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अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/च

विकिस्रोत से
अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ १०९ से – १२१ तक

 






चर्चिल, राइट आनरेब्ल विन्स्टन लियोनार्ड स्पेन्सर--जन्म ३० नवम्बर सन् १८७४। हैरो तथा सेंडहर्स्ट में शिक्षा पाई। सन् १८९५ में सेना में भर्ती होगये। दो युद्धो में भाग लिया। दक्षिण अफ्रीकी-युद्ध में 'मार्निग् पोस्ट' के युद्ध-संवाददाता रहे। बोअरों ने इन्हे युद्ध-बन्दी बना लिया, लेकिन आप भाग निकले। १९०० में अनुदार-दल की ओर से कॉमन-सभा के सदस्य चुने गये। जोसफ़ चेम्बरलेन की तटकर (टैरिफ) नीति का विरोध किया तथा मुक्त-व्यापार का समर्थन। उदार-दल में शामिल हो

गये। १९०५ मे उपनिवेशो के उपमंत्री नियुक्त किये गये और १९०८ में व्यापार-बोर्ड के अध्यक्ष। सन् १९१२ में आइरिश होम रूल बिल का समर्थन किया। इसके बाद नौसेना विभाग के मंत्री बनाये गये। सन् १९१५ में उन्होने मंत्रि-मण्डल से, मतभेद के कारण, त्यागपत्र दे दिया। फ्रान्स में युद्ध-मोर्चे पर भाग लेने गये। कर्नल' बनकर काम किया। १९१७ में अस्त्र-शस्त्र-विभाग के मंत्री बनाये गये। सन् १९१८-२१ तक युद्ध-मंत्री तथा हवाई- सेना-विभाग के मंत्री रहे। सन् १९२१-२३ मे उपनिवेशों के मंत्री रहे। १९२२ में आयरलैण्ड से हुए समझौते का समर्थन किया। इसके बाद

वह पक्के बोल्शेविक-विरोधी बन गये। उनके विचारो से उदारदली लिबरली को घृणा होगई। सन् १९२२ में अपने डडी निर्वाचन-क्षेत्र से, इस कारण, चुनाव मे सफल न हो सके। कुछ समय तक क्रियात्मक राजनीति से अलग रहे। युद्ध के संबंध में उन्होंने अपना महान् ग्रन्थ “ससार-सकट” (The World Crisis) लिखा। यह ६ भागों में प्रकाशित हुआ। सन् १९२४ में उन्होंने फिर राजनीति मे प्रवेश किया, अनुदार-दल में शामिल हुए और उसकी और से ऐपिंग् क्षेत्र से पार्लमेट के सदस्य चुने गये। तब से बराबर सदस्य है। बाल्डविन-सरकार मे आप अर्थमंत्री रहे। सन् १९३० से वर्तमान युद्ध के आरम्भ तक उन्होंने मत्रि-मण्डल मे कोई पद ग्रहण नही किया। परन्तु वैदेशिक नीति के सचालन में बहुत दिलचस्पी लेते रहे। इन दिनो के चर्चिल के भाषणो और लेखो की जनता ने बहुत दाद दी और अपनी दूरदर्शिता के लिये तो वह पहले ही नाम पा चुके थे। १९३३ तक वह फ्रान्स के नि: शस्त्रीकरण के विरोधी रहे, किन्तु यह भी कहते रहे कि जर्मनी की शिकायतो को रफा किया जाय। सन् १९३९ मे जर्मनी में नाजीवाद का दौरदौरा होते ही चर्चिल ने कहा कि खबरदार, एक बड़ा खतरा आ रहा है, और उन्होने बरतानिया की सभी खासकर हवाई ताक़त बढ़ाई जाने पर ज़ोर दिया। उन्होने बता दिया कि हिटलर अब मध्य यूरोप मे बढेगा और वह सारी दुनिया

पर छा जाना चाहता है। सन् १९३८ मे आपने ईडन तथा डफ कूपर के साथ म्युनिख समझौते को नामज़ूर किया। सन् १९३९ में युद्ध-मत्रि-मण्डल में चर्चिल नौ-सेना-विभाग के मत्री नियुक्त किये गये। मई १९४० में जब चेम्बरलेन ने त्यागपत्र दे दिया तब आप ब्रिटेन के प्रधान मत्री बने। तब से आप बराबर बड़े धैर्य तथा वीरता के साथ ब्रिटिश-साम्राज्य को जर्मनी तथा इटली और अब जापान के आक्रमणो का मुक़ाबला करने के लिये तैयार कर रहे हैं। किंतु, आपके प्रधान-मन्त्रि-काल मे एक दो दफा हार हुई और इसी कारण आप पर दोबार पार्लमेण्ट मे अविश्वास

