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आल्हखण्ड/१४ कीरतिसागर का मैदान

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आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ४२५ से – ४६२ तक

 

ti2OVEMBER अथ आल्हखण्ड॥ कीरतिसागरकायुद्धवर्णन॥ सवैया॥ कीरति सिंधु शिवा शिव पै हम अक्षत चन्दन फूल चढ़ावें। मानस ऐसो चहै हमरो पर आलस सों अस होन न पावें ॥ धावे सबै दिशि पापसमूह औ हूह मचावत हूलत आर्के । सार यही ललिते जगको मुदसों नित शम्भु शिवा मन ध्यावे ? सुमिरन॥ सुमिरन करिक शिवशङ्कर को रणमें चढ़े राम महराज ॥ एकरूप सों हनुमत बैक कीन्हे सकल रामके काज १ मुख्य स्वरूपी शिवशङ्कर के डमरू एक हाथ में राज ।। लिहे त्रिशूलौ दुसरे हाथे मुण्डनमाल गरे में भ्राज २ भस्म रमाये सब अंगन में खाये भंग धतूरा ईश ।। कण्ठ हलाहल अतिसोहत है सोहैं श्वेतवरण जगदीश

नग्न अमंगल मंगलकारी हारी तीनि ताप वागीश

शिवा बिहारी सब सुखकारी धारी सदा गंग को शीश ४
तिनके भुजबल बल ललितेको फलिते करैं याहि गौरीश॥
कीरति सागर की गाथा को ललिते कहैं नायकर शीश ५

अथ कथाप्रसंग॥


सवन सुहावन जब आवत भा तब सब चले बिदेशी ज्वान॥
कीन चढ़ाई पृथीराज ने जब मरिगये बीर मलखान १
कीरतिसागर मदनताल पर सब रँग ध्वजा रहे फहराय॥
परा पिथौरा दिल्ली वाला आला रूप शील समुदाय २
हाल पायकै परिमालिक ने फाटक बन्द लीन करवाय॥
बन्धन छूटैं ना गौवन के ना क्वउ त्रिया सेजपर जायँ ३
मारे डरके पिंडुरी काँपैं मोहबा थहर थहर थर्राय॥
बिना इकेले बघऊदन के फाटक कौन खुलावै आय ४
ऐसी बातैं घर घर होवैं दर दर नारिझुण्ड अधिकाय॥
मस्तक पीटैं कर अपने सों औ यह कथा रहीं तहँ गाय ५
होत बनाफर जो सिरसा का फाटक आज देत खुलवाय॥
पवनी आई है मूड़ेपर लूटन अवा पिथौराराय ६
कुशल न देखैं हम मुहबे मा संकट परा आज दिनआय॥
बिना इकेले अब आल्हा के फाटक कौन खुलावै धाय ७
देबा सुलखे की मारुन मा ठहरत कौन यहांपर माय॥
हाय गुसैयाँ की मरजी अस पबनी गई मूड़पर आय ८
कौन बचाई पृथीराज सों झंडा मदन ताल फहराय॥
सात कोस के चौगिर्दा में तम्बू तम्बू परैं दिखाय ९
पति औं देवर भोजन करते घरमा कहैं हमारे माय॥
तव तो बुढ़िया तिरिया बोली मन में श्रीगणेशको ध्याय १०

धीरज राखो अपने मनमा करि है काह पिथौरा आय॥
मनियादेवन की शरणागत जावो हाथ जोरि शिरनाय ११
त्यई सहायी सुखदायी अब फाटक तुरत देयँ खुलवाय॥
घर घर सुमिरैं नरनारी सब साँचे देव परैं दिखराय १२
घट घट ब्यापी अरि परितापी जापी चले जायँ तिनधाम॥
आला देवन में देवता हैं मनियादेव मोहोबे ग्राम १३
भा खलभल्ला औ हल्लाअति घर घर गई उदासीछाय॥
टोला टोला में हल्लामा लल्ला नहीं बनाफरराय १४
बिना इकेले बघऊदन के फाटक कौन खुलावै आय॥
ऐसे घर घर पुरबासी सब दर दर कहैं नारिनर धाय १५
भा खलमल्ला रनिवासे माँ मोहबा गँसा पिथौराआय॥
द्दवी शारदा त्यहि समया मा मल्हनाध्यायरही शिरनाय १६
तुम्हरे बूते बघऊदन ने जीता देश देश सब जाय॥
तुम लैआवो उदयसिंह को ईजति राखु शारदामाय १७
सदा सहायी तुम मायी हौ गायी तीनि लोक गुणगाथ॥
मोहिं अनाथिनिकी मातातुम तुम्हरे चरण हमारो माथ १८
दैकै सुपना बघऊदन को माता लावो यहाँ बुलाय॥
नितप्रति पूजा हम मोहबे मा चन्दन अक्षत फूल चढ़ाय १९
चढ़ा पिथौरा है सँभरा भर हमरे प्राण रहे घबड़ाय॥
क्वऊ सहायी ना दुनिया माँ ईजति राखु शारदा माय २०
बैठि कुशासन रानी मल्हना सारी दीन्ही रैनि गँवाय॥
स्वपना देखा ताही निशिमाँ औ जगि परा बनाफरराय २१
हाल बतावा सब देवा का ठाकुर उदयसिंह समुझाय॥
इतना सुनिकै देबा बोला साँची सुनो बनाफरराय २२

जैसो स्वपना तुम देखा है तैसो दीख हमों है भाय॥
बिपदा आई है मल्हना पर साँचो साँच बनाफरराय २३
होत भुरहरे के स्वपना सब साँचे उदयसिंह सरदार॥
करो बहाना अब गाँजर को औ मोहबे को होउ तयार २४
कुँवा विवाहन की विरिया मा दीन्ह्यो प्राण नेग तुम भाय॥
चढ़ा पिथौरा है दिल्ली का साँचोस्वपनपरादिखलाय २५
चलिये जल्दी अब मोहबे को लाखनिराना संगलिवाय॥
इतना सुनिकै द्यावलि वाला लाखनि पास पहूँचा जाय २६
बड़ी नम्रता ते बोलत भा यह रणबाघु बनाफरराय॥
जाहिर पबनी है मोहबे की साँची सुनो कनौजीराय २७
मोरि लालसा यह डोलति है पवनी करैं मोहोबे जाय॥
करैं वहाना हम गाँजर को तुमको मोहबा लवैं दिखाय २८
इतना सुनिकै लाखनि बोले चलिये वेगि बनाफरराय॥
चरचा करिये नहिं मोहबे की नहिं सब जैहैं काम नशाय २९
करो तयारी अब गाँजर की पहुँचैं नगर मोहोबे जाय॥
जैसि दवाई रोगी माँगै तैसी वैद देय बतलाय ३०
तैसि खुशाली भै ऊदन के डंका तुरत दीन बजवाय॥
हुकुमलगायो फिरि लश्करमा सजिगे सबै शूर समुदाय ३१
जहाँ कचहरी चंदेले की ऊदन तहाँ पहूँचे जाय॥
हाल बतायो महराजा को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ३२
लाखनिरानाकी मंशा है गाँजर खेलैं खूब शिकार॥
म्बरिव लालसा यह डोलतिहै राजा कनउज के सरदार ३३
सुनिकै बातैं बघऊदन की राजै हुकुम दीन फरमाय॥
तहँते चलिकै अदन देवा आल्हा पास पहूँचे आय ३४

कही हकीकति सब आल्हासों ऊदन बार बार समुझाय॥
जानिकै इच्छा लखराना की आल्हा ठाकुर रहे चुपाय ३५
माथ नायकै फिरि आल्हा को माता पास पहूँचे आय॥
कह्यो हकीकति महतारी सों दोऊ चरणन शीशनवाय ३६
बिदा माँगिकै महतारी सों भाभी पास पहूँचे जाय॥
हाल बतायो सब सुनवाँ को साँचो साँच बनाफरराय ३७
बड़ी खुशाली सों भाभी ने आशिरबाद दीन हर्षाय॥
माथ नायकै उदयसिंह फिर फौजन तुरत पहूँचे आय ३८
लाखनि देबा ऊदन तीनों लश्कर कूच दीन करवाय॥
बाजत डंका अहतंका के यमुनापार पहूँचे जाय ३९
नदी बेतवा को उतरत भे झाबर डेरा दीन डराय॥
योगिहा बस्तर सब क्षत्रिन को ऊदन तहाँ दीन पहिराय ४०
लाखनि ऊदन देबा सय्यद सम्मत कीन तहाँ त्यहिबार॥
सिरसा केरे फिरि फाटकमाँ आये सबै शूर सरदार ४१

सवैया॥


फाटक हाटक नाटक दीख बिना मलखान नहीं गुलजारा।
श्वान शृगालन जाति जमाति औ भांति सबै विपरीत निहारा॥
ऊदन नैनन नीरन धार अपार वही सो सही त्यहि बारा।
शोचत मोचत नैनन को ललिते लखि ऐनन नैननद्वारा ४२


एक वरदिया लखि वोलतभा योगी काह शोच यहिबार॥
एक इकेले मलखाने बिन पृथ्वी डारा नगर उजार ४३
दगा ते मारे मलखानेगे अब ह्याँ रोवैं श्वान शृगाल॥
इतना सुनिकै देबा उदन नैनन ढाँपि लीन रूमाल ४४

