हिंदी निबंधमाला-१/सच्ची वीरता-सर्दार पूर्णसिंह

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(१२) सच्ची वीरता

सच्चे वीर पुरुष धीर, गंभीर और आजाद होते हैं। उनके मन की गंभीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी, या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते। रामायण में वाल्मीकि जी ने कुंभकरण की गाढ़ी नींद में वीरता का एक चिह्न दिखलाया है। सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती। वे सत्वगुण के क्षीर-समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर ही नहीं होती। वे संसार के सच्चे परोपकारी होते हैं। ऐसे लोग दुनिया के तख्ते को अपनी आँख की पलकों से हलचल में डाल देते हैं। जब ये शेर जागकर गर्जते हैं, तब सदियों तक इनकी आवाज की गूँज सुनाई देती रहती है, और सब आवाजें बंद हो जाती हैं। वीर की चाल की आहट कानों में आती रहती है और कभी मुझे और कभी तुझे मदमत्त करती है। कभी किसी की और कभी किसी की प्राण-सारंगी वीर के हाथ से बजने लगती है।

देखो, हरा की कंदरा में एक अनाथ, दुनिया से छिपकर, एक अजीब नींद सोता है। जैसे गली में पड़े हुए पत्थर की ओर कोई ध्यान नहीं देता, वैसे ही आम आदमियों की तरह इस अनाथ को कोई न जानता था। एक उदारहृदया धन[ १५४ ]संपन्ना स्त्री की वह नौकरी करता है। उसकी सांसारिक प्रतिष्ठा सिर्फ एक मामूली गुत्ताम की सी है। पर कोई ऐसा दैवी कारण हुआ जिससे संसार में अज्ञात उस गुलाम की बारी आई। उसकी निद्रा खुली। संसार पर मानों हजारों बिज- लियाँ गिरों। अरब के रेगिस्तान में बारूद की सी भड़क उठो। उसी वीर की अाँखे की ज्वाला इंद्रप्रस्थ से लेकर सेन तक प्रज्वलित हुई। उस अज्ञात और गुप्त हरा की कंदरा में सोनेवाले ने एक आवाज दी। सारी पृथ्वी भय से काँपने लगी। हाँ, जब पैगंबर मुहम्मद ने "अल्लाहो अकबर" का गीत गाया तब कुल संसार चुप हो गया । और, कुछ देर बाद, प्रकृति उसकी आवाज की गूंज को सब दिशाओं में ले उड़ो। पक्षी "अल्लाह" गाने लगे और मुहम्मद के पैगाम को इधर उधर ले उड़े। पर्वत उसकी वाणी को सुनकर पिवल पड़े और नदियाँ "अल्लाह, अज्जाह" का अलाप करती हुई पर्वतों से निकल पड़ों। जो लोग उसके सामने आए वे उसके दास बन गए। चंद्र और सूर्य ने बारी बारी से उठकर सलाम किया। उस वीर का बल देखिए कि सदियों के बाद भी संसार के लोगों का बहुत सा हिस्सा उसके पवित्र नाम पर जीता है और अपने छोटे से जीवन को अति तुच्छ समझकर उस अनदेखे और अज्ञात पुरुष के, केवल सुने सुनाए, नाम पर कुर्बान हो जाना अपने जीवन का सबसे उत्तम फल समझता है। [ १५५ ]
सत्वगुण के समुद्र में जिनका अंत:करण निमग्न हो गया वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं। वे लोग अपने क्षुद्र जीवन को परित्याग कर ऐसा ईश्वरीय जीवन पाते हैं कि उनके लिये संसार के सब अगम्य मार्ग साफ हो जाते हैं।आकाश उनके ऊपर बादलों के छाते लगाता है। प्रकृति उनके मनो- हर माथे पर राज-तिलक लगाती है। हमारे असली और सच्चे राजा ये ही साधु पुरुष हैं। हीरे और लाल से जड़े हुए, सोने और चाँदी से जर्क बर्क सिंहासन पर बैठनेवाले दुनिया के राजाओं को तो, जो गरीब किसानों की कमाई हुई दौलत पर पिडोपजीवी होते हैं, लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है। ये जरी, मखमल और जेवरों से लदे हुए मांस के पुतले तो हरदम काँपते रहते हैं। इंद्र के समान ऐश्वर्यवान् और बलवान् होने पर भी दुनिया के ये छोटे "जॉर्ज" बड़े कायर होते हैं। क्यों न हो, इनकी हुकूमत लोगों के दिलों पर नहीं होती। दुनिया के राजाओं के बल की दौड़ लोगों के शरीर तक है। हाँ, जब कभी किसी प्रक- बर का राज लोगों के दिलों पर होता है तब इन कायरों की बस्ती में मानो एक सच्चा वीर पैदा होता है।