का प्रस्ताव भी आचुका है, पर आपके दल की विजय होती रही है। चर्चिल

एक श्रेष्ठ और प्रभावशाली वक्ता ही नही एक उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ और लेखक भी हैं। भारत के आप विकट विरोधियों में हैं। सन् १९३१ मे जब गान्धी-इर्विन समझौता हो रहा था तब आप बहुत बिगड़े थे, और कहा था कि अफसोस है कि एक अधनंगा फ़क़ीर वाइसराय के महल पर चढ़ता है।


चतुर्दश सिद्धान्त--संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने अमरीका की कांग्रेस के समक्ष, ८ जनवरी १९१८ को, अपना ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमे उन १४ सिद्धान्तो का उल्लेख किया जिनके आधार पर जर्मनी के साथ मित्र-राष्ट्र सधि कर सकते हैं।

वे चौदह सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं:--

( १ ) संधि प्रकाश्य रूप मे हो। गुप्त रूप से कोई बात तय न की जाय।

( २ ) समुद्रो पर आवागमन की स्वाधीनता सबको रहे।

( ३ ) आर्थिक प्रतिबंधो का परित्याग किया जाय।

( ४ ) निःशस्त्रीकरण के सिद्धान्त मे विश्वास। शस्त्रीकरण इतना कम कर दिया जाय कि प्रत्येक राष्ट्र के पास केवल उतनी ही सेना रह जाय जितनी उसकी रक्षा के लिये आवश्यक है।

( ५ ) औपनिवेशिक दावो का निष्पक्ष रीति से निर्णय हो।

( ६ ) रूसी अधिकृत-प्रदेश रूस को वापस दे दिया जाय तथा उसको स्वभाग्य-निर्णय का पूरा अधिकार रहे।

( ७ ) वेलजियम से जर्मन-सेनाएँ वापस कर ली जाये तथा उसे पूर्वावस्था मे कर दिया जाय।

( ८ ) जिन फ्रान्सीसी प्रदेशो पर जर्मनों का अधिकार है, वह तथा अल्सेस लोरेन प्रदेश फ्रान्स को दे दिये जायॅ।

( ६ ) इटली की सीमाएँ स्पष्ट रूप से निर्धारित कर दीजायॅ।

( १० ) आस्ट्रिया-हगरी की प्रजा को स्व-शासन-विकास का पूरा सुयोग प्राप्त हो।

( ११ ) रूमानिया, सर्बिया, मोन्टीनिग्रो से जर्मन आधिपत्य वापस किया जाय। सर्विया की समुद्री-तट तक पहुँच स्वीकार की जाय। बल्कान राज्यों के
पारस्परिक संबंध, उनकी ऐतिहासिक परम्परा के आधार पर, निर्धारित किये जायॅ। उनकी सुरक्षा के लिये अन्तर्राष्ट्रीय निश्चित आश्वासन दिया जाय।

( १२ ) तुर्किस्तान के गै़र-तुर्की प्रदेशों में स्व-शासन का विकास किया जाय। दरेदानियाल मे होकर स्वतंत्र मार्ग हो।

( १३ ) स्वतंत्र पोलिश राज्य स्थापित किया जाय और उसकी सीमा समुद्र-तट तक हो। उसकी रक्षा के लिये अन्तर्राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी रहे।

( १४ ) समस्त राष्ट्र की एक सभा स्थापित की जाय जो छोटे-बड़े सभी राज्यों की सुरक्षा के लिये दायी हो।

इनमे सिद्धान्त-संख्या १, ३, ४, ५ और ६ को, सन्धि करते समय, अमल में नही लाया गया। शेष सिद्धान्तों का पालन भी आंशिक किया गया।