होश उड़ाने दोउ क्षत्रिन के दोऊ ह्वैगे हाल बिहाल॥
कह्यो बरदिया ते धीरज धरि बेटा देशराज के लाल ४५
का खा गा घा ङ ङा आदिक हमहूँ पढ़ा एकही साथ॥
हाय! पियारे गुरु भाई को कैसे निधन कीन जगनाथ ४६
ब्वला बरदिया तब ऊदन ते साॅची सुनो गुरू महराज॥
जो महरानी गजमोतिनि थी सत्ती भई धर्म के काज ४७
परम पियारे बधऊदन का लै लै बार बार सो नाम॥
धरिकै जंघापर प्रीतम शिर पहुँची तुरत विष्णुके धाम ४८
सुनी बरदिया की बातैं ये बोला देशराज का लाल॥
सरा दिखावो मलखाने का कहँ पर जरी सती सो बाल ४९
सुनिकै बातैं बघऊदन की तुरतै साथ भयो तय्यार॥
बना चबुतरा तहँ सत्ती का देखत भये सबै सरदार ५०
बहु रन बोले त्यहि समयामाँ साफै शब्द परा सो कान॥
आज साँकरा परिमालिक का जावो तहाँ सबै तुम ज्वान ५१
इतना सुनिकै ऊदन बोले साफै साफ देयँ बतलाय॥
जियत्त मोहोबे हम जावैं ना कौवा मरे हाड़ लै जायँ ५२
नाता टूटो अब मोहबे का जादिन मरे बीर मलखान॥
को अस ठाकुर अब दुनियामा दादा मलखे के अनुमान ५३
इतना कहिकै ऊदन देबा दोऊ छांड़ि दीन डिंडकार॥
फिरि रन बोले त्यहि समयामा ऊदन जीवेका धिक्कार ५४
आजु साँकरा है मल्हना पर यहु दिन परी न बारम्बार॥
ताते जावो तुम मोहबे को ठाकुर उदयसिंह सरदार ५५
इतना सुनिकै सब योगिनने सुमिरा हृदय भवानीनाथ॥
बड़ा मोह करि तेहि समया मा चौरै फेरि नवायो माथ ५६

चारो योगी चलि तहँना ते मोहबे फेरि पहूँचे आय॥
मोहबा केरे फिरि फाटक परं योगिनअलखजगायोजाय ५७
बजी बाँसुरी तहँ ऊदन की खँझड़ी मैनपुरी चौहान॥
बाजै डमरू भल लाखनि का तोड़ैं गजल पर्ज पर तान ५८
को गति बरणै तहँ सय्यद कै सो इकतारा रहा बजाय॥
ऊदन बोले दरवानी ते फाटक तुरत देउ खुलवाय ५९
सुनी हकीकति हम काशीमाँ मोहबा बसैं रजा परिमाल॥
पारस पत्थर इन के घरमा इनसम नहीं और महिपाल ६०
भिक्षा माँगब हम ड्यौढ़ी माँ साँचै साँच दीन बतलाय॥
हैं हम योगी बङ्गाले के आयन द्रब्य हेतु है भाय ६१
तुम्हैं मुनासिब अब याही है फाटक तुरत देउ खुलवाय॥
सुनिकै बातैं बैरागिन की बोला तुरत बचन शिरनाय ६२
खुलि है फाटक बैरागी ना तुम ते साँच दीन बतलाय॥
आफति आई परिमालिक पर गाँसा नगर पिथौरा आय ६३
बन्धन छूटैं ना गौवन के ना कउ त्रिया सेजपर जाय॥
आज मोहोबा पर बिपदा है घर घर रही उदासी छाय ६४
झुलै हिंडोला ह्याँ कोऊ ना ना क्वउ गावै मेघ मलार॥
आज मोहोबा लङ्का ह्वैगा शङ्का घूमि रही सब द्वार ६५
बङ्का ठाकुर सिरसावाला जब ते मरा बीर मलखान॥
आल्हा ऊदन गे कनउज को तबते छूटिगई सब शान ६६
इतना कहिकै दरवानिन ने योगिन पुरै दीन पहुँचाय॥
ता ता थेई ता ता थेई ऊदन ठाकुर दीन मचाय ६७
धुरपद सरंगीत तिल्लाना गावै खूब कनउजीराय॥
बाजै खँझड़ी भल देबा के सय्यददशा बरणिनाजाय ६८

साँचे योगी जनु पैदा भे पूरण योग परै दिखराय॥
माथा चमकै भल ऊदन का नैननगई अरुणता छाय ६९
चढ़ा उतारू भुजदण्डै हैं सब बिधि सुघर लहुरवाभाय॥
नगर मोहोबा की गलियन में योगिन दीन्ह्यो धूममचाय ७०
रय्यति मोही परिमालिक की दीन्हेनि खानपान बिसराय॥
भये बावला सँग योगिन के घूमन लागि नारिनर धाय ७१
रूप देखिकै लखराना का मोहीं युवा बाल तहँ आय॥
अलख लाड़िला रतीमान का लाखनि शूरबीर अधिकाय ७२
नयन मिलावै नहिं नारिनसों नीचे शीशलेय औंधाय॥
राग हिंडोला ऊदन गावै अँगुरिनमाव बतावत जाय ७३
मीरा ताल्हन बनरस वाला सो इकतारा रहा बजाय॥
ताल स्वरन सों देबा ठाकुर खँझरी खूब रहा गमकाय ७४
खबरि पायकै मल्हना रानी योगिन महललीन बुलवाय॥
चन्दन चौकिन माँ योगी सब बैठे रामचन्द्र को ध्याय ७५
मल्हना बोली तहँ योगिनते साँचे हाल देउ बतलाय॥
पूत पिथौरा के चारो तुम यह हम मनै लीन ठहराय ७६
लूटन आयो है महलन को सो यह मनै देउ बिसराय॥
जियत न जैहौ तुम महलनते ब्रह्मारंजित लेउँ बुलाय ७७
मारि सिरोहिन ते हनिडर हैं यमपुर अवै द्दहैं दिखलाय॥
हाय! बेंदुला का चवैया नाहिंन आजु लहुरवाभाय ७८
सून पायकै पृथीराज ने गाँस्यो नगर मोहोबा आय॥
पै अस खाली है मोहबा ना जस तुम मनैलीन ठहराय ७९
तिरिया लरि हैं रजपूतन की भाला बलछी साँग उठाय॥
कुशल पिथौरा की ह्वैहै ना तुम ते साँच दीन बतलाय ८०

इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
हम नहिं लरिका पृथीराज के माता काह गई बौराय ८१
हमतो योगी बंगाले के मोहबा शहर मँझावा आय॥
कुटी हमारी है गोरखपुर जावैं हरद्वार को माय ८२
मोहिं बखेड़ा ते मतलब ना भिक्षा आप देयँ मँगवाय॥
पारस पत्थर तुम्हरे घरमा लोहा छुवत स्वान ह्वैजाय ८३
सुनी बड़ाई हम कनउज मा राजा जयचँद के दरबार॥
साल दुसाला मोहनमाला दीन्ह्यो उदयसिंह सरदार ८४
आला राजा कनउज वाला गुदरी तुरत दीन बनवाय॥
मुँदरी दीन्ह्यो इन्दल ठाकुर लाखनि कड़ादीन पहिराय ८५
जो कछु पावैं हम महलनते लैकै कूच देयँ करवाय॥
भजनानन्दी सब योगी हैं कहुकछुदेवैं भजनमुनाय ८६
शोक छाँड़िकै आनँद होवो करिहैं कुशल जानकीमाय॥
एक पिथौरा के गिनती ना लाखन चढ़ैं पिथौराआय ८७
पुण्य तुम्हारी ते मिटि जैहैं माता साँच देयँ बतलाय॥
काहे रोवो तुम महलन मा माता बार बार घबड़ाय ८८
सुनिकै बातैं ये योगिन की मल्हना छाँड़िदीन डिंडकार॥
काह बतावैं हम योगिन ते नाहिंन उदयसिंह सरदार ८९
कुँवाँ बिवाहन उदयसिंह गे तब मैं पैर दीन लटकाय॥
प्राणनेग तहँ हमका दीन्ह्यो आल्हा केर लहुरवाभाय ९०
बात ब्यगरिगै महराजा ते आल्हा ऊदन गये रिसाय॥
मरिगा ठाकुर सिरसावाला बिपदा गई मोहोबे आय ९१
खान पान अब कछु सूझैना बूझै नहीं कछू दिनरात॥
को भब जूझै पृथीराज ते सूझै नहीं मनै यह बात ९२

२८

पर्व भुजरियन कै मूड़ेपर पृथ्वी गाँसि मोहोबा लीन॥
कैसे जैबे हम सागर पर पबनी खोंटि बिधातै कीन ९३
प्यारी बेटी चन्द्रावलि घर ऊदन लाये बिदाकराय॥
सो नहिं जैहै जो सागर पर हमरी जियत मौत ह्वैजाय ९४
बेटी ठाढ़ी चन्दावलि तहँ नैनन ऑस रही ढरकाय॥
जैसो योगी यहु ठाढ़ो है ऐसो मोर लहुरवा भाय ९५
हाय! अकेले बिन ऊदन के गड़बड़ परा नगर में आय॥
ऊदन मलखे की समता का तीसर भयो कौन जगमाय ९६
मोहिं अभागिनि के कर्म्मन ते दूनों भाई गये हिराय॥
कह्यो संस्कृत मा ऊदन ते लाखनिराना बचनसुनाय ९७
नाम वतावो तुम मल्हना ते काहे धरी निठुरता भाय॥
कह्यो संस्कृत मा ऊदन तब तुम सुनिलेउ कनौजीराय ९८
नाम बता जो मल्हना ते हमरी जियत मृत्यु ह्वैजाय॥
इतना कहिकै लखराना ते मल्हनै बोले वचन सुनाय ९९
शोच न राखो कछु मन अन्तर रानी साँच देयँ बतलाय॥
पर्व तुम्हारी हम करवैहैं अपनोयोगदि हैंदिखलाय १००
काह हकीकति है पिरथी कै गड़बड़ करै परब में आय॥
हैं अनगिनती योगी सँगमा झावर डेरादीन गड़ाय १०१
करी लवरई पिरथी राजा दिल्ली ताल देव करवाय॥
कीन इशाराफिरि लाखनि तन आपन गुरूदीनबतलाय १०२
गुरू जानिकै लखराना को चन्द्रावलि ने कहा सुनाय॥
होय सनीनो अब सागर माँ जो गुरुवावा करो सहाय १०३
नहीं सनीनो अब मोहबे माँ साँचो नहीं परै दिखलाय॥
लाखनि बोले चन्दावलि ते वहिनी साँचदेयॅ बतलाय १०५

