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आल्हखण्ड/१२ गाँजर की लड़ाई

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आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ३९१ से – - तक

 

अथ पाल्हखण्ड। गाँजर की लड़ाईका प्रारम्भ ॥ सवैया॥ दानिन में बलि औ हरिचन्द शिवी दधि कर्ण इन्ही यश पाये। बीरन में गिनती रघुबीर औ धीरन कृष्ण युधिष्ठिर गाये ॥ पापिन औं परितापिन में जग कंस दशानन बीर सुनाये। जापिन योग उदार अपार सदाशिवही ललिते मन आये १ सुमिरन ॥ प्रथमें ध्यावों श्री गणेश को लीन्हे सुभग पुस्तकी हाथ ॥ करों बन्दना शिवशंकर की दूनों धरों चरणपर माथ १ देबि दूर्गा को ध्यावों फिरि लैकै रामचन्द्र को नाम ।। कीरति गावों में ऊदन के पूरणकरो हमारो काम २ 'दैवि शारदा मइहरवाली मनियादेव · महोवे केर॥ “ध्यावों ललिता नैमिपार की माता' मोरि दीनता हेर ३

नहीं वीरता का मोमें है तव बल धरी धीरता हीय ॥

कीरति तुम्हरी जो कोउ गावै पावै वहै चहै जो जीय ४
निरभय होवै घर बाहर सों केवल करै तुम्हारी आश॥
बन्धन छूटैं सब दुनियाँ के यमकी परै गले नहिं पाश ५
छूटि सुमिरनी गै ह्याँते अब सुनिये गाँजर केर हवाल॥
साजिकै फौजै ऊदन चलि हैं लड़ि हैं बड़े बड़े नरपाल ६

अथ कथाप्रसंग॥


जैचन्द राजा कनउज वाला आला सकलजगत सरनाम॥
लागि कचहरी त्यहि राजा कै सोहै सोन सरिस त्यहिधाम १
को गति बरणै त्यहि मन्दिरकै ज्यहिमाँ भरी लाग दर्बार॥
आस पास माँ राजा सोहैं बीचम कनउज का सरदार २
बनासिंहासन है सोने का हीरा पन्ना करैं वहार॥
तामें बैठे जैचन्द बोले सुनिये सकल शूर सरदार ३
बारह बरसन का अरसा भा पैसा मिला न गाँजर क्यार॥
कौन शूरमा मोरे दलमाँ नङ्गी काढ़िलेय तलवार ४
करै बन्दगी तलवारी सों औ गाँजर को होय तयार॥
सुनिकै बातैं ये जैचँदकी झुकिगे सकल शूर सरदार ५
झुका दुलरुवानहिं द्यावलिका औं आल्हाक लहुरवाभाय॥
सुनिकै बातैं ये जैचँद की नैना अग्निवरण ह्वैजायॅ ६
सबदिशिताक्यो सबक्षत्रिनको सबहिन लीन्ह्यो मूड़नवाय॥
उठा दुलरुवा तव द्यावलिको औ आल्हा को शीशनवाय ७
सुमिरि भवानी जगदम्बा को म्यान ते खैंचिलीन तलवार॥
कियो वन्दगी फिर राजा को यहु द्यावलिको राजकुमार ८
हाथ जोरिकै बोलन लाग्यो सुनिये विनय कनौजीराय॥
लाखनि राना सँगमाँ दीजै लीजै पैसा सकल मँगाय ९

बिना हकीकी लखराना के पैसा कौन तसीलै जाय॥
साथ में होवें लखराना जो तम्बू बैठे लेयँ मँगाय १०
लड़ै भिड़ै को जिम्मा हमरो इन को बार न बाँको जाय॥
हुकुम जो पावों महराजा को गाँजर अबै पहूंचों जाय ११
सुनिकै बाते बघऊदन की बोला कनउज को सरदार॥
सोरह रानिन में इकलौतो मेरो लाखनि राजकुमार १२
सो नहिं जैहै चढ़ि गाँजर को पैसा मिलै चहौ रहिजाय॥
सुनिकै बातैं ये जैचँद की बोला तुरत बनाफरराय १३
क्षत्री राजा यह नहिं सोचैं मानो सत्य बचन महराज॥
रही न देही रामचन्द्र कै रहि ना गये कृष्ण यदुराज १४
यशै इकेलो जग में रहिगो गावैं तीनलोक तिहुँकाल॥
तासों देवो सँग लाखनि को सोचो कछू नहीं नरपाल १५
सुनिकै बातैं ये ऊदन की जैचँद हुकुम दिन फरमाय॥
हुकुम पायकै महराजा को लाखनि ढिगै पहूँचो जाय १६
कही हकीकति सबजेचँदकी यहु द्यावलिको राजकुमार॥
सुनिकै बातैं बघऊदन की लाखनि बेगि भयो तय्यार १७
चोबदार को फिर बुलवायो ताको दीनो हुकुम सुनाय॥
पिट ढिंढोरा अब कनउज माँ सजिकै फौज आयसबजाय १८
सुनिकै बातैं लखराना की दौरत चोबदार चलिजाय॥
ढोल बजाई गै कनउज माँ सबका खबरि दीन पहुँचाय १९
खबरि पायकै सब क्षत्री दल तुरतै सजन लागि सरदार॥
हथी महाउत हाथी लैकै तिनका करनलागि तय्यार २०
अंगद पंगद मकुना भौंरा हाथी भूमा दीन बिठाय॥
चुम्बक पत्थर का हौदा धरि जामें सेल वरौंचा खाय २१