चातुर्वर्षीय-योजना--सोवियत रूस की पंच-वर्षीय योजना का अनुकरण कर जर्मनी ने, अपने आर्थिक विकास तथा औद्योगिक उन्नति के लिये, एक चातुर्वर्षीय योजना, सन् १९३३ में, कोयला, लोहा, तेल, आदि व्यवसायो की उन्नति के लिये बनाई। इस योजना में भवन-निर्माण, सड़क-निर्माण आदि शामिल थे। वास्तव में यह योजना स्थगित कर दीगई और शस्त्रीकरण ज़ोरों के साथ आरम्भ किया गया, जिससे जर्मनी की बेकारी में भी बहुत कमी होगई। सितम्बर १९३६ में हिटलर ने दूसरी चातुर्वर्षीय योजना की घोषणा की। यह योजना सन् १९३७ से १९४० तक के लिये बनाई गई थी। इस योजना में उद्योगों के विकास पर ज्यादा ज़ोर दिया गया था। हिटलर जर्मनी को औद्योगिक दृष्टि से स्वाश्रयी बनाना चाहता था। यह योजना पूरी भी न होपायी थी कि यूरोप में जर्मनी ने युद्ध शुरू कर दिया।


चियांग् काई-शेक--चीन के प्रधान सेना-नायक तथा राष्ट्रीय नेता। चियांग् काई-शेक का, चेकियांग् में, सन् १८८८ मे, जन्म हुआ। इनके पिता शराब के व्यापारी थे। जब इनकी आयु २० वर्ष की थी, तब उत्तरी चीन की एक मिलिटरी ऐकेडेमी (सैनिक शिक्षण-संस्था) में भरती हो गये। इनकी सैनिक शिक्षा जापान में समाप्त हुई, जहॉ डा० सन यात-सेन से इनकी भेंट हो गई। तबसे इन्होंने क्रान्तिकारी-दल मे प्रवेश किया तथा को मिन तांग (चीनी प्रमुख राष्ट्रीय संस्था) के सदस्य बन गये। सन् १९११, १९१२ और १९१७ की चीनी क्रान्तियो मे भाग लिया। सन् १९१७ से १९२२ तक डा० सन यात-सेन के सहयोगियो में रहे। सन् १९२३ में मास्को मिलिटरी ऐकेडेमी मे गये। सन् १९२४ में कैन्टन के पास व्हाम्पू में चीनी मिलिटरी ऐकेडेमी के अध्यक्ष हुए। इस संस्था के सैनिको को संगठित कर आपने, सन् १९२५ में, दक्षिण चीन के प्रतिद्वन्द्वी जनरलो के विद्रोह का दमन किया। जब डा० सन यात-सेन की मृत्यु होगई तो चियांग् को मिन तांग् के नेता होगये। साम्यवादियो (Communists) से सहयोग किया, प्रमुख सेनापति (Generalissimo) बने, और सन् १९२६ मे शंघाई पर आधिपत्य जमा लिया। मार्च १९२७ में उनका साम्यवादियो से तीव्र मतभेद हो गया, अतएव शंघाई मे आपने बहुसख्या में उनका वध किया। चियांग् ने नानकिंग में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना, पुरानी साम्यवादी को मिन तांग्-सरकार का विरोध करने के उद्देश्य से, की। अन्त में दोनो सरकारे मिल गई और चियांग् को अधिनायक स्वीकार किया गया। उत्तरी चीन की विजय के लिये प्रस्थान किया और सन् १९२८ में चियांग् काई-शेक ने वहाँ के सैनिक सर्वेसर्वा मार्शल चांग् सो-लिन को पराजित किया और सम्पूर्ण चीन देश नानकिंग्-सरकार के अधीन अधीन कर दिया। इस तरह चियांग् प्रधान मन्त्री और अधिनायक हो गये। परन्तु गृह-कलह जारी रहा। सन् १९३१ में चियांग् ने प्रधान-मन्त्री के पद से त्याग-पत्र दे दिया। सन् १९३२ मे वह फिर उसी पद पर नियुक्त किये गये। साम्यवादी सेनाएँ और कैन्टन में स्थापित वामपक्षीय सरकार इस समय चियाग् का विरोध कर रहे थे। साम्यवादियो ने दक्षिण के दो प्रान्तो में सोवियत-शासन स्थापित कर लिया था। चियांग् ने इन प्रान्तो पर सात बार चढ़ाई की और सन् १९३४ मे उन्हे परास्त कर दिया। कम्युनिस्ट सेना भाग तो गई पर उसने पश्चिम के केज़ेकुआन प्रान्त मे जाकर सोवियत सत्ता स्थापित करदी। इसके बाद चियांग् ने जापानियो के साथ समझौता करने की कोशिश की, जिन्होंने मंचूरिया पर क़ब्ज़ा कर लिया था तथा शंघाई पर आक्रमण कर दिया था। सन् १९३६ में चियाग् को एक प्रतिद्वन्द्वी जनरल ने पकड लिया, परन्तु बाद में समझौता होगया और वह छोड़ दिये गये। जब जुलाई १९३७ में जापान ने चीन पर हमला किया तब चियांग् काई-शेक ने प्रधान मन्त्री पद से त्याग-पत्र दे दिया और प्रमुख सेनापति का पद ग्रहण किया ताकि जापान का पूरी तरह मुकाबला किया जा सके।

