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अहिल्याबाई होलकर/सातवाँ अध्याय

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अहिल्याबाई होलकर
गोविन्दराम केशवराम जोशी

पृष्ठ ७८ से – ८५ तक

 
सातवाँ अध्याय ।
अहिल्याबाई और तुकोजीराव होलकर ।

हम पिछले अध्याय में कह आए हैं कि अहिल्याबाई ने तुकोजीराव को अपनी निजी सेना का सेनानायक बनाया था। तुकोजीराव और मल्हारराव होलकर का कुछ संबंध था अथवा नहीं, यह कहना कठिन है। इसका निर्णय स्वयं पाठकों पर ही हम छोड़ देते हैं। परंतु जो कुछ प्रमाण मिले हैं उनसे यही सिद्ध होता है कि तुकोजीराव का कुछ संबंध होलकर घराने से था। वह इस प्रकार है—

(१) मालकम साहब, लिखते हैं कि यह सरदार (तुकोजीराव) होलकर घराने के कारिंदे का दादा था। वह दीवान तथा अन्य मनुष्यों से सदा कहा करता था कि मैं मल्हारराव होलकर का एक निकट संबंधी हूँ। परंतु यह सत्य प्रतीत नहीं होता है।

(२) होलकर घराने की वंशावली में, जो हम को श्रीयुत पंडित पुरुषोत्तम जी की लिखी हुई पुस्तक से प्राप्त हुई है, सूबेदार मल्हारराव और तुकोजीराव का संबंध मिला हुआ जान पड़ता है। वह इस प्रकार है।

मल्हारजी

महादजीहिंगोजी
सवाजी खंडोजी

वीराजी मल्हारराव (सूबेदार)
जानोजी खंडेराव, पत्नी अहिल्याबाई
तुकोजी

इस वंशवृक्ष से तुकोजीराव मल्हारराव के भाई बंधुओं में से थे, ऐसा प्रतीत होता है । परंतु यह वंशावली सत्य है अथवा नहीं, इसमें शंका है। क्योंकि इस वंशवृक्ष को सत्यता की कसौटी पर कसने के लिये पुराने कागजात अथवा लेख उपलब्ध नहीं हुए हैं जिनसे कि यह वंशवृक्ष पूर्ण रूप से प्रमाणित हो ।

(३). एक स्थान पर इस प्रकार भी लिखा हुआ मिलता है कि--"ऐसा कहकर अपने पालक पुत्र तुकोजीराव के साथ २० हजार सेना देकर सेंधिया के राज्य में से हो, मल्हारराव अपने देश में आए"। और एक स्थान पर--"पालक पुत्र" शब्द को पुष्ट करने के लिये इस प्रकार लिखा हुआ प्रतीत होता है कि--"आगे वंश नहीं है, ऐसा समझ कर अहिल्याबाई ने जानोजी बाबा के लड़के तुकोजीराव की उँगली पकड़ कर गद्दी पर बैठा दिया"। और इससे यह भी सिद्ध होता है कि तुकोजी का दत्तकविधान नहीं हुआ था । परंतु इन प्रमाणों के अतिरिक्त एक स्थान पर इस प्रकार भी लिखा हुआ मिला है कि --"अहिल्याबाई की मृत्यु के पश्चात् तुकोजी सेनापति के पुत्र यशवंतराव इंदौर के राज्यसिंहासन पर बैठे"। इस से यह सिद्ध होता है कि तुकोजीराव उस संपूर्ण राज्य के पूर्णाधिकारी हुए थे, इस कारण तुकोजीराव और मल्हारराव का निकटवर्ती संबंधी होना पूर्ण रूप से सिद्ध होता है, क्योंकि राज्य

सिंहासन पर वही भाग्यशाली स्थापित किया जाता है जिस का संबंध राजघराने से पूर्ण रूप से होता हो अथवा जिसका दत्तकविधान किया जाकर उसको गोद लिया गया हो । परंतु तुकोजीराव का दत्तक लिया जाना नहीं पाया जाता है, इस कारण यह पूर्ण रूप से मानने में भी कुछ शंका न होगी कि तुकोजीराव मल्हारराव होलकर के निकटवर्ती संबंधी ही थे । "चीफ्स एंड लीडिंग फेमिलीज इन सेंट्रल इंडिया" नामक पुस्तक में मध्य भारत के संपूर्ण राजा महाराजा तथा उनके सरदार और प्रमुख कार्यकर्ताओं का वर्णन दिया हुआ है । इस पुस्तक में दिए होलकर घराने के वंदना वंशवृक्ष के निरीक्षण से यह पूर्ण रूप से सिद्ध होता है कि तुकोजीराव सूबेदार मल्हारराव होलकर के पिता के बंधु थे ।