रेशम रस्सन सों कसिकै फिरि साँखों सीढ़ी दीन लगाय॥
बारह कलशन की अम्बारी तिनपर धरी तुरतही जाय २२
घण्टा बांधे तिन के गर माँ क्षत्री होन लागि असवार॥
भूरी हथिनी लखराना की सोऊ बेगि भई तय्यार २३
चन्दन सीढ़ी तामें लागी वामें लाखनि भये सवार॥
हाथी सजिगा जब आल्हा का हाथ म लई ढाल तरवार २४
मनमाँ सुमिर्यो जगदम्बा का अम्बा लाज तुम्हारे हाथ॥
बैठ्यो हाथी पर आल्हा जब नायो रामचन्द्र को माथ २५
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे छोड़न होन लागि असवार॥
घोड़ बेंदुला की पीठी पर चदिगो द्यावलिकर कुमार २६
घोड़ पपीहा मोहबे वालो तापर जोगा भयो सवार॥
हंसामनि घोड़ा के ऊपर इन्दल आल्हा केर कुमार २७
घोड़ मनोहर पर देबा है भोगा सबजा पर असवार॥
या विधि सेना सब इकठौरी बारहलाख भई तय्यार २८
मारू डङ्का बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान॥
क्वऊ नालकिन क्वऊ पालकिन कोऊ चढ़े साँड़िया ज्वान २९
आगे हलका है हाथिन का बलका तिनके नाहिं ठिकान॥
घण्टा बाजैं गल हाथिन के जहँ सुनिपरैबात नहिंकान ३०
चिघरति हाथी आगे चलि भे पाछे घोड़न चली कतार॥
सरपट घोड़ा कोउ दउरावै कावा देवै कोऊ सवार ३१
कोउ मन पावै असवारे का तौ असमान पहूँचै जाय॥
कोउ कोउ घोड़ा हंस चालपर कोउकोउमोरचालपरजाय ३२
खर खर खर खर के रथ दौरैं चह चह रहीं धुरी चिल्लाय॥
छायअँधेरिया गै दशहूदिशि आपनपरै न हाथ दिखाय ३३

डगमग डगमग धरती हाली थर थर शेष गये थर्राय॥
देव सकाने बहु डरमाने पर्बत खोह छिपाने जाय ३४
को गति बरणै बघऊदन कै आगे घोड़ नचावत जाय॥
धीरे धीरे छत्तिस दिन में गोरख पुरै पहूँचे आय ३५
पाँच कोस जब बिरिया रहिगइ डेरा तहाँ दीन डरवाय॥
ऊँची टिकुरिन तम्बू गड़िगे नीचे लगीं बजारैं आय ३६
कम्मर छोर्यो रजपूतन ने झीलम बखतर डरे उतार॥
तंग बछेड़न के छोरेगे हाथिन उतरिपरे असवार ३७
झण्डा गड़िगे तम्बुन ढिग में ते सब आसमान फहरायँ॥
लागि कचहरी गै लाखनि कै बीच म बैठ बनाफरराय ३८
कलम दवाइत को मँगवायो कागज तुरतै लीन उठाय॥
लिखी हकीकतिसब हिरासिंहको अब तुम खबरदार ह्वैजाय ३९
बारह बरसै पूरी ह्वइगइँ पैसादिह्यो न कनउज जाय॥
अब चढ़ि आये उदयसिंह हैं साथै लिहे कनौजीराय ४०
धरम छत्तिरिन के नाहीं ये धोखे डाँड़ दबावैं आय॥
लैकै पैसा बरह बरस का ह्याँपै वेगि देउ चुकवाय ४१
नहिं भोर भ्वरहरे पहके फाटत सबियाँ बिरिया लेउँ लुटाय॥
बाँधिकै मुशकैं मैं हिरसिंह की कनउज तुरत देंव पहुँचाय ४२
लिखि परवाना दै धावन को ऊदन करन लाग बिश्राम॥
लै परवाना धावन चलिभो हिरसिंह बैठरहै निजधाम ४३
लै परवाना अटि धावन गो जायकै द्वारपाल को दीन॥
लै परवाना द्वारपाल गो हिरसिंहबाम हाथ लैलीन ४४
खोलि लिफाफासों कागजको आँकुइ आँकु बांचिसवलीन॥
उत्तरलिखिकै हिरसिंह राजा तुरतै द्वारपालको दीन ४५