योग दिखावब हम सागर पर खेतम लड़ब बरोबरि आय॥
देखि सनीनो हम मोहबे का पाछे धरब अगाड़ी पायँ १०५
पंद्रादिन लौं रहि मोहबे मा तुम्हरी परब देब करवाय॥
नहिं मुख देखैं हम पिरथी का गड़बड़ तहाँ मचा आय १०६
बड़बड़ योगी हमरे सँग मा लड़बड़ गड़बड़ देयँ हटाय॥
बड़बड़ राजनकी गिनती ना सड़बड़ करैं हमारी आय १०७
काह हकीकति है पिरथी कै जो तहँ चेंय करैं मुख माय॥
मान न रैहैं तहँ काहू के योगी योग देयँ दिखलाय १०८
काल्हि सबेरे तुम सागर मा पवनी करो आपनी जाय॥
दूत पठावो तुम झाबर का योगी फौज देयँ दिखलाय १०९
मारि गिरावैं हम भोगिन का माता साँच दीन बतलाय॥
भयो आसरा तब मल्हना के योगी चलिभे शीश नवाय ११०
सुनी बतकही यह माहिल जब टाहिल चुगुलन मा सरदार॥
चला उताइल सो सागर को राजा पिरथी के दरबार १११
बड़ी खातिरी करि माहिल कै राजा पास लीन बैठाय॥
कही हकीकति तहॅ योगिन कै माहिल बार बार सब गाय ११२
योगी आये अनगिनती हैं झाबर डेरा दिह्यनि डराय॥
शपथ खायकै ते मल्हना ते अबहीं गये पिथोराराय ११३
मारि गिरावब हम सागर मा गड़बड़ जौन मचाई आय॥
काह हकीकति पृथीराज कै आपनयोग देबदिखलाय ११४
साँचे योगी सो अड़बड़ हैं हमहूँ देखि गयन सकुचाय॥
पहिले खेदो तुम योगिनका पाछे मोहबा लेउ लुटाय ११५
काह हकीकति है योगिन कै सरबरि करैं नृपति कै आय॥
चौंड़ा धांधू को पठवावो योगी कूच देयँ करवाय ११६

इतना सुनिकै पृथीराज ने चौंड़ा धांधू लीन बुलाय॥
भल समुझावा तिन दोउनका यहु महराज पिथौराराय ११७
दोऊ चढ़िकै तहँ हाथिन मा तहँते कूच दीन करवाय॥
जायकै पहुँचे फिरि झावर मा जहँपर योगिनकासमुदाय ११८
चौड़ा बोला तहँ ऊदन ते योगी हाल देउ बतलाय॥
कहाँते आयो औ कहँ जैहौ काहे डेरा दीन गड़ाय ११९
ऊदन बोले तब चौंड़ा ते ठाकुर हाथी के असवार॥
हम तो आये बंगाले ते जावैं हरद्वार यहिबार १२०
पै हम रहिवे ह्याँ पंद्रादिन तुमते साँच दीन बतलाय॥
मल्हनारानी इक मोहबे मा ताकी परब देब करवाय १२१
है खलभल्ला औ हल्लाअति की चढ़ि अवा पिथौराराय॥
कीन प्रतिज्ञा हम मोहबे मा तुम्हरी परब देव करवाय १२२
साँची करिबे हम बानी का ताते टिकब यहाँ पर भाय॥
कहाँ के ठाकुर तुम दोऊ हौ हमते साफ देउ बतलाय १२३
फौज देखिकै बैरागिन के दोऊ लागि मनै पछिताय॥
कोन हटाई बैरागिन का सम्मुख समरभूमिमें जाय १२४
जौन बनावा महराजा ने योगिन स्वई दीन बतलाय॥
कैसे टरि हैं ये भावर ते यह नहिं चित्तठीकठहराय १२५
चौड़ा घाँधू फिरि बोलत भे योगिन बार बार समुझाय॥
करैं वखेड़ा कहुँ योगी ना ताते कूच देउ करवाय १२६
कह्यो पिथौरा यह हमते है योगिन जाय देउ समुझाय॥
कूच करावैं उइ झावर ते नाहक रारि मचावैं आय १२७
लड़ना मरना रजपूतन का युग युग धर्म यहै है भाय॥
युद्ध न चहिये बैरागिन को ताते कूच देउ करवाय १२८

फौज तुम्हारी ह्याँ जितनी है सबको भोजन देयँ पठाय॥
खावो पीवो हरिको ध्यावो जावो हरद्वार को भाय १२९
इतना सुनिकै ऊदन तड़पे चौंड़ा चला तुरत भयखाय॥
आय कै पहुँचा त्यहि तम्बू मा जहँ पर बैठ पिथौराराय १३०
कही हकीकति सब योगिन कै चौड़ा बार बार समुझाय॥
सुनी ढिठाई जब योगिन कै माहिलबोले शीशनवाय १३१
अब हम जावत हैं मोहबे को तुम्हरे काज पिथौराराय॥
इतनी कहिकै माहिल चलिभे पहुँचे फेरि मोहोबे आय १३२
रानी मल्हना ह्याँ महलन मा मनमा बार बार पछिताय॥
त्यही समइया त्यहि औसरमा माहिलभाय पहूँचाजाय १३३
मल्हना बोली तहँ माहिल ते नीके गयो यहाँपर आय॥
हाल बतावो अब सागर का चाहत काह पिथौराराय १३४
सुनिकै बातैं ये बहिनी की बोला उरई का सरदार॥
बैठक मांगत है खजुहा की माँगै राजग्वालियरक्यार १३५
उड़न बछेड़ा पाँचो माँगै औरो चहै नौलखाहार॥
डोलामाँगै चन्द्रावलि का राजा दिल्ली का सरदार १३६
तुम्हरी दिशितें हम पिरथी ते बोल्यन बहुतभांति समुझाय॥
लाख रुपैया लग लैकै तुम ह्याँति कूचदेउ करवाय १३७
यह मनभाई नहिं पिरथी के चौंड़ा ताहर उठे रिसाय॥
जो कछु माँगत महराजा हैं सोई देउ आप मँगवाय १३८
कुशल न मानो तुम मोहोबे कै तिलतिल भूमिलेउँ खुदवाय॥
पारस पत्थर पिरथी माँगैं बहिनीसाँचदीनबतलाय १३९
ये सब चीजैं अब लीन्हे बिन जावैं नहीं पिथौराराय॥
ताहर चौंड़ा की मरजी अस सबियांमोहबालेयँ लुटाय १४०

इतनो कहिकै माहिल चलिभे मल्हना रोय उठी अकुलाय॥
त्यही समैया त्यहि अवसरमा ब्रह्मानन्द पहूँचे आय १४१
मूड़ सूंघिकै रानी मल्हना अपने पास लीन बैठाय॥
बहिनी ठाढ़ी चन्द्रावलि तहँ नैनन आँसूरही गिराय १४२
रोय कै बोली फिरि मल्हनाते माता साँच देयँ बतलाय॥
सुजी सिराउब हम सागर मा योगी गये भरोस कराय १४३
साँची वाणी के योगी हैं निश्चय पर्व द्यहैं करवाय॥
मोहिं भरोसा है योगिन का जो कछु करैं सहारा माय १४४
मल्हना बोली चन्द्रावलि ते विटिया साँच देउॅ बतलाय॥
सुजी सिरायो तुम कुँवनापर दीनौ धर्म द्वऊ रहिजाय १४५
इतना सुनिकै बेटी बोली ऐसे कहौ वचन का माय॥
समरथ भैया हैं ब्रह्मानँद हमरी पर्व द्यहें करवाय १४६
इतना सुनिकै ब्रह्मा बोले साँची साँच देयँ बतलाय॥
रहौ भरोसे तुम योगिन के जानौं नहीं हमारे भाय १४७
पै हम जावैं जो सागर को आपन मूड़ कटावैं जाय॥
चढ़ा पिथौरा है सँभरा भर बहिनी काह गई बौराय १४८
जानि बूझिकै को आगी मा आपन हाथ जरावै जाय॥
बिना बेंदुलाके चढ़वैया मुर्चा देवै कौन हटाय १४९
आल्हा इन्दल लग होते जो तुम्हरी पर्ब देत करवाय॥
मरिगा ठाकुर सिरसावाला सब बिधिशूर बनाफरराय १५०
इकले दादा मलखाने बिन यहु दुख परा जानपर आय॥
होत जो ठाकुर सिरसावालो तौका चढ़न पिथौराराय १५१
शूर न देखा हम दुनिया मा जैसो रहै बीर मलखान॥
हाथी पटका पिरथी द्वारे काँपे तहाँ सवै चौहान १५२

