साहित्य का उद्देश्य/35

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साहित्य का उद्देश्य
द्वारा प्रेमचंद
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जापान में पुस्तकों का प्रचार
 

मि॰ ग्लिन शा ने जापानी साहित्य के अनेक ग्रन्थ अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किये हैं। आपने हिसाब लगाया है कि जापान इस समय संसार में सबसे अधिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाला देश है। जापान के बाद सोवियट रूस, जर्मनी, फ्रान्स, इंगलैंड, पोलैण्ड और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का क्रम से नम्बर आता है। जापान की आबादी अमेरिका की आधी से ज्यादा नहीं पर हर साल वह अमेरिका से दुगुनी किताबें छापता है।

इस समय जापानी साहित्य की रुचि राष्ट्रीयता की ओर विशेष रूप से हो रही है। इतिहास, साहित्य, धर्म, युद्धनीति आदि सभी अंगों में यही प्रवृत्ति दिखाई देती है। विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि बौद्ध धर्म विषय की ओर यकायक लोगों मे बड़ी दिलचस्पी हो गई है। हालांकि यह किसी धार्मिक अनुराग का नतीजा नहीं, केवल राष्ट्र आन्दोलन का ही एक भाग है।

गत वर्ष जापान में दस हजार से ज्यादा पुस्तकें निकलीं। इनमें से २७०० शिक्षा विषयक, २५०० साहित्य, १९०० अर्थनीति, २०० पाठ्य, और १००० गृह प्रबन्ध विषय की थीं। शिक्षा विषयक पुस्तकों की संख्या ही सबसे ज़्यादा थी। इससे मालूम होता है जापान अपने राष्ट्र के निर्माण में कितना उद्योगशील है; क्योंकि शिक्षा ही राष्ट्र की जड़ है। गृह प्रबन्ध की ओर भी उनका ध्यान कितना ज्यादा है। भारत में तो इस विषय की पुस्तकें निकलती ही नहीं, और निकलती भी हैं, तो बिकती नहीं। इस विषय में भी कुछ नई बात कही जा सकती है, कुछ नई अनुभूतियाँ संग्रह की जा सकती हैं-यह शायद हम सम्भव नहीं समझते। जो घर सम्पन्न कहलाते [ २७९ ]हैं, उनमे भी पहुँच जाइए तो आपको मालूम होगा कि एक हजार माह- वार खर्च करके भी यह लोग रहना नही जानते। न कोई बजट है, न कोई व्यवस्था । अललटप्पू खर्च हो रहा है । जरूरी चीजो की अोर किसी का ध्यान नहीं है, बिना जरूरत की चीजे ढेरो पड़ी हुई हैं। कपड़े कीड़े खा रहे है, फर्नीचर मे दीमक लग रही है, किताबो मे नमी के कारण फफूदी लग गई है। किसी की निगाह इन बातो की तरफ नहीं जाती। नौकरो का वेतन नहीं दिया जाता । मगर कपडे बेजरूरत खरीद लिये जाते है। यह कुव्यवस्था इसीलिए है कि इस विषय मे हम उदासीन है।

जापान के अधिकाश साहित्यकार टोकियो में रहते है। उसमे छः सौ से अधिक ऐसे है जिनके नाम जापान भर मे प्रसिद्ध हैं। मगर जापान मे लेखकों को ज्यादा पुरस्कार नहीं मिलता।

जापान मे साहित्य रचना के भिन्न-भिन्न आदर्श हैं। कोई स्कूल जन-साधारण की रुचि की पूर्ति करना ही अपना ध्येय मानता है। तीश् बंगी स्कूल सबसे प्रसिद्ध है। ये लोग पुरानी कथाआ को नई शैली मे लिख रहे हैं, यहाँ तक कि विश्वविद्यालयो मे भी इसी रंग के अनुयायी अधिक हैं।

एक दूसरा स्कूल है जो कहता है, हम जन साधारण के लिए पुस्तकें नहीं लिखते, हमारा ध्येय साहित्य की सेवा है। इनका आदर्श है कला कला के लिए।

एक तीसरा दल है जो केवल दार्शनिक विषयो का ही भवन है। यह लोग अपनी गल्पों के प्लाट भी दर्शन और विज्ञान के तत्वो से बनाते हैं। उनके चरित्र भी प्रायः वास्तविक जीवन से लिये जाते है।

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