चियाग् काई-शेक ने चीनी राष्ट्र में नवचेतन तथा राष्ट्रीयता को जगा दिया है। वह बड़ी दृटता, वीरता और धैर्य के साथ जापानियो का मुक़ाबला कर रहे हैं। जब दिसम्बर १९३७ मे नानकिंग् का पतन होगया तब उन्होने चुग्किंग् को अपनी राजधानी बनाया। उनकी

धर्मपत्नी, श्रीमती मे-लिंग् सुग्, का भी चीन के राष्ट्रीय संघर्ष में प्रमुख स्थान है। फरवरी १९४२ मे मार्शल चियाग् श्रीमती चियाग् काई-शेक सहित भारत आये। वह भारत के वाइसराय के अतिथि बने। उन्होने महात्मा गान्धी, प० जवाहरलाल नेहरू, मौ० आज़ाद तथा मि० जिन्ना आदि नेताओं से भेट की। अपके आगमन से भारत और चीन का पुरातन सास्कृतिक-नैतिक सम्बन्ध, राजनीतिक- सम्बन्ध के रूप मे, और भी दृढ़ हुआ है।


चीन--चीनी-प्रजातन्त्र। चीनी भाषा मे इसे 'चुग् हुआ मिन को' कहते हैं। मुख्य चीन मे १८ प्रान्त हैं तथा क्षेत्रफल १५,३३,००० वर्गमील है। इसमे मगोलिया, सिकियाग्, तिब्बत (जो १९१२ ई० तक चीन के अधीन था और अब स्वतन्त्र है) तथा मन्चूरिया--इन विवादास्पद बाहर के देशो को शामिल करके क्षेत्रफल ४२,७८,००० वर्गमील होजाता है। मुख्य चीन की जनसख्या ४०,००,००,००० है, और यदि उपर्युक्त देशो की जनसख्या भी शामिल की जाय, तो ४५,८०,००,००० हो जायगी। सन् १९११ में जब चीन मे क्रान्ति हुई, और फलतः मचू राजवश के एकतन्त्र शासन का अन्त होकर प्रजातन्त्र की स्थापना हुई तब से चीन में स्थायी रूप से गृहकलह होता रहा। प्रजातन्त्र के सर्वप्रथम पुरातन-पन्थी राष्ट्रपति मार्शल यूआन शि-काई का दक्षिणी चीन के प्रजातन्त्रवादी नेता डा० सन यात-सेन ने विरोध किया। सन् १९१५ में मार्शल यूआन ने अपने को चीन का सम्राट घोषित कर दिया। परन्तु थोड़े समय बाद ही उसका देहान्त होगया। क्रान्ति के

परम्परागत केन्द्र दक्षिण-चीन की राजधानी नानकिग् में डा० सन यात-सेन ने प्रगतिशील प्रजातन्त्र-शासन की स्थापना की। चीन के उत्तरी तथा दक्षिणी प्रान्तो में सदैव संघर्ष रहा है। वर्षों गृह-कलह चला; उत्तर और दक्षिण प्रदेश ही नहीं लड़ते रहे, बल्कि अनेक सेनापति अपने प्रभाव के प्रान्तों में शासन स्थापित करते और एक-दूसरे से लड़ते रहे। सन् १९२३ में डा० सन यात-सेन ने को मिन ताग्—चीन की राष्ट्रीय क्रान्तिकारी-सस्था--का, सोवियट सलाहकार वोरोडिन के सहयोग से, सगठन किया। तब से सोवियट रूस बराबर चीन की राज-क्रान्तियो में दिलचस्पी लेता रहा है। सन् १९३१ और १९३२ में चीन का नया शासन-विधान बनाया गया। को मिन तांग की राष्ट्रीय-कांग्रेस सर्वोच्च राष्ट्रीय सत्ता है। काग्रेस केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति (Cential Executive Committee) की नियुक्ति करती और यह समिति राष्ट्रीय सरकार बनाती है। सरकार के पॉच विभाग हैं-( १ ) शासन-प्रबन्ध, (२) व्यवस्था ( कानून ), ( ३ ) न्याय, (४) परीक्षा, (५ ) नियंत्रण। यह विभाग 'यूआन' कहलाते हैं। शासन-प्रवन्ध-विभाग ही वास्तव में सरकार है और इसके प्रमुख का पद दूसरे देशों के प्रधान-मंत्री के बराबर है। इसके अतिरिक्त एक राज-परिषद् ( State Council ) भी हैं । यह सरकार की सर्वोच्च संस्था है। इसका अध्यक्ष ही राष्ट्रीय सरकार का राष्ट्रपति होता है। शासन-प्रबंध-विभाग के अध्यक्ष चीन के एक महाजन (वेकर) डा० कुग् हैं, जो नियाग काई-शेक के साटू हैं। स्वर्गीय डा० सन यात-सेन से भी उनका यही नाता था।