एक बागी गुलाम और एक बादशाह की बातचीत हुई। यह गुलाम कैदी दिल से आजाद था। बादशाह ने कहा-मैं तुमको भी जान से मार डालूँगा। तुम क्या कर सकते हो ? गुलाम बोला-"हाँ, मैं फाँसी पर तो चढ़ जाऊँगा; पर तुम्हारा
[ १५६ ]तिरस्कार तब भी कर सकता हूँ।" बस इस गुलाम ने दुनिया के बादशाहों के बल की हद दिखला दी। बस इतने ही जोर और इतनी ही शेखी पर ये झूठे राजा शरीर को दुःख दे और मार पीटकर अनजान लोगों को डराते हैं। भोले लोग उनसे डरते रहते हैं। चूँकि सब लोग शरीर को अपने जीवन का केंद्र समझते हैं; इसलिये जहाँ किसी ने उनके शरीर पर जरा जोर से हाथ लगाया वहीं वे मारे डर के अधमरे हो जाते हैं; केवल शरीर-रक्षा के निमित्त ये लोग इन राजाओं की ऊपरी मन से पूजा करते हैं। जैसे ये राजा वैसा उनका सत्कार ! जिनका बल शरीर को जरा सी रस्सी से लटकाकर मार देने भर ही का है, भला, उनका और उन बलवान् और सच्चे राजाओं का क्या मुकाबला जिनका सिंहासन लोगों के हृदय-कमल की पँखड़ियों पर है ? सच्चे राजा अपने प्रेम के जोर से लोगों के दिलों को सदा के लिये बाँध देते हैं। दिलों पर हुकूमत करने- वाली फौज, तोप, बंदुक आदि के बिना ही वे शाहंशाह-जमाना होते हैं। मंसूर ने अपनी मौज में प्राकर कहा-"मैं खुदा हूँ"। दुनिया के बादशाह ने कहा-"यह काफिर है"। मगर मंसूर ने अपने कलाम को बंद न किया। पत्थर मार मारकर दुनिया ने उसके शरीर की बुरी दशा की; परंतु उस मर्द के हर बाल से ये ही शब्द निकले-'अनलहक'-"अहं ब्रह्मास्मि" "मैं ही ब्रह्म हूँ"। मंसूर का सूली पर चढ़ना उसके लिये सिर्फ खेल था। बादशाह ने समझा कि मंसूर मारा गया। [ १५७ ]
शम्सतबरेज को भी ऐसा ही काफिर समझकर बादशाह 'ने हुक्म दिया कि इसकी खाल उतार दो। शम्स ने खाल उतारी और बादशाह को, दाजे पर आए हुए कुत्ते की तरह भिखारी समझकर, वह खाल खाने के लिये दे दी। देकर वह अपनी यह गजल बराबर गाता रहा-"भीख माँगनेवाला तेरे दर्वाजे पर पाया है; ऐ शाहेदिल ! कुछ इसको दे दे।" खाल उतारकर फेंक दी ! वाह रे सत्पुरुष !

भगवान् शंकर जब गुजरात की तरफ यात्रा कर रहे थे तब एक कापालिक हाथ जोड़े सामने आकर खड़ा हुआ। भगवान ने कहा-"माँग, क्या माँगता है ?" उसने कहा- "हे भगवन् , अाजकल के राजा बड़े कंगाल हैं। उनसे अब हमें दान नहीं मिलता। आप ब्रह्मज्ञानी और सबसे बड़े दानी हैं। इसलिये मैं आपके पास आया हूँ। आप अपनी कृपा से मुझे अपना सिर दान करें जिसकी भेंट चढ़ाकर मैं अपनी देवी को प्रसन्न करूँगा और अपना यज्ञ पूरा करूँगा।" भगवान् ने मौज में आकर कहा-"अच्छा, कल यह सिर उतारकर ले जाना और काम सिद्ध कर लेना।"

