सामग्री पर जाएँ

आल्हखण्ड/२२ चन्दन खम्भा का मैदान

विकिस्रोत से
आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ५९५ से – - तक

 

अथ आल्हखण्ड ॥

चन्दन खम्भा का युद्ध वर्णन॥


सवैया ॥

सोहत मुण्डन माल हिये अरु भाल में चन्द्र बिराजत नीके ।
शूल औ शक्ति कृपाण लिये डमरू कर सोहत शम्भुबली के ।।
खातहैं भंग धरे शिरगंग सो नंग फिरै अरधंग सती के ।
जंग जुरे न टरैं ललिते हम ध्यावत चर्ण हैं शम्भु यतीके १

सुमिरन ।।


विपति विदारण जगतारण के दूनों धरों चरणपर माथ ।।
पूर मनोरथ तुमहीं करिहौ स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ १
बल्कल धारे जटा सँवारे मारे वली वीर दशमाथ ।।
सो हैं स्वामी अवध पुरी के लीन्हे धनुपवाण प्रभु हाथ २
अक्षत चन्दन औ पुष्पन सों मानस पूजन परम उदार॥
सो मैं करिकै रघुनन्दन का जावा चहौं जगत के पार ३
तुम्हीं गोसइयाँ दीनबन्धहीं स्वामी र

.

। 1 4 आल्हखण्ड। ५६५ कीरति देवो नित दुनिया में राखो मोरि जगत में लाज १ छूटि सुमिरनी गै देवन के शाका सुनो शूरमन क्यार । चन्दनखम्भा ऊदन हैं होई महाभयङ्कर मार ५ अथ कथामसंग ॥ उदय दिवाकर भे पूरब मा किरणन कीन जगतउजियारा। सोय के जागे उदयसिंह जब लागे करन फौज तय्यार ? अंगद पंगद मकुना भौंरा सजिगे श्वेतवरण गजराज ।। घरी अंबारी तिन हाथिनपर बहुतक हौदा रहे विराज २ इक इक हाथी के हौदामा दुइ दुइ भये बीर असवार ।। सजा रिसाला घोड़नवाला आला साठि सहस त्यहिबार ३ झीलमबखतरपहिरिसिपाहिन हाथम लई ढाल तलवार ॥ चढे कनौजी तव भूरी पर ऊदन दुल भे असवार ४ देवा सय्यद वनरसवाले औ जगनायक भये तयार ।। दाढ़ी करखा बोलन लागे विपन कीन चेद उच्चार ५. रणकी मौहरि वाजन लागी रणका होनलाग व्यवहार ।। पहिल नगाड़ा में जिन वन्दी दुसरे फाँदि भये असवार ६ तिसर नगाड़ा के वाजत खन लाखनि कूचदीन करवाय ।। पार उतरिक श्रीयमुना के दिल्ली शहर गये नगच्याय ७ तीनि अनी कार तहॅ सेनाकी खम्भा तुरत लीन उवराय ।। बारहु खम्मा चन्दनवाले छकरन उपर लीन लदवाय भा खलभल्ला औ हल्ला अति पायो खवरि पिथौराराय ।। धावा कीन्ह्यो उदयसिंहने चन्दन खम्भ लीन उखराय :