जब चीन में आन्तरिक कलह कुछ शान्त होगया, तब बाहरी आक्रमण होने लगे और जापान ने उस पर हमला कर दिया। सन् १९३१ में जापान ने चीन के मंचूरिया प्रान्त पर अधिकार जमा लिया और वहाँ दिखावटी मन्चूरो राज्य की स्थापना कर दी। सन् १९३२ में शंघाई ने दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। चियांग ई-शेक ने समझौता कर लिया, क्योंकि वह जापान के भावी अनिवार्य आक्रमण के मुक़ाबले के लिये, जो समस्त चीन को हड़प जाने के इरादे से था, चीन की विभिन्नता नष्ट कर एकता और संगठन पैदा करना चाहे थे। और इसके लिये समय और शांति की आवश्यकता थी। संधि हो गई, परन्तु जुलाई १९३७ मे ७ ता० ३ चीनी जापानी सिपा-

हियो मे हुई ज़रा-सी मुठभेढ का एक बहाना लेकर जापान ने चीन से युद्ध छेड़ दिया। जापानी सेना ने चीन के एक विशाल प्रदेश सहित, दिसम्बर १९३७ मे, चीन की राजधानी नानकिंग् पर अधिकार जमा लिया और वहाँ वाग् चिंग्-वी की अध्यक्षता मे खिलौना-सरकार बना दी। चीन-सरकार अपनी राजधानी दक्षिण-पश्चिमी चीन के चुग्किंग् नगर मे उठा ले गयी। ब्रह्मा (बर्मा) से चुग्किंग् तक एक सड़क बनाई गई थी। यह बर्मा-रोड कहलाती है, जिसे १९४२ के अप्रैल तक चीन-सरकार इस्तेमाल करती रही; किन्तु अप्रैल मे, ब्रह्मा के पतन के साथ, यह सड़क भी जापानियो के अधिकार मे चली गई। जगी रसद और दूसरा अमरीकी और बरतानवी सामान आदि इसी मार्ग से चीन को जाता था,क्योंकि चीन के समुद्र-तटवाले प्रदेशो पर जापानियों का प्रभुत्व है। चीनी साम्यवादियो ने पुराने भेदभाव को भुलाकर, देश की आजादी की प्रेरणा से प्रभावित होकर, जनरलिस्सिमो चियाग् से समझौता कर लिया है और अपनी सेनाएँ, जापानियों से लड़ने के लिये, उनकी कमान (Command) में दे दी हैं, पर देश के भावी शासन-विधान के सम्बन्ध मे उनका आन्तरिक मतभेद है। चीन के सथ सोवियट रूस की सबसे अधिक क्रियात्मक सहानुभूति पहले से रही है। ब्रिटेन और सयुक्त-राज्य अमरीका भी, अपने हितों की रक्षा के लिये, चीन सहायता-सहानुभूति पीछे से करने लगे हैं और आज रूस के साथ चीन की भी साथी मुल्कों (United Nations) में गणना करते हैं। भारत और चीन का तो पुरातन सांस्कृतिक सम्बन्ध है। सन् १९३९ मे प० जवाहरलाल नेहारू चियाग् काई-शेक तथा अन्य नेताओ से भेट करने चीन गये। उन्होंने चीन का भ्रमण भी किया तथा भारत का संदेश सुनाया। आपके ही पयत्न से, कांग्रेस की और से, एक डाक्टरी सेवा-दल चीनी रणक्षेत्र पर भेजा गया था। अँगरेजों की ४५,००,००,००० पौंड की पूँजी चीन के उद्योगधन्धो और व्यवसायो मे और सयुक्त-राज्य अमरीका की ४०,००,००,००० डालर की पूँजी चीन के उद्योग मे लगी हुई है। चीन ही अकेला संसार मे सबसे बढा पिछड़ा प्रदेश है जिसका अभी तक यूरोपीय देश बँटवारा नही कर सके हैं। इसलिये चीन पर आज समस्त प्रगतिवादी देशो की दृष्टि लगी हुई है। चीन के मचूरिया (मचूक़ो)
प्रदेश पर जापान का, वाह्य मंगोलिया पर सोवियट रूस का, आन्तरिक मगोलिया पर जापान का, सिंकियांग् पर सोवियट रूस का इस समय नियंत्रण है। यह सभी प्रदेश चीन के अधिकार से पहले या पीछे निकल चुके है, पर चीन इन पर अपना आधिपत्य चाहता है। चीन-जपान-युद्ध मे, ७ जुलाई '४२ ई० तक, पिछले पाँच साल के युद्ध-काल में, २५ लाख जापानी और ३५ लाख चीनी मारे जा चुके हैं। धन-हानी भी अतुल हुई और हो रही है।


