सामग्री पर जाएँ

अणिमा/८. धूलि में तुम मुझे भर दो

विकिस्रोत से

लखनऊ: चौधरी राजेन्द्रशंकर, युग-मन्दिर, उन्नाव, पृष्ठ १६

 

 

धूलि में तुम मुझे भर दो।
धूलि-धूसर जो हुए पर
उन्हीं के वर वरण कर दो
दूर हो अभिमान, संशय,
वर्ण-आश्रम-गत महाभय,
जाति-जीवन हो निरामय
वह सदाशयता प्रखर दो।
फूल जो तुमने खिलाया,
सदल क्षिति में ला मिलाया,
मरण से जीवन दिलाया
सुकर जो वह मुझे वर दो।