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आल्हखण्ड/१३ सिरसा समर मलखे मरण

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आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ४११ से – ४२४ तक

 

अथ पाल्हखण्ड॥ सिरसाकासमरवर्णन॥ सर्वया ॥ घ्यावत तव पद कंज शिवा मनभावत दे वरदान भवानी। तवपति भंगनशे में परे अरु गावत गीत हरी हरि वानी।। नाहिं सुनय विनती ललिते यह साँचहु साँचहु साँच वखानी। दे मृगनयनी कि दे मृगछाल यह हम चाहत है, शिवरानी ? सुमिरन ॥ सुमिरि भवानी शिवरानी को सिरसा समर करों विस्तार in नेया डगमग भवसागर में माता- तुम्ही निबाहन हार १ आदि भवानी महरानी तुम तुम बल सृष्टि रचैं करतार । परम पियारी त्रिपुरारी की धारी देह जगत उपकार २ पुत्र षडानन गजआनन है हमरे माननीय शिरताज ।। प्रथमें सुमिर गजानन को हो सकल तासु के काज ३ ३ सुमिरि षडानन का दुनियामा लाखन सिद्धभये द्विजराज ॥

मलखे पृथ्वी के संगर को वर्णन करों सुमिरि रघुराज ४

अथ कथाप्रसंग॥

एक समैया माहिल ठाकुर लिल्ली घोड़ीपर असवार॥
तिक्तिक्तिक्तिक्घोड़ीहांकत पहुंचे दिल्ली के दर्बार १
आवत दीख्यो जब माहिल को पिरथी कीन बड़ा सत्कार॥
आवो आवो बैठो बैठो ठाकुर उरई के सरदार २
कुशल बतावो अब मोहबेकी नीके राजकरैं परिमाल॥
इतना सुनिकै माहिल बोले साँची सुनो आप नरपाल ३
अवसर नीको यहि समया माँ तुम्हरे हेतु रचा कर्त्तार॥
आल्हा ऊदन गे कनउज का राजा जयचँद के दरवार ४
भले बुरे जो दिन बीतत हैं आवैं फेरि नहीं सो हाथ॥
त्यहिते तुमका समुझावत हैं साँची सुनो धरणि के नाथ ५
सिरसा मोहबा यहि समया मां दुनों आप लेउ लुटवाय॥
सुनिकै बातैं ये माहिल की भा मनखुशी पिथौराराय ६
सात लाख फिरि फौजै लैकै तुरतै कूचदीन करवाय॥
चारकोस जब सिरसा रहिगा तम्बू तहाँ दीन गड़वाय ७
हुकुम लगायो महराजा ने सिरसा किला गिरावाजाय॥
तब हरकारा सिरसा वाला मलखे खबरि जनावा आय ८
फौजै आई पृथीराज की ओ महराज बनाफरराय॥
इतना सुनिकै मलखे ठाकुर डंका तुरुन दीन बजवाय ९
हुकुम लगायो अपने दलमा फौजै होन लगीं तय्यार॥
तुरत कबुतरी पर चढ़िबैठा नाहर सिरसा का सरदार १०
छींक तड़ाका भै सम्मुख मा माता बोली बचन सुनाय॥
तुम नहिं जावो अब मुर्चा को मानो कही बनाफरराय ११
इतना सुनिकै मलखे बोले मावा साँच देयँ बतलाय॥