चेम्बरलेन, हौस्टन स्ट्यु अर्ट--जर्मन राजनीतिक लेखक। राष्ट्रीय-समाजवाद के व्याख्याकर। सन् १८५५ मे जन्म हुआ। वर्साई और जिनेवा मे शिक्षा प्राप्त की। अन्ना हार्स्ट के साथ १८७८ मे विवाह किया। रिचार्ड बैगनर पर जर्मन तथा फ्रेंच भाषाओ मे पुस्तक लिखी। वियना मे रहकर अपनी प्रधान कृति 'उन्नीसवीं शताब्दी की बुनियादे' जर्मन भाषा मे लिखी।
सन् १९०८ मे उन्होने वैगनर की पुत्री से दूसरा विवाह किया। सन् १९२७ में उनका देहान्त होगया। हिटलर को अपने उत्थान में उनकी कृतियों से बड़ी प्रेरणा मिली हैं।

चेम्बरलेन, राइट आनरेव्ल् (Rt Hon) नेविल–-सन् १८६९ में जन्म हुआ। जोसफ चेम्बरलेन के पुत्र। रखी और मैसन कालिज बर्मिघम मे शिक्षा प्राप्त की। सन् १९११ मे बर्मिंघम की कौसिल के सदस्य बन गये और सन् १९१५ में उसके मेयर। यहाँ उन्होने भवन-निर्माण तथा व्यवस्था के सम्बन्ध मे ज्ञान प्राप्त किया। सन् १९१८ मे कॉमन-सभा के सदस्य चुने गये। सन् १९२२ में पोस्ट मास्टर जनरल हुए तथा १९२३ में स्वास्थ्य-मंत्री। सन् १९२३ के भवन-निर्माण-व्यवस्था कानून के बनाने में इन्हीका हाथ था। अस्वास्थ्यकर तथा गदे मकानों को नष्ट कराकर नये ढंग से स्वास्थ्यप्रद मकान बनवाने की योजना बनाई। सन् १९३१ में अर्थ-मत्री नियुक्त किये गये। २८ मई १९३७ को जब बाल्डविन ने त्याग-पत्र दे दिया तब बरतानवी साम्राज्य के प्रधान मंत्री हुए। ३१ अगस्त १९३७ को आप ब्रिटिश पार्लमेट मे अनुदार दल के नेता चुने गये।

