आग और धुआं/18
अट्ठारह
हेस्टिंग्स तीन वर्ष गवर्नर और दस वर्ष गवर्नर जनरल रहा। कम्पनी सरकार की अर्थ लोलुपता को पूरी करने के लिए उसे अपने आदर्श भुला देने पड़े, फिर वह स्वयं भी प्रजा का शोषणकर्ता बना। उसने लाखों रुपयों की अपने लिए भी रिश्वतें लीं और मालामाल होकर इंगलैंड गया। महाराज नन्दकुमार को फाँसी देने से उसके अपयश में और भी वृद्धि हुई। इंगलैंड जाकर उसके ऊपर रिश्वतें लेने और नन्दकुमार पर झूठा केस चलाने के केस चले, परन्तु अन्त में उन कार्यों को अंग्रेजी राज्य के हित में उचित समझकर उसे क्षमा कर दिया गया। क्लाइव और हेस्टिग्स दोनों ही को अंग्रेजी राज्य की भारत में नींव जमाने का श्रेय प्राप्त है।
हेस्टिग्स की भाँति क्लाइव ने भी प्रेम-व्यापार किया था। जब वह इंगलैंड में रह रहा था, उसका मन एक सुन्दर अंग्रेज युवती की ओर आकर्षित हुआ। यह आकर्षण बढ़ता गया, परन्तु वह युवती शीलवती और पवित्र वृत्ति की स्त्री थी। क्लाइव ने जब-जब उससे प्रणय निवेदन करना चाहा, उसने अवज्ञा से उसे ठुकरा दिया। क्लाइव हताश नहीं हुआ, वह सुअवसर की प्रतीक्षा करने लगा। यद्यपि उसका प्रणय और भी युवतियों से चलता था, परन्तु इस युवती की प्रभावशाली सौम्यता ने क्लाइव को व्याकुल बना दिया।
क्रिसमिस का त्यौहार आया। क्लाइव ने सुन्दर फूलों का एक गुच्छा और पत्र देकर अपने एक नौकर को उस महिला के घर भेजा और कहा कि यह पत्र और गुच्छा उसकी मेज पर रख कर चुपचाप लौट आना, कुछ कहना नहीं। नौकर गुच्छा रखकर लौट आया।
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"जादी को आरम्भ में व्यापार के काम में नियुक्त किया गया था। उस काम में अनन्त धन-वैभव प्राप्त किया जा सकता था; किंतु जादी में युद्ध के लिए स्वाभाविक योग्यता और असाधारण प्रवृत्ति मौजूद थी। इसलिए एक वीर के सदृश धन-वैभव का तिरस्कार करते हुए जादी ने अपनी भीतरी प्रेरणा से उन वीरों और मनुष्य-जाति के उपकारकों के यशस्वी जीवन में प्रवेश किया, जो कि बादशाहों और कौमों को विजय करके अपने पराजितों को सुख और शान्ति प्रदान करते हैं। युद्ध के मैदान में जादी की सबसे पहली सफलता का परिणाम यह हुआ कि उसने एक धन-सम्पन्न प्रान्त विजय कर लिया। इसके बाद उसने एक युद्ध-प्रेमी और बलवान् शन्नु के हाथों से एक महत्त्वपूर्ण दुर्ग विजय किया, जिसके द्वारा उसने अपने नये विजित प्रान्त को सुरक्षित कर लिया। यह दुर्ग एक तुच्छ अन्यायी नरेश का प्रबल दुर्ग था, जिसके जंगी जहाजी बेड़ों ने योरोप और एशिया के व्यापार को आपत्ति में डाल रखा था। यह दुर्ग जादी की विजयी सेना के सामने न ठहर सका। जादी ने शीघ्र ही उस स्थान को, जहाँ पर कि एक निर्दय, असभ्य और विश्वासघातक नरेश ने भयंकर हत्याकाण्ड मचाया था, फिर से प्राप्त करके अपने देशवासियों की निर्दय हत्या का बदला लिया। जादी ने उस स्वेच्छाचारी, अन्यायी नरेश की प्रबल सेना को परास्त कर उसे तख्त से