उत्तर लैकै द्वारपाल ने दीन्ह्यो धावन हाथ गहाय॥
चलिकै धावन तब बिरिया ते पहुँचो उदयसिंहढिगआय ४६
शीश नवायो त्यहि ऊदन को कागज दिह्यो हाथ में जाय॥
पढ़िकै कागज को बघऊदन औ लाखनिकोदीनसुनाय ४७
सुनिकै कागज को लखराना नैना अग्निबरण ह्वैजायँ॥
हुकुम लगायो निज फौजन में तोपन बिरिया देव उड़ाय ४८
हुकुम पायकै लखराना को झिलमैपहिरि सिपाहिनलीना॥
धरिकै कुंडी लोहेवाली पाछे ढाल गैंड़ की कीन ४९
यक यक भाला दुइ दुइ बरछी कम्मर कसी तीन तलवारि॥
जोड़ी तमंचा औ पिस्तौले बांधी छूरी और कटारि ५०
धरि बंदूखन को कांधे पर क्षत्री भये बेगि तम्यार॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बांके घोड़न भे असवार ५१
रणकी मौहरि बानन लागी रणके होन लाग ब्यवहार॥
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन वेद उच्चार ५२
हिंया हकीकति ऐसी गुजरी अब बिरिया का सुनौहवाल॥
तुरत नगड़ची को बुलवायो हिरसिंहबिरियाकोनरपाल ५३
हुकुम पायकै सो ठाकुर को तुरतै अटा भौन में जाय॥
धर्यो नगाड़ा को सॅड़ियापर डंका तुरत बजायो धाय ५४
पहिल नगाड़ा में जिनवन्दी दुसरे बांधि लीन हथियार॥
तिसर नगाड़ा के बाजत खन क्षत्री भये सबै तय्यार ५५
हिरसिंह विरसिंह दूनों भई हाथिन ऊपर भये सवार॥
तोपैं सजिकै आगे बलि भइँ पाछे हाथिन केर कतार ५६
चला रिसाला घोदनवाला पाछे ऊँटन के असवार॥
चले सिपाही त्यहिके पावे खबर चलिभे डेढ़ हजार ५७

कूच के डङ्का बाजन लाग्यो घूमनलाग्यो लालनिशान॥
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बन्दी कीन समरपद गान ५८
मारु मारु करि मौहरि बाजीं बाजीं हाव हाव करनाल॥
हिरसिंह बिरसिंह दोऊभाई पहुंचे समरभूमि ततकाल ५९
पहिले मारुइ भइँ तोपन की गोलंदाज भये हुशियार॥
बम्ब के गोला छूटन लागे सीताराम लगैहैं पार ६०
जौने हाथी के गोला लागै मानो चोर सेंधि कैजाय॥
जौने ऊंट के गोला लागै सारेक कूल जुदा ह्वइजाय ६१
जौने बछेड़ा के गोला लागै मानों मगर कुल्याँचै खाय॥
गोला लागै ज्यहि क्षत्री के साथै उड़ा चील्ह असजाय ६२
जौने रथमाँ गोला लागैं ताके टूक टूक ह्वैजायँ॥
जौने बैलके गोला लागैं मानों गिरह कबूतर खायँ ६३
जौने अँगमाॅ गोला लागैं तरवर पात अइस गिरिजाय॥
चुकीं बरूदैं जब तोपन की तब फिरि मारु बन्दह्वैजाय ६४
उठीं बँदखैं बादलपुर की जो नब्बे की एक बिकाय॥
मधाकी बूंदन गोली बरषैं क्षत्रिन दीन्हों झरी लगाय ६५
सन् सन् सन् सन् गोली छूटैं क्षत्रिन लगैं करेजे जाय॥
पार निकरिकै सो छातिन के देहीम करैं अनेकन घाय ६६
गिरैं कगारा जस नदिया माँ तैसे गिरैं ऊँट गज धाय॥
गिरै मुहमरा कितनेउँ क्षत्री कितनेउँ भाग पीठिदिखाय ६७
दूनों दल आगे को बढ़िगे परिगो समर बरोबरि आय॥
को गति बरणै त्यहि समया कै हमरे बूत कही ना जाय ६८
सूंड़ि लपेटा हाथी भिड़िगे अंकुश भिड़े महौतन करि॥
हौदा हौदा यकमिल ह्वैइगे मारैं एक एक को हेरि ६९