एक दफे दो वीर पुरुष अकबर के दर्बार में आए। वे लोग रोजगार की तलाश में थे। अकबर ने कहा-"अपनी अपनी वीरता का सुबूत दो ।' बादशाह ने कैसी मूर्खता की । वीरता का भला वे क्या सुबूत देते ? परंतु दोनों ने तलवारें निकाल ली और एक दूसरे के सामने कर उनकी तेज धार पर दौड़
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गए और वहीं राजा के सामने क्षण भर में अपने खून में ढेर हो गए।

ऐसे दैवी वीर रुपया, पैसा, माल, धन का दान नहीं दिया करते। जब वे दान देने की इच्छा करते हैं तब अपने आपको हवन कर देते हैं। बुद्ध महाराज ने जब एक राजा को मृग मारते देखा तब अपना शरीर आगे कर दिया जिसमें मृग बच जाय, बुद्ध का शरीर चाहे चला जाय। ऐसे लोग कभी बड़े मौकों का इंतिजार नहीं करते; छोटे मौकों को ही बड़ा बना देते हैं।

जब किसी का भाग्योदय हुआ और उसे जोश आया तब जान लो कि संसार में एक तूफान आ गया। उसकी चाल के सामने फिर कोई रुकावट नहीं आ सकती। पहाड़ों की पस- लियाँ तोड़कर ये लोग हवा के बगोले की तरह निगल जाते हैं, उनके बल का इशारा भूचाल देता है और उनके दिल की हरकत का निशान समुद्र का तूफान देता है। कुदरत की और कोई ताकत उनके सामने फटंक नहीं सकती। सब चीजें थम जाती हैं। विधाता भी साँस रोककर उनकी राह को देखता है । यूरोप में जब रोम के पोप का जोर बहुत बढ़ गया था तब उसका मुकाबिला कोई भी बादशाह न कर सकता था। पोप की आँखों के इशारे से यूरप के बादशाह तख्त से उतार दिए जा सकते थे। पोप का सिका यूरोप के लोगों पर ऐसा बैठ गया था कि उसकी बात को लोग ब्रह्म-वाक्य
[ १५९ ]से भी बढ़कर समझते थे और पोप को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे। लाखों ईसाई साधु-संन्यासी और यूरोप के तमाम गिर्जे पोप के हुक्म की पाबंदी करते थे। जिस तरह चूहे की जान बिल्लो के हाथ में होती है उसी तरह पोप ने युरोप- वासियों की जान अपने हाथ में कर ली थी।इस पोप का बल और आतंक बड़ा भयानक था। मगर जरमनी के एक छोटे से मंदिर के एक कंगाल पादरी की आत्मा जल उठो। पोप ने इतनी लीला फैलाई थी कि यूरोप में स्वर्ग और नरक के टिकट बड़े बड़े दामों पर बिकते थे। टिकट बेच बेचकर यह पोप बड़ो विषयी हो गया था। लूथर के पास जब टिकट बिक्री होने को पहुँचे तब उसने पहले एक चिट्ठी लिखकर भेजी कि ऐसे काम झूठे तथा पापमय हैं और बंद होने चाहिए। पोप ने इसका जवाब दिया-"लूथर ! तुम इस गुस्ताखी के बदले भाग में जिंदा जला दिए जाओगे।" इस जवाब से लूथर की आत्मा की आग और भी भड़की। उसने लिखा- "अब मैंने अपने दिल में निश्चय कर लिया है कि तुम ईश्वर के तो नहीं किंतु शैतान के प्रतिनिधि हो। अपने आपको ईश्वर के प्रतिनिधि कहनेवाले मिथ्यावादी ! जब मैंने तुम्हारे पास सत्यार्थ का संदेश भेजा तब तुमने अाग और जल्लाद के नामों से जवाब दिया। इससे साफ प्रतीत होता है कि तुम शैतान के दलदल पर खड़े हो, न कि सत्य की चट्टान पर । यह लो तुम्हारे टिकटों के गढ़ मैंने आग में फेंके । जो मुझे [ १६० ]करना था मैंने कर दिया, जो अब तुम्हारी इच्छा हो, करो। मैं सत्य की चट्टान पर खड़ा हूँ।" इस छोटे से संन्यासी ने वह तूफान यूरोप में पैदा कर दिया जिसकी एक लहर से पोप का सारा जंगी बेड़ा चकनाचूर हो गया । तूफान में एक तिनके की तरह वह न मालूम कहाँ उड़ गया।

महाराज रणजीतसिंह ने फौज से कहा-"अटक के पार जाओ।"अटक चढ़ी हुई थी और भयंकर लहरें उठी हुई जब फौज ने कुछ उत्साह प्रकट न किया तब उस वीर को जरा जोश आया । महाराज ने अपना घोड़ा दरिया में डाल दिया। कहा जाता है कि अटक सूख गई और सब पार निकल गए।

