[ १५ ]
भाव जो छलके पदों पर, न हों हलके, न हों नश्वर। चित्त चिर-निर्मल करे वह, देह-मन शीतल करे वह, ताप सब मेरे हरे वह नहा आई जो सरोवर। गन्धवह हे, घूप मेरी हो तुम्हारी प्रिय चितेरी, आरती की सहज फेरी रवि, न कम कर दे कहीं कर।