आशिर्वाद देउ जल्दी सों जामें काम सिद्ध ह्वैजाय १२
चढ़ा पिथौरा है सिरसा पर माता हुकुम देउ फरमाय॥
बिरमा बोली तब मलखे ते तुम्हरो बार न बाँका जाय १३
चरण लागिकै महतारी के मलखे कूच दीन करवाय॥
चौड़ा ताहर चन्दन बेटा तीनों परे तहाँ दिखलाय १४
चौंड़ा बोला मलखाने ते मानो कही बनाफरराय॥
किला गिराय देउ सिरसा का दीन्ह्यो हुकुम पिथौराराय १५
इतना सुनिकै मलखे बोले चौंड़ा काह गये बौराय॥
अपने हाथे हम बनवावा हमहीं देवैं किला गिराय १६
जो कछु ताकति हो पिरथीकी सो अब हमैं देयँ दिखलाय॥
असगति नाहीं है पिरथी कै हमरो किला देयँ गिरवाय १७
सुनिकै बातैं मलखाने की चौंड़ा लागु दीन लगवाय॥
झुके सिपाही दुहुँतरफा के मारैं एक एक को धाय १८
पैदल पैदल कै बरणी भै और असवार साथ असवार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्त की धार १९
अपन परावा क्यहु सूझैना दूनों हाथ करैं तलवार॥
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लाग पहार २०
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठे जैसे अहिर बिडारै गाय॥
तेसै मारै मलखे ठाकुर रणमा क्षत्रिन खेलखिलाय २१
बहुतक घायल भे खेतनमाॅ बहुतक ह्वैगे बिना परान॥
फिरि फिरि मारै औ ललकारै नाहर समरधनी मलखान २२
चढ़ा चौंड़िया इकदन्तापर गरुई हाँक देय ललकार॥
मोरि लालसा यह ड्वालति है ठाकुर सिरसा के सरदार २३
मरे सिपाहिन का पैहौ तुम ठाकुर मोरि तोरि तलवार॥

इतना सुनिकै मलखे बोले चौंड़ा भली कही यहि बार २४
इतना कहिकै मलखे ठाकुर चौंड़ा पास पहूँचे जाय॥
साँग चलाई तब चौंड़ा ने मलखे लीन्ह्यो बार बचाय २५
एँड़ लगाई फिरि घोड़ी के हौदा उपर पहूॅचे जाय॥
ढाल कि औझड़ मलखे मारा चौंड़ा गयो मुर्च्छा खाय २६
बांधिकै मुशकै तब चौंड़ाकी अपनी फौज पहूँचा आय॥
कड़ा छड़ा औबिछिया अँगुठा चौड़ै दीन तहाँ पहिराय २७
अगे अगेला पिछे पछेला तिन बिच चुरियाँ दीनडराय॥
जोशन पट्टी और बजुल्ला कानन करनफूल पहिराय २८
बेंदीमाल नयन बिच काजर पीछे चूनरि दीन उढ़ाय॥
तुस्त घाँघरा को पहिरावा मलबे पलकी लीनमँगाय २९
रूप जनाना करि चौंड़ा को पलकी उपर दीन बैठाय॥
फिरि बुलवावा हरकारा को ताको हाल दीन समुझाय ३०
कह्यो जवानी पृथीराज ते चौंड़ै मुहबा लीन लुटाय॥
बेटी प्यारी परिमालिक की लैकै कूच देउ करवाय ३१
चली पालकी फिरि चौंड़ा की लश्कर तुरत पहूँची आय॥
दौरति धावन महराजा ते सबियाँ हाल वतावा जाय ३२
बड़ी खुशाली भै पिरथी के फूले अंग न सके समाय॥
जल्दी आये फिरि पल की दिग देखन लागि पिथौराराय ३३
दीख जनाना तहँ चौंड़ा को पिरथी गये बहुत शर्माय॥
बँधा चौंड़िया जो बैठा था बंधन तुरत दीन खुलवाय ३४
क्रोधित ह्वैकै महराजा फिरि आपै गये समर में आय॥
औ ललकारा मलखाने को अवहीं किला देउ गिरवाय ३५
इतना सुनिकै मलखे बोले राजन साँच देयँ बतलाय॥