दुनिया के जंग के सब सामान जमा हैं। लाखों आदमी मरने मारने को तैयार हो रहे हैं। गोलियाँ पानी की बूंदों की तरह मूसलधार बरस रही हैं। यह देखो, वीर को जोश प्राया। उसने कहा-"हाल्ट" ( ठहरो)।तमाम फौज निःस्तब्ध होकर सकते की हालत में खड़ी हो गई। आल्प्स के पहाड़ों पर फौज ने चढ़ना ज्योंही असंभव समझा त्योंही वीर ने कहा-"आल्प्स है ही नहीं।" फौज को निश्चय हो गया कि आल्प्स नहीं है और सब लोग पार हो गए !

एक भेड़ चरानेवाली और सतोगुण में डूबी हुई युवती कन्या के दिल में जोश आते ही कुल फ्रांस एक भारी शिकस्त से बच गया। [ १६१ ]
अपने आपको हर घड़ो और हर पल महान् से भी महान् बनाने का नाम वीरता है वीरता के कारनामे तो एक गौण बात हैं। असल वीर तो इन कारनामों को अपनी दिनचर्या में लिखते भी नहीं। पेड़ तो जमीन से रस ग्रहण करने में लगा रहता है। उसे यह खयाल ही नहीं होता कि मुझमें कितने फल या फूल लगेंगे और कब लगेंगे। उसका काम तो अपने प्रापको सत्य में रखना है-सत्य को अपने अंदर कूट कूटकर भरना और अंदर ही अंदर बढ़ना है। उसे इस चिंता से क्या मतलब कि कौन मेरे फल खायगा या मैंने कितने फल लोगों को दिए।

वीरता का विकास नाना प्रकार से होता है। कभी तो उसका विकास लड़ने मरने में, खून बहाने में, तलवार तोप के सामने जान गँवाने में होता है; कभी प्रेम के मैदान में उसका झंडा खड़ा होता है। कभी जीवन के गूढ़ तत्त्व और सत्य की तलाश में बुद्ध जैसे राजा विरक्त होकर वीर हो जाते हैं कभी किसी आदर्श पर और कभी किसी पर वीरता अपना फरहरा लहराती है। परंतु वोरता एक प्रकार का इलहाम या दैवी प्रेरणा है। जब कभी इसका विकास हुआ तभी एक नया कमाल नजर आया; एक नया जलाल पैदा हुआ; एक नई रौनक, एक नया रंग, एक नई बहार, एक नई प्रभुता संसार में छा गई। वोरता हमेशा निराली और नई होती है। नया- पन भी वीरता का एक खास रंग है। हिंदुओं के पुराणों की
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वह अलंकारिक कल्पना, जिससे पुराणकारों ने ईश्वरावतारों को अजीब अजीब और भिन्न भिन्न वेष दिए हैं, सच्चो मालूम होती है; क्योंकि वीरता का एक विकास दूसरे विकास से कभी किसी तरह मिल नहीं सकता वीरता की कभी नकल नहीं हो सकती; जैसे मन की प्रसन्नता कभी कोई उधार नहीं ले सकता। वीरता देश-काल के अनुसार संसार में जब कभी प्रकट हुई तभी एक नया स्वरूप लेकर आई, जिसके दर्शन करते ही सब लोग चकित हो गए-कुछ बन न पड़ा और वीरता के आगे सिर झुका दिया।