पहिया रथके रथमाँ भिड़िगे घोड़न भिड़ी रान में रान॥
भाला छूटे असवारन के मारैं एक एक को ज्वान ७०
ऊँट चढ़ैया ऊँटन भिड़िगे पैदर चलन लागि तलवारि॥
भुजा औ छाती में हनि मारैं क्वउशिर काटिदेइँ भुइँडारि ७१
बड़ी लड़ाई भै क्षत्रिन कै नदिया बही रकत की धार॥
लड़ि लड़ि हाथी तामें गिरिगे छोटे द्वीपन के अनुहार ७२
छुरी कटारी मछली जानो ढालैं कछुवा मनो अपार॥
कटि कटि बार बहैं शूरन के जस नदियामाँ बहै सिवार ७३
भुजा छत्तिरिन के ग्वाहै जस ऊँटन बँधिगे नदी कगार॥
बिना पैरके बहैं बछेड़ा मानों घूमैं मगर अपार ७४
बिना मूड़ के क्षत्री बहि बहि छोटीडोंगिया सम उतरायँ॥
गिद्ध काग सब तिन पर सो हैं मानों जल बिहारको जायँ ७५
नचैं योगिनी खप्पर भरि भरि मज्जैं भूत प्रेत वैताल॥
कुत्तन गरमा ऑतनमाला स्यारनसबनकीन मुहँलाल ७६
त्यही समइया त्यहिअवसर माँ यहु द्यावलिको राजकुमार॥
गरूई हाँकन सों ललकारै मारै भुजा ताकि तलवार ७७
द्दबवा ब्वालै तब ऊदन ते ऊदन सुनिल्यो कानलगाय॥
भागे क्षत्रिन का मार्यो ना नहिं सब क्षत्रीधर्म नशाय ७८
हाथ सिपाहिन पर डार्यो ना जब लग ढूँढ़ि मिलै सरदार॥
कउँधालपकनिबिजुलीचमकति आपौ खैंचिलीन तलवार ७९
देवा ऊदन के मारुन मा क्षत्री होन लागि खरिहान॥
हिरसिंह बिरसिंह दोऊ कोपे तिनहुनकीनघोरघमसान ८०
बड़ी लड़ाई भै विरिया माँ हमरे बूतकही ना जाय॥
जितने कायर रहैं फौजन माँ तर लोथिनके रहे लुकाय ८१

ह्याला आवैं जब हाथिन के तब बिन मरे मौत ह्वैजाय॥
कोउ कोउ रोवैं महतारिन का कोउ२दुलहिनिकालुलु आँयँ ८२
कायर बिनवैं यह सुर्य्यन सों बाबा आजु अस्त ह्वइजाउ॥
राति अँधेरिया जो कै पाऊँ भागिकैतीसकोसघरजाउँ ८३
माठा रोटी घरमाँ खावैं आपनि भैंसि चरावन जायँ॥
ऐसि नौकरी हम करि हैं ना कण्डा बेंचि शहरमाखायँ ८४
त्यही समइया त्यहि अवसर माँ हिरसिंह बोल्यो भुजाउठाय॥
बनते कन्या धरि आईती त्यहिके अहिउ बनाफरराय ८५
अहिउ टुकरहा परि मालिक के औ चंदेले केर गुलाम॥
जाति गुलामन की हीनी है तुम्हरो नहीं लड़ैको काम ८६
यह कहिभाला नागदवनिको दूनो अँगुरिन लीनउठाय॥
दूनो अँगुरिन भाला तौलै काली नाग ऐस मन्नाय ८७
तारा टूटैं आसमान ते औ हिरगास भुईं ना जायँ॥
छूटिग भाला जो हाथे ते कम्मर मचा ठनाका आय ८८
तरेते कटिगा यह मछरीबँद ऊपर कटिगा कुलाकबार॥
बचा दुलरुवा द्यावलि वाला ज्यहिका राखिलीनकर्त्तार ८९
औ ललकाराफिरि हिरसिंहको ठाकुर खबरदार ह्वैजाउ॥
दूधु लरिकई मा पायो ना तुम्हरे मरे चढ़ै ना घाउ ९०
वार हमारी सों बचिजायो घरमाँ छठी धरायो जाय॥
गर्दन ठोंक्यौ फिरि बेंदुल के हौदा उपर पहूंचो धाय ९१
ढालकी औझरिसों हनिमारा हिरसिंह गिरयो मूर्च्छाखाय॥
तव फिरि बिरसिंहने ललकारा ऊदन खवरदार ह्वैजाय ९२
भाला बरछिन को बहुमारा ऊदन लीन्ह्यो वार बचाय॥
ताकिकै मारा फिर बिरसिंह को सोऊ गिरा मूर्च्छा खाय ९३