सुना पिथौरा जब बातें ई दीन्ह्यो वीरभुगन्त पठाय ॥

भा खलभल्ला भी हल्ला तर लोगन दीन्ह्यो लागलगाय ॥
मुर्चाबन्दी दुहुँ तरफा ते दूनों तरफ बीर समुहाय ११
मारन लागे तलवारी सों दूनों तरफ बरो बरि आय ।।
अपने अपने सब मुर्चनमा ज्वानन दीन्हे ज्वान‌ गिराय १२
औ ललकारैं फिरि फिरि मारैं अद्भुत समर कहा ना जाय ।।
लिहे जँजीरैं हाथी मारैं घोड़ा मारैं टाप चलाय १३
दाँतन काटैं फिरि फिरि डाटैं चाटें रक्त भूत बैताल ॥
मारि लहाशन के भुइँ पाटैं ल्वाटैं समरशूर त्यहिकाल १४
हाटैं लागी तहँ श्वानन की ज्वानन खूब कीन तलवार ।।
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार १५
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औं रुण्डन के लगे पहार ।।
खट खट खट खट तेगा बोलै ऊना चलै बिलाइति क्यार १६
भाला बरछी तीर तमंचा कहुँ कहुँ कड़ा बीन‌ की मार ॥
छुरी कटारी क्वउ क्वउ मारैं क्वउ क्वउ बीर रहे ललकार १७
क्वउ मुख फारैं नखन बिदारै डारैं चीरि फारि मैदान ॥
कोऊ हारैं नहिं काहू सों ज्वानन कीन घोर घमसान १८
परशूठाकुर लाखनि दिशि को अंगद नृपति ग्वालियर क्यार ।।
मुर्चाबन्दी भै दूनन कै दूनों लड़न लागि सरदार १९
अंगद मारै तलवारी सों परशू लेय ढालपर वार ॥
परशू मारै तलवारी सों अंगद रोंकि लेय त्यहिबार २०
बड़ी लड़ाई भै दूननमा दूनन खूब कीन तलवार ।।
वार चूकिगे अंगद राजा परशू मारि दीन त्यहिबार २१
गिरिगा राजा ग्वालीयर का आयो वीर भुगन्ता ज्वान ॥
बीर भुगन्ता के मुर्चा मा परशू खूब कीन मैदान २२

वार चूकिगे परशू ठाकुर मारयो वीर मुगन्ता ज्ञान ।।
चन्दन खम्भा के मुर्चा मा परशू जूझिगये मैदान २३
एँड़ा बेड़ा ऊदन मारैं सीधा हनैं कनौजीराय ।।
अगल बगल में जगनायक जी बहु रणशूर ढहावत जायॅ २४
रानी अगमा के महलन के फाटक उपर कनौजीराय ।।
सँग जगनायक ऊदन ठाकुर येऊ गये तड़ाका धाय २५
मुर्चाबन्दी है बिसहिनि में तहँ पर गये पिथौराराय ।।
सुनी हकीकति लाखनिराना द्वारे जाय गये विरझाय २६
बदला लेवे संयोगिनि का तब फिरि धरब अगारी पाॅय ॥
लैकै डोला अब अगमा का कनउज शहर देयँ पहुँचाय २७
तौ तौ लड़िका रतीभान का नहिं ई मुच्छ डरों मुड़वाय ॥
तब जगनायक बोलन लागे मानो कही कनौजीराय २८
जैसे जानैं हम मल्हना को अगमा तैसि हमारी माय ।।
यह गति नाहीं क्यहु ठाकुर की डोला आजु लेय निकराय २९
जितनी फौजैं चन्देले की सो सब साथ हमारे भाय ।।
हमरो तुम्हरो मुर्चा ह्वै है साँची सुनो कनौजीराय ३०
यामें संशय कछु परि है ना तुमते ठीक दीन बतलाय ।।
सुनिकै बातैं जगनायक की बोला तुरत बनाफरराय ३१
तुम्हैं मुनासिब यह नाही है भैने सुनो चँदेलेकेर ।।
रतीभान के ये लरिका है नाती बेनचक्कवै केर ३२
घाट बयालिस पिरथी रोंके तब तुम गये हमारे पास ।।
बन्दि छुड़ाई इन मोहबे की काटी तहाँ यमन की पाश ३३
आजु कनौजी सब लायक है हमरे माननीय शिरताज ।।
तुमहूॅ प्यारे जगनायक जी विग्रहकेर नहीं कछुकाज ३४

तुम्हरे लाखनि के मुर्चामा कटिहैं पायँ आपने भाय ।।
होय लड़ाई घर अपने मा दुशमन शेर होय अधिकाय ३५
हुकुम जो पावैं लखराना का महलन जाय तड़ाकाधाय ।।
डोला लावैं हम अगमा का राखैं टेक कनौजीराय ३६
सुनिकै बातैं बघऊदन की लाखनि हुकुम दीन फरमाय ।।
चला बनाफर तब जल्दी सों महलन अटा तड़ाकाजाय ३७
रूप देखिकै बघऊदन का रानी गई सनाका खाय ।।
हाथ मेहरियन पर डारयो ना मानो कही बनाफरराय ३८
पूत सुपूते द्यावलिवाले कीरति छायरही चहुँओर ।।
महल हमारे जो तुम लूटै कीरति जाय सबै यहि ठोर ३९
फेंट बँधैया कोउ नाहीं है ना कोउ गहनयोग तलवार ।।
साँची बातैं हमरी मानो ठाकुर उदयसिंह सरदार ४०
सुनिकै बातैं महरानी की दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥
ब्बला बेंदुला का चढ़वैया रानी साँच देयँ बतलाय ४१
जैसे माता मल्हना रानी तैसे आप हमारी माय ॥
यहु महराजा कनउज वाला द्वारे आय गयो विरझाय ४२
डोला लेबे हम अगमा का तब अब धरब अगारी पाँय ।।
बदला लेबे संयोगिनि का तब छाती का डाह बुताय ४३
तहँ जगनायक खुब बिगरे थे तिनहुन दीन तहाँ समुझाय ।।
अब समुझावत महरानी है बाँदी आप देउ पठवाय ४४
यह मनभाई महरानी के सुन्दरि बाँदी लीन बुलाय ।।
कपड़ा गहना सब आपन दै डोला उपर दीन बैठाय ४५
चलिभा डोला रंगमहल ते संगै चले बनाफरराय ।।
जहाँ कनौजी की भूरीथी होला तहाँ पहूँचा भाय ४६