बंजर धरती जब देखी हम तबफिर किलालीन बनवाय ३६
जैसे मालिक परिमालिक हैं तैसे आप पिथौरासराय॥
अदब तुम्हारो हम मानत हैं राजन कूच देउ करवाय ३७
इतना सुनिकै पिरथी बोले अवहीं किला देउ गिरवाय॥
सिरसा मुहबा नतु दूनों हम मलखे लेव आज लुटवाय ३८
इतना सुनिकै मनखे बोले ओ महराज पिथौराराय॥
हथी पछारा तव द्वारे मा आपन बूत दीन दिखलाय ३९
काह बतावैं महराजा ले सबियां देश रहा थर्राय॥
किला गिरावो जो सिरसा का दिल्लीशहर देउँ फुँकवाय ४०
कौने धोखे तुम भूले हौ मारों राज भंग ह्वैजाय॥
इतना सुनिकै पृथीराज ने तोपन आगिदीन लगवाय ४१
हाहाकारी तब बीतति भै मानो प्रलयगई नगच्याय॥
बड़ी लड़ाई भै तोपन कै औ दलगिरा बहुतभहराय ४२
चारकोस लौं गोला जावै गोली पांचखेत लौं जाय॥
धुँवा उड़ाना अति तोपन का चहुँदिशि अंधकारमाछाय ४३
चन्द लड़ाई भै तोफ्न के औफिरि चलनलागितलवार॥
जितने कायर दूनों दल मा ते सब भागि डारि हथियार ४४
शूर सिपाही रणमण्डल मा मारैं फेरि फेरि ललकार॥
कटि कटि मूड़ गिरैं धरती मा उठि उठि रुण्ड करैं तलवार ४५
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औं रुण्डन के लगे पहार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार ४६
छुरी कटारी तिहि नदिया मा मछली सरिस परैं दिखलाय॥
ढालै कछुवा त्यहि नदिया मा गोहै सरिस भुजा उतरायँ ४७
को गति बरणै त्यहि समया कै नदिया खूब बहै बिकराल॥

नचैं योगिनी खप्पर लीन्हे मज्जैं भूत प्रेत वैताल ४८
घोड़ी कवुतरी का चढ़वैया नाहर समरधनी मलखान॥
सुमिरन करिकै शिवशंकर का मारिकै कीन खूब खरिहान ४९
औ ललकारा रजपूतन का हमरे सुनो शूर सरदार॥
जो कोउ पैदाहै दुनिया मा आखिर मरण होय इकबार ५०
परे खटोलिन में मरिजैहौ आखिर ह्वैहौ भूत परेत॥
सम्मुख जूझै तलवारी के त्यहि बैकुण्ठ धाम हरि देत ५१
दिह्यो बढ़ावा बहु क्षत्रिनको नाहर सिरसा के सरदार॥
पैदल पैदल इकमिल ह्वैगे औ असवार साथ असवार ५२
विकट लड़ाई क्षत्रिन कीन्ह्यो नदिया बही रक्तकी धार॥
सूरति राजा हाड़ावाला मलखे सिरसा के सरदार ५३
दूनों अभिरे समरभूमि मा दूनों खूब करैं तलवार॥
भाला बलछी दूनों मारैं दूनों लेयँ ढालपर वार ५४
सूरति गिरिगा जब संगर में अंगद शूर पहूँचा आय॥
औ ललकारा मलखाने को तुम भगि जाउ बनाफरराय ५५
इतना कहिकै अंगद ठाकुर तुरते मारा साँग चलाय॥
घोड़ी कबुतरी का चड़वैया तुरतै लीन्ह्यो वार बचाय ५६
खैंचिकै मारा तलवारी का औ शिर दीन्ह्यो भूमि गिराय॥
तीनि शूर पिरथी के जूझे हाहाकार शब्द गा छाय ५७
मुर्चा फिरिगे रजपूतन के काहू धीर धरा न जाय॥
मलखे मारे दश पंद्राको घोड़ी देवै वीस गिराय ५८
दाँतन काटै टापन मारै अद्भुत समर कहा ना जाय॥
हटा पिथौरा तव पाछे का आगे बढ़े बनाफरराय ५९
मलखे ताहर का मुर्चा भा मारैं एक एक को धाय॥