इतना सुनिकै रानी मल्हना तुरतै छाँड़ि दीन डिंडकार॥
रंजित बोला तब माता ते गरूई हांक देत ललकार १५३
छाँड़ि भरोसा अब योगिनका हमरे साथ चलो तुम हाल॥
काह हकीकति है पिरथी कै जबलग रहै हाथ करवाल १५४
मारे मारे तलवारिन के नदिया बहै रक्त की धार॥
मूड़ न रैहैं जब देही माँ तवहूँ चली मोरि तलवार १५५
लड़ना मरना रजपूतन का युग युग यही धर्म ब्यवहार॥
प्राण न रैहैं जब देही माँ तबहीं मिटी म्बार त्यवहार १५६
साँची साँची हम बोलत हैं माता शपथ तुम्हारी खाय॥
कीरतिसागर मदनताल पर बहिनीसाथचलौतुममाय १५७
जो नहिंजैहो तुम सागर को रंजित मरी जहर को खाय॥
मई मर्द्दई ते चूका जो तौफिरजियतमृत्युह्वैजाय १५८
देही रैहै नहिं दुनिया माँ कीरति बनी रहै सब काल॥
मोहिं पियारी स्वइ कीरति है साँचीशपथखाउँमहिपाल १५९
सुनि सुनि बातैं ये बेटा की मल्हना ह्वैगै हाल बिहाल॥
बेटा अभई माहिल वाला बोलाबचनसांचत्यहिकाल १६०
हमहूँ चलिबे तुम्हरे सँग मा साँचे बचन बतावैं भाय॥
आजु मोहोबा खाली लखिकै गांसा आय पिथौराराय १६१
आल्हा ऊदन हैं कनउज मा ह्यां मरिगये बीरमलखान॥
अब हम लूटैं खुब मोहबे को सोची भली वीर चौहान १६२
पै नहिं जानत हैं अभई का जवलग रही हाथ तलवार॥
तवलग मारव हम क्षत्रिनका नदिया बही रक्तकी धार १६३
करो तयारी अब सागर की फूफू सांच देयँ बतलाय॥
काह हकीकति है पिरथी कै गड़बड़ करै परवमें आय १६४

रंजित अभई की बातैं सुनि मल्हना गई तुरत बौराय॥
बोलि न आवा महरानी ते मुँहकापानगयोकुम्हिलाय १६५
धीरज धरिकै अपने मनमा औ फिरि सुमिरि शारदामाय॥
देव मनावै मनियादेवन मल्हना बारबार शिरनाय १६६
तुम्हीं गोसइयाँ दीनबन्धु हौ देवता मोहबे के भगवान॥
रजित अभई दोउ बेटन की कीन्ह्योआपअवशिकल्यान १६७
हम जो बरजैं अब रंजित का करि है पूत नहीं कछु कान॥
शपथ खायकै महराजा कै हमरीशपथकीनफिरिआन १६८
अब समुझाये ते मानी ना मनमा ठीक लीन ठहराय॥
कीन तयारी फिरि सागर के गौरा पारवती को ध्याय १६९
माहिल बोलें ह्याँ अभई ते बेटा काह गयो बौराय॥
तुम नहिं जावो सँग रंजित के मोहबामलेउजरिसवजाय १७०
रंजित ब्रह्मा दोउ मरिजावैं तुम्हरी जूझे पूत क्लाय॥
इतना सुनिकै अभई बोले दाऊ सांच देयँ बतलाय १७१
कहा नपलटवहमकौनिउविधि चहु तन रहै चहौ नशिजाय॥
पांय लागिकै फिरि माहिल के डका तुरत दीन बजवाय १७२
बाजे डङ्का अहतङ्का के शङ्का छोंड़ि दीन सरदार॥
शूर अशङ्का भट बङ्का जे ते सब गही हाथ तलवार १७३
सजा रिसाला घोड़नवाला आला एक लाख अनुमान॥
सजि इकदन्ता दुइदन्ता गे हाथी छोटे मेरु समान १७४
अंगद पंगद मकुना भौंरा सजिगे श्वेतबरण गजराज॥
धरी अँवारी तिन हाथिन पर बहुत न हौदा रहे बिराज १७५
घण्टा वांधे गल हाधिन के भारी देत चलैं ठनकार॥
सजे सिपाही पैदल वाले लीन्हे हाथ दाल तलवार १७६

बारह रानी परिमालिक की सोऊ भईं बेगि तय्यार॥
जहर बुझाई छूरी लैकै नलकी पलकी भईं सवार १७७
मल्हना बोली चन्द्रावलि ते बेटी करो बचन परमान॥
डोला तुम्हरो गहै पिथौरा तौ दैदिह्यो आपनोप्रान १७८
यै तुम जायो नहिं दिल्ली को पेट म मार्यो काढ़ि कटार॥
इतना कहिकै रानी मल्हना आपो होत भई असवार १७९
आगे पीछे फौजै कैकै बीच म डोला लीन कराय॥
मनियादेवनको सुमिरन करि रंजित कूचदीन करवाय १८०
छींक तडाका भै सम्मुख मा मल्हना रोय उठी ततकाल॥
तुम नहिं जावो अब सागरको बेटा करो बचन प्रतिपाल १८१
अशकुन पहिलेते ह्वैगा है कैसी करी तहाँ करतार॥
लेउँ बलैया मैं रंजित कै बेटा लौटिचलौ यहिबार १८२
इतना सुनिकै रंजित बोले माता करो बचन विश्वाश॥
शकुन औ अशकुनकोमानैंना ना हमकरैं जीवकी आश १८३
कीरतिसागर मदनताल पर तुम्हरी पर्व द्दहैं करवाय॥
जो मरिजै हैं हम सागर में कीरति रही जगतमेंछाय १८४
पाउँ पिछारी को धखिना चहुतन धजीधजी उड़िजाय॥
स्याबसि स्याबसि अभई बोले मल्हनाचुप्पसाधिरहिजाय१८५
चलिभा लश्कर फिरि आगेका फाटक उपर पहूँचा जाय॥
जहँना तम्बू पृषीराज का माहिल तहाँ पहूँचाधाय १८६
खबरि सुनाई सब पिरथी को माहिल बार बार समुझाय॥
हुकुम पायकै तहँ पिरथी का चौंड़ा कूच दीन करवाय १८७
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकन लागे सन्तनधुनी दीनपरचाय १८८

करों वन्दना पितु माता को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
मातु भवानी पितु परमेश्वर बन्दनकिहे स्वर्गकाजाय १८९
निश्चयजिनका पितु मातापर देवी देव सरिस अधिकाय॥
तिनका जगमा कछुदुर्लभ ना साँचीकहतललितयहगाय १९०
करों वन्दना अव शंकर की ह्याँते करों तरँगको अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त १९१

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूप्रयागनारायण
जीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पॅड़रीकलां निवासि मिश्र
वंशोद्भव वुधकृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत रंजित
युद्धागमनबर्णनोनामप्रथमस्तरंगः॥१॥

 

सवैया॥

दीनदयाल गुपाल कृपाल सुरासुरपाल सुनो महराजा।
सोबत जागत वैठ जो होहु सुनो विनती तुमहूँ रघुनन्दन बुलाय॥
गाजिरह्यो खल कामबली औ छलीदल मोहके वाजतवाजा।
राम औ कृष्णभजै ललिते तवहूँ यह जीततहै कलिराजा १

सुमिरन॥


रक्षा जगकी जो करते ना तौ कस होत नाम जगदीश॥
ईश्वर होते रघुनन्दन ना कैसे हनत समर दशशीश १
बड़े प्रतापी अंजनि वाले अवहूँ अमर जगत हनुमान॥
ऐसे अनुचर ज्यहि स्वामी के पूरण ब्रह्म ताहि अनुमान २
रीछ औ बाँदर को सँगमालै जीता बली शत्रुको जाय॥
शत्रु प्रतापी के भाई को को नरलेय जगत अपनाय ३
को फल खावत घर शवरी के कोधों तजत आपनी राज॥
कोधों तारत तिय गौतम की प्यारी माननीय शिरताज ४

कोधों तोरत शिवके धतुको जो नहिं होत राम महराज॥
कछु नहिं शंका मन हमरे में पूरणब्रह्म राम रघुराज ५
माथ नवावों रघुनन्दन को हमपर कृपा करो भगवान॥
चौड़ा रंजित का मुर्चा मैं करिहौं सकल अगाड़ी गान ६

अथ कथाप्रसंग॥


अटा चौड़िया फिरि फाटक पर गरई हाँक दीन ललकार॥
पाँच अगाड़ी का डार्यो ना ठाकुर मोहबे के सरदार १
डोलादैकै चन्द्रावलि को पाछे धर्यो अगाड़ी पाँय॥
हुकुम पिथौरा का याही है तुमते साँच दीन बतलाय २
इतना सुनिकै अभई बोल्यो चौंड़ा काह गयो बौराय॥
अस गति नाहीं पृथीराज कै डोला लेयँ आज मँगवाय ३
खाली मोहबा तुम जान्यो ना मान्यो साँच वचन विश्वास॥
शूर सराहैं त्यहि ठाकुर को जो अब जाय पालकी पास ४
इतना सुनिकै चौंड़ा तुरतै अपनी खैंचिलीन तलवार॥
पाँव अगाड़ी का डार्यो ना ठाकुर उरई के सरदार ५
इतना सुनिकै रंजित ठाकुर फौजन हुकुम दीन फरमाय॥
जान न पावैं दिल्लीवाले इनके देवो मूड़ गिराय ६
हुकुमपायकै यह रंजित का क्षत्रिन खैंचिलीन तलबार॥
पैदल के सँग पैदल अभिरे औ असवार साथ असवार ७
सूंढ़ि लपेटा हाथी भिड़िगे मारन लागि शूर सरदार॥
भाला बलछी तीर तमंचा कोताखानी चलै कटार ८
विकट लड़ाई भै फाटक पर नदिया बही रक्तकी धार॥
ना मुहँ फेरैं दिल्लीवाले ना ई मुहबे के सरदार ९
रजित अभई की मारुन मा सब दल होनलाग खरिहान॥