बाँधिकै मुशकै फिरि दोउनकी कनउज तुरत दीन पहुँचाय॥
किला जीतिकैफिरि विरियाको आगे चला बनाफरराय ९४
चारिकोस जब पट्टी रहिगै ऊदन डेरा दीन गड़ाय॥
सात निराजा पट्टी वालो ताको डॉड़ दवायो जाय ९५
तब हरिकारा पट्टी वाला सातनि खबरि सुनावाआय॥
गाफिल बैठे तुम महराजा डांड़े फौज परी अधिकाय ९६
इतना सुनिकै सातनि राजा गुप्ती धावन दीन पठाय॥
हाल पायकै सो फौजन का राजै फेरि सुनावा आय ९७
सुनी हकीकति जब सातनिने डंका तुरतदीन बजवाय॥
सजे सिपाही पट्टी वाले मनमें श्रीगणेशको ध्याय ९८
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बांके घोड़न भे असवार॥
झीलमबखतरपहिरि सिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार ९९
चढ़िगा हाथीपर महराजा करिकै रामचन्द्र को ध्यान॥
कूच कराय दयो पट्टी सों घूमतआवैं लाल निशान १००
घरी अढ़ाई के अरसा माँ सम्मुख गयो फौजके आय॥
आवत दीख्यो जब फौजनको तुरतै उठा बनाफरराय १०१
भुजा उठाये ऊदन बोल्यो गरूई हाँक देत ललकार॥
सँभरो सँभरो ओ रजपूतो अपने बांधि लेउ हथियार १०२
इतना सुनिकै सब रजपूतन अपनी लई ढाल तलवार॥
हथी चढैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न मे असवार १०३
सजा बेंदुला का चढ़वैया लाला देशराज का लाल॥
मारु मारु करि मौहरिवाजीं बाजी हाउ हाउ करनाल १०४
बजे नगारा औ तुरही फिरि दोलन शब्दकीन बिकराल॥
शूर सिपाही दुहुँ तरफा के लागेयुद्धकरनत्यहिकाल १०५

पैदल पैदल कै बरणीभै ओ असवार साथ असवार॥
सुँड़ि लपेटा हाथी भिडिगे अंकुशभिड़े महौतनक्यार १०६
इतनों आगे पट्टी वाला उतसों उदयसिंह सरदार॥
गज के हौदापर महराजा ऊदन बेंदुल पर असवार १०७
गर्दन ठोंकी जब बेंदुल की हौदा उपर पहूंचा जाय॥
कलँगी पगड़ी महराजा की ऊदन दीन्ह्यो भूमिगिराय १०८
औ ललकारा महराजा की पैसा आजदेउ मँगवाय॥
मारि सिरोहिन ते हनिडरिहौं नेका टकालेउँ निकराय १०९
धोखे जयचँद के भूलेना हमरो नाम बनाफरराय॥
उदयसिंह दुनिया मा जाहिर सातनिसाँच दीनबतलाय ११०
बारह बरसन की बाकी जो सो तू आज देय समुझाय॥
नहीं तो बचिहै ना संगरमा जो विधिआपुवचावैआय १११
इतना सुनिकै सातनिराजा हौदा उपर ठाढ़ ह्वैजाय॥
औ ललकारा बघऊदन का क्षत्री काह गये बौराय ११२
बतियाँ आहिन ना कुम्हड़ा की तर्जनि देखिजायँ कुम्हिलाय॥
एक बनाफरकै गिन्ती ना लाखन चढ़ैं बनाफरआय ११३
जबलग हड्डिन मा जी रैहै जबलग रही हाथ तलवार॥
कौड़ी पैसन की बातैं ना देउँ न एक देहँ का बार ११४
जीना चाहै जो दुनियामा तौफिरि लौटिजाय सरदार॥
नहिं शिरकटिहौं मैं संगर में ऊदन देखु मोरि तलवार ११५
इतना कहिकै सातनिराजा अपने शूरन कहा सुनाय॥
जाय न पावैं कनउजवाले इनके देवो मूड़ गिराय ११६
सुनिकै बातैं महराजाकी क्षत्रिन कीन घोरघमसान॥
भाला बलछी तलवारिन सों मारन लागि खूबतहँज्वान ११७