जापानी वीरता की मूर्ति पूजते हैं। इस मूर्ति का दर्शन वे चेरी के फूल की शांत सी में करते हैं। क्या ही सच्ची और कौशलमयी पूजा है ! वीरता सदा जोर से भरा हुआ ही उपदेश नहीं करती । वीरता कभी कभी हृदय की कोमलता का भी दर्शन कराती है। ऐसी कोमलता देखकर सारी प्रकृति कोमल हो जाती है; ऐसी सुंदरता देखकर लोग मोहित हो जाते हैं। जब कोमलता और सुंदरता के रूप में वह दर्शन देती है तब चेरी-फूल से भी ज्यादा नाजुक और मनोहर होती है। जिस शख्स ने यूरोप को 'क्रूसेड्ज' के लिये हिला दिया वह उन सबसे बड़ा वीर था जो लड़ाई में लड़े थे। इस पुरुष में वीरता ने आँसुओं और पाहो का लिबास लिया। देखो, एक छोटा सा मामूली आदमी यूरोप में जाकर रोता है कि हाय हमारे तीर्थ हमारे वास्ते खुले नहीं और यहूद के राजा यूरोप
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बुलबुल की छाया को बीमार लोग सब दवाइयों से बढ़कर समझते थे। उसके दर्शनों ही से कितने बीमार अच्छे हो जाते थे वह अव्वल दर्जे का सच्चा पक्षी है जो बीमारों के सिरहाने खड़ा होकर दिन-रात गरीबों की निष्काम सेवा करता है और गंदे जख्मों को जरूरत के वक्त अपने चूसकर साफ करता है। लोगों के दिलों पर ऐसे प्रेम का राज्य अटल यह वीरता पर्दानशीन हिंदुस्तानी औरत की तरह चाहे कभी दुनिया के सामने न आए, इतिहास के वकों के काले हफों में न आए, तो भी संसार ऐसे ही बल से जीता है

वीर पुरुष का दिल सबका दिल हो जाता है उसका मन सबका मन हो जाता है। उसके खयाल सबके खयाल हो जाते हैं । सबके संकल्प उसके संकल्प हो जाते हैं । उसका बल सबका बल हो जाता है। वह सबका और सब उसके हो जाते हैं।

वीरों के बनाने के कारखाने कायम नहीं हो सकते। वे तो देवदार के दरख्तों की तरह जीवन के अरण्य में खुद ब खुद पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाए, बिना किसी के हाथ लगाए, तैयार होते हैं। दुनिया के मैदान में अचानक ही सामने आकर वे खड़े हो जाते हैं, उनका सारा जीवन भीतर ही भीतर होता है । [ १६४ ]बाहर तो जवाहिरात की खानों की ऊपरी जमीन की तरह कुछ भी दृष्टि में नहीं आता। वीर की जिंदगी मुश्किल से कभी कभी बाहर नजर आती है। उसका स्वभाव तो छिपे रहने का है।

वह लाल गुदड़ियों के भीतर छिपा रहता है। कंदराओ में, गोरों में, छोटी छोटी झोपड़ियों में बड़े बड़े वीर महात्मा छिपे रहते हैं। पुस्तकों और अखबारों को पढ़ने से या विद्वानों के व्याख्यानों को सुनने से तो बस ड्राइँग हाल के वीर पैदा होते हैं; उनकी वीरता अनजान लोगों से अपनी स्तुति सुनने तक खतम हो जाती है। असली वीर तो दुनिया की बनावट और लिखावट के माखौलों के लिये नहीं जीते।

हर बार दिखाव और नाम की खातिर छाती ठोंककर आगे बढ़ना और फिर पीछे हटना पहले दरजे की बुजदिली है। वीर तो यह समझता है कि मनुष्य का जीवन एक जरा सी चीज है। वह सिर्फ एक बार के लिये काफी है। मानों इस बंदूक में एक ही गोली है। हाँ, कायर पुरुष इसको बड़ा ही कीमती और कभी न टूटनेवाला हथियार समझते हैं। हर घड़ी आगे बढ़कर, और यह दिखाकर कि हम बड़े हैं, वे फिर पीछे इस गरज से हट जाते हैं कि उनका अनमोल जीवन किसी और अधिक बड़े काम के लिये बच जाय । बादल गरज गरजकर ऐसे ही चले जाते हैं, परंतु बरसनेवाले बादल जरा देर में बारह इंच तक बरस जाते हैं। [ १६५ ]
कायर पुरुष कहते हैं- "आगे बढ़े चलो।" वीर कहते हैं-"पीछे हटे चलो" । कायर कहते हैं-"उठानो तल- वार" । वीर कहते हैं- "सिर आगे करो।" । वीर का जीवन प्रकृति ने अपनी शक्तियों को फजूल खो देने के लिये नहीं । बनाया है। वीर पुरुष का शरीर कुदरत की कुल भंडार है। कुदरत का यह मरकज हिल नहीं सकता। सूर्य का चक्कर हिल जाय तो हिल जाय, परंतु वीर के दिल में जो दैवी केंद्र है वह अचल है। कुदरत के और पदार्थों की पालिसी चाहे आगे बढ़ने की हो, अर्थात् अपने बल को नष्ट करने की हो, मगर वीरों की पालिसी बल को हर तरह इकट्ठा करने और बढ़ाने की होती है। वीर तो अपने अंदर ही 'मार्च' करते हैं; क्योंकि हृदयाकाश के केंद्र में खड़े होकर वे कुल संसार को हिला सकते हैं।

