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कहीं आपका मतलब श्रि माताजी निर्मला देव तो नहीं था?
  • अहल्या मेरी कुल देवी नहीं हो सकती, चाहे इसके लिए मुझे तुत्र वियोग ही सहना पड़े । मैं भी जिद्दी हूँ। [ २०३ ]चक्रधर पीछे घूमे ही थे कि निर्मला ने उनका हाथ पकड़...
    २९४ B (३,३०९ शब्द) - १९:४१, ५ मार्च २०२३
  • पैरों पर शीश झुका दिया और पुलकित कण्ठ से बोली––माताजी धन्य भाग्य कि आपके दर्शन हुए। जीवन सफल हो गया। निर्मला सारा शिष्टाचार भूल गयी, बस, खड़ी रोती रही। मनोरमा...
    २९४ B (३,७८६ शब्द) - ११:५५, २७ फ़रवरी २०२३
  • सुद०--राजकुमार की माताजी ने स्वयं प्राकर मुझसे यह फरमाया कि तुम्हें नारदजी बुलारहे है। उप्र०--फिर तुम वहाँ से हटगये ? [ ८३ ]सुद॰––हाँ महाराज, माताजी की आज्ञा मानकर...
    ३०३ B (९,१४५ शब्द) - १९:२०, १९ जनवरी २०२४
  • अन्याय ही किये, तो क्या मुझे तुम्हारे हाथों यह दंड मिलना चाहिए? इसका भय मुझे माताजी से था, तुमसे न था। आह सोफी! इस प्रेम का यों अंत न होने दो, यों मेरे जीवन...
    २१२ B (५,५७७ शब्द) - १९:२६, ३१ जुलाई २०२३
  • बतायी थी। मुन्नी देवी और लवकुश को मैंने उस समय उसी घटनास्थल पर देखा था और बिटोला देवी भी आ गयी थी और सोम सिंह भी आ गया था। मुझसे मुन्नी देवी ने यह नहीं कहा...
    २५८ B (७२,७९७ शब्द) - ०१:४२, १६ जून २०२३
  • नौका को ईश्वर ही पार लगाये, तो लगे। चलो, अच्छा ही हुआ। जेल में रहने से माताजो को तसकीन होगी। यहाँ से नान बचाकर भागता, तो वह मुझसे बिलकुल निराश हो जाती।...
    २१२ B (३,७०९ शब्द) - १९:२४, ३१ जुलाई २०२३