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पृष्ठ:अनासक्तियोग.djvu/१८

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अनासक्तियोग तस्य अपर्याप्त तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् । पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥१०॥ भीष्मद्वारा रक्षित हमारी सेनाका बल अपूर्ण है, पर भीमद्वारा रक्षित उनकी सेना पूर्ण है। अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः । भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ।।११।। इसलिए आप सब अपने-अपने स्थानसे सब मार्गोंसे भीष्मपितामहकी रक्षा अच्छी तरह करें । ११ (इस प्रकार दुर्योधनने कहा) संजनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः । सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्ख दध्मौ प्रतापवान् ।।१२॥ तब उसे आनंदित करते हुए कुरुवृद्ध प्रतापी पितामहने उच्चस्वरसे सिंहनाद करके शंख बजाया। १२ ततः शङ्खाश्च भैर्यश्च पणवानकगोमखा. । सहसवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥१३॥ फिर तो शंख, ढोल, मृदंग और रणसिंगे एक साथ ही बज उठे। यह नाद भयंकर था। तत: श्वतर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ । माधवः पाण्डवश्व दिव्यौ शङ्खो प्रदध्मतुः ।।१४।। नगारे,