बेचारी मरियम का लाडला, खूबसूरत जवान,अपने मद में मतवाला और अपने आपको शाहंशाह हकीकी कहनेवाला ईसा मसीह क्या उस समय कमजोर मालूम होता है जब भारी सलीब पर उठकर कभी गिरता, कभी जख्मी होता और कभी बेहोश हो जाता है ? कोई पत्थर मारता है, कोई ढेला मारता है, कोई थूकता है, मगर उस मर्द का दिल नहीं हिलता। कोई क्षुद्रहृदय और कायर होता तो अपनी बादशाहत के बल की गुत्थियाँ खोल देता; अपनी ताकत को नष्ट कर देता; और संभव है कि एक निगाह से उस सल्तनत के तख्ते को उलट
[ १६६ ]देता और मुसीबत को टाल देता, परंतु जिसको हम मुसीबत जानते हैं उसको वह मखौल समझता था। "सूली मुझे है सेज पिया की सोने दो मीठी मीठी नींद है आती।" अमर ईसा को भला दुनिया के विषय-विकार में डूबे लोग क्या जान सकते थे? अगर चार चिड़ियाँ मिलकर मुझे फाँसी का हुक्म सुना दें और मैं उसे सुनकर रो दूँ या डर जाऊँ तो मेरा गौरव चिड़ियों से भी कम हो जाय । जैसे चिड़ियाँ मुझे फाँसी देकर उड़ गई वैसे ही बादशाह और बादशाहते आज खाक में मिल गई हैं। सचमुच ही वह छोटा सा बाबा लोगों का सच्चा बादशाह है। चिड़ियों और जानवरों की कचहरियों के फैसलों से जो डरते या मरते हैं वे मनुष्य नहीं हो सकते । रानाजी ने जहर के प्याले से मीराबाई को डराना चाहा। मगर वाह री सचाई ! मीरा ने उस जहर को भी अमृत मान- कर पी लिया। वह शेर और हाथी के सामने की गई, मगर वाह रे प्रेम ! मस्त हाथी और शेर ने देवी के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया।इस- वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं, पीछे जाते हैं। भीतर ध्यान करते हैं। मारते नहीं, मरते हैं।

वह वीर क्या जो टीन के बर्तन की तरह झट गरम और झट टंढा हो जाता है। सदियों नीचे आग जलती रहे तो भी शायद ही वीर गरम हो और हजारों वर्ष बर्फ उस पर जमती रहे तो भी क्या मजाल जो उसकी वाणी तक टंढी हो। [ १६७ ]उसे खुद गरम और सर्द होने से क्या मतलब ? कारखाय को जो आजकल की सभ्यता पर गुस्सा आया तो दुनिया में एक नई शक्ति और एक नई जबान पैदा हुई। कारलायल अँग- रेज जरूर है; पर उसकी बोली सबसे निराली है। उसके शब्द मानों आग की चिनगारियाँ हैं जो आदमी के दिलों में आग सी लगा देती हैं। सब कुछ बदल जाय मगर कारलायल की गरमी कभी कम न होगी। यदि हजार वर्ष संसार में दुखड़े और दर्द रोए जायँ तो भी बुद्धि की शांति और दिल की ठंढक एक दर्जा भी इधर उधर न होगी। यहाँ प्राकर भौतिक विज्ञान के नियम रो देते हैं। हजारों वर्ष आग जलती रहे तो भी थर्मामीटर जैसा का तैसा ही रहेगा। बाबर के सिपा- हियों ने और लोगों के साथ गुरु नानक को भी बेगार में पकड़ लिया। उनके सिर पर बोझ रखा और कहा-"चलो"। आप चल पड़े। दौड़, धूप, बोझ, मुसीबत, बेगार में पकड़ी हुई स्त्रियों का रोना, शरीफ लोगों का दुःख, गाँव के गाँव का जलना सब किस्म की दुखदायी बातें हो रही हैं मगर किसी का कुछ असर नहीं हुआ । गुरु नानक ने अपने साथी मर्दाना से कहा-"सारंगी बजाओ, हम गाते हैं"। उस भीड़ में सारंगी बज रही है और आप गा रहे हैं। वाह री शांति !

