अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/ख

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अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश  (1943) 
द्वारा रामनारायण यादवेंदु

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खाकसार आन्दोलन–अगस्त १९३२ से इस आन्दोलन ने ज़ोर पकड़ा। इसके संस्थापक इनायतुल्ला ख़ाॅ 'मशरिक़ी' साहब ने कहा कि मिस्र, ईरान, ब्रह्मा तथा अफग़ानिस्तान में भी ख़ाकसार है, और हिन्दू भी इस आन्दोलन में सम्मिलित हुए हैं। भारत के नवावी तथा मुस्लिम रियासतों से काफी धन इस आन्दोलन के लिए मिला। 'ख़ाकसार' का अर्थ है सेवा और इस नाम से ऐसा प्रकट होता है कि यह कोई समाज सेवा के
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आन्दोलन था। परन्तु वास्तव में इस आन्दोलन का अभिप्राय भारत में मुसलमानो का प्रभुत्व स्थापित करना था। इस्लाम की प्रभुता तथा मुसलमानी राज्य की स्थापना ही इसका मुख्य उद्देश्य था। राज्य की स्थापना के लिए सेना की आश्यकता होती है। इसीलिए ख़ाकसारो को सैनिक ढंग से जीवन बिताना पड़ता था। वे शिविरो में रहते थे तथा फौजी पोशाक पहनते और बेलचा धारण करते थे। ख़ाकसारो की पताका लाल रंग की थी, जिस पर सफेद निशान था। ख़ाकसारो के चार दर्जे क़ायम किये गये थे--(१) जॉबाज़-जो अपने जीवन का भी बलिदान करने को तैयार रहे। (२) पाकवाज़-यह आन्दोलन को आर्थिक सहायता देते थे। (३) ख़ाकसार—यह साधारण सैनिक बनकर काम करते थे। इनकी संख्या सबसे ज्यादा थी। (४) मुआवनीन्–इनको वर्ष में ३ मास तक फौजी शिक्षा लेनी पड़ती थी। यह एक प्रकार की स्थायी (रिजर्व) सेना थी। यह आन्दोलन प्रजातत्र, अहिंसा तथा साम्प्रदायिक एकता के विरुद्ध था। ख़ाकसार आन्दोलन जर्मनी के नाज़ी आन्दोलन से कई बातो मे मिलता था। इसका आधार, नाज़ी आन्दोलन की भॉति, हिंसात्मक तथा फौजी था। इसकी कार्य-प्रणाली भी शान्ति, व्यवस्था तथा वैधानिक सरकार के अस्तित्व के लिए ख़तरनाक थी।

ख़ाकसारो के उत्पातों से पंजाब तथा भारत सरकार बहुत चिंतित होने लगी। अतः फरवरी १९४० में पजाब सरकार ने एक आर्डर जारी किया जिसके अनुसार सभी अर्द्ध-सैनिक दलों को अपने शस्त्रो को धारण कर परेड करने की मनाही कर दी गई। १५ मार्च १९४० को 'अल-इस्लाह' में एक वक्तव्य प्रकाशित हुआ, जिसमे ख़ाकसारो को आदेश था कि उपर्युक्त प्रतिबन्ध का वे लाहोर मे जमा होकर जवाब दे। २१ मार्च १९४० को लाहोर में अखिल-भारतीय मुस्लिम लीग का अधिवेशन होनेवाला था। उससे दो दिन पूर्व लाहोर के डब्बी बाज़ार में अचानक ३१३ बावर्दी ख़ाकसार बेलचे लेकर आगये। उन्होने क़वायद भी की। जब पुलिस अफसर उन्हे समझाने लगे, तो उन्होने बेलचो से उन पर हमले किये। सीनियर पुलिस कप्तान के सख्त चोटे आई। अतः पुलिस ने गोली चलाई। २९ ख़ाकसार तो घटनास्थल पर ही मारे गये, १०-११ अस्पताल में जाकर मरे। इसके बाद ख़ाकसार आन्दोलन
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पंजाब में गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया गया। देहली में अल्लामा ‘मशरिक़ी' भारत सरकार द्वारा गिरफ्तार किये गये। लाहोर में मुस्लिम-लीग के अधिवेशन में श्री मुहम्मदअली जिन्ना ने ख़ाकसारों के प्रति सहानुभूति प्रकट की और पंजाब सरकार की आलोचना की तथा घटना की निष्पक्ष जॉच के लिए प्रस्ताव पास हुआ। परन्तु ख़ाकसार फिर भी लीग से अलग ही रहे। श्री जिन्ना यह चाहते थे कि वे मुस्लिम-लीग में शामिल होजायॅ। परन्तु ८ मई १९४० के वक्तव्य में श्री जिन्ना ने स्पष्ट शब्दो मे यह कह दिया--"मैं यह बतला देना चाहता हूँ कि ख़ाकसार आन्दोलन लीग से बिल्कुल स्वतंत्र है और उसका लीग से कोई सबंध नही है। लीग उनके संबंध में कुछ भी नहीं कर सकती, क्योकि उनके संगठन की काररवाइयो पर हमारा कोई नियंत्रण नही और न हमारे पास ऐसा कोई अधिकार है जो उनकी ओर से कोई समझौता कर सके।”


