सामग्री पर जाएँ

अणिमा/३७. भारत ही जीवन-धन

विकिस्रोत से

लखनऊ: चौधरी राजेन्द्रशंकर, युग-मन्दिर, उन्नाव, पृष्ठ ६७

 
 

भारत ही जीवन-धन,
ज्योतिर्मय परम-रमण
सर-सरिता वन-उपवन।

तपः-पुञ्ज गिरि-कन्दर,
निर्झर के स्वर पुष्कर,
दिक्प्रान्तर मर्म-मुखर,
मानव मानव-जीवन।

धौत-धवल ऋतु के पल,
सञ्चारण चरण चपल,
कारण-वारण, वल्कल-
धारण, सुकृतोच्चारण।

नहीं कहीं जाड़-जघन्य,
नहीं कहीं अहम्मन्य,
नहीं कहीं स्तन्य वन्य,
चिन्मय केवल चिन्तन।

'४२