जो कुछ हो, हमको इस विषय में उलझना नहीं है । परंतु हम भी सेनापति तुकोजीराव को तुकोजीराव होलकर ही लिखेंगे; क्योंकि मल्हारराव होलकर के पुत्र तुकोजीराव को अहिल्याबाई ने अपनी निजी विश्वसनीय सेना का सेनापति इस कारण से नियत किया था कि मल्हारराव के साथ इन्होंने कई लड़ाईयों में अपने निज बाहुबल तथा रणचातुरी से दुश्मनों को नीचा दिखाया था । और यही मुख्य कारण था कि मल्हारराव इन पर अधिक प्रेम और विश्वास रखते थे, और तुकोजीराव के विश्वासपात्र बने थे, इसी प्रकार वे बाई के भी पूर्ण विश्वास भाजन बन गए थे, और सेनापति के अतिरिक्त बाई ने इनको दूसरे काम भी सौंप दिए थे । बाई से तुकोजीराव वय में बड़े थे, तथापि बाई को सर्वदा मातेश्वरी कहकर संबोधन

किया करते थे। इनकी श्रद्धा बाई पर बहुत थी और बरताव भी एक बड़े विश्वासपात्र और सच्चे हितैषी के समान रखते थे। बाई इनको पुत्रवत् मानती थीं, यहाँँ तक कि राज्य की मुहर पर भी "खंडोजीसुत तुकोजी होलकर" नाम था । और जो बरताव एक दूसरे का था उसको इन्होंने अहिल्याबाई के अंत समय तक बहुत ही उत्तमता से निभाया ।

अहिल्याबाई और तुकोजीराव होलकर दोनों मिलकर राज्य के कार्य को संभालते थे। उस समय संपूर्ण राज्य तीन भागों में विभाजित किया गया था। पहला भाग सतपुड़ा के उस पार दक्षिण की ओर, दूसरा सतपुड़ा के उत्तर का भाग महेश्वर के चहुँ ओर जिसको मध्य भाग कहते थे, और तीसरा भाग महेश्वर के उस ओर राजपूताने तक जिसको उत्तरीय भाग कहते थे । इस उत्तरीय भाग में अधिकतर वे ही लोग निवास करते थे जो कि होलकर सरकार को चौथ देते थे। तुकोजी का पहला कार्य संपूर्ण सेना को सँभालने का था; और इसके अतिरिक्त एक भाग दक्षिण या उत्तर की व्यवस्था करना था। जिस समय तुकोजी राव दक्षिण भाग की व्यवस्था करते थे, इस समय अहिल्याबाई मध्य भाग और स्तरीय भाग की व्यवस्था का निरीक्षण करती थी, और जब तुकोजीराव उत्तरीय भाग की देख भाल करते थे उस समय बाई मध्य भाग और दक्षिण भाग को संभाला करती थीं। तुकोजीराव को मध्य भाग की व्यवस्था तथा देख भाल करने का समय कभी बाई के समक्ष नहीं आया था। इतने पर भी अहिल्याबाई तुकोजीराव की व्यवस्था
का निरीक्षण समय समय पर स्वयं पहुँच कर किया करती थी। इस प्रकार बाई ने व्यवस्था तथा अधिकार का विभाग तो कर दिया था, परंतु संपूर्ण राज्य के कोष की देख भाल बाई ने अपने ही हाथ में रखी थीं, और उसका व्यय वे अपने इच्छानुसार करती थी। कहते हैं कि बाई के समय में आय-व्यय का हिसाब बहुत ही उत्तम रीति से और व्यवस्थित रहता था। क्योंकि जहाँ जहाँ राज्य में रुपया इकट्ठा रहा करता था, उन उन स्थानों पर बिना सूचना दिए ही बाई स्वयं पहुँच कर प्रथम आय-व्यय का लेखा लेती थीं। बाई का प्रभाव चारों ओर राज्य भर में एक सा रहता था। बाई के समक्ष किसी मनुष्य को हँस कर बोलने अथवा झूठी बात कहने का साहस नहीं होता था। उनको असत्य भाषण से बहुत ही घृणा होती थी। तुकोजीराव पर बाई की अधिक श्रद्धा और प्रेम देख लोगों ने दोनों के मध्य में अनबन हो जाने के हेतु से कई कारण उपस्थित किए थे; परंतु बाई पर उन बातों का कुछ भी प्रभाव न पड़ा, वरन उन मनुष्यों पर से ही बाई ने अपनी श्रद्धा कम कर दी थी।