खान अब्दुल गफ्फार खाॅ--जन्म सन् १८९०। ख़ुदाई ख़िदमतगार संगठन के नेता तथा संचालक। रौलट-ऐक्ट के विरोध मे, १९१९ में, आन्दोलन किया। असहयोग-आन्दोलन में ३ साल की सख्त सज़ा दी गई। सन् १९२९ में अफ़ग़ान जिरगो का संगठन किया। सन् १९३२ से १९३४ तक हज़ारीबाग़ जेल ( बिहार ) मे राजबन्दी रहे। सन् १९३४ में, अपने भाई डा० ख़ान साहब सहित, पंजाब से निर्वासित कर दिये गये। तब वर्धा के निकट सेवाग्राम आश्रम में गान्धीजी के पास रहे। सन् १९३५ में, बम्बई कांग्रेस अधिवेशन के संबंध में भाषण देने पर, दो साल की सख्त सज़ा दी गई। ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ॉ महात्मा गान्धी के अहिंसावाद के कट्टर समर्थक हैं । महात्माजी के बाद ख़ॉ साहब ही हैं, जो अहिंसा के अनन्य पुजारी हैं। उनके १,००,००० से भी अधिक अनुयायी हैं जो खुदाई ख़िदमतगार के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह वास्तव में एक महान् आश्चर्य ही है कि इन वीर पठानो ने हिंसा का त्याग कर अहिंसा का व्रत लिया है और सत्याग्रह आन्दोलन ( १९३०-३२ ) में इनकी कठिन परीक्षा भी हो चुकी है। सन् १९३० ई० में गढ़वाली सैनिको का निहत्थी जनता पर गोली चलाने से इनकार, फिर पेशावर गोली-काण्ड और पठानो का बलिदान, कांग्रेस द्वारा गोली-काण्ड की जॉच और उसकी

रिपोर्ट की ज़ब्ती आदि सभी घटनाये इस प्रसङ्ग से सम्बन्धित हैं। [ ९६ ]
आप सच्चे मुसलमान हैं--सहिष्णु,

उदार, सहृदय। आचारिक मर्यादा-पालन को ही आप धर्म नहीं मानते, बल्कि दैनिक जीवन में पवित्र आचरण को धार्मिक-कसौटी मानते हैं। ९ अगस्त १९४२ से, ‘भारत छोडो' प्रस्ताव के बाद देश में जो उपद्रव हुए हैं, आपके सीमा-प्रान्त मे शान्ति रही और बावजूद देशव्यापी दमन के कांग्रेस इस प्रान्त में गैर-क़ानूनी क़रार नही दी गई, अगरचे स्कूलों आदि पर धरने के कारण गिरफ्तारियाँ हुई।


खान साहब, डाक्टर--खा़न अब्दुल गफ्फार खाॅ के बड़े भाई तथा सीमा-प्रान्त के काग्रेस-नेता। जन्म १८८३ ई०। मैट्रिक पास कर विलायत गये। लन्दन से एम० आर० सी०

ए० की डिग्री ली। आई० एम० एस० में शामिल हुए। गत युद्ध के बाद फ्रान्स में तैनाती हुई। १९२० में देश लौटे, राष्ट्रोद्धार मे छोटे भाई के सहयोगी बने। आप इण्डियन मेडिकल सर्विस (I M S) के सदस्य हैं। सन् १९३७ में सीमा- प्रान्त की सरकार के प्रधान मन्त्री नियुक्त किये गये तथा अक्टूबर १९३९ में तमाम कांग्रेसी सरकारों के साथ, आपके मंत्रि-मण्डल ने त्याग-पत्र दे दिया। सन् १९४० के युद्ध-विरोधी सत्याग्रह में गिरफ्तार किये गये। [ ९७ ]खेर, बालाजी गंगाधर--आपने

बी० ए०, एलएल० बी० तक शिक्षा प्राप्त की है। बम्बई प्रान्त के कांग्रेसी नेता हैं। सन् १९३७ में बम्बई सरकार के प्रधान मंत्री नियुक्त किए गए। बम्बई में आपकी कांग्रेसी सरकार ने अनेक सुधार किए, जिनमें शराबबन्दी सबसे प्रमुख है। सन् १९३९ में अपने तथा आपके साथी कांग्रेस मंत्रियो ने पदत्याग कर दिया। सन् १९४० में युद्ध-विरोधी-सत्याग्रह में जेल गये। सन् ४२ के भारतव्यापी दमन में फिर पकड़े गये।

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