सात कोसलौं मलखे ठाकुर मारत मारत गये हटाय ६०
रंग बिरंगी पृथ्वी ह्वैगे मज्जा चर्बिपरै दिखराय॥
बड़ा लड़ैया बिरमा वाला ज्यहिका कही बनाफरराय ६१
त्यहि के संगर धरती काँपै थर थर आसमान थर्राय॥
काह हकीकति है ताहर कै जो संगरते देयँ हटाय ६२
पाँउ पछारी को डारै ना यहु रणबाघु बीर मलखान॥
कोऊ क्षत्री अस दूसर ना मलखे साथ करै मैदान ६३
मुर्चा फिरिगा पृथीराज का लौटा तबै बीर मलखान॥
बाजे डंका अहतंका के लौटे सबै सिपाही ज्वान ६४
पहुंचे पिरथी तब दिल्ली में सिरसा सिरसा का सरदार॥
माता बिरमा त्यहि औसरमा द्वारे आरति लीन उतार ६५
एक समैया की बातैं हैं आये उरई के सरदार॥
आवो आवो बैठो बैठो बिरमा कीन बड़ा सतकार ६६
माहिल बैठा तब महलन मा करिकै रामचन्द्र को ध्यान॥
बोला माहिल फिरि बिरमा ते तुम्हरो पूत बड़ा बलवान ६७
बड़े लड़ैया दिल्ली वाले ते सब हारिगये चौहान॥
कौनि तपस्या तुम कैराखी पैदा भये बीर मलखान ६८
सरबर मलखे की दुनियामा दूसर नहीं लीन औतार॥
यहै मनावैं परमेश्वर ते इनका भलाकरौ कर्तार ६९
नाम हमारो है दुनिया मा भैने माहिल के बरियार॥
आल्हा ऊदन मलखे सुलखे इनते हारि गई तलवार ७०
यह मना जगदम्बा ते अंजलि जोरिजोरि शिरनाय॥
मलखे सुलखे आल्हा ऊदन नीके रहैं बनाफरराय ७१
सुनि सुनि बातैं ये माहिलकी नारी बुद्धिहीन जगजान॥

२७

पदुम पैर है मलखाने के यह वरदीन रहै भगवान ७२
दुनिया बैरी ह्वै मलखे कै भैया काह बनाई आय॥
पदुम न फटि है जो तरवाका तौ नहिं मरी बनाफरगय ७३
लिखी बिधाता के मेटैको माता हाल दीन बतलाय॥
बिदा माँगिकै फिरि जल्दी सों माहिल कुच दीन करवाय ७४
राह छोंड़िकै फिरि उरई के दिल्ली चला तड़ाका जाय॥
लिल्ली घोड़ी का चढ़वैया दिल्ली पहुंचिगयोफिरआय ७५
हाल बतायो सब पिरथी को माहिल बार बार समुझाय॥
भाला वलछी औ साँगनको खन्दक आप देउ गड़वाय ७६
अदुम न रैहै जब तरवा मा तव ना रही बनाफरराय॥
भीचु आयगै मलखाने कै माता हाल दीनबतलाय ७७
सुनिकै बातैं ये माहिल की राजा कुँवर लीन बुलवाय॥
दुइसै खन्दक तुम खुदवावो आधे देउ जाय पटवाय ७८
एक छाँडिकै इक पटवावो या विधि दीन खूब समुझाय॥
अधीराति के फिरि अमला मा कुँवरनकीन तहाँ तसजाय ७९
पाँच रातिमें यह रचनाकार दिल्ली फेरि पहूँचे आय॥
हाल बतायो सब पिरथी को कुँवरन बार बार समुझाय ८०
माहिल चलिमे फिरि उरई का राजा फौज कीन तैयार॥
झीलमबखतरपहिरि सिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार ८१
पहिल नगाड़ा में जिनबन्दी दुसरे फाँदि घोड़ असवार॥
तिसर नगाड़ा के बाजत खन चलिभे सबै शूर सरदार ८२
जायकै पहुॅचे फिरि संगर में तम्बू तहाँ दीन गड़वाय॥
लिखीहकीकति फिरिमलखेको अवहूं किला देउ गिखाय ८३
लिखिकै चिट्ठी दी धावन को धावन तुरत पहुंचा जाय॥