तुकोजीराव होलकर रणविद्या में अधिक चतुर और साहसी थे; परंतु राज्य संबंधी कार्यों में वैसे निपुण नहीं थे। इसी विशेष कारण से बाई समय समय पर इनको इस कार्य के उत्तम तथा व्यवस्थित रीति से चलाने के हितार्थ उपदेश भी दिया करती थी। कभी कभी अहिल्याबाई और तुकोजी राव के बीच व्यय संबंधी बातों पर वाद विवाद भी हो जाया करता था। इसका मुख्य कारण यह था कि जब मल्हारराव

होलकर जीवित थे, उस समय वे अपनी सेना के खर्च का वर्ष भर का रुपया एक समय पर ही अलग निकाल रख छोड़ते थे और फिर कभी बाई को इस विभाग में रुपया निज कोष से निकाल कर देने की आवश्यकता नहीं होती थी। परंतु तुकोजीराव का ढंग निराला था। वे जितना जिस समय आवश्यकता होती, वह सब बाई से माँग कर ही व्यय किया करते थे।

सच्चे और स्वामिभक्त सेवकों का यह एक प्रकार को धर्म होता है कि वे द्रव्य संबंधी कार्यों से सर्वदा भयभीत रहा करते हैं। इस कारण वे अपने पास द्रव्य इकट्टा लेकर नही रख छोड़ते, वरन् जिस जिस समय पर जितने द्रव्य की आवश्यकता होती है, अपने मालिक से उतना ही द्रव्य माँग कर कार्य की व्यवस्था कर देते हैं। परंतु मालिक को बारंबार के देने लेने से असुविधा और कष्ट होता है। इस कारण से अहिल्याबाई और तुकोजीराव दोनों के बीच कभी कभी वाद विवाद हो जाता था। परंतु ऐसा होने पर भी बाई का वात्सल्य और तुकोजीराव की श्रद्धा सदा अटल रहा करती थी, उसमें लेश मात्र भी न्यूनता नहीं होने पाती थी। इस विषय में मालकम साहय एक स्थान पर लिखते हैं कि- "अहिल्याबाई ने, अपनी सेना के लिये और उन कार्यों को पूर्ण करने के लिये, जिनको एक अबला स्त्री नहीं कर सकती थीं, तुकोजीराव होलकर ही को चुना था, जो कि इसी जाति को एक सरदार था, परंतु मल्हारराव होलकर का कुटुंबी नहीं था। जब तुकोजीराव पागाव रिमाले पर हुकूमत करते

थे उसी समय से मल्हारराव होलकर उनका बहुत मान करते थे । तुकोजीराव होलकर ने इस पद के प्राप्त करने के पूर्व ही अपना प्रभाव राज्य पर भली भांति जमा रखा था जिस को उन्होंने बहुत सादगी और साधारण रीति से अंत तक निभाया ।

तुकोजीराव के इस पद के प्राप्त करने के दिन से होलकर राज्य में दो हुकूमतें (अधिकार) स्थापित हो गई थीं । परंतु उनके उत्तम बरताव के कारण ही उनकी हुकूमत तीस वर्ष से अधिक स्थापित रही जिसको कोई भी विचलित नहीं कर सका था । इसका मुख्य कारण केवल अहिल्याबाई और तुकोजीराव का उत्तम बरताव ही था । तुकोजीराव होलकर बहुत ही आज्ञाकारी और सच्चे सेवक थे और वे प्रत्येक कार्य को बाई को प्रसन्न और संतुष्ट रखने की दृष्टि से किया करते थे । इस पद के प्राप्त होने के कारण वे बाई के बहुत ही अनुगृहीत थे । वे सर्वदा बाई को मातेश्वरी ही कह कर संबोधन किया करते थे, यद्यपि बाई उनसे वय में छोटी थीं । और यही एक कारण था कि तुकोजीराव मल्हराराव होलकर के पुत्र कहलाते थे । जो कुछ कहा गया है उससे यही बोध होता है कि बाई अपने राजकार्यों में अग्रसर रहती थीं और तुकोजी को इस पद पर नियुक्त करने से बाई को अत्यंत आनंद हुआ था । बाई का प्रेम और विश्वास तुकोजीराव पर उनके मरण पर्यंत एक सा बना रहा और उन्होंने उनसे अपनी फौज का और सरलतापूर्वक कर वसूल करने का कार्य संपादन कराया था । इस कार्य को करने की बाई ने

तुकोजीराव के अतिरिक्त और दूसरे किसी को कभी आशा नहीं दी थी । अहिल्याबाई के शासनकाल के समय होलकर राज्य के संपूर्ण कर्मचारी एक ही भाषा (मराठी) बोलते थे और प्रत्येक सुधार पर तुकोजीराव की प्रशंसा करते थे। सब से विशेष और मुख्य प्रशंसा यह थी कि तुकोजी राव होलकर अहिल्याबाई की संपूर्ण भावी आशाओं के अनुसार राजकार्य को पूरा करके चलाते थे।




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