रही न आशा क्यहु लड़िवेकी आरी भये समरमें ज्वान १०

सवैया॥


मारत औ ललकारत संगर लंगर मे क्यहु बुद्धि चलैना।
शूर शिरोमणि रंजित ज्वान सो मान किये रण पैर टरैना॥
होत जहाँ घमसान महाँ तहँ वीर कोऊ अभिमान करैना।
माहिल पूत सुपूत जहाँ सो तहाँ ललिते कोउ देखि परैना११


बड़ा लड़ैया माहिल वाला आला उरई का सरदार॥
हनि हनि मारे रजपूतन का भारी हाँक देय ललकार १२
चौंड़ा बकशी पृथीराज का सोऊ खूब करै तलवार॥
चौंड़ा सोहत है हाथी पर अभई घोड़े पर असवार १३
सेल चौंडिया हनिकै मास अभई लीन्ह्यो वार वचाय॥
एँड़ लगावा फिरि घोड़े के हाथी उपर पहूँचा जाय १४
ढालकि औझड़ अभई मारा चौंड़ा गयो मूर्च्छा खाय॥
भागि सिपाही दिल्लीवाले रंजित दीन्ह्यो फौज बढ़ाय १५
कीरतिसागर मदनताल पर पहुँचा फेरि चँदेला आय॥
गा हरिकारा ह्याँ फौजन ते राजै खबरि सुनाई जाय १६
हाल पायकै पृथीराज ने सूरज पूत दीन पठवाय ॥
सूरज आयो जब सागरपै बोल्यो दोऊ भुजा उठाय १७
डोला दैकै चन्द्रावलि का रंजित कूच देउ करवाय॥
नहीं तो वचिहौ ना संगर मा जो विधि आपु बचावैंआय १८
इतना सुनिकै रंजित बोले सूरज काह गये बौराय॥
मर्द्द सराहौं त्यहि ठाकुर का डोला पासजाय नगच्याय १९
जितनी दिल्ली दिल्लीवाली तिनको देवों समर सुवाय॥

तौ तौ लारैका परिमालिक का नहिंई मुच्छ डरों मुड़वाय २०
इतना सुनिकै सूरज जरिगे अपने कहा सिपाहिन टेर॥
जान न पावैं मोहबेवाले मारो एक एक को घेर २१
सुनिकै बातैं ये सूरज की क्षत्रिन खैंचि लीन तलवार॥
कीरतिसागर मदनताल पर लाग्यो होन भडाभड़मार २२
पैग पैग पर पैदल गिरिगे दुइ दुइ पैग गिरे असवार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्त की धार २३
को गति वरणै तहँ अभई कै मारै ढूँढि ढूँढ़ि सरदार॥
रंजित लड़िका परिमालिकका दूनों हाथ करै तलवार २४
सूरज ठाकुर दिल्लीवाला आला समरधनी चौहान॥
गनि गनि मारै रजपूतन का कीरतिसागर के मैदान २५
रंजित सूरज द्वउ ठकुरन का मुर्चा परा बरोबरि आय॥
दोऊ सोहैं भल घोड़न पै दोऊ रूपशील अधिकाय २६
सूरज मारैं जब रंजित का दाहिन बाँउ खेलि तव जाय॥
रंजित मारैं जब सूरज का सोऊ लैवै वार बचाय २७
उसरिन उसरिन दोऊ खेलैं पानी भर यथा पनिहार॥
कोऊ काहू ते कमती ना दोऊ लड़ैं तहाँ सरदार २८

सवैया॥


सिंह समान सो रंजित बीर औ सूरजहू बल घाटि कछूना।
मार अपार भई ललिते पै उदारन के मन शङ्क कछूना॥
शक्ति औशूल चलै तलवार सो मार कही कहिजात कछूना।
रक्त कि धार अपार बही पर हार औ जीत लखात कछूना २९



सव्जा घोड़े पर रंजितहैं सूरज सुरखा पर असवार॥

दोऊ मारैं तलवारिन सों दोऊ लेयँ ढाल पर वार ३०
कोऊ काहू ते कमती ना दोउ रण परा बरोबरि आय॥
वार चलाई रंजित ठाकुर सूरज लैगा चोट बचाय ३१
सूरज मारा तलवारी का रंजित लीन ढाल पर वार॥
रंजित मारा तलवारी का का चेहरा काटि निकरिगै पार ३२
सूरज जूझे जब मुर्चा में पहुँचा टंक तुर्तही आय॥
टंक सामने अभई आये खेलन लागि जूझके दायँ ३३
यहु रणनाहर माहिलवाला गई हाँक देय ललकार॥
टंक शंक तजि त्यहि औसरमा दूनों हाथ करै तलवार ३४
साँग चलाई नृपति टंक ने अभई लीन्ही वार बचाय॥
भाला मारा जब अभई ने तोंदी परा घाव सो जाय ३५
टंक औ सूरज दोऊ मरिगे हाहाकार फौज गा छाय॥
गा हरिकारा फिरि फौजन ते राजै खबरि जनाई जाय ३६
हाल पायकै पृथीराज ने ताहर बेटा लीन बुलाय॥
मर्दनि सर्दनि को बुलवावा तिनते हालकहा समुझाय ३७
टंक और सूरज दोऊ जूझे कीरतिसागर के मैदान॥
लाश लयआचो द्वउ वीरन की भात्री जानि सदा वलवान ३८
हुकुम पायकै महराजा को डंका तुरत दीन बजवाय॥
तीन लाखलों लश्कर लैकै तुरतै कूच दीन करवाय ३९
कीरतिसागर मदनपालपर ताहर अटा तुरतही धाय॥
लाश देखिकै द्वउ वीरन कै सो पलकी म दीन रखवाय ४०
निकट जायकै दल रंजितके गरुई हॉक कहा गुहराय॥
कौन बहादुर है मोहबे का सूरज के दीन गिराय ४१
होला दैकै चन्द्रावलि का अवहीं कूच देउ करवाय॥

नहीं सुहागिल कोउ बचिहै ना मोहबा रंडन सों भरिजाय ४२
इतना सुनिकै अभई बोले रण माँ दोऊ भुजा उठाय॥
हम नहिं देखैं गति काहूकै डोला पासजाय नगच्याय ४३
पर्व आपनी पूरी करिकै अवहीं कूच देव करवाय ॥
रारि मचाये कछु पैहो ना साँची बात दीन बतलाय ४४
अवै मोहोबा अस सूना ना जैसा समझि लीन सरदार॥
मूड़ न रैहैं जब देही मा तवहूं रुण्ड करैं तलवार ४५
इतना सुनिकै ताहर ठाकुर लाशै फौज दीन पठवाय॥
हुकुम लगावा रजपूतन का इनके देवो मूड़ गिराय ४६
हुकुम पाय कै यह ताहर का लागे लड़न शूर सरदार॥
पैदल पैदल के बरणी भै औ असवार साथ असवार ४७
भाला वलछी छूटन लागे पागे मोद शूर त्यहि बार॥
अपन परावा कछु सूझै ना आमाझोर चलै तलवार ४८
कटि कटि कल्ला गिरैं खेत माँ उठि उठि रुण्ड मचावैं मार॥
को गति बरणै त्यहि समया कै नदिया बही रक्तकी धार ४९
मुण्डन केरे मुड़चौरा मे औ रुण्डन के लगे पहार॥
यह रणनाहर मल्हनावाला आला मोहबे का सरदार ५०
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठै जैसे सिंह बिडारै गाय॥
तैसे मारै रजपूतन का छप्पन दीन्हे मूड़ गिराय ५१
बड़ा प्रतापी रण नाहर यहु यहि के बाँट परी तलवार॥
यहिके मारे हाथी गिरिगे मरिगे सूरजसे सरदार ५२
रंजित नामी यहु ठाकुर जो रणमाँ भली मचाई रार॥
पटा बनेठी बाना फेंकै टेकै द्वऊ हाथ तलवार ५३
लोह कि टोपी शिर में धारे सब्जा घोड़ेपर असवार॥

झीलम बावतर दोऊ पहिरे रंजित मोहबे का सरदार ५४
ताहर बेटा पृथीराज का सोऊ आयगयो त्यहिबार॥
गरुई हाँकन ते ललकारा ठाकुर मोहबे के सरदार ५५
कीन ढिठाई तुम अब लग है अब हम साँच देत बतलाय॥
डोला दैकै चन्द्रावलि का अवहीं कूच देउ करवाय ५६
नहीं तो आशा तजु जीवनकी यमपुर देत आज दिखलाय॥
दीखि लड़ाई नहि, ताहर की नाहर खबरदार ह्वैजाय ५७
इतना कहिकै ताहर ठाकुर रंजित पास पहूँचा जाय॥
रंजित मारी तलवारी को ताहर लैगा चोट वचाय ५८
ताहर मारा तलवारी का रंजित लीन दाल पर वार॥
खैंचि सिरोही रंजित मारी ताहर रोंकिलीन त्यहिवार ५९
जैसे रसरी गगरी लैकै पानी खैंचि रही पनिहार॥
तैसे रंजित ताहर दोऊ रणमाँ भली मचाई रार ६०

सवैया॥


मार अपार भई त्यहि वार सो यार सँभार रह्यो कछु नाहीं।
जूझिगये बहु पैदल स्वार तजे हथियार कवों रण नाहीं॥
जातभये सुरलोक तबै औ जबै तजि प्राण दिये रणमाहीं।
कीरति लोक रहै ललिते परलोक बनै क्षण एकहि माहीं ६१


दोऊ प्यारे रघुनन्दन के बन्दन करैं हृदय कर्त्तार॥
दोऊ मारैं तलवारी औ दोऊ लेय दालपर वार ६२
रंजित चूके तलवारी ते कटिकै मूड़ गिरा त्यहिबार॥
पूत सुप्ता माहिलवाला आला उरई का सरदार ६३
सम्मुख ताहर के आवा सो सुर्खा घोड़ेपर असवार॥