अगर कोई छोटा सा बच्चा नेपोलियन के कंधे पर चढ़कर उसके सिर के बाल खींचे तो क्या नेपोलियन इसको, अपनी बेइज्जती समझकर उस बालक को जमीन पर पटक देगा, [ १६८ ]जिसमें लोग उसको बड़ा वीर कहें ? इसी तरह सच्चे वीर जब उनके बाल दुनिया की चिड़ियाँ नोचती हैं, तब कुछ परवा नहीं करते। क्योंकि उनका जीवन आसपासवालों के जीवन से निहायत ही बढ़ चढ़कर ऊँचा और बलवान होता है भला ऐसी बातों पर वीर कब हिलते हैं। जब उनकी मौज आई तभी मैदान उनके हाथ है।

जापान के एक छोटे से गाँव की एक झोपड़ी में छोटे कद का एक जापानी रहता था उसका नाम ओशियो था। यह पुरुष बड़ा अनुभवी और ज्ञानी था। बड़े कड़े मिजाज का, स्थिर, धीर और अपने खयालात के समुद्र में वाला पुरुष था। आसपास रहनेवाले लोगों के लड़के इस साधु के पास आया जाया करते थे और यह उनको मुफ्त पढ़ाया करता था। जो कुछ मिल जाता वही खा लेता था। दुनिया की व्यावहारिक दृष्टि से वह एक किस्म का निखट्ट, था। क्योंकि इस पुरुष ने संसार का कोई बड़ा काम नहीं किया था। उसकी सारी उम्र शांति और सत्वगुण में गुजर गई थी। लोग समझते थे कि वह एक मामूली आदमी है एक दफा इत्तिफाक से दो तीन फसलों के न होने से इस फकीर के आसपास के मुल्क में दुर्भिक्ष पड़ गया। दुर्भिक्ष बड़ा भयानक था। लोग बड़े दुखी हुए। लाचार होकर इस नंगे, कंगाल फकीर के पास मदद माँगने आए। उसके दिल में कुछ खयाल हुआ। उनकी मदद करने को वह तैयार हो गया। [ १६९ ]
पहले वह ओसाको नामक शहर के बड़े बड़े धनाढ्य और भद्र पुरुषों के पास गया और उनसे मदद माँगी। इन भलेमानसे ने वादा तो किया, पर उसे पूरा न किया। प्रोशियो फिर, उनके पास कभी न गया। उसने बादशाह के वजीरों को पत्र लिखे कि इन किसानों को मदद देनी चाहिए। परंतु बहुत दिन गुजर जाने पर भी जवाब न पाया। ओशियो ने अपने कपड़े और किताबें नीलाम कर दी। जो कुछ मिला, मुट्ठो भर- कर उन आदमियों की तरफ फेंक दिया। भला इससे क्या हो सकता था ? परंतु ओशियो का दिल इससे पूर्ण शिव रूप हो गया। यहाँ इतना जिक्र कर देना काफी होगा कि जापान के लोग अपने बादशाह को पिता की तरह पूजते हैं। उनके हृदय की यह एक वासना है ऐसी कौम के हजारों भादमी इस वीर के पास जमा हैं। ओशियो ने कहा-"सब लोग हाथ में बाँस लेकर तैयार हो जाओ और बगावत का झंडा खड़ा कर दो।" कोई भी चूँ वा चरा न कर सका। झंडा खड़ा हो गया। ओशियो एक बाँस पकड़कर सबके आगे किओटो जाकर बादशाह के किले पर हमला करने के लिये चला। इस फकीर जनरल की फौज की चाल को कौन रोक सकताथा जब शाही किले के सरदार ने देखा तब उसने रिपोर्ट की और आज्ञा माँगी कि ओशियो और उसकी बागी फौज पर बंदूकों की बाढ़ छोड़ी जाय ? हुक्म हुआ कि “नहीं, ओशियो तो कुदरत के सब्ज वों को पढ़नेवाला है। वह किसी खास बगावत का
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बात के लिये चढ़ाई करने आया होगा। उसको हमला करने दो और आने दो।" जब ओशियो किले में दाखिल हुमा तब वह सरदार इस मस्त जनरल को पकड़कर बादशाह के पास उस वक्त ओशियो ने कहा-वे राजभांडार, जो अनाज से भरे हुए हैं, गरीबों की मदद के लिये क्यों नहीं खोल दिए जाते ?

