सामग्री पर जाएँ

आग और धुआं/18

विकिस्रोत से
आग और धुआं
चतुरसेन शास्त्री

दिल्ली: प्रभात प्रकाशन, पृष्ठ १४८ से – १५२ तक

 

अट्ठारह

हेस्टिंग्स तीन वर्ष गवर्नर और दस वर्ष गवर्नर जनरल रहा। कम्पनी सरकार की अर्थ लोलुपता को पूरी करने के लिए उसे अपने आदर्श भुला देने पड़े, फिर वह स्वयं भी प्रजा का शोषणकर्ता बना। उसने लाखों रुपयों की अपने लिए भी रिश्वतें लीं और मालामाल होकर इंगलैंड गया। महाराज नन्दकुमार को फाँसी देने से उसके अपयश में और भी वृद्धि हुई। इंगलैंड जाकर उसके ऊपर रिश्वतें लेने और नन्दकुमार पर झूठा केस चलाने के केस चले, परन्तु अन्त में उन कार्यों को अंग्रेजी राज्य के हित में उचित समझकर उसे क्षमा कर दिया गया। क्लाइव और हेस्टिग्स दोनों ही को अंग्रेजी राज्य की भारत में नींव जमाने का श्रेय प्राप्त है।

हेस्टिग्स की भाँति क्लाइव ने भी प्रेम-व्यापार किया था। जब वह इंगलैंड में रह रहा था, उसका मन एक सुन्दर अंग्रेज युवती की ओर आकर्षित हुआ। यह आकर्षण बढ़ता गया, परन्तु वह युवती शीलवती और पवित्र वृत्ति की स्त्री थी। क्लाइव ने जब-जब उससे प्रणय निवेदन करना चाहा, उसने अवज्ञा से उसे ठुकरा दिया। क्लाइव हताश नहीं हुआ, वह सुअवसर की प्रतीक्षा करने लगा। यद्यपि उसका प्रणय और भी युवतियों से चलता था, परन्तु इस युवती की प्रभावशाली सौम्यता ने क्लाइव को व्याकुल बना दिया।

क्रिसमिस का त्यौहार आया। क्लाइव ने सुन्दर फूलों का एक गुच्छा और पत्र देकर अपने एक नौकर को उस महिला के घर भेजा और कहा कि यह पत्र और गुच्छा उसकी मेज पर रख कर चुपचाप लौट आना, कुछ कहना नहीं। नौकर गुच्छा रखकर लौट आया।

१४८

प्रातःकाल स्नान के बाद शृंगार करते समय युवती ने अपनी शृंगार मेज पर वह फूलों का गुच्छा और पत्र देखा। युवती ने पत्र पढ़ा। उसमें लिखा था-

"जादी को आरम्भ में व्यापार के काम में नियुक्त किया गया था। उस काम में अनन्त धन-वैभव प्राप्त किया जा सकता था; किंतु जादी में युद्ध के लिए स्वाभाविक योग्यता और असाधारण प्रवृत्ति मौजूद थी। इसलिए एक वीर के सदृश धन-वैभव का तिरस्कार करते हुए जादी ने अपनी भीतरी प्रेरणा से उन वीरों और मनुष्य-जाति के उपकारकों के यशस्वी जीवन में प्रवेश किया, जो कि बादशाहों और कौमों को विजय करके अपने पराजितों को सुख और शान्ति प्रदान करते हैं। युद्ध के मैदान में जादी की सबसे पहली सफलता का परिणाम यह हुआ कि उसने एक धन-सम्पन्न प्रान्त विजय कर लिया। इसके बाद उसने एक युद्ध-प्रेमी और बलवान् शन्नु के हाथों से एक महत्त्वपूर्ण दुर्ग विजय किया, जिसके द्वारा उसने अपने नये विजित प्रान्त को सुरक्षित कर लिया। यह दुर्ग एक तुच्छ अन्यायी नरेश का प्रबल दुर्ग था, जिसके जंगी जहाजी बेड़ों ने योरोप और एशिया के व्यापार को आपत्ति में डाल रखा था। यह दुर्ग जादी की विजयी सेना के सामने न ठहर सका। जादी ने शीघ्र ही उस स्थान को, जहाँ पर कि एक निर्दय, असभ्य और विश्वासघातक नरेश ने भयंकर हत्याकाण्ड मचाया था, फिर से प्राप्त करके अपने देशवासियों की निर्दय हत्या का बदला लिया। जादी ने उस स्वेच्छाचारी, अन्यायी नरेश की प्रबल सेना को परास्त कर उसे तख्त से उतार दिया। जादी के चित्त में अपने लिए बादशाहतें प्राप्त करने की कोई इच्छा न थी, इसलिए इसके बाद उसने दूसरों को बादशाहतें प्रदान की। इस प्रकार वह एशिया का भाग्य-विधाता बन गया। जादी की विजय की कीत्ति गंगा के तटों से लेकर योरोप की पश्चिमी सीमा तक फैल गई। जादी फिर अपनी जन्मभूमि को लौटा, वहाँ पर जादी को यह देखकर सन्तोष हुआ कि उन लोगों ने, जिन्हें कि जादी ने एक धन-सम्पन्न प्रायद्वीप का स्वामी बना दिया था, खुले तौर पर जादी की सेवाओं का आदर किया, और वहाँ के अनुग्रहशील बादशाह ने जादी को इनाम दिया। इस पर जादी ने उदारता के साथ उस विशाल धन के समस्त सुखों को तिलाञ्जलि देकर,

