सामग्री पर जाएँ

आल्हखण्ड/२३ बेलासती अन्त मैदान

विकिस्रोत से
आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ६०५ से – ६१६ तक

 

अथ पाल्हखण्ड।

बेला के सती होने के समय का युद्ध वर्णन ॥


सवैया ।।

भत्कन हेतु सवयं तनुधारि सदा बिपदा सुरसाधुहरी ।
हिरणाकश्यप दुःख दियउ तब रूपकियो नरसिंह हरी ॥
प्रह्लाद विभीषण औ हनुमान महानन में इन रेखपरी ।
अँबरीप औ अंगद की समता ललिते जगमें अब कौनकरी १

सुमिरन ॥


तुम्हैं बिनायक मैं सुमिरत हौं गणपति गणाध्यक्ष महराज ।।
बिघन हरण लम्बोदर स्वामी पूरण करो हमारे काज १
हे जगतारण भवभय हारण स्वामी एकदन्त महराज ॥
बिपति विदारण सब सुख कारण राखनहार जगतमें लाज २
तुमहीं ब्रह्मा औ विष्णू हो तुमहीं शम्भु सुरासुर काल ।।
तुम्हीं गोसइयाँ दीनबन्धु हौ स्वामी शिवाशम्भु के बाल ३

तुम्हैं मनावैं औ ध्यावैं हम गावैं सदा तुम्हारी गाथ ॥
यह वरपावैं गणनायक जी दर्शन देयँ मोहिं रघुनाथ ४
छूटि सुमिरनी गणनायक कै शाका सुनो शूरमन केर ॥
सत्ती होई बेला रानी ठानी युद्ध पिथौरा फेर ५

अथ कथाप्रसंग ।।


खम्भ आयगे जब चन्दन के बेला करन लागि अनुमान ॥
मोहबा दिल्ली के डाँड़े पर हमरो होय सती अस्थान १
यहै बिचारत मन धारत सो आरत हृदय भई अधिकाय ॥
तबलों लाखनि को सँग लैकै आये तहाँ बनाफरराय २
बेला बोली तब ऊदन ते मानो साँच लहुरवाभाय ॥
मोहबा दिल्ली के डाँड़े पर हमरो सरादेउ रचवाय ३
इतना सुनिकै ऊदन ठाकुर चन्दन तहाँ दीन पहुँचाय ॥
चारि चह्वद्दी के डाँड़े पर बेला सरा दीन रचवाय ४
कलउज मोहबे की फौजैं सब ऊदन‌ तुरत लीन सजवाय ।।
सरा रचायो जहँ बेला का सबदल दीन्ह्यो तहॉ टिकाय ५
जितनी रैयति परिमालिक कै देखन हेतु गई सब आय ।।
बेला रानी त्यहि औसर मा भूपण वसन सजे अधिकाय ६
को गति बरणै तहँ बेला कै पोड़श पूरकीन श्रृंगार ।।
लाश संगलै चन्देले की सरपर गई सनी त्यहिबार ७
गाहरिकारा ह्याँ दिल्ली मा राजै खबरि जनाई जाय ।।
खबरि पायकै पृथीराज ने अपनी फौज लीन सजवाय ८
को गति बरणै त्यहि समया कै मानो इन्द्र अखाड़े जाय ।।
आदिभयङ्कर के ऊपर चढ़ि मनमें शम्भु शिवापद ध्याय ९
चौंड़ा धाँधू बीर भुगन्ता लैकै कूच दीन करवाय ।।