२६

बहे पनारा नरदोहन सों नदिया बही रक्त की धार॥
लंबी धोतिन के पहिरैया क्षत्री जूझे तीनि हजार ११८
साल दुसाला मोहनमाला आला परे गले में हार॥
ऐसे सुन्दर रजपूतन को नोचनलागेश्वानसियार ११९
गीधन केरी खुब बनिआई चील्हन भीर भई अधिकाय॥
लगीं बजारैं तहँ कौवनकी कालीभूमि परै दिखलाय १२०
लगी अथाई तहँ भूतन की प्रेतन कथा कही ना जाय॥
यहु अलबेला आल्हा वाला गर्जा समर भूमिमाआय १२१
इन्दल ठाकुर के सम्मुख मा कोऊ शूर नहीं समुहाय॥
चढ़ि पचशब्दा हाथी ऊपर आल्हागये समरमें आय १२२
यहु महराजा पट्टी वाला मारत फिरै शूर समुदाय॥
आल्हा ठाकुर औ सातनि का परिगासमर बरोबरिआय १२३
सातनि बोला तब आल्हाते मानो कही बनाफरराय॥
दीन न पैसा हम जयचँद को कैयो बार लड़ेते आय १२४
टका न पैहौ आल्हा ठाकुर याते कूच देउ करवाय॥
इतना सुनिकै आल्हा बोले सातनि काहगयो बौराय १२५
बहुती बातैं हम जानें ना पैसा आज देउ मँगवाय॥
नहिं दिखलावै अव संगर में जोक्छुकीनबूततवजाय १२६
सुनिकै बातैं ये आल्हा की सातनि खैंचि लीन तलवार॥
हनिकै मारा सो आल्हा के आल्हालीन ढालपरवार १२७
भालामारा फिरि आल्हा के सोऊ लीन्ही वार बचाय॥
गदा चलावा सातनि राजा सो शिरपरी महाउतआय १२८
गिरा महाउत जब आल्हा का इन्दल दीन्ह्यो घोड़ उड़ाय॥
पहुंचा घोड़ा जब हौदापर इन्दलमार्यो ढालघुमाय १२९

मुच्छित ह्वैगा सातनि राजा तुरतै कैदलीन करवाय॥
बांधिकै मुशकै महराजा की कनउजतुरतदीनपहुँचाय १३०
जोगा भोगा दोउ मारेगे जखमी भयो पपीहा आय॥
इतना शोचत उदयसिंह के मनमागयोक्रोधअतिछाय १३१
माल खजाना सब सातनि का ऊदन तुरत लीन लुटवाय॥
कूच करायो फिरि पट्टी ते पहुँचे देश कामरू जाय १३२
गड़िगे तम्बू तहँ आल्हा के सब रंग ध्वजा रहे फहराय॥
चला कामरू का हरिकारा राजै खबरि सुनाई जाय १३३
फौजे आई क्यहु राजा की डाँड़े भीर भार अधिकाय॥
इतना सुनिकै कमलापति ने गुप्ती धावन दीन पठाय १३४
खबरिलायकै सो फौजन की राजै फेरि सुनावाआय॥
सुनिकै बातैं त्यहि धावन की डंका तुरत दीन बजवाय १३५
हाथी सजिगा कमलापति का तापर आपभयो असवार॥
झीलमबखतरपहिरिसिपाहिन हाथ म लई ढालतलवार १३६
यक यक भाला दुइ दुइ बलछी कोताखानी लीन कटार॥
हथीचढ़ैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न पर असवार १३७
बाजीं तुरही तहँ मुरही सब पुप्पूं पुप्पूं परै सुनाय॥
बाजे डङ्का अहतङ्का के राजा कूचदीन करवाय १३८
आयकै पहुॅच्यो जब डाँड़े पर गरूई हाँकदीन ललकार॥
को चढ़िावा है डाँड़े पर सम्मुख ज्वाबदेय सरदार १३९
पाछे फौजै ऊदन करिकै आगे घोड़ नचावाजाय॥
गरूई हाँकनते बोलत भा यहु रणबाघु बनाफरराय १४०
तुमपर चढ़िकै लाखनि आये पैसा आपदेउ मँगवाय॥
कुमक म आये आल्हा गकुर ऊदननाम हमारो आय १४१

छोटे भाई हम आल्हाके राजन साँच दीन बतलाय॥
बाकी दैदो तुम जयचँद के हम सब कूचदेयँ करवाय १४२
इतनी सुनिकै राजा बोले मानो कही बनाफरराय॥
झंझी कौड़ी तुम पैहो ना टेटुवा टायर लेयँ लुटाय १४३
कहाँ मंसई तुम करिआये ऊदन नाम सुनावै भाय॥
तुम अस ऊदन बहुतेरन को रणमा मारा खेत खिलाय १४४

सवैया॥


सुनिकै यह बानि कहा बघऊदन साँचसुनै नृप बात हमारी।
सेतु बँधा जहँ पय रघुनन्दन बेंदुल टाप तहाँलग धारी॥
जयपुर जीति लुटाय लियों दतिया औ उरैछा भये सब आरी।
पृथिराजकी शानकमान बढ़ी ललिते तिनद्वार गयंद पछारी १४५