१४६

जो कि उसने अपने व्यवहार और अपनी वीरता से उपार्जन किया था, फिर भारत लौटकर अभागे देशी नरेशों को उनके पैतृक राज्य वापस दिलाने और इन पूर्वीय प्रदेशों में, जहाँ पर कि जादी इतनी बार विजय प्राप्त कर चुका था, स्थायी और गौरवान्वित शान्ति स्थापित करने का निश्चय किया। किन्तु इन समस्त स्मरणीय वीरकृत्यों के बाद और उनके कारण जादी के महान् यश प्राप्त करने के बाद, उच्च आत्माओं की सर्वोच्च भावना, अर्थात्प्रेम ने जादी की समस्त महत्त्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया। जादी ने मिरजा को देखा है, और जब से जादी ने मिरजा का दिव्य मुखड़ा देखा है, तब से जादी को एक क्षण के लिए भी सुख अथवा चैन नसीब नहीं हुआ। यद्यपि जादी के पास धन और उसका यश इतना अधिक है कि शायद योरोप तथा एशिया के अन्दर अनेक सुन्दर स्त्रियाँ उससे प्रगाढ़ प्रेम दर्शाने को तैयार हो जाती, तथापि जादी के हृदय में किसी दूसरी स्त्री के लिए अणुमात्र भी विचार अथवा स्थान नहीं है। जादी के समस्त मन, हृदय और आत्मा के अन्दर प्रियतमा मिरजा ही मिरजा भरी हुई है। जादी के लिए मिरजा ही उसका विश्व है। यदि जादी को यह पता लग जाय कि वह प्रबल मोहिनी, अर्थात् मिरजा जादी की प्रतीक्षा से प्रसन्न है, तो जादी सृष्टि में अपने को सबसे अधिक भाग्यवान् समझेगा और अपना समस्त धन और वैभव मिरजा के चरणों पर अर्पण कर देगा। जादी के लिए मिरजा ही इस पृथ्वी पर सबसे बड़ी सुन्दरी है। जब तक जादी को मिरजा के अन्तिम निश्चय का पता नहीं लगता, उसे चैन नहीं मिल सकता। प्रेम के मामले में संदेह और शंका की अवस्था इतनी अधिक कष्टकर होती है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इसलिए जादी अपने प्रशंसा-पात्र मिरजा से प्रार्थना करता है कि जादी की अधीरता को देखते हुए वह इस पत्र का शीघ्र ही उत्तर दे। दयालु परमात्मा मिरजा के चित्त में वह दया उत्पन्न करे कि मिरजा जादी की संतप्त आत्मा को फिर से शांति प्रदान कर सकें। जहाँ पर आपको यह अप्रकट लेख मिले, वहीं पर इसका उत्तर रख दीजिए। उत्तर जादी के हाथों में सुरक्षित पहुँच जायगा।"

पत्र पढ़कर युवती ने तुरन्त अनुमान कर लिया कि इस पत्र का भेजने वाला कौन है। उसने इस बात की जाँच करना उचित न समझा कि जादी

१५०

का यह पत्र, जिसमें उसने अपने प्रेम और यश दोनों की डींग हाँकी थी, मेरे सोने के कमरे में किस तरह पहुँच गया। उसने स्वभावतः यह समझा कि जादी के किसी आदमी ने मेरी किसी नौकरानी को रिश्वत देकर अपनी ओर कर लिया है। जादी के इन प्रेम-प्रदर्शनों से छुटकारा पाने के लिए और इस विचार से कि जादी मेरे चुप रहने का यह अर्थ न समझे कि मैं उसके प्रेम को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ, उस युवती ने निम्नलिखित पन्न उत्तर में भेजा-