भारी लश्कर महराजा का गर्जत चला समर को जाय १०
थोड़े अरसा मा महराजा आये सरापास नगच्याय ॥
बाजैं बाजा ह्याँ सत्ती के हाहाकार शब्दगा छाय ११
चला पिथौरा हाथी परते औ महराज कनौजीराय ।।
बंश चँदेले के जो होवै सो सर देवै आगि लगाय १२
जायँ नगीचे नहिऍ ऊदन अब हैॅ अकुलीन बनाफरराय ।।
सुनिके चातै पृथीराज की बोला तुरत लहुखाभाय १३
हमे आज्ञा है बेला के की सरदेवो आगिलगाय ।।
इतना कहिकै उदयसिंह ने दीन्ह्यो चिता तुरत दँदकाय १४
यह गति दीख्यो पृथीराज ने तुरतै हुक्म दीन फरमाय ॥
जान न पावैं मोहबे वाले सब के देवो मूड़ गिराय १५
हुकुम पायकै पृथीराज का चौड़ा धाँधू उठे रिसाय ॥
बीर भुगन्ता गर्जन लाग्यो मारन लाग तड़ाका धाय १६
सय्यद देवा ऊदन ठाकुर इनहुन खैंचि लीन तलवार ॥
को गति वरणै त्यहि समया कै लागी होन भड़ा भड़ मार १७
हौदा होदा यकमिल ह्वैगे घोड़न भिड़ी रानमें रान ।।
पहिया रथ के रथमा भिड़िगे तीरन भिड़िगे तीर कमान १८
मर मर मर मर ढालैं ब्वालैं खन खन तूण वाण चिल्लायँ ।।
सन् सन् सन् सन् गोली बरसैं कायर भागैं समर पराय १९
घम् घम् घम् घम् बजैं नगारा मारा मारा परै सुनाय ।।
झल्झल्झल्झल झीलम झलकैं नीलम रंग परेॅ दिखराय २०
चम् चम् चम् चम् तेगा चमक दमकैं छुरी कटारी भाय ।।
कोगति वरणै त्यहि समया कै अद्भुत समर कहा ना जाय २१
फिरै भुशुण्डा बिन शुण्डा के रूण्डा करैं खूब तलवार ।।