औ ललकारा फिरि ताहर को सँभरो दिल्ली के सरदार ६४
इतना सुनिकै ताहर बोले अभई बार बार धिक्कार॥
लिल्लीघोड़ी के चढ़वैया माहिल बाप तुम्हारे यार ६५
तिनके लरिका तुम तलवरिहा कबतै भयो कहौ सरदार॥
इतना सुनिकै अभई ठाकुर अपनी खैंचि लीन तलवार ६६
ताहर अभई दोउ बीरन का परिगा समर बरोबरि आय॥
रञ्जित जूझे हैं संगर में धावन खबरि सुनाई जाय ६७
खबरि पायकै मल्हना रानी तुरतै गिरी तहाँ कुम्हिलाय॥
बारह रानी परिमालिक की गिरि गिरि परैं पछाराखाय ६८
रञ्जित रञ्जित के गुहरावैं छाती धड़कि धड़किरहिजाय॥
मारे डरके पिंडुरी काँपैं थर थर देह रही थर्राय ६९
कोगति बरणै चन्द्रावलि के भलिकैविपति कही ना जाय॥
सावधान भै मल्हनारानी तुस्तै दीन्ह्यो दूत पठाय ७०
बोलन लागी चन्द्रावलि ते मनमा बार बार पछिताय॥
खप्पर भरिंगा धिक् बेटी त्वहिं सागर पूत गँवावा आय ७१
इतना कहिके मल्हना रानी तुरतै गिरी पछाराखाय॥
गा हरिकारा हाँ मोहबे मा ब्रहमै खबरि जनाई जाय ७२
रञ्जित जूझे हैं सागर पर तिनकी लाश लेहु उठवाय॥
इतना सुनिकै ब्रह्मा ठाकुर डंका तुरत दीन बजवाय ७३
सजि हरनागर तहँ ठाढ़ो थो तापर कूदि भये असवार॥
पाँचलाख लों फौजे लैकै सागर चलन हेतु तय्यार ७४
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन बेद उच्चार॥
रणकी मौहरि बाजन लागी रपका होनलाग ब्यवहार ७५
झीलमवखतरपहिरिसिपाहिन हाथमे लई ढाल तलवार॥

२९

आगे हलका भा हाथिन का पाछे चले घोड़ असवार ७५
अभई ठाकुर ह्याँ ताहर का होवै खूब भड़ाभड़ मार॥
दूनों मारैं तलवारी सों दूनों लेयँ ढालपर वार ७७
मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्त की धार॥
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार ७८
को गति बरणै त्यहि समया कै आमाझोर चलै तलवार॥
चार चूकिगा माहिलवाला जूझा उरई का सरदार ७९
रञ्जित अभई द्वउ ठकुरन के उठि उठि रुण्ड करैं तलवार॥
सुरपुर पहुँचे दोऊ ठाकुर ब्रह्मा आयगयो त्यहिवार ८०
लाश पाय कै द्वउ वीरन कै मोहबे तुरत दीन पठवाय॥
सुमिरिगजानन शिवशङ्करको मारन लाग फौज मा जाय ८१
ब्रह्मा मारै तलवारी सों घोड़ा टापन देय गिराय॥
ब्रह्मा ठाकुर के मुर्चामा सर्द्दनिगयो तड़ाका आय ८२
हसिकै बोला सो ब्रह्माते ठाकुर साँच देयँ बतलाय॥
डोला दैकै चन्द्रावलि का पवनी करो आपनी जाय ८३
सुनिकै बातैं ये सर्द्दनि की बोला मोहबे का सरदार॥
नाम न लीन्हे अब डोलाका नहिं मुखधाँसिदेउँ तलवार ८४
सुनिकै बातैं ये ब्रह्माकी सर्द्दनि मारा गुर्ज उठाय॥
बार रोंकि कै ब्रह्मागकुर तुरतै दीन्ह्यो मूड़ गिराय ८५
मर्द्दनि आवा तब सम्प्तखमा सोऊ वार चलावा आय॥
खाली वार परी मर्द्दनि के ब्रह्मा दीन्ह्यो मूड़ गिराय ८६
मर्द्दनि सर्द्दनि दोऊ जूझे माहिल अटे तड़ाका धाय॥
हाल बतावा पृथीराज का माहिल बारबार समुझाय ८७
इकले ब्रह्मा हैं मोहबेमा तिनका आप लेउ बँधवाय॥

मर्द्दनि सर्द्दनि दोऊ जूझै अब तुम चढ़ो पिथौराराय ८८
सुनिकै बातैं ये माहिल की हाथी तुरत लीन सजवाय॥
सुमिरि भवानीसुत गणेश को पहुँचा समरभूमिमा आय ८९
चौंड़ा बकशी का बुलवावा औ यह हुकुम दीन फरमाय॥
जितने डोलाहैं सागर में सबका अवै लेउ लुटवाय ९०
पाछे मल्हना चन्द्रावलि का दिल्ली शहर देउ पठवाय॥
हुकुम पायकै पृथीराज का तहँपर अटा चौंड़िया धाय ९१
लाखनि बोले ह्याँ ऊदन ते नाहर सुनो बनाफरराय॥
कीरतिसागर मदनताल पर चलिये बेगि लहुरवाभाय ९२
सुनिकै बातैं लखराना की डङ्का तुरत दीन बजवाय॥
सजे सिपाही कनउज वाले मनमा फूलमतीको ध्याय ९३
सुमिरि भवानी महरानी को दानी तीनिलोक की माय॥
फूलमती पद बन्दन कैकै हाथी चढ़ा कनौजीराय ९४
चढ़ा बेंदुला का चढ़वैया मैया शारद चरण मनाय॥
ध्याय भवानीसुत गणेश को देबा चढ़ा मनोहर जाय ९५
मीराताल्हन बनरस वाले सोऊ बेगि भये असवार॥
योगिहा बाना मर्दाना सब ठाकुर भये समर तय्यार ९६
धुरपद सरंगीत तिल्लाना गावन लागे मेघमलार॥
घोर घटा हैं कहूँ सावन के आवन प्रीतम केरि बहार ९७
शोचैं बिरहिनी घर आँगन में जब कहुँ परै पर्ब्ब त्यवहार॥
प्रीतम होते जो सावन में तो दुख दावन जात हमार ९८
को गति वर्णै त्यहि समया कै ऊदन गावैं मेघमलार॥
पावन वर्षा है सावन कै जङ्गल देखि परैं हरियार ९९
फसल आँबकी नर बागन में जंगल देखि परैं गुलजार॥

काली जामुन काले मेघा नीचे ऊपर करैं वहार १००
योगी पहुँचे मदनताल पर यारो सुनो कथा यहिबार॥
चौड़ा ठाढ़ो तट मल्हना के बकशी जौनुपिथौराक्यार १०१
कहन सँदेशा सो जब लाग्यो आयो देशराज के लाल॥
धरिकै डाट्यो तह चौंड़ाका झगरा काह करैं नरपाल १०२
कीनि प्रतिज्ञा हम रानी ते तुम्हरी पर्ब्व द्याव करवाय॥
काह हकीकति है पिरथी कै लूटैं मदनताल पर आय १०३
इतना सुनिकै ताहर जरिगे अपनी खैंचिलीन तलवार॥
तव लखराना कनउज वाला सम्मुखभयो तुरत सरदार १०४
ताहर लाखनि का मुर्चा मा चौंड़ा मैनपुरी चौहान॥
कोगति वरर्णै बघऊदन कै लागो करन खूब घमसान ९०५
हौदा हौदा बेंदुल नाचैं ऊदन करैं खूब तलवार॥
बावनहौदा खाली ह्वैगे जूझ हाथिन के असवार १०६
चोट लागिगै कछु धाँधू के सोऊ गिरे मूर्च्छाखाय॥
सँभरिकै बैठे फिरि हौदा पर मनमाशोचिशोचिरहिजाय १०७
बड़े लड़ैया सब योगी हैं मुर्चा पूरे दीन जमाय॥
अपने अपने सब मुर्चन मा ठकुरन दीन्ही रारिबढ़ाय १०८
ललातमोली धनुवाँ तेली सय्यद बनरस का सरदार॥
लाखनि ऊदन देवाठाकुर रणमा खूब करैं तलवार १०९
कोगति वरणै तहँ ताहर के नाहर दिल्ली का सरदार॥
चौड़ा धाॅधू कछु कमती ना येऊ करैं भड़ाभड़ मार ११०
चलै सिरोही भल सागर में ऊना चलै विलाइति क्यार॥
खट खट खट खट तेगा वोलै वोलै छपकछपक तलवार १११
झल्झल् झल्झल् छूरीचमकैं दमकैं रणमा खूब कटार॥