"मिरजा ईमानदार, परिश्रमी और प्रतिष्ठित माता-पिता की लड़की है। उसके माता-पिता ने अपनी आँखों के सामने उसे समस्त आवश्यक सद्गुणों की शिक्षा दी है। मिरजा जादी के पूर्वीय, अत्युक्तिपूर्ण पत्र का उत्तर देने का कष्ट न उठाती, चाहे जादी का पद कितना भी उच्च क्यों न हो; किन्तु मिरजा को यह विश्वास न हुआ कि जादी मिरजा के उत्तर न देने का यह अर्थ समझ लेगा या नहीं कि मिरजा जादी के प्रेम-प्रदर्शन और धृष्टता को घृणा की दृष्टि से देखती है। मिरजा को इस बात की कोई आकाँक्षा नहीं है कि वह अपने पिता की जीविका, अर्थात् वाणिज्य-व्यापार से बढ़कर इस तरह के किसी नीच काम की ओर जाय। मिरजा उस धन के प्रलोभनों को घृणित समझती है, जो धन दूसरों को लूटकर और बर्बाद करके कमाया गया हो, विशेषकर जबकि वह धन निर्दोष स्त्रियों को बहकाने और उनके निष्कलंक चरित्र को कलंकित करने के लिए काम में लाया जाय। यदि जादी की क्रियात्मक बुद्धि और उसका युद्ध-कौशल अब लड़ाई के मैदान में और अधिक नहीं चमक सकता, तो उसे चाहिए कि शान्ति के उद्योगों को उन्नति दे और शान्ति से शासन करके करोड़ों दुखित जनता को फिर से शान्ति और समृद्धि प्रदान करे। सच्चे वीर वास्तव में वे हैं, जो मनुष्य जाति के मित्र हैं, उसके नाशक नहीं। यदि जादी वर्तमान मानव-समाज और उसकी भावी सन्तति की दृष्टि में उनका मित्र दिखाई देना चाहता है, तो मेरी राय में उसे चाहिए कि वह अपने उन कृत्यों का इतिहास, जिनकी वह डींग हाँकता है, अपने हाथ से लिखे। कायर देशी नरेशों को वश में किया गया, उन्हें धोखा दिया गया और अन्याय द्वारा उन्हें गद्दी से उतार दिया गया। निर्दय लुटेरों ने उनकी दुखित प्रजा को सताया। अब चाहिए कि

१५१

उनके देश की जिन पैदावारों पर गैरों ने अपना अनन्य अधिकार जमा लिया है, वे फिर से देशवासियों को दे दी जायें। मिरजा जादी के उन सब भयंकर कृत्यों को दुहराने का प्रयत्न न करेगी, जिनमें कि जन संहार, बर्बादी, एक अन्यायी को गद्दी से उतारकर उसकी जगह दूसरे अन्यायी को गद्दी पर बैठाना इत्यादि शामिल हैं। समय ही इस बात को साबित कर सकेगा कि योरोप और एशिया में जादी की कीर्ति न्याय द्वारा, प्राप्त की गई है, अथवा अन्याय द्वारा, और जादी के संग्राम मानव-जाति के अधिकारों का समर्थन करने के लिए लड़े गए हैं अथवा अपनी धन-पिपासा और महत्त्वाकांक्षा को शान्त करने के लिए। रही उपाधियों और सम्मान की बात, सो ये चीजें इतनी अधिक बार अयोग्य मनुष्यों को प्रदान की जाती हैं कि उन्हें सच्ची योग्यता और न्यायपरता का पारितोषिक नहीं कहा जा सकता। जादी को चाहिए कि वह निःस्वार्थ सेवा और दयालुता द्वारा भारतवासियों को इस बात का विश्वास दिलावे कि वह उनको दुःख देने के लिए नहीं, बल्कि उनकी रक्षा करने के लिए आया था। यदि भारतवासी क्षणिक शान्ति का सुख भोग रहे हैं, तो उसके साथ ही वे न्याय-विरुद्ध लूट-खसोट और दुष्काल के भयंकर कष्टों का भी अनुभव कर रहे हैं। जादी को चाहिए कि वह अपनी विजयों की छाया में स्वयं ही आनन्द से बैठे और प्रतिष्ठित घरानों को अपमानित और कलंकित करने का विचार न करे। सच्चा और हार्दिक प्रेम वास्तव में उच्च आत्माओं की एक वासना है, किन्तु वह पाशविक वासना नहीं, जोकि निर्दोष और सच्चरित्र लोगों को चरित्र-भ्रष्ट करने का अपने को अधिकारी समझती है। मिरजा चाहती है कि जादी पूर्ववत् आनंद से रहे और फिर कभी इस तरह एक व्यक्ति का अपमान न करे, जो अपने सदाचार के लिए जादी के आदर का पात्र है। जादी के धन और उसकी शान से चकाचौंध हो जाना वेश्याओं का काम है, मिरजा को जादी और उसके प्रेम-प्रदर्शन से हार्दिक घृणा है।"

इस उत्तर ने क्लाइव के पत्र-व्यवहार को समाप्त कर दिया। फिर कभी उसने उस महिला को पत्र लिखने का साहस नहीं किया।

१५२