आल्हखण्ड । ६००

मुण्डन केरे मुड़ चोश भे श्री रुण्डन के लगे पहार २९ मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी धार ।। कायर भागे समर भूमि ते अपने डारि डारि हथियार २३ । भूरा सय्यद का मुर्चा भा दूनों लड़न लागि सरदार ॥ दूनों मारें तलवारी सों दूनों लेय ढाल पर वार २४ उसरिन उसरिन दूनों खेलें जैसे कुवाँ भरै पनिहारि ।। वार चूकिगा भूरा जवहीं सय्यद हना तुरत तलवारि २५ मूड़ विसानी सो भूरा के तुरते गिरा भरहराखाय ।। भूरा जूझयो जब खेतन में पायो तुरत भुगन्ता धाय २६ । सो ललकासो फिरि सय्यदको अब रण सावधान लैजाय ।। धोखे भूरा के मूल्यो ना अवहीं यमपुर देउँ दिखाय २७ इतना कहिके वीर भुगन्ता तुरतै लीन्यो तीर चढ़ाय॥ बँचि कमनिया ते मारत भा सय्यद लैगे वार बचाय २८ घोड़ बढ़ायो फिरि सय्यद ने लैकै गुर्ज पहूंच्यो जाय ।। वीर भुगन्ता को ललकारा क्षत्री खवरदार लैजाय २६ वार हमारी ते बचि है ना दोजख अवै देउँ पहुँचाय ।। इतना कहिके क्रोधित हैक सय्यद माखो गुर्ज धुमाय ३० वार बचाई बीर भुगन्ता फिरित्यहिखचिलीन तलवार । ऍचि के मारा वीर भुगन्ता जूझयो वनरस का सरदार ३१ सय्यद, जूझयो जब मुर्चा में तबचदि अयो कनौजीराय ॥ गंगा ठाकुर तिन पाछे करि आगे गयो तड़ाकाधाय ३२ चीर भुगन्ता औं गंगा का परिगासमर बरोबरि आय ।। लस पिथौरा ओ कनवजिया अडतसमर कहा नाजाय ३३ आदिभयङ्कर पर पिरथी है लास्वनि भूरी पर असवार । तेहेदारी की समता है बीरभुगन्ता तव मारत भा बेलासतीअन्तमैदान । ६०६ ५ तेहा राखे रजपूती का कीन्हे जंग केर श्रृंगार ३४ भाला बरछी दूनों लीन्हे दूनों लिये ढाल तलवार ॥ पाग बैंजनी शिरपर धारे कनउज दिल्ली के सरदार ३५ कलँगी सोहैं दोउ पगियन में दोउन हीरा करें बहार ॥ रूप उजागर सबगुण आगर कनउज दिल्ली के सरदार ३६ है समता राज काज व्यवहार ।। समता वय में नहिं लाखनिकी थोरी उमर केर सरदार ३७ गंगा मामा कुड़हरिताले तिनते कहा तहाँ ललकार ॥ मारो मारो अब जल्दीते मामा काह लगाई बार ३८ इतना सुनिकै गंगा ठाकुर अपनी बैंचि लीन तलवार ॥ गंगा लीन ढालपरवार ३६ . ऐचि सिरोही गंगामास तुरतै दीन्यो मूड़ गिराय ।। वीरभुगन्ता के जूझतखन धाँधू गयो तड़ाकाआय ४० अद्भुत समर कहा ना जाय। दूनों मारें तलवारी से दूनों ले बार बचाय ४१ ले कोऊ काहू ते कमती ना दोउ रण परा बरोवरिआय ॥ बार चूकिगे गंगा ठाकुर धाँधू मारा गुजे घुमाय ४२ परिग मस्तक सो गंगा के तुरतै गिरा भरहरा खाय ॥ गिरिगे गंगा जव हाथी पर तुरतै अटा कनौजीराय ४३ दोऊ लड़न लागिसरदार।। दोऊ मारै तलवारी सों दोऊ लेय ढाल पर वार ४४ दोऊ करें भड़ामड़ मार ।। भौरानंद पर धाँधू ठाकुर लाखनि भूरी पर असबार १५ दोज होदा यकमिल देगे दोऊ करें समर ललकार। धाँधू गंगा का मुर्चामा लाखनि धाँधू का मुर्चा भा कोऊ काह ते कमती ना आल्हखण्ड । ६१० छुरी कटारी भाला बरछी होवे कड़ाबीन की मार ४६ तीर तमंचा गुर्ज चलावें दोऊ समर शूर त्यहि बार ॥ वार चूकिगे धाँधू ठाकुर मारा कनउज के सरदार ४७ धाँधू जूझ्यो जब मुर्चा में आयो तुरत पियोगराय ।। आदिभयङ्करज्यहि दिशिदात्रै त्यहिदिशिहटतफौजसब नाय ४८ को गति बरणे पृथीराजे की नाहर समरधनी चौहान ।। ज्यहि दिशि दाबै समर भूमिमें त्यहिदिशिहोतजातमैदान४६ सुफना वोल्यो ह्याँ लाखनि ते श्री महराज कनौजीराय ।। आदिभयकर दावे आवे यहु महराज पिथौराराय ५० कोऊ सहायक अब तुम्हरो ना स्वामी आप एक यहिकाल ।। इत उत फिरिकै चहुँदिशि देखा नहिकोउदेखिपरै महिपाल ५१ कर आतमा की रक्षा नर धन औ स्त्री संग विहाय ॥ धन सों स्त्री की रक्षा कर यह माद नीति कीआय ५२ त्यहिते तुमका समुझाइत है ओ महराज कनौजीराय ॥ इतना सुनिक लाखनि बोले सुफना काह गये बौराय ५३ कहा. न माना चंदेलेका हटका मातु हमारी आय ।। अब नहिं भाग हम मुर्चा ते चहु तन धनीरउडिजाय ४ रही न देही रामचन्द्र के रहि नहिंगये कृष्ण महराज ॥ यशै इकेले वाकी रहिगा सो कस तजे समरमें लाज५५ रही न देही क्यहु मानुष की सबजग नाशवान दिखलाय।। त्यहिते हाथी जहें पिरथी का सुफना चलौ तहाँपर धाय ५६ प्राण निछावरि रण करि देवे तो यशरही जगत में छाय।। जो अब भागें समर भूमि ते कायर कहै लोक सवगाय ५७ सुनिके बातें लखराना की सुफना हाथी दीन बढ़ाय ॥ बेलासतीअन्तमैदान । ६११ आवत दीख्यो लखराना को बोल्यो तुरत पिथौराराय ५८ आवो आवो लाखनिराना हमरे संग मिलो तुम आय ॥ हमरी सरवरि को तुमहीं हो ओ महराज कनौजीराय ५६ नीच बनाफर उदयसिंह है तासँग काहगयो बौराय ।। सोलह रानिन के इकलौता नाहक प्राण गँवायो आय ६० अवै मामिला कछु विगरा ना मानो कही कनौजीसय ॥ हमै शोच है इक कनउज का की निरंवंश राज है जाय ६१ बृद्ध बँदेले जयचंदराजा मानो कही कनौजीराय । सात पुत्र रण खेतन जुझे हमखोवंशनाश भय आय३२ अस नहिं चाहँ जस हम बॅगे मानो कही कनौजीराय ।। उमिरि तुम्हारी अतिथोरी है कच्ची बुद्धि गयो बौराय ६३ दोष हमारो सब कोउ देहें बालक हना पिथौराराय ।। त्यहिते तुमका समुझाइत है कच्ची बुद्धि कनौजीराय ६४ हमरी तुम्हरी कछु अटनस ना जो रए प्राण गँवायो प्राय ।। काह विगारा हम जयचंद का कची बुद्धि कनौजीराय ६५ सुखनहिंदीख्यो कछु दुनियाका नाहक प्राण गँवावो आय ॥ अव नहिकहैं कछलाखनिहम कच्ची बुद्धि कनोजीराय ६६ ताहर नाहर की समता हो कबी बुद्धि गयो बौराय ।। जो नहिं आवो हमरे दल में तो अब कूच जाउकरवाय ६७ पारस पैही जो दल ऐही कनउज गये प्राण रहिनाय।। इतना सुनिकै लाखनि बोले मानो कही पिथौराराय ६८ तुम्हरी बातें सब साँची हैं सोहम जानि दीन विमराय॥ पै अब बदला संयोगिनि का लेवे समर भूमि में आय ६६ यामें संशय कबु नाही है मानो साँच पियोसराय ।। ८ आल्हखण्ड । ६१२ घर घर दिल्ली को लुटवे तब छाती का डाह बुताय ७० इतना कहिक लाखनिराना तुरतै लीन्यो तीर उठाय ।। खेंचि कमनियांते छाँड़त भे गौरा पारवती को ध्याय ७१ श्रावत दीख्यो शर लाखनिको राजा काटि तड़ाका दीन । बड़े क्रोधसों पृथ्वीराजा दूसर वाप हाथमें लीन ७२ शर संघान्यो बड़े वेगसों मारयो तुरत पिथौराराय ।। खण्डन कीन्ह्यो त्यहि लखराना आपो मास्यो तीर चलाय ७३ ताहि पिथौरा खण्डन करिक यकस मारे वाण रिसाय॥ तिनको खण्डन लाखनिकीन्यो राजा गये मनै शर्माय ७४ यहु महराजा कनउज वाला आला वंश चंदेलाराय॥ धेला एको ज्यहि डर नाहीं हाथिन हेला दीन गिराय ७५ बड़ बड़ मेला रजपूतन के रणमा लाखनि दीन हाय ॥ फूल चमेला औ वेला जस तस अलवेला कनौजीराय ७६ उ सुगंधैं जस बेला में - तस यशगयो जगतमें छाय ।। बाण लागि गा लखराना के होदा उपर गये मुरझाय ७७ जूझि कनौजी गे खेतन में सुमिरिक मित्र बनाफरराय ।। कड़के धड़क औ फड़के अति मेघा आसमान थहराय ७८ प्रलयकाल की बेला आई जब मरिगये कनौजीराय ॥ ऐसे अशकुन के देखत खन ऊदन गये सनाकाखाय ७६ चित्त न लागै कछु मुर्चा में व्याकुल सुमिरि कनौनीराय।। यहां चौड़िया धरि धरि धमकै ऊदन लेवें वार वचाय ८० हाथ चौड़िया पर छाँई ना व्याकुल चित्त रहे अकुलाय॥ तहिले पावन इक चौड़ाते लाखनि हाल बतावाआय ८१ मुना बनाफर उदयसिंह यह की मरिगये कनौजीराय ।। बेलासतीअन्तमैदान । ६१३ ' ऊदन बोले तब चौड़ा ते मानो कही चौडियाराय ८२ मरिगे लाखनि जो मुर्चा में तो नहिं जियें बनाफरराय ॥ बिना इकेले लखराना के मरिहैकौनसाथक्यहिआय८३ -३ मित्र कनौजी अस मरिगे जब जी है कौन समर तब भाय ।। मारु चौंड़िया अब जल्दी सों हमरोशोखमोखमिटिजाय ८४ इतना कहिकै उदयसिंह ने तुरतें बैंचिलीन तलवार । ऍड़ लगावा रसबेंदुल के हौदा उपर गयो त्यहिवार ८५ काटि महावत औ हाथी को आपन शीश दीन पकराय ।। काटि शीश तब चौड़ा लीन्ह्यो औधड़गिराधरणिमें आय ८६ ऊदन देवा जगनायक जी सब कोउ मरे समर में आय ।। चौड़ा पिरथी आल्हा इन्दल रहिगे शेष चारि ये भाय ८७ ऊदन जूझे समरभूमि में आल्हा चले तडाका धाय ।। देवी शारदा का वरदानी अम्मरकहै लोक सबगाय ८८ सुना बनाफर जब कानन ते की मरिगये लहुस्वाभाय ।। यकरि बनाफर तब चौंड़ा को मर्दन कीन देह में लाय ८६ मीजि माँजिकै त्यहि चौंडाको आगे हाथी दीन वढाय ॥ आदिभयङ्कर जहें ठाढ़ो थो आल्हा तहाँ पहूचे जाय ६० पकरिक वाहू तहँ पिरथी की आल्हा बाँधिलीनत्यहिठायें ।। नील डरायो नृप आँखिन में बंधन तुरत दीन छुड़वाय ६१ खबरि मोहोवे औं दिल्ली गै की रण बचे तीन जन भाय ।। आल्हा इन्दल पिरथी राजा और न चौथकऊदिखलाय ६२ सुनवाँ फुलवा द्यावलि माता सुनते चलीं तड़ाकाधाय ।। सुनवॉ बोली समर भूमि में आल्हा डारयो बन्धु मरायः३ आल्हा मुखते सुनि सुनवाँ के मनमा ठीक लीन ठहराय॥ आल्हखण्ड। ६१४ धर्म न रहै क्यहु कलियुगमा सब चिन धर्म जगतलैजायः४ यह सोचिकै आल्हा ठाकुर इन्दल बोले बचन सुनाय॥ माता तुम्हरी नाम हमारो लीन्यो सुनो बनाफरराय ६५ दुर्गति होई अब कलियुग मा ताते देय पूत वतलाय ।। करो तयारी बन कजरी की अपनो मया मोह विसरायः६ इतना कहिकै आल्हा ठाकुर हाथी चढ़े तड़ाका धाय ।। इन्दले बैठे फिरि घोड़े पर, साथै कूच. दीन करवाय ६७ इन्दल इन्दल के गुहरायो सुनवाँ चली पछारी धाय ।। पूंछ पकरिकै पशब्दा के सुनवाँ गजैघसीटतिजाय ६८ ऐंचि खड्ग को आल्हा ठाकुर तुरतै दीन्ह्यो पूँछ गिराय॥ विना पूँछ का पचशब्दा फिरि कजरी बने पहूँचा जाय ६६ रही न आशा क्यहु जीवनकी सबहिन दीन्ही देहजराय ।। प्राण आपने नारी तजि के सुरपुर गई तड़ाका धाय १०० सुनवाँ फुलवा चित्तररेखा द्यावलिसहित मरींसबआय ।। मोहबा दिल्ली दउ शहरन में रॉडन अँडभये अधिकाय१०१ छाय उदासी गै दोऊ दिशि विपदा कही बूत ना जाय ॥ रानी मल्हना मोहने वाली मनमासोचिसोचिरहिजाय१०२ तुम्हें विधाता अस चाही ना जैसी विपति दीन अधिकाय॥ दुःखित ढकै महरानी फिरि पारस पत्थर लीन उठाय १०३ जाय सिरायो सो सागर में चन्दन अक्षत फूल चढ़ाय।। धूप दीप ओं कीन आरती मेवा मिश्री भोग लगाय१०४ हवन ब्राह्मण को भोजन दे बोली हाथ जोरि शिरनाय ।। जो कोउ राजा हो मोहवे में पारस रह्यो तासु घरआय १०५ इतना कहिके रानी मल्हना महलन फेरि पहूँची भाय ।। बेलासताअन्तमैदान । ६१५ ग्यारह लंघन परिमालिक करि सुरपुर गये तडाका धाय १०६ सत्ती कैकै रानी मल्हना अपनो दीन्यो प्राण गँवाय ॥ मोहवा दिल्ली औ कनउज में मानोंगिरी गाजभरराय १०७ चने चबुतरा बहु सत्तिन के गैरन औरन पर दिखाय ।। बड़ बड़ राजन की महरानी रणमाखाकवटोरेनिआय १०८ बरे बचाये महभारत के या बंश अस्त भे भाय ।। जेठ चतुर्दशि वनइस छप्पन अबलों सुदी पक्ष दर्शाय १०६ ललिते आल्हा को पूरण करि पूरणमासी चहें अन्हाय ॥ पै यह वादा है कलियुग का सोनहिं ठीकठाक ठहराय ११० आशिर्वाद देउँ मुंशी सुत जीवो प्रागनरायण भाय ।। हुकुम तुम्हारो जो पावत ना ललितकहतकथाकसगाय१११ रहे समुन्दर में जबलों जल जबलों रहँ चन्द औ सूर॥ मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहीं सदा भरपूर ११२ माथ नवाबों पितु माता को जिनबल पूरि भई यह गाथ ।। मालिक स्वामी अरुप्सरबस तुम जगमें एक रामरघुनाथ ११३ कृपा न करतेउ रघुनन्दन जो तो यह पूरि करत को गाथ ।। माता पितुमा सचराचर में व्यापकतुम्हीरामरघुनाथ ११४ तुम्ही रवैया हो दुर्वल के स्वामी रामचन्द्र महराज ।। कृपा तुम्हारी जब जस होती तवतस होत जगतगेंशज ११५ अब महरानी सुखदानी जो हमरी माननीय शिरताज ।। सब गुणखानी विक्टोरियारानी राखें सदा जगत में लाज ११६ जिन बल छाजत बल हमरो है राजत राजनीति नितराज ॥ जोनहिं अनुचित चल दुनियामें अब महरानी सब सुखदानी युग युगं अटलकरें यह राज ।। 4 . ram 3. आल्हखण्ड । ६१६ जो नहिं अनुचितकरुदुनिया में तौनहिंहोयसजायहिराज ११८ इन रजधानी में रहिकै मैं कबहुँनकष्ट सहा क्यहुकाल । पिता पितामह औ मोसंयुत कबहुँनपश्यनविपतिकेजाल ११६ चोर छिनारन बदमासन की पिंडरी थहर थहर थर्राय ।। मोछा टेवें सज्जन बैठे नहिंकमसातलकभन्नाय१२० यह सब गावत हैं सज्जन मन नित प्रति बना रहै यह राज ।। जीवें रानी महरानी ई जिनवलसुजनमुखीसवसाज १२१ इनअसिमाता अब मिलिहैं ना यह मन नित्त लीन ठहराय ।। मिलें प्रवन्धो असकर्ता ना जसकछुआजकाल्हदिखलायँ१२२ यही कथा अब पूरण करिक ललिते करत मंगलाचार ॥ करों वन्दना मैं तुलसी की हुलसीजासु काव्यसंसार १२३ ज्यहि अवलोकन के करतखन मनके छूटि जात सब ताप ।। सोई प्यारी तुलसी गाथा ललितेकीनबहुतदिनजाप १ खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डा गड़ा निशाको आय ।। तारागण सब चमकन लागे सन्तनधुनी दीन परचाय १२५ पूरि तरंग यहाँ सों द्वैगै तव पद सुमिरि भवानीकन्त । राम रमा मिलि दर्शन देव इच्छायही मोरिभगवन्त १२६ इनि श्रीलखनऊनिवासि(सी,आई,ई)मुशीनवलकिशोरात्मज बाबूमयागनारायण जीकी आज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पॅडरीकलांनिवासि मिश्र बंशोद्भव बुध कृपाशङ्करमनु पण्डितललिताप्रसादकृत वेलासत्ती व्याख्यावर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १ ॥ जासतीअर्थावतर्वआल्हखण्डसमाप्तशुभमस्तु । इति ॥