धम् धम् धम् धम् बजैं नगारा मारा मारा की ललकार ११२
सन् सन् सन् सन् गोली छूटैं तीरन मन्न मन्न गा छाय॥
फर फर फर फर घोड़ा रपटैं लपटैं देह देह में धाय ११३
को गति बरणै रजपूतन कै उठि उठि रुण्ड करैं तलवार॥
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार ११४
चहला ह्वैगा चार कोसलों नदिया बही रक्तकी धार॥
लड़ै पिथौरा तहँ सँभराभर राजा दिल्ली का सरदार ११५
शब्द पायकै तीर चलावै कलयुग यही एकही ज्वान॥
अबयहि समया यहि औसरमा ताहर लाखनि का मैदान ११६
देबा धाँधूके मुर्चा मा जूझे बहुत सिपाही ज्वान॥
पिरथी बोले फिरि चौंड़ाते हमरे बचन करो परमान ११७
रानी मल्हना चन्द्रावलि का डोला तुरत लेउ उठवाय॥
इतना सुनिकै चौंड़ा बकशी डोलन पास पहूँचा जाय ११८
खबरि सुनाई सव मल्हना का जो जो कहा पिथौराराय॥
सुनि संदेशा पृथीराज का मल्हनाबोली बचनसुनाय ११९
जवै बनाफर उदयसिंह थे तब नहिं चढ़े पिथौराराय॥
बाँधिकै मुशकैसबलड़िकनकी मड़येपाँयलिह्यनिपुजवाय १२०
हथी पछार्यनि जब द्वारपर तब कहँ गये पिथौराराय॥
ब्याहे ब्रह्मा गे दिल्ली मा समरथ हते बनाफरराय १२१
ब्रह्मा रञ्जित द्वउ लरिकन ते कीन्हेनि रारिआय महराज॥
रारि मचैहैं जो नारिन ते तो सब ह्वैहैं काजअकाज १२२
इतना सुनिकै चन्द्रावलिकैं पलकी तुरत लीन उठवाय॥
चलिभा चौंड़ा लै पलकी को पहुँचा पञ्च पेड़ तर जाय १२३
रोवै मल्हना त्यहि समया मा गिरि गिरि परै पछाराखाय॥

ऊदन ऊदन के गुहरावै कहँ तुम गये फनाफरराय १२४
लाउ शारदा यहि समया मा आल्हा केर लहुरवा भाय॥
बिना इकेले बघऊदन के डोला कौन छुड़ाई जाय १२५
सदा भवानी ज्यहि दाहिनहैं ज्यहिघर सिद्धिकरैं गन्नेश॥
पारस पत्थर ज्यहिके घर मा पूरित विभो सदा धन्नेश १२६
भई सहायी शारद मायी ऊदन आयगये त्यहिकाल॥
हाथ जोरिकै योगी बोले लाला देशराजके लाल १२७
भिक्षा पावैं जो मैया हम तौ अब हरद्वार को जायँ॥
इतना सुनिकै मल्हना रोई बोली आरत बैन सुनाय १२८
रही न ईजति अब मोहबे की पलकी लीन चौंड़िया आय॥
जायकै पहुँचा पँच बिरवातर हा दैयागति कही न जाय १२९
बिना बेंदुला के चढ़वैया नैया कौन लगैहै पार॥
चीरिकै धरती ऊदन आवो ईजति राखिलउ यहिवार १३०
इतना सुनिकै ऊदन योगी घोड़ा तुरत दीन रपटाय॥
जायकै पहुँचा पँच बिरवातर यहु रणवाघु लहुरवाभाय १३१
चौंड़ा दीख्यो जब ऊदन का सम्मुख हाथी दीन बढ़ाय॥
औ ललकारा फिरि योगी का काहे प्राण गवाँवो आय १३२
इतना सुनिकै ऊदन योगी गरूई हाँक दीन ललकार॥
डोला धरिदे चन्द्रावलि का चौंड़ामानुकही यहि वार १३३
धोखे योगी के भूले ना अवहीं योग देउँ दिखलाय॥
ऍड़ लगाई फिरि बेंदुल के हाथी उपर पहुॅचा जाय १३४
ढाल कि औझड़ ऊदन मारी चौंड़ा गयो मूर्च्छाखाय॥
लैकै ढोला चन्दावलि का मल्हनापास दीनरखवाय १३५
देवा ठाकुर ते फिरि बोले अव तुम रहो यहाँपर भाय॥

अब हम जावत त्यहि दलमाहैं ज्यहिमालड़ै चँदेलाराय १३६
जितने योगी हैं सागर में सबियाँ बेगि होयँ तय्यार॥
लाखनि आये हैं मुर्चा ते तिनकेसाथ चलैं सरदार १३७
इतना सुनिकै सबियाँ योगी तुरतै होन लागि तय्यार॥
हिरसिंह बिरसिंह विरियावाले चन्दन दतिया के सरदार १३८
चिंता राजा रुसनीवाला औ पतउँज के मदनगुपाल॥
पूरनराजा पूरा वाला जगमनिजिन्सीकानरपाल १३९
बारह कुँवर बनौधा वाले चारो गाँजर के सरदार॥
चिन्ता दूसर गोरखपुर के रूपनि मधुकरसिंह उदार १४०
ये सब योगी सजि सागर में रणका चलन हेतु तय्यार॥
मीराताल्हन बनरस वाले सिरगा घोड़ेपर असवार १४१
सुमिरि भवानी फूलमती को हाथी चढ़ा कनौजीराय॥
सुमिरि शारदा मैहरवाली आगे चला बनाफरराय १४२
उतसों सेना पृथीराज की सोऊ गई बरोबरि आय॥
चली सिरोही फिरि सागरपर अद्भुतसमरकहा ना जाय ९४३
ना मुँह फेरैं कनउज वाले ना ई दिल्ली के चौहान॥
कीरतिसागर मदनताल पर क्षत्रिन कीन खूब मैदान १४४
कटि कटि कल्ला गिरैं बछेड़ा चेहरा गिरैं सिपाहिन केर॥
बिना सूँढ़ि के हाथी घूमैं मारे एक एकको हेर १४५
आदिभयङ्कर का चढ़वैया यहु महराज पिथौराराय॥
भूरी हथिनी पर लखराना सम्मुखगयो तड़ाकाआय१४६
ब्रह्मा ताहर का मुर्चा है दोऊ खूब करें तलवार॥
चौंड़ा ऊदन का रण सोहै धाँधू बनरस का सरदार १४७
सवापदर लों चली सिरोही नदिया बही रक्त की धार॥

ढालै कच्छा छूरी मच्छा वारन मानो नदी सिवार १४८
नचैं योगिनी खप्पर लीन्हे ठोकैं ताल भूत बैताल॥
लूटि मचाई भल गृद्धन है फौजैं कुत्तन की विकराल १४९
भल बनिआई तहँ चील्हन की कागन लागी कारि बजार॥
लैलै सौदा चले शृगालौ आंतनमाल कण्ठ में धार १५०
लाखनि पिरथी के मुर्चा मा लागी चलन खूब तलवार॥
हौदन हौदन के ऊपर मा घूमै बेंदुल का असवार १५१
जूझक कंकण सवालाख का सो हाथे मा करै बहार॥
त्यहिका दीख्यो जब पिरथीपति राजा दिल्ली के सरदार १५२
तब पहिंचान्यो बघऊदन का निश्चय ठीक लीन ठहराय॥
लाखनिराना है सम्मुख मा ज्यहिमम हाथीदीनहटाय १५३
यहै शोचिकै पृथीराज ने दीन्ह्यो मारु बन्द करवाय॥
बढ़िगे डोला महरानिन के सागर उपर पहूँचे जाय १५४
दक्षिण दिशि मा परा पिथौरा उत्तर उदयसिंह सरदार॥
लाखनि बोले ह्याँ मल्हना ते रानी करो अपन त्यवहार १५५
इतना सुनिकै तहँ चन्द्रावलि सीढ़िन उपर बैठिगे जाय॥
पात मँगाये तहँ पुरइन के सुन्दरि दोनी लीनबनाय १५६
छाँड़ि दोनइया दी सागर में माहिल दीख तमाशा आय॥
लिल्ली घोड़ी का चढ़वैया पिरथी पास पहुँचा जाय १५७
खबरि बताई सब सागर की माहिल बार बार समुझाय॥
हाल पायकै पृथीराज ने चौंड़ा बकशी दीन पठाय १५८
छँड़ी दुनैया जब चन्द्रावलि चौंड़ा हाथी दीन बढ़ाय॥
रोय कै बोली तब चन्द्रावलि पबनी किहि सि खोंटिय हुआय १५९
बिना बेंदुलाके चढ़वैया को अब दुनिया लेय बचाय॥

जों कहूँ दुनिया चौंड़ा लैगा हमरी पर्व खोंटि ह्वैजाय १६०
सुनिकै बातैं चन्द्रावलि की बोला तुरत कनौजीराय॥
लेउ दोनइया उदयसिंह तुम मानो कही बनाफरराय १६१
इतना सुनिकै उदयसिंह ने अपनो दीन्ह्यो घोड़ बढ़ाय॥
तबै चौंड़िया ने ललकारा योगी खबरदार ह्वै जाय १६२
पैहौ दोनी ना सागर में आपत प्राण गवाँये आय॥
इतना कहिकै चौंड़ा बकशी भालामार्यो तुरतचलाय १६३
वार बचाई तहँ भाला की तुरतै दोनी लीन उठाय॥
लैकै दोनी दी बहिनी को वहिनी बार बार बलिजाय १६४
सूजी खोसैं अब क्यहि के हम नहिं घर आज लहुरवाभाय॥
इतना सुनिकै मल्हना बोली चन्द्रावलिकोबचनबुझाय १६५
खोंसो सूजी तुम योगिन के जिन अब पबनी दीनकराय॥
इतना सुनिकै चन्द्रावलि फिरि पहुँचीउदयसिंहढिगजाय १६६
कीन इशारा तव लाखनि का यहु रणवाघु बनाफरराय॥
लाखनि बोले तव ऊदन ते हमरो मूड़ कटायो आय १६७
माल खजाना कछु लाये ना देवैं कौन नेगु ह्याँ आय॥
तहिले पहुँची चन्द्रावलि तहँ सूजी धरी कानपर जाय १६८
बाइस हाथी तीनि पालकी दीन्ह्यो नेगु कनौजीराय॥
सूजी खोंसी जब ऊदन के जूझकोकंकणदीनगहाय १६९
देखिकै कंकण उदयसिंह का निश्चय मनै लीन ठहराय॥
साँचो योगी यहु ऊदन है मातैकहाबचनसमुझाय १७०
सुनिकै बातैं चन्द्रावलि की ऊदन नाम दीन बतलाय॥
बड़ी खुशाली भै सागर में सबकोउमिलींतहाँपरआय १७१