देखिकै डोला लाखनिराना तुरतै कूचदीन करवाय॥
चलिभा डोला जब फाटक ते पहुँचा तुरत बजारै आय ४७
ऊदन बोले तब लाखनि ते मानो कही कनौजीराय ।।
क्वऊ दुसरि हा अब तुम्हरो ना डोला आप देउ लौटाय ४८
कीरति गैहैं सब दुनिया मा ओ महराज कनौजीराय ।।
इतना सुनिकै लाखनिराना डोला तुरत दीन लौटाय ४९
आयग विसहिन ते तुरतै तब यहु महाज पिथौराराय ।।
सुनी हकीकति सब लाखनि की हाथी तुरत लीन सजवाय ५०
आदिभयङ्कर के ऊपर चढ़ि बैठयो शम्भु शिवाकोध्याय ।।
चौड़ा धाँधू अगल बगल मे डंका तुरत दीन वनवाय ५१
बाजत डंका अहतंका के राजन कूच दीनकरवाय ।।
भारी लश्कर महराजा का पहुँचा समरभूमि में जाय ५२
यहु महराजा तब गाजाअति राजा गरूदीन ललकार ।।
मारो मारो ओ रजपूतो हमरे समरशूर सरदार ५३
जान न पावैं मोहबे वाले अब शिरकाटि देउ भुइँडारि ।।
गरुई गाजैं सुनि राजाकी बाजैं घूमि घूमि तलवारि ५४
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्त की लाल ।।
भरि भरि खप्पर नचैं योगिनी मज्जैं भूत प्रेत बैताल ५५
श्वान शृगालन की बनिआई कागन लागी कारि बजार ।।
गिद्ध औ चील्हन के झुण्डनका मुण्डन उपर लाग दरबार ५६
बहैं लहाशैं तहँ मनइन की तापर चढ़े काग औ कङ्क ।।
उठि उठि लड़ि२ गिरि२ कितन्यो मरिगे समर राव औ रङ्क ५७
घोड़ बेंदुला का चढ़वैया ठाकुर उदयसिंह निरशङ्क ॥
मारति आवै रजपूतन को लीन्हे सङ्ग सिपाही बङ्क ५८

भयो सामना फिरि धाँधू का दूनों लड़न लाग सरदार ॥
घोड़ बेंदुला पर ऊदन हैं धाँधू हाथी पर असवार ५९
एँड़ लगायो रस बेंदुल के हौदा उपर पहूँचा जाय ।।
गुर्ज चलाई तब धाँधू ने ऊदन लैंगे वार बचाय ६०
ढाल कि औझड़ ऊन मारी धाँधू गिरे मूर्च्छा खाय ॥
भागो हाथी जब धाँधू का देवी गयो मरहटा आय ६१
औ ललकारा उदयसिंह को ठाकुर खबरदार ह्वैजाय ।।
वार हमारी ते बचिहौना जो विधि आपु बचावैं आय ६२
इतना कहिकै द्यवी मरहटा तुरतै खैंचि लीन तलवार ।।
ऐंचि कै मारा बघऊदन के ऊदन लीन ढाल पर वार ६३
फिरि ललकारा उदयसिंह ने नाहर होउ तुरत हुशियार ॥
यह कहि मारा तलवारी को देवी जूझिगयो त्यहिबार ६४
जझिग देवी जब खेतन मा चौंड़ा गरू करै ललकार ॥
लड़ै चौंड़िया रण खेतनमा दूनों हाथ करैं तलवार ६५
मीरा सय्यद बनरस वाले येऊ घोर करैं घमसान ।।
कोगति वरणै तहँ देवा कै‌ ठाकुर मैनपुरी चौहान ६६
फिरि फिरि मारै औ ललकारै रणमा कठिन करै तलवार ।।
भूरी हथिनी के हौदा ते राजा कनउज का सरदार ६७
हनि हनि मारै रजपूतन का अद्भुत युद्ध करें त्यहिबार ।।
को गति वरणै तहँ धाँधू कै हाथी उपर ज्वान असवार ६८
करि खलभल्ला औ हल्ला अति दूनों हाथ करै तलवार ।
लड़े इकल्ला यह लल्लाअति ठाकुर उदयसिंह सरदार ६९
बड़ी लड़ाई त्यहि समया भै चन्दन खम्भा के मैदान ।।
ना मुह फेरैं कनउज वाले ना ई दिल्ली के चौहान ७०