द्वारे ठाढ़े मलखाने थे चिट्ठी तुरत दीन पकराय ८४
चढ़ा पिथौराहै सँभराभरि औं यह कहा बनाफरराय॥
किला गिरावैं जो सिरसा का तौ सब रारि शान्तह्वैजाय ८५
नहीं तो बचिहैं ना संगरमा जो बिधि आपु बचावैं आय॥
लौटि पिथौरा अव जैहै ना सिरसा ताल देय करवाय ८६
मृत्यु आयगै मलखाने कै जो नहिं किला देयँ गिरवाया॥
लौटि पिथौरा अब जैहै ना नेका टका लेय निकराय ८७
चौंड़ा बकशी पृथीराज का सोऊ कहा सँदेशा आय॥
बने जानना मलखाने अब घरमा बैठि रहैं शर्माय ८८
कौने राजा की गिनती मा जो नहिं किला देयँ गिरवाय॥
कह्यो संदेशा यह ताहर है सो सुनिलेउ बनाफरराय ८९
मलखे चाकर परिमालिक का सो कस गरि मचावै आय॥
दीन बड़ाई हम चाकरको पहिले फौज लीन हटवाय ९०
जियति न जाई अब संगर ते जो बिधि आपु बचाई आय॥
कह्यो सँदेशा सब लोगन को धावन बार बार समुझाय ९१
सुनिकै बातैं ये धावन की क्रोधित भयो बनाफरराय॥
हुकुम लगायो फिरि सिरसामें बाजन सबै रहे हहराय ९२
बोले मलखे फिरि धावन ते यह तुम कह्यो पिथौरै जाय॥
मारे मारे मुख घावन के धावन द्याव तहाँ समुझाय ९३
यहै बतायो तुम पिरथी ते आवत समरधनी मलखान॥
कसरि न राखैं चौंड़ा ताहर संगर करैं दूनहू ज्वान ९४
कीन जनाना हम दोउन का उनके साथ कौन मैदान॥
हमरो संगर पृथीराज को ना सँभरि आज चौहान ९५
इतना सुनिकै धावन चलि कै राजै खबरि बतावा आय॥

हाल पायकै सिरसागढ़का क्रोधित भयो पिथौराराय ९६
बाजे डंका इत पिरथी के वैसी सिरसा के महराज॥
सूरज बंशी औ यदुबंशी तोमर वंश केर शिरताज ९७
ये सब सजिसजि सिरसा गढ़में अपनी लीन ढाल तलवार॥
नीले काले सब्जे सुर्खे सब रँग घोड़ भये तय्यार ९८
अंगद पंगद मकुना भौंरा सजिगे श्वेतवरण गजराज॥
हाड़ा बूंदी गहिलवारके तिनपर बैठि शूर शिरताज ९९
सुमिरन करिकै शिवशंकरका मातै शीश नवावा जाय॥
पीठि ठोंकि कै बिरमा माता आशिर्बाद दीन हर्षाय १००
चलिभा मलखे माताढिग ते रानी महल पहूंचा आय॥
दीन दिलासा गजमोतिनिका ठाकुर चला खूब समुझाय १०१
बेटी बोली गजराजा की स्वामिन चेरी बोल बनाव॥
पावँ पछारी का डार्योना नाहीं हँसी देश औ गाँव १०२
होय हँसौवा ज्यहि दुनिया मा त्यहिका मरण नीकही आय॥
सुनी किहानी हम बिप्रन ते स्वामी साँचदीनवतलाय १०३
इतना सुनिकै मलखे चुप्पै फौजन फेरि पहूंचे आय॥
बाजे डंका अहतंका के मलखे कूच दीन करवाय १०४

सवैया॥


चर्खनमें सब तोप चढ़ाय औ फौज अपारलिये मलखाना।
बाजत डंक निशंक तहाँ औ यथा घन सावनको घहराना॥
बिज्जु छटासों कटा करिबे कहँ चमकत खड्ग तहाँ मर्दाना।
मौहर बाजत हावकिये ललिते यह भाव न जात बखाना १०५


