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अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/अफगानिस्तान

विकिस्रोत से
अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ २२ से – २३ तक

 

अफगानिस्तान—यह देश भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर है। क्षेत्रफल २,५०,००० वर्गमील तथा जनसंख्या १,००,००,००० है। इसकी राजधानी काबुल है। इसका शासक मुहम्मद जहीर शाह है। यह पहाड़ी प्रदेश है—बहुत ही पिछड़ा हुआ तथा औद्योगिक दृष्टि से अविकसित। इसकी स्वाधीनता की रक्षा का मुख्य श्रेय इस देश की भौगोलिक स्थिति तथा अफगानों की युद्ध-प्रियता को है। यह सोवियट रूस और भारत के बीच मे तटस्थ राज्य है। इस देश मे मुख्यतः तीन भाषाएँ प्रचलित हैं—फारसी, पश्तो और तुर्की। सन् १९१९ मे अमीर हबीबुल्ला का, जो उदार विचार का और अँगरेजो का समर्थक शासक था, विरोधियो द्वारा क़त्ल कर दिया गया। नसरुल्ला को वह लोग अमीर बनाना चाहते थे। परन्तु अमीर हबीबुल्ला के पुत्र अमानुल्ला ने ऐसा करने मे बाधा उपस्थित की। उसने नसरुल्ला को क़ैद करलिया और स्वयं सिंहासन पर बैठ गया। उसने सबसे पहले अंगरेज़ो के विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी। अफगान-सेना ख़ैबर दर्रे मे आगई और भारत के सीमा-प्रान्त के विद्रोही कबीलो को सहायता देनी शुरू करदी। अफगान बड़ी जल्दी पराजित हो गए और विराम-संधि हो गई। सन् १९२१ मे ब्रिटेन तथा सोवियट रूस से उसने संधि कर ली। इसके बाद अमीर अमानुल्ला ने अपने देश मे अनेक सुधार किये। सन् १९२६ मे अमीर पद छोड़कर उसने बादशाह की उपाधि ग्रहण की। सन् १९२७-२८ मे उसने यूरोप के देशो का भ्रमण किया और उन देशों की आश्चर्य-जनक प्रगति से प्रभावित होकर अपने देश में भी आधुनिकता लाने का आयोजन किया। उसने इस कार्य में तुर्की के त्राता कमाल पाशा का अनुकरण किया। यूरोप की वेशभूषा, आभूषण तथा रहन-सहन का प्रचलन किया, पर्दे की रिवाज बन्द करदी तथा एकपत्नी-व्रत

पालन का नियम बना दिया। इसका परिणाम यह हुआ की सन् १९२९ में मुल्लाओ ने अमानुल्ला के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। सयोग से बादशाह की सेना के सैनिको का वेतन बकाया था और सैनिको मे असंतोष था, इसलिए फौज़ भी उसका साथ न दे सकी। वह भारत मे भागकर आगया और यहाँ के रास्ते इटली चला गया। तब से वह वही पर है। इसके बाद अफग़ानिस्तान मे बड़ा भीषण गृह-युद्ध हुआ। अमानुल्ला-विरोधी विद्रोह का नेता एक मामूली भटियारा बन गया। इसका बाप भिश्ती था, इसलिए विद्रोह में इसका नाम ब्च्चा-सक़्क़ा पड़ गया। इसने शासन का भार सँभाल लिया और अमानुल्ला ने जितने सुधार किए थे, वे सब रद कर दिये गये। परन्तु वह योग्य शासक सिद्ध न हुआ। जनरल नादिरख़ाॅ ने, जो इन दिनो पेरिस मे अपने दिन काट रहा था, काबुल वापस आकर बच्चा-सक्क़ा के ख़िलाफ़ विद्रोह का फण्डा उठाया। सीमान्त के वज़ीरियो की मदद से उसने बच्चा-सक़्क़ा को पराजित कर दिया और सन् १९२९ में उसे फॉसी दे दी गई।

नादिरख़ॉ नादिरशाह नाम रखकर अफग़ानिस्तान की राजगद्दी पर बैठा। उसने फिर से देश मे शान्ति और व्यवस्था स्थापित कर दी। ब्रिटिश सरकार से उसने फिर शान्तिपुर्ण संबंध स्थापित किया। अफ़ग़ानिस्तान से रूस का प्रभाव भी मिट गया। ८ अप्रैल सन् १९३३ को, जबकि नादिरशाह एक खेल के अवसर पर पारि-


तोषिक वितरण कर रहा था, उसका वध कर दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि इस हत्या में कोई राजनीतिक रहस्य नहीं था। न्यायालय के एक पदच्युत अफसर के लड़के ने बदला लेने के लिए उसका वध किया। इसके बाद नादिरशाह का बेटा मुहम्मद ज़हीरशाह तख्त पर बैठा। वही बादशाह है।