जापान के राजा को डर सा लगा। एक वीर उसके सामने खड़ा था, जिसकी आवाज में दैवी शक्ति थी। हुक्म हुआ कि शाही भांडार खोल दिए जायें और सारा अन्न दरिद्र किसानों को बाँटा जाय । सब सेना और पुलिस धरी की धरी रह गई । मंत्रियों के दफर लगे के लगे रहे। प्रोशियो ने जिस काम पर कमर बाँधो उसको कर दिखाया। लोगों की विपत्ति कुछ दिनों के लिये दूर हो गई। प्रोशियो के हृदय की सफाई, सचाई और दृढ़ता के सामने भला कौन ठहर सकता था ? सत्य की सदा जीत होती है। यह भी वीरता का एक चिह्न है। रूस के जार ने सब लोगों को फाँसी दे दी। किंतु टाल्सटाय को वह दिल से प्रणाम करता था; उनकी बातों का आदर करता था। जय वहीं होती है जहाँ कि पवित्रता और प्रेम है। दुनिया किसी कूड़े के ढेर पर नहीं खड़ी है कि जिस मुर्ग ने बाँग दी वही सिद्ध हो गया। दुनिया धर्म और अटल आध्यात्मिक नियमों पर खड़ी है। जो अपने आपको उन नियमों के साथ अभिन्नता करके
[ १७१ ]खड़ा हुआ वह विजयी हो गया । आजकल लोग कहते हैं कि काम करो, काम करो। पर हमें तो ये बातें निरर्थक मालूम होती हैं। पहले काम करने का बल पैदा करो-अपने अंदर ही अंदर वृत्त की तरह बढ़ो। आजकल भारतवर्ष में परोपकार करने का बुखार फैल रहा है। जिसको १०५ डिग्री का यह बुखार चढ़ा वह आजकल के भारतवर्ष का ऋषि हो गया । अाजकल भारतवर्ष में अखबारों की टकसाल में गढ़े हुए वीर दर्जनों मिलते हैं। जहाँ किसी ने एक दो काम किए और आगे बढ़कर छाती दिखाई तहाँ हिंदुस्तान के सारे अखबारों ने "हीरो" और "महात्मा” की पुकार मचाई। बस एक नया वीर तैयार हो गया। ये तो पागलपन की लहरें हैं। अखबार लिखनेवाले मामूली सिक्के के मनुष्य होते हैं। उनकी स्तुति और निंदा पर क्यों मरे जाते हो ? अपने जीवन को अखबारों के छोटे छोटे पैराग्राफों के ऊपर क्यों लटका रहे हो ? क्या यह सच नहीं कि हमारे आजकल के वीरों की जाने अखबारों के लेखों में हैं ? जहाँ इन्होंने रंग बदला कि हमारे वीरों के रंग बदले, ओठ सूखे और वीरता की आशाएँ टूट गई।

प्यारे, अंदर के केंद्र की ओर अपनी चाल उलटो और इस दिखावटी और बनावटी जोवन की चंचलता में अपने आपको न खो दो। वीर नहीं तो वीरों के अनुगामी हो और वीरता के काम नहीं तो धीरे धीरे अपने अंदर वोरता के परमा- णुओं को जमा करो। [ १७२ ]जब हम कभी वीरों का हाल सुनते हैं तब हमारे अंदर भी वीरता की लहरें उठती हैं और वीरता का रंग चढ़ जाता है। परंतु वह चिरस्थायी नहीं होता। इसका कारण सिर्फ यही है कि हमारे भीतर वीरता का मसाला तो होता नहीं। हम सिर्फ खालो महल उसके दिखलाने के लिये बनाना चाहते हैं। टीन के बरतन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केंद्र में निवास करो और सचाई की चट्टान पर दृढ़ता से खड़े हो जानो। अपनी जिंदगी किसी और के हवाले करो ताकि जिंदगी के बचाने की कोशिशों में कुछ भी वक्त जाया न हो। इसलिये बाहर की सतह को छोड़कर जीवन के अंदर की तहों में घुस जाओ; तब नए रंग खुलेंगे। द्वेष और भेददृष्टि छोड़ो; रोना छुट जायगा। प्रेम और आनंद से काम लो; शांति की वर्षा होने लगेगी और दुखड़े दूर हो जायँगे। जीवन के तत्त्व का अनुभव करके चुप हो जाना; धीर और गंभीर हो जाओगे। वीरों की, फकीरों की, पीरों की यह कूक है——हटो पीछे, अपने अंदर जानो, अपने आपको देखो, दुनियाँ और की और हो जायगी। अपनी आत्मिक उन्नति करो।

——पूर्णसिंह