्रौर मामूली थी कि उसके लिए लड़ाई लड़नेकी भी जरूरत नहीं होनी चाहिए । यह कानून था कि त्र्प्रगर फसल चार त्र्प्राने या उससे भी कम हो तो उस साल लगान माफ होना चाहिए; किंतु सरकारी त्र्प्रफसरोंक अनुमान चार आनेसे त्र्प्रधिकका था । लोगोंकी औरसे इसके सबूत पेश किये गये कि फसल चार आनेसे कम हुई है । मगर सरकार मानने ही क्यों लगी ? लोगोंकी त्र्प्रौरसे पंच बनानेकी मांग हुई । सरकारको वह त्र्प्रसह्य लगी । जितनी विनय की जा सकती थी उतनी कर लेनेके बाद, साथियोंके साथ सलाह करके, मैंने लोगोंको सत्याग्रह करनेकी सलाह दी । साथियोंमें खेड़ा जिलेके सेवकोंके अलावा खास तौरपर श्री वल्लभभाई पटेल, श्री शंकरलाल बैंकर, श्री त्र्प्रनसूयाबहन, श्री इंदुलाल कन्हैयालाल याज्ञिक, श्री महादेव देसाई वगैरा थे । वल्लभभाई त्र्प्रपनी बड़ी और दिनों-दिन बढ़ती हुई वकालतका त्याग करके आये थे । यह भी कहा जा सकता है कि उसके बाद वह फिर कभी जमकर वकालत कर ही नहीं सके । हमने नड़ियाद-अनाथाश्रममें डेरा जमाया । अनाथाश्रममें ठहरनेमें कोई विशेषता नहीं थी; किंतु इसके समान कोई दूसरा खाली मकान नड़ियादमें नहीं था, जहां इतने त्र्प्रधिक त्र्प्रादमी रह सकें। अतमें नीचे लिखी प्रतिज्ञापर हस्ताक्षर लिये गये-- “ हम जानते हैं कि हमारे गांवमें फसल चार त्र्प्रानेसे भी कम हुई है । इसलिए हमने अगले सालतक कर वसूल करना मुल्तयी रखनेकी त्र्प्रर्जी सरकार को दी है; मगर फिर भी लगानकी वसूली बंद नहीं हुई है, इसलिए हम नीचे सही करनेवाले प्रतिज्ञा करते हैं कि इस सालका सरकारका पूरा या बकाया लगान त्र्प्रदा न करेंगे; किंतु उसे वसूल करनेके लिए सरकार जो-कुछ कानूनी कार्रवाई करे उसे करने देंगे और उससे होनेवाला कष्ट सहेंगे । यदि इससे हमारी जमीनें जब्त होंगी तो वह भी होने देंगे; किंतु त्र्प्रपने हाथों लगान चुकाकर, झूठे बनकर, हम स्वाभिमान नहीं खोएंगे । त्र्प्रगर सरकार दूसरी किस्ततक बकाया लगान वसूल करना सभी जगह मुल्तवी कर दे तो हममें जो लोग समर्थ हैं वे पूरा या बकाया लगान चुकानेको तैयार हैं। हममें जो समर्थ हैं उनके लगान न देनेका कारण

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