अणिमा/९. तुम्हें चाहता वह भी सुंदर

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तुम्हें चाहता वह भी सुन्दर,
जो द्वार-द्वार फिरकर
भीख मागता कर फैलाकर।

भूख अगर रोटी की ही मिटी,
भूख की ज़मीन न चौरस पिटी,
और चाहता है वह कौर उठाना कोई,
देखो, उसमें उसकी इच्छा कैसे रोई,
द्वार-द्वार फिर कर
भीख मागता कर फैला कर—
तुम्हें चाहता वह भी सुन्दर।

देश का, समाज का
कर्णधार हो किसी जहाज़ का।

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पार करे कैसा भी सागर,
फिर भी रहता है चलना उसे,
फिर भी रहता है पीछे डर;
चाहता वहाँ जाना वह भी
नहीं चलाना जहाँ जहाज़, नहीं सागर,
नहीं डूबने का भी जहाँ डर।
तुम्हें चाहता है वह, सुन्दर,
जो द्वार-द्वार फिरकर
भीख माँगता कर फैलाकर।