चढ़ा कबुतरी पर मलखाने मुर्चा सबै कीन तैयार॥

पाग बैंजनी शिरपर बाँधे हाथ म लये ढाल तलवार १०६
फिरि फिरि ध्यावै शिवशंकरको गावै सुन्दर भजन बनाय॥
चील्ह औ गीध उड़ैं खुपरिनपर कुत्ता स्यार रहे चिल्लाय १०७
मरण काल के जो अशकुन है मलखे दीख तहाँपर आय॥
पै भयलायो मन अन्तर ना यह निरशंकबनाफरराय १०८
इकदिशि तोपनको छुटवावा इकदिशि धावा दीन कराय॥
जैसे भेड़िन भिड़हा पहुंचै जैसे अहिर बिडारै गाय १०९
तैसे मारै रजपूतन को यहु रणवाधु बनाफरराय॥
ताहर चौंड़ा औ चन्दन का मुर्चा मलखे दीन हटाय ११०
जौनै हौदा मलखे ताकैं घोड़ी तहाँ देय पहुँचाय॥
जाय महावत का हनिडारैं औ असवारै देयँ गिराय १११
दहिने बाँये टापन मारै सम्मुख दाँतन लेय चबाय॥
मलखे ठाकुर के मारुनमा बहुदल परा तहाँभहराय ११२
जहँना हाथी पृथीराज का मलखे तहाँ पहूंचे आय॥
पतरी लकड़िन खन्दक पाटे ताके पार पिथौराराय ११३
खाली खन्दक एक बीच में ताको दीख बनाफरराय॥
गर्द्दन ठोंकी तहँ घोड़ी की दूनों एँड़ा दीन लगाय ११४
चूकि कबुतरी धरती जाना खन्दक परी तड़ाकाजाय॥
मलखे घोड़ी दोउ खन्दकमा भालन उपर गिरे भहराय११५
बलछी भालनकी नोकन सों घायल भये बनाफरराय॥
बड़ा शोचभा तहँ घोड़ी का रोवैं बराबर पछिताय ११६
घोड़ी तड़पी फिरि खन्दकते मलखे सहित पारगै आय॥
पदुम फाटिगा तहँ तरवा का औ मरिगये बनाफरराय ११७
गा हरिकारा तब सिरसामा बिरमै खबरि बतावा जाय॥

सुनिकै बातैं हरिकारा की बिरमा गिरी मूर्च्छाखाय ११८
खबरि पायकै गजमोतिनि तहँ फिरिउठिबैठि फेरि गिरिजाय॥
सासु पतोहू बैली ह्वैकै शिरधुनिबारबार पछितायँ ११९
सुयश बखानैं मलखाने का महलन गई उदासी छाय॥
सात पांच दश जुरीं सहिलरी सम्मत देनलगींसो आय १२०
तब गजमोतिनि बिरमा दूनों पलकी लीन तहाँ मँगवाय॥
सुमिरि गजानन लम्बोदर को गौरा पारवती पद ध्याय १२१
चढ़ी पालकी सासु पतोहू पहुंचीं समरभूमि में आय॥
गदहन पृथ्वी को जुतवावै यहु महराज पिथौराराय १२२
तब गजमोतिनि ने ललकारा यह सुनि लेउ वीर चौहान॥
यह ना जान्यो अपने मनते की मरिगये वीर मलखान १२३
सुनी पतिव्रतकी महिमा ना ताते चढ़ी तुम्हारे शान॥
हम जवलेबे तलवारी को तब नहिं रही तुम्हारोमान १२४
बातैं सुनिकै गजमोतिनि की पृथ्वी कूच दीन करवाय॥
कैयो दिन का धावा करिकै दिल्ली शहर पहूंचे आय १२५
लाश देखिकै मलखाने कै माता तुरत गई लपटाय॥
उठै औ बैठै गिरि गिरि जावै रानीदशा कही ना जाय १२६
बिपदा बरणौं गजमोतिनिकै तो फिरिएकसाल लगिजाय॥
सखी सहिलरी तहँ समुझावैं बिरमा धीरज रही कराय १२७
तेज पतिव्रत का जाहिर है जाते सत्त चढ़ा अधिकाय॥
चिता लगावा गा चन्दन सों रानी बैठि सरापर जाय १२८
सुमिरि भवानी महरानी को पतिशिर धरा जाँघपर आय॥
हवा खैंचिकै सब देहीकै शिरपरदीनतुरतपहुंचाय १२९
संध्या वाले यह गति जानैं प्राणायाम करैं जे भाय॥