सवैया॥

मीन मिलै जलको बिछुरे जिमि पङ्कज भानु यथा सुखदाई।
त्योंहि मिली परिमाल कि नारि सो डारितहाँ विपदासमुदाई॥
नैनन मोचत बारि निहारि सो नारिनकी तहँ लागि अथाई।
कौन बखान करै ललिते सुख सम्पति आय तहाँ सब छाई १७२


मिलाभेंट करि सब ऊदन ते सागर सूजी रहीं सिराय॥
बीर भुगंतै औ धाँधू को पठयो फेरि पिथौराराय १७३
लै दल बादल दोऊ आये दोनी लेन हेतु ततकाल॥
लाखनि बोले तब ऊदन ते सुनियेदेशराजके लाल १७४
लैगे दोनी जो दिल्ली के हमरो मान भंग ह्वै जाय॥
बट्टा लागी रजपूती माँ औसव क्षत्री धर्मनशाय १७५
बातैं सुनिकै लखराना की ऊदन अटे तड़ाका धाय॥
धाँधू बोले तब ऊदन ते योगीसाँच देयँ बतलाय १७६
निकट दुनैया के जायो ना नहिं शिर देवैं अवै गिराय॥
बात न मानी कछु धाँधू की ऊदन दोनी लीनउठाय १७७
देखि तमाशा यहु ऊदन का धाॅधू खैंचि लीन तलवार॥
कीरतिसागर की सिढ़ियन मा लागीहोन भड़ाभड़ मार १७८
झुके सिपाही दिल्लीवाले दोऊ हाथ करैं तलवार॥
को गतिबरणै तहँ ऊदन के ठाकुर बेंदुलका असवार १७९
फिरि फिरि मारै औ ललकारै यहु रणबाघु बनाफरराय॥
हटिगा मुर्चा तहँ धाँधूका कोउ रजपूत न रोंकै पायँ १८०
धीर भुगता कोपित ह्वैकै अपनो हाथी दीन बढ़ाय॥
मीरासय्यद बनरस वाले सम्मुख गये तड़ाकाधाय १८१

एँड़ लगावा जब घोड़े के हौदा उपर पहूँचाजाय॥
गुर्ज चलावा बीरभुगन्ता सय्यद लैगे चोट बचाय १८२
ढाल कि औझड़ सय्यद मारी नीचे गिरा महाउत आय॥
तहिले धाँधू तहँ आवत भा औ सय्यदकोदीनहाय १८३
मारन लाग्यो रजपूतनका धाँधूभाय पिथौरा क्यार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार १८४
ना मुँहँ फेरैं कनउजवाले ना ई दिल्ली के सरदार॥
मूड़न केरे मुड़चौराभे औ रुण्डनके लगेपहार १८५
शूर सिपाही दुहुँ तरफाके दूनों हाथकरैं तलवार॥
कायर भागे समर भूमिते अपने डारि डारि हथियार १८६
तहिले माहिल गे तम्बूमें औ पिरथी ते कहाहवाल॥
जीति न होई महराजाअब आयो देशराज को लाल १८७
ऊदन जावैं जब मोहबे ते तब फिरि चढ्यो पिथौराराय॥
तुम्हैं मुनासिब अब याही है देवो मारु बन्द करवाय १८८
सुनिकै बातैं तहँ माहिल की तैसो कियो पिथौराराय॥
मर्दनि सर्दनि सूरज टंको जूझे समरभूमि में आय १८९
इकसै हाथी गिरे खेतमें घोड़ा जूझे पाँच हजार॥
लाखयुग्मकी तह संख्यामा जूझे दिल्लीके सरदार १९०
रंजित अभई दूनों जूझे घोड़ा जूझे चार हजार॥
डेढ़ लाख दल पैदल जूझे संख्या मोहबेकी त्यहिबार १९१
छप्पन हाथी मोहबे वाले मारा रहै पिथौराराय॥
मेख उखरिगै फिरि सागर ते पिरथी कूच दीनकरवाय १९२
तजिकै शंका अहतका के डंका तुरत दीन बजवाय॥
कैयो दिनका धावा करिकै दिल्ली गयो पिथौराराय १९३

ह्याँ सुधिपाई परिमालिक ने आये देशराज के लाल॥
वन्दन कैकै यदुनन्दन को पलकीचढ़े रजापरिमाल १९४
कीरतिसागर मदनतालपर आये तुरत चँदेलेराय॥
हाथ पकरिकै तहँ ऊदन का औछातीमा लीनलगाय १९५
पगिया धरदइ फिरि पैरन मा यह रणबाघु बनाफरराय॥
हाथ जोरिकै उदयसिंह तहँ आपनिकथा गयेसबगाय १९६
सुनिकै बातैं उदयसिंह की बोले फेरि चँदेलेराय॥
पारस पत्थर तुम लैलेवो भोगो राज्य बनाफरराय १९७
तुमका सौंपत हम ब्रह्माका ऊदन मानो कही हमार॥
तुम जो जैहौ अब कनउज को तौ को धर्म निवाहन हार १९८
इतना सुनिकै ऊदन बोले साँची सुनो रजापरिमाल॥
तीन तलाकैं हमका दीन्ही सो अव रहीं करेजेशाल १९९
कहा मानिकै तुम माहिल का नाकछुकीन्ह्यो तनक बिचार॥
मोहिं निकाल्यो तुम भादों मा राजा मोहबे के सरदार २००
इतना सुनिकै मल्हना बोली साँची सुनो लहुरवाभाय॥
जो तुम जैहौ अब कनउज का पिरथी मोहबालेय लुटाय २०१
दूध आपनो हम प्यावा है स्यावा तुम्है बनाफरराय॥
बैस बुढ़ापा मा दुखपावा रंजित मरे समरमा आय २०२
अवनहिं जावो तुम कनउजको मानों कही लहुरवा भाय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय २०३
एक महीना दिन बारा भे कनउज तजे मोहिं अब भाय॥
जो नहिं जावैं अब कनउजका भाई आल्हा उठैं रिसाय २०४
कीन बहाना हम गाँजर का आयन नगर मोहोबा धाय॥
देश निकासी हमरी ह्वैहै जो कहुँ सुनीबनाफरराय २०५

मई सहायी शारद मायी स्वपने हाल दीन बतलाय॥
दया कनौजी लखराना की देखा नंगर मोहोबा आय २०६
चढ़ी पिथौस जो मोहबे का दिल्ली शहर लेब लुटवाय॥
यहिमा संशय कछु नाहीं है माता साँचदीन बतलाय २०७
इतना सुनिकै मल्हना बोली लाखनिराना बचन सुनाय॥
धन्य कोखिहै वह तिलका कै ज्यहिमारहे कनौजीराय २०८
बिछुरे ऊदन इन मिलवाये हमरी पर्ब्ब दीन करवाय॥
मोरि गोसैंयाँ लखराना हैं जो गाढ़ेमा भये सहाय २०९
सुनिकै बातैं ये मल्हना की बोले फेरि कनौजीराय॥
पुण्य तुम्हारी ते माई सब कीन्हेकाज सिद्धियदुराय २१०
सुमिरन करिये जगदम्बा का अम्बा बैठि महल मा जाय॥
काह हकीकति है पिरथी कै मोहबाशहर लेयँलुटवाय २११
मिला भेंट करि सब काहू सों दोऊ चलत भये सरदार॥
छाँडिंकै बाना सब योगिनका लश्करकूचभयोत्यहिबार २१२
पार उतरिकै श्री यमुना के कुड़हरि डेरा दीन गड़ाय॥
सातरोज को धावा करिकै कनउजगये कनौजीराय २१३
मल्हनापहुँची फिरि महलनमा राजा गये फेरि दरबार॥
गड़े हिंडोला फिरि मोहबे मा घर घर होयँ मंगलाचार २१४
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डा गड़ा निशाको आय॥
परे आलसी खटिया तकि तकि घों घों कण्ठ रहा घर्राय २१५
माथ नवाबों पितु माता को जिन बल पूर भई यह गाथ॥
देवी देवता ये साँचे हैं इनवच पूर कीन रघुनाथ २१६
आशिर्वाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
हुकुम तुम्हारो जो पावत ना कैसेकहतललितयहगाय २१७

रहै समुन्दर में जैलौं जल जैलौं रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तौलौं तुम यशसों रहौ सदा भरपूर २१८
करों तरंग यहाँ सों पूरण तवपद सुमिरि भवानीकन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छायही मोरि भगवन्त २१९
पुत्र हमारे जो चारो हैं तिनपर कृपाकरो रघुराज॥
रामदत्त(१)औकृष्णदत्त(२)औशम्भू(३)ब्रह्मदत्त(४)महराज २२०
नन्द चन्द औ नन्द वाणमें माधव मास बिपति को काल॥
ब्रह्मदत्त गे ब्रह्मलोक को मे अब इन्द्रदत्त युग साल २२१

सवैया॥

संवत वनइस उन्सठ आदि में माधव मास महादुखदाई।
आय गयो विसफोटक रोग अव शान्त भयो बहु देव मनाई॥
फेरि अचानक भय यह बात कि गर्दन फाटिगै फूट कि नाई।
ब्रह्मदत्त बिरंचीलोक बसे ललिते यहदुःख कहैं निज गाई २२२



भक्त तुम्हारे चारो होवैं यह बर मिलै मोहिं भगवान॥
कीरतिसागर मदनताल का पूराचरितकीन हमगान २२३

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबूप्रयागनारायण
जीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपँड़रीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भव
बुधकृपाशङ्करसूनु पं॰ललिताप्रसादकृत कीरतिसागर
कीर्त्तिवणनोनामद्वितीयस्तरंगः २॥

कीरतिसागरकामैदानसम्पूर्ण॥

इति॥