चेम्बरलेन की वैदेशिक नीति का मूलाधार सोवियट रूस का बहिष्कार, समाजवादी-अभिमत का विरोध तथा जर्मनी एवं इटली के अधिनायको के साथ ऐसा व्यवहार था जिससे वे सन्तुष्ट होजायॅ और अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना में सहायता दे। अपनी इस नीति का पालन करने में उन्होंने बड़ी तत्परता से काम लिया। इटली को प्रसन्न करने के लिये उन्होंने, सन् १९३५ में, उसके विरुद्ध राष्ट्र सघ द्वारा जारी की गई आर्थिक-दण्डाज्ञा का प्रयोग,बन्द कर दिया और ऐन्थनी ईडन, वैदेशिक-मत्री, को अपना पद छोड़ना पड़ा। स्पेन के गृह-युद्ध में ब्रिटेन को तटस्थ रखा, जर्मनी द्वारा आस्ट्रिया के अपहरण पर मौन धारण किया, चैकोस्लोवाकिया को कोई मदद नही दी तथा तीन बार हवाई यात्रा करके हिटलर से मिले और म्युनिख में समझौता किया। जब मार्च १९३९ मे हिटलर ने सम्पूर्ण चैकोस्लोवाकिया को अपने आधिपत्य में ले लिया तब उनकी ऑखे खुली और तब से उन्होने हिटलर के का विरोध करने का विचार किया। ब्रिटेन ने पोलेण्ड, रूमानिया,
यूनान और तुर्की को आक्रमणो से रक्षा करने का वचन दिया। रूस से भी मेल करने का प्रयत्न किया, परन्तु इस दिशा में हार्दिक प्रयत्न नहीं किया गया। उन्होने शान्ति की रक्षा के लिये ब्रिटेन के शस्त्रीकरण पर ज़ोर दिया। जब १ सितम्बर १९३९ को जर्मनी ने पोलैण्ड पर हमला किया तो ब्रिटेन ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध-घोषणा कर दी। पोलैण्ड के प्रश्न पर भी चेम्बरलेन ने अगस्त। १९३९ के अन्तिम सप्ताह में समझौता करने का भारी प्रयत्न किया। परन्तु हिटलर के आक्रमण से वह विचलित होगये और हिटलरवाद की कड़े शब्दो मे निंदा की। उन्होने युद्ध के बाद तुरन्त ही अपने भाषण में कहा कि ब्रिटेन का उद्देश्य नात्सीवाद का सर्वनाश करना है।

मई १९४० मे नार्वे मे ब्रिटिश-सेना की भारी पराजय से ब्रिटेन तथा मित्र-राष्ट्रो की जनता मे घोर नैराश्य छागया। कॉमन-सभा मे चेम्बरलेन की नीति तथा युद्ध-सचालन की कड़े शब्दो मे निदा की गई। पार्लमेट का बहुमत उनके विरुद्ध होगया और जो सदस्य सरकार के समर्थक थे वे विरोधी दल मे मिल गये। युद्ध-मत्री आदि

ने मि० चेम्बरलेन का साथ देना बन्द कर दिया। अतः चेम्बरलेन को प्रधान-मत्रित्व से त्याग-पत्र देना पड़ा। विन्स्टन चर्चिल प्रधान मंत्री नियुक्त किये गये। चेम्बरलेन कौसिल के लार्ड प्रेसीडेन्ट नियुक्त किये गये। परन्तु स्वास्थ्य ख़राब होजाने के कारण उन्होने ३ अक्टूबर १९४० को इस पद से त्याग-पत्र दे दिया। ९ नवम्बर १९४० को चेम्बरलेन का देहान्त होगया।