उतार दिया। जादी के चित्त में अपने लिए बादशाहतें प्राप्त करने की कोई इच्छा न थी, इसलिए इसके बाद उसने दूसरों को बादशाहतें प्रदान की। इस प्रकार वह एशिया का भाग्य-विधाता बन गया। जादी की विजय की कीत्ति गंगा के तटों से लेकर योरोप की पश्चिमी सीमा तक फैल गई। जादी फिर अपनी जन्मभूमि को लौटा, वहाँ पर जादी को यह देखकर सन्तोष हुआ कि उन लोगों ने, जिन्हें कि जादी ने एक धन-सम्पन्न प्रायद्वीप का स्वामी बना दिया था, खुले तौर पर जादी की सेवाओं का आदर किया, और वहाँ के अनुग्रहशील बादशाह ने जादी को इनाम दिया। इस पर जादी ने उदारता के साथ उस विशाल धन के समस्त सुखों को तिलाञ्जलि देकर,
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पत्र पढ़कर युवती ने तुरन्त अनुमान कर लिया कि इस पत्र का भेजने वाला कौन है। उसने इस बात की जाँच करना उचित न समझा कि जादी
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"मिरजा ईमानदार, परिश्रमी और प्रतिष्ठित माता-पिता की लड़की है। उसके माता-पिता ने अपनी आँखों के सामने उसे समस्त आवश्यक सद्गुणों की शिक्षा दी है। मिरजा जादी के पूर्वीय, अत्युक्तिपूर्ण पत्र का उत्तर देने का कष्ट न उठाती, चाहे जादी का पद कितना भी उच्च क्यों न हो; किन्तु मिरजा को यह विश्वास न हुआ कि जादी मिरजा के उत्तर न देने का यह अर्थ समझ लेगा या नहीं कि मिरजा जादी के प्रेम-प्रदर्शन और धृष्टता को घृणा की दृष्टि से देखती है। मिरजा को इस बात की कोई आकाँक्षा नहीं है कि वह अपने पिता की जीविका, अर्थात् वाणिज्य-व्यापार से बढ़कर इस तरह के किसी नीच काम की ओर जाय। मिरजा उस धन के प्रलोभनों को घृणित समझती है, जो धन दूसरों को लूटकर और बर्बाद करके कमाया गया हो, विशेषकर जबकि वह धन निर्दोष स्त्रियों को बहकाने और उनके निष्कलंक चरित्र को कलंकित करने के लिए काम में लाया जाय। यदि जादी की क्रियात्मक बुद्धि और उसका युद्ध-कौशल अब लड़ाई के मैदान में और अधिक नहीं चमक सकता, तो उसे चाहिए कि शान्ति के उद्योगों को उन्नति दे और शान्ति से शासन करके करोड़ों दुखित जनता को फिर से शान्ति और समृद्धि प्रदान करे। सच्चे वीर वास्तव में वे हैं, जो मनुष्य जाति के मित्र हैं, उसके नाशक नहीं। यदि जादी वर्तमान मानव-समाज और उसकी भावी सन्तति की दृष्टि में उनका मित्र दिखाई देना चाहता है, तो मेरी राय में उसे चाहिए कि वह अपने उन कृत्यों का इतिहास, जिनकी वह डींग हाँकता है, अपने हाथ से लिखे। कायर देशी नरेशों को वश में किया गया, उन्हें धोखा दिया गया और अन्याय द्वारा उन्हें गद्दी से उतार दिया गया। निर्दय लुटेरों ने उनकी दुखित प्रजा को सताया। अब चाहिए कि
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इस उत्तर ने क्लाइव के पत्र-व्यवहार को समाप्त कर दिया। फिर कभी उसने उस महिला को पत्र लिखने का साहस नहीं किया।
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