नाक चपावैं ते अँगुठा ते ऊपरश्वासचढ़ावत जायँ १३०
तैसे करिकै गजमोतिन ह्याँ ऊपर हवा दीन पहुँचाय॥
जब फुफकार्यो पति शव लैकै हाहाकार अग्निगै आय १३१
भम्भम्भम्भम् चन्दन लकड़ा, सुलगनलागि तहाँपर भाय॥
हाय पियारे बघऊदन के मारे गये बनाफरराय १३२
भाय पियारो ऊदन होते दिल्ली शहर देत फुँकवाय॥
हाय बिधाता यह गति कीन्ही न्यारे भये बनाफरराय १३३
कौन दुसरिया जग दादा को इन्दल पूत बड़ा बरियार॥
मरत न देखा यहि समया मा देवर उदयासिंह सरदार १३४
जो हम जानति यह गतिहोई तुमका लेति तुरत बुलवाय॥
दगा न करते दिल्ली वाले तौकसमरतिप्राणपतिआय १३५
कड़कै धड़कै फड़कै छाती ऐसो देखि शूर सरदार॥
यहै मनाऊं औ ध्याऊं नित स्वामी दीनबन्धुकर्त्तार १३६
जहँ जहँ जन्मै ये स्वामी मम तहँ तहँ होयँ मोरि भर्त्तार॥
अग्नि प्रज्वलित त्यहिसमयाभै लागे जरन सबै शृंगार १३७
गमकै ढोलक त्यहि समया माँ धमकै थाप नगारे भाय॥
चम्चम् चमकै गजमोतिनितहँ दमकैजरतहेमअधिकाय १३८
माता बिरमा मोती मूंगा सुवरण बस्त्रदीन छिरकाय॥
रही न आशा धन लेबे की मलखेशोचतहाँअधिकाय १३९
ऐस प्रतापी नित होवैं ना ज्ञानी पुरुष बिचारैं भाय॥
दानी ध्यानी अभिमानी सब शोचैं सीयराम शिरनाय १४०
घरी न वीती ह्याँ महरानी पहुँची स्वर्गलोक में जाय॥
तहँहूँ सोचै सुख मल्हना को जाबिधिदीनरहैअधिकाय१४१
सबियाँ रैयति मलखाने की दर दर रोय रही अधिकाय॥

घर घर चर्चा मलखाने की पुर पुर रहे नारि नर गाय १४२

सवैया॥


कौन कहै बिपदा पुरकीअति श्वान शृगालन शोर मचायो।
शान न मान न आन कहूं मलखान बिना बिपदा पुर छायो॥
घोर मशान समान तहाँ मलखान जहाँ नित सेज लगायो।
मानगयो अरमानगयो ललिते मलखान महायश पायो १४३
समर पूर मैं सिरसागढ़ का गायों सुमिरि शारदा माय॥
आशिर्बाद देउं मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायण भाय १४४
रहै समुन्दर में जबलौं जल जबलौं रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलौं तुम यशसों रहौ सदा भरपूर १४५
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डा गड़ा निशाको आय॥
परे आलसीखटिया तकि तकि संतन धुनी दीन परचाय १४६
माथ नवावों मैं माता को जो प्रत्यक्ष अबौं संसार॥
पाणिकमल धरि सो पीठी मा हमरो करैं अबौं निस्तार १४७
माथ नवाबों पितु अपने को ह्याँते करों तरँग को अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त १४८

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामभदेशान्तर्गत पॅड़रीकलां निवासि
मिश्रवंशोद्भव बुध कृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत सिरसासपर
वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥

सिरसा समर सम्पूर्ण॥

इति॥