चैकोस्लोवाकिया--यह देश गत महायुद्ध के बाद आस्ट्रिया के पूर्वाधिकृत

प्रान्तों बोहेमिया, मोराविया, साइलेशिया और हंगरी के पूर्वाधिकृत स्लोवाकिया
और रूस के लघु कारपेथियन प्रान्तों को मिलाकर बनाया गया था। इनका क्षेत्रफल १९३८ ई० मे ५२,००० वर्गमील और जनसख्या १,५०,००,००० थी। यह प्रजातत्र राज्य था। इसमे कई अल्प-सख्यक जातियॉ है,परन्तु चैक जाति बहुमत मे थी। उनकी सख्या ७०,००,००० है। स्लोवाक ३०,००,००० से भी कम हैं। चैक यह कहते थे कि चैक और स्लोवाक मिलकर एक राष्ट्र बन जाय। परन्तु स्लोवाक इसके विरुद्ध थे। वह पृथक् राष्ट्र बनाना चाहते थे। मोराविया और बोहेमिया के सीमान्त प्रदेशो(सूडेटनलैण्ड)मे ३२,५०,००० जर्मन रहते थे जो और भी अधिक अधिकार चाहते थे। इनके अतिरिक्त ७,००,००० हगेरियन और ५,५०,००० रूथानियन या यूक्रेनियन थे। इन अल्पसंख्यक जातियो को यद्यपि राजनीतिक और क़ानूनी समान अधिकार प्राप्त थे, तथापि गैर-चैक प्रजा के साथ भेदभाव का बर्ताव किया जाता था,और इसीकी इन सब अल्पसख्यकों को शिकायत थी। जब सन् १९३३ मे हिटलर ने जर्मनी का शासन-भार ग्रहण किया, तब सूडेटनलैण्ड मे जर्मनो ने आन्दोलन शुरू किया। इनका नेता हेनलीन था। सूडेटन जर्मनो ने यह मॉग पेश की कि उन्हे चैकोस्लोवाकिया ने स्वराज्य दे दिया जाय। ब्रिटिश मध्यत्थ संसीमैन के प्रभाव से चैकोस्लोवाकिया की सरकार ने सूडेटन जर्मनों को स्वराज्य दे दिया।परन्तु फिर भी हैनलीन तथा हिटलर ने यह मॉग पेश की कि सूडेटन ज़िलो को जर्मनी मे मिलाने की बात को चैक स्विकार करे। सूडेटनलैण्ड मे घोर सघर्ष और उपद्रव मचा। परन्तु ग्रेटब्रिटेन, फ्रान्स और रूस ने, जिन्होने चैकोस्लोवाकिया की रक्षा के लिए वचन दिया था, और जो उनकी सहायता पर निर्भर था, उसका परित्याग कर दिया। तब म्युनिख मे समझौता हुआ और चैकोस्लोवाकिया को सूडेटनलैण्ड जर्मनी को दे देने के लिये वाध्य किया गया। म्युनिख समझौते के बाद हगरी और पोलैण्ड ने भी मॉगे पेश की और अपने-अपने प्रदेशो को वापस ले लिया। इस प्रकार चैकोस्लोवाकिया का अग-भंग हुआ। राष्ट्रपति वेनेश ने त्यागपत्र दे दिया।किसानवादियो के एक दल ने शासन-सत्ता अपने हाथ मे ले ली। चैक, स्लोवाक तथा रूथानियन सरकारो ने मिलकर एक संघ-राज्य स्थापित किया। अब जर्मनी ने यह आग्रह किया कि, संघ-राज्य नात्सी निती को अपनावे और उसने १० मार्च

१९३९ को स्लोवाको को उत्तेजित किया और विद्रोह कराया। उन्होने पूर्ण स्वतंत्रता की मॉग पेश की। हिटलर को यह अच्छा बहाना मिल गया, उसने कहा कि यह विद्रोह जर्मनी की शान्ति के लिये एक ख़तरा है। अतः १५ मार्च १९३९ को जर्मन फ़ौजो ने चैकोस्लोवाकिया में प्रवेश किया। इसका कोई विरोध या प्रतिरोध नही किया गया। चैकोस्लोवाकिया के

राष्ट्रपति हाशा तथा अन्य मंत्रियों से ज़बरदस्ती एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कराये गये, जिसके अनुसार चैकोस्लोवाकिया के शेष भाग बोहेमिया, मोराविया और चैक प्रान्तो को, जर्मन-संरक्षण मे, जर्मनी में मिला लिया गया। स्लोवाक को भी इसी प्रकार का संरक्षित ‘स्वतत्र' राज्य बना दिया गया। चैक सेना को निःशस्त्र कर दिया गया। चैक प्रजा के इस बलिदान ने संसार की ऑखे खोल दी और नात्सीवाद का भयंकर रूप प्रकट होगया। डा० बेनेश लन्दन चले गये। वहाँ जाकर उन्होने चैकोस्लोवाकियन राष्ट्रीय समिति बनाई है, जिसे मित्र-राष्ट्रों ने स्वीकार कर लिया है और उसे चैक प्रजा की प्रतिनिधि मानते हैं। यह समिति देश की स्वतन्त्रता के लिये प्रयत्नशील है।


चौटेम्स,कामिली-–फ्रान्स के राजनीतिज्ञ।

जन्म सन् १८८५ मे हुआ। पहले कुछ दिनो वकालत की। सन् १९०४ से फ्रान्स की पार्लमेट के सदस्य रहे। सन् १९२४ मे गृहशासन-विभाग के मत्री थे। सन् १९३० मे, २४ घन्टे के लिये, प्रधान मंत्री बने। सन् १९३३ तक न्याय-मंत्री तथा शिक्षा-मंत्री रहे। तबसे २७ जनवरी १९३४ तक प्रधानमंत्री रहे। जून १९३७ से मार्च १९३८ तक दुबारा प्रधान-मत्री रहे।

मार्च १९३८ से रिनो सरकार में वह उप-प्रधानमन्त्री थे।

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