फिरि फिरि मारैं औ ललकारैं दोऊ बड़े लड़ैता ज्वान ।।
ऊंचे खाले कायर भागे छोंड़िकै समर भूमि मैदान ७१
शूर सिपाही ईजति वाले आली खानदान के ज्वान ।।
बढ़ि बढ़ि मारैं तलवारी सों अपने धरे गदोरी प्रान ७२
आदि भयङ्कर को चढ़वैया यहु महराज पिथौराराय ।।
चौंड़ा धाँधू को ललकारा चन्दन तुरत लेउ उल्दाय ७३
जान न पावैं मोहबे वाले सबकी कटा देउ करवाय ॥
सुनिकै बातैं महराजा की बोला तहाॅ बनाफरराय ७४
तुम्हैं‌ मुनासिब यह नाहीं है ओ महराज बीर चौहान ।।
जैसे नौकर चन्देले के तैसे आप करो परमान ७५
नहीं बरोबरि कोउ तुम्हरे है ज्यहिपर आप चढ़े महराज ।।
बेला बेला दुहुँ तरफाते ज्यहिते भये दुःख के साज ७६
हमैं पठायो है बेला ने चन्दन लेन हेतु महराज ।।
पहिले बगिया को कटवायो पाछे कीन भयङ्कर काज ७७
सत्ती होई चंदेले सँग राखी दुहूँ कुलन की लाज ।।
हम समुझावा भल बेला को की तुम करो मोहोबे राज ७८
अनरथ भायो मन बेला के खम्भन हेतु दीन पठराय ।।
ना चढ़ि आये जयचँद राजा ना चढ़ि अये चँदेलेराय ७९
तुम्हें मुनासिब अब याही है राजन कूच देउ करवाय ।।
इतना सुनिकै महराजा तहॅ हाथी तुरत लीन लौटाय ८०
भाग्यो लश्कर फिरि पिरथी का सब दल तितिर बितिर ह्वैजाय ॥
लादि कै खम्भा तहँ छकरन में लाखनि कूच दीन करवाय ८१
पार उतरि कै श्री यमुना के तम्बुन फेरि पहूंचे आय ॥
खेत छूटिगा दिन नायक सों झंडा गड़ा निशा को आय ८२

तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय ।।
आशिर्वाद देउँ मुंशी सुत जीवो प्रागनरायणभाय ८३
रहै समुन्दर में जब लों जल जब लों रहैं चन्द औ सूर ॥
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदाभरपूर ८४
माथ नवावों पितु माता को जिन बल पूरिभई यह गाथ ॥
तुम्हीं गोसइयाँ दीनबन्धु हौ स्वामी रामचन्द्र रघुनाथ ८५
माथ तुम्हारो है दुनिया मा दूसर नहीं हमारो नाथ ॥
सत्य शपथ यह धर्म कर्म की स्वामी दीनबन्धु रघुनाथ ८६
सुमिरि भवानी शिवशंकर को ह्याँते करों तरँग को अन्त ।।
राम रमामिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त ८७

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आईई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूप्रयागनारायण

जीकीआज्ञानुसार उनाममदेशान्तर्गत पंडरीकतानिवासि मिश्रबंशोद्भव

बुधकृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृतचन्दनखम्भयुद्ध

वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥

चन्दन खम्भा का मैदान समाप्त ।।

इति ॥