झन्ना पन्ना को जीता हम जीता काशमीर मुल्तान॥
थहर थहर सब बूँदी काँपै झंडा अटकपार फहरान १४६
देश देश सब हम मथिडारे मारे हेरि हेरि नरपाल॥
पैसा लेबैं जब संगर में तबहीं देशराज के लाल १४७
इतना कहिकै उदयसिंह ने तुरतै हुकुम दीन फर्माय॥
जान कामरू के पावैं ना इनके देवो मूड़ गिराय १४८
भा खलभल्ला औ हल्ला अति लागी चलन तहाॅ तलवार॥
पैदल पैदल कै बरणी भै औअसवार साथ असवार १४९
सूँड़ि लपेटा हाथी भिड़िगे अंकुश भिड़े महौतन केर॥
हौदा हौदा यकमिल ह्वैगे मारैं एक एक को हेर १५०
गाफिलदीख्यो कमलापतिका ऊदन कैद लीन करवाय॥
बांधिकै मुशकै महराजा की कनउज तुरत दीन पठवाय १५१

माल खजाना सब लुटवायो डंका फेरि दीन बजवाय॥
जीति कामरू कामरू को तहँते कूच दीन करवाय १५२
जायकै पहुँचे बंगाले में झंडा तहाँ दीन गड़वाय॥
बजे नगारा तहँ आल्हा के नभऔअवनिशब्दगाछाय १५३
गा हरिकारा तब जल्दी सों राजै खबरि सुनावा जाय॥
भारी फौजै क्यहु राजा की डाँड़े परीं हमारे आय १५४
सुनिकै बातैं हरिकारा की राजा गयो सनाकाखाय॥
देखन पठवा क्यहु अफ्सर को त्यहिसबखबरिसुनावाआय १५५
गुरुखा राजा बंगाले का मन्त्रिन बोला बचन सुनाय॥
तुरत नगाड़ा को बजवावो सवियाँफौजलेउसजवाय १५६
हुकुम पायकै महराजा का सबियाँ फौज भई तैयार॥
पहिल नगाड़ा मा जिनबंदी दुसरे फाँदिभये असवार १५७
हथी अगिनियाँ महराजा को सोऊ बेगि भयो तय्यार॥
सुमिरि भवानी जगदम्बा का राजा तुरत भयो असवार १५८
ढाढ़ी करखा बोलन लोगे बिप्रन कीन बेद उच्चार॥
रणकी मौहरि बाजन लागीं रणकाहोनलागब्यवहार १५९
पांच घरी के फिरि अर्सा मां राजा गयो समर में आय॥
घोड़ बेंदुला को चढ़वैया यह रणवाघु बनाफरराय १६०
सम्मुख आवा महराजा के औ यह बोला भुजा उठाय॥
बारह बरसन की बाकी अब राजन आप देउ मँगवाय १६१
लाखनि आये हैं कनउज ते आल्हा ऊदन साथ लिवाय॥
छोटे भाई हम आल्हा के ऊदन नाम हमारो आय १६२
इतना सुनिकै गुरुखा राजा बोला महाक्रोध को पाय॥
टरिजा टरिजा रे सम्मुख ते नहिंशिरदेवों भूमिगिराय १६३

तुइ अभिनन्दन के धोखे ते आये यहाँ बनाफरराय॥
पैसा लेवे की बातन को ऊदन चित्त देय बिसराय १६४
कूच करावै अब डाँड़े ते नाहीं गई प्राण पर आय॥
इतना सुनिकै ऊदन जरिकै तुरतै दीन्ह्यो युद्ध मचाय १६५

सवैया॥


रणशूरन की तलवार चलै अरु कूरन के उर होत दरारा।
छप्प औ छप्प खपाखप शब्द बहे तहँ शोणित केर पनारा॥
हाथ औ पाँव भुजा अरु जाँघ परे तहँ सर्प्पन के अनुहारा।
मारु औ काटु उखारुभुजा ललिते इनशब्दनको अधिकारा १६६
मारु चपेट लपेट करैं औं दपेट ससेट करैं सरदारा।
शूल औ सेल गदा अरु पट्टिश मारि रहे सब शूर उदारा॥
हारि न मानत ठानत रारि पुरारि मुरारि खरारि अधारा।
ललितेसुरबन्दिअनन्दि सबै रणशूरन युद्धकियोत्यहिबारा १६७



भई लड़ाई बंगाले में नदिया वही रक्तकी धार॥
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार १६८
हाथी घोड़न कै गिन्ती वा पैदर जूझे पांच हजार॥
घोड़ बेंदुला का चढ़वैया नाहर उदयसिंह सरदार १६९
एँड़ लगायो रसबेंदुल के हाथी उपर पहूँचा जाय॥
गुर्ज चलायो बंगाली ने ऊदन लीन्ह्यो वार बचाय १७०
ढाल कि औझड़ ऊदन मारी मुर्च्छा खाय गयो नरपाल॥
मुशकै बाँधी तब राजा की नाहर देशराज के लाल १७१
रुपिया पैसा बंगाली के सब छकड़नमें लियो लदाय॥
तुरतै चलिकै बंगाले ते घेर्यो अटक बनाफर आय १७२

मुरली मनोहर दोउ भाइन को तहँ पर कैदलीन करवाय॥
सुन्दर फाटक जौन अटकको त्यहिकोतोपनदीनउड़ाय १७३
माल खजाना ताको लैकै तहँ ते कूच दीन करवाय॥
आयकै पहुँचे फिरि जिन्सी में तम्बू तहाँ दीन गड़वाय १७४
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गा छाय॥
राजा जगमनि जिन्सीवाला सोऊगयो समरको आय ९७५

सवैया॥


औ ललकार कियो रण में तुम ठाकुर काहे ग्रस्यो मम ग्रामा।
काह तुम्हार चहैं रणनाहर तौन बताय कहौ यहि ठामा॥
ऊदन बोलि उठा ततकाल सुनो नृप सुन्दरि बात ललामा।
दादशअब्दभये तुमको नृप जयचँदको न दियो कछु दामा १७६



पैसा बाकी सब दैदेवो तो हम कूच देयँ करवाय॥
इतना सुनिकै जिन्सी वाला शूरनबोला वचन सुनाय १७७
मारो मारो श्री रजपूतौ यहही ठीक लीन ठहराय॥
झुके सिपाही दोनों दल मा मार एक एक को धाय १७८
चली सिरोही भल जिन्सी मा लागे गिरन शूर सरदार॥
को गति वरणै त्यहि समया कै आमा झोर चलै तलवार १७९
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी धार १८०
घोड़बेंदुला का चढ़वैया आल्हा केर लहुरवा भाय॥
जीति लड़ाई मा जगमनि को तुरतै कैद लीन करवाय १८१
बांधिकै मुशकै तहँ जगमनिकी तुरतै कनउज दीन पठाय॥
मालखजाना सब जगमनिका ऊदनतुरत लीनलुटवाय १८२

चिन्ता ठाकुर रुसनी वाला ताको जीति लीन फिरिजाय॥
बजे नगारा हहकाराके तहँ ते चला बनाफरराय १८३
आयकै पहुँचा फिरि गोरखपुर सबियाँ शहर लीन घिरवाय॥
सूरजठाकुर गोरखपुर का ऊदन लीन तहाँ बँधवाय १८४
तहँते चलिकै पटना आवा यहु रणबाघु बनाफरराय॥
पूरन राजा पटना वाला ताको कैदलीन करवाय १८५
चला वनाफर फिरि तहँना ते काशीपुरी पहूँचा आय॥
धन्य बखाने हम काशी का मनमेंशिवाचरणकोध्याय १८६
अज अबिनाशी घट घट बासी पूरण ब्रह्म शम्भु करतार॥
परम पियारी निज काशी के आजौ सत्य सत्य रखवार १८७
रहे भास्करानँद स्वामी हैं सबके माननीय शिरताज॥
अव लग काशी हम देखी ना ना कछुपरा क्यहूते काज १८८
वर्ष अठारा कीन नौकरी बाबू प्रागनरायण धाम॥
छपीं पुस्तकै ह्याँ जितनी हैं ते सब पढ़ा पेटके काम १८९
सुनी बड़ाई भल काशी की दासी सरिस मुक्ति तहँ भाय॥
तौनी काशी अविनाशी मा ऊदन तम्बू दीन गड़ाय १९०
हंसामनि काशी का राजा ऊदन कैद लीन करवाय॥
मारू डंका फिरि बजवाये कनउज चलावनाफरराय १९१
तीनि महीना औ तेरा दिन गाँजर खूब कीन तलवार॥
बारह राजन को कैदी करि पठवा जयचँद के दरबार १९२
बोला मारग में लाखनि ते बेटा देशराज को लाल॥
हम पर साँकर जहँ कहुँ परिहै लाला रतीभानके लाल १९३
बदला देहौ की मुरिजैहौ लाखनि साँच देउ बतलाय॥
सुनिकै बातैं बघऊदन की लाखनिगंगशपथगाखाय १९५

साथ तुम्हारो साँचो देहैं प्यारे उदयसिंह तुम भाय॥
करत बतकही द्वउ मारग में कनउजशहर पहूंचे आय १९५
अनँद बधैया घर घर बाजीं सबहिन कीन मंगलाचार॥
पूरि लड़ाई भै गाँजर कै रक्षा करैं सिया भर्त्तार १९६
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डागड़ा निशाको आय॥
आशिर्बाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायणभाय १९७
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों हैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तवलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर १९८
माथ नवावों पितु अपने को जिन बल गाथ भई तय्यार॥
बड़े यशस्वी पितु हमरे हौ साँचे धर्म कर्म रखवार १९९
करों तरंग यहाँ सों पूरण तवपद सुमिरि भवानीकन्त॥
शम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त २००

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबू
प्रयागनारायणनीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलां
निवासिमिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनुपरिडतललिताप्रसाद
कृत गाँजरयुद्धवर्णनोनायप्रथमस्तरंगः १॥

 

गाँजर का युद्ध समाप्त॥

इति॥