इतिहास तिमिरनाशक 2/लार्ड कार्नवालिस

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लार्ड कार्नवालिस

सन् १७८६ में लार्ड कार्नवालिस गवर्नर जनरल मुकर्रर १७८६ ई॰ हुआ। और यहां आया।

चिवाङ्कोड्कं के राजा से अंगरेज़ों का अहेदनामा होगया था इसीलिये जब सन १७८९ में टीपू ने नाहक तकरार बढ़ा कर १७८६ ई॰ चिवाड्कीड्क पर चढ़ाई की। अंगरेजों को राजा के बचावकेलिये टीपू पर चढ़ाई करनी पड़ी। लार्ड कार्नवालिस हैदराबाद के नव्वाब निज़ांमुलमुलक और पेशवा से आपस की मददकाकोल करार ले कर खुद मंदराज गया और टोप के मुल्क मैसूर पर चढ़ाई कर दी। बम्बई से भी कुछ अंगरेज़ी फौज आयीं थी


[ ३० ]ज़िले ज़िले घाटे घाटे और क़िले क़िले लड़ाई होने लगी।

जब टीपू को कई मज़बूती में मशहूर पहाड़ी क़िले सर्कार के क़ब्जे में आ गये। और सर्कारी फ़ौज लड़ती भिड़ती फ़तह के १७९२ ई० निशान उड़ाती सन् १७९२ में टीपू की राजधानी श्रीरंग पट्टन के अंदर जा पहुंची और क़रीब था कि क़िले पर जिस में टीपू घुसा हुआ था हमला करे। टीपू ने अपनेदोनों लड़कोंको ओल में लार्ड कार्नवालिस के पासभेज दिया। और तीनकरोड़ तीस लाख रुपया लड़ाई का खर्च और आधा मुल्क अंगरेज़ और नवाब और मरहठों को दे कर आपस में सब के साथ सुलह रखने का अ़हदनामा लिख दिया। उस आधे मुल्क से जो टीपने दिया। अंगरेजोंके हिस्से में मलीबार कुड़ग दिंदीगल और बारह महाल आया।

१७९३ ई० सन् १७९३ में अंगरेजों की फ़रासीसियों से फिर लड़ाईछिड़ जाने के सबब पटुच्चेरी वगैर: उन के इलाकों में सर्कार ने अपना क़ब्ज़ा कर लिया। लार्ड कार्नवालिस इंगलिस्तान को सिधारा बंगाले और बनारस में जमीदारों के साथ इस्ति- मरारी बंदोबस्त इसी ने किया। जब तक रहेगा उसकानाम इस देस में नेकी के साथ बना रक्खेगा। लार्ड कार्नवालिसकी जगह पर सरजान शोर जो कोसलका अव्वलमिम्बरथागवर्नर जेनरल हुआ।

१७९५ ई० सन १७९५ में कर्नाटक का नव्वाब मुहम्मदअली मरगया। उस का बड़ा बेटा उमदतुल उमरा उस को जगह पर बैठा।

१७९७ ई० सन् १७९७ में नव्वाब वज़ीर आसिफुद्दौला मरगया। वज़ीर-अली उसकी जगह पर बेठा। लेकिन पीछेसे सर्कारको मालूम हुआ कि वह उस का असलीलड़का नहीं है तब वज़ीरअ़ली को मस्नद से उठाकर आसिफुद्दौला के भाई स़आदतअलीखां को मस्नद पर बिठाया। सआदतअलीखां ने अंगरेजोंकोअवध मैं दस हज़ार फौज रखने के लिये छिहत्तर लाख रुपया साल खर्च देने का अहदनामालिख दिया और इलाहावादका क़िला भी उन के हवाले किया। [ ३१ ]अर्ल आफ़ मार्निगटन यानी मार्कि्कस आफ़ विलिज़ली सन् १७६८ में सरज़ान शोरने इंगलिस्तान जाकर लार्डटेन १७९९ ई०

मौथका ख़िताब पाया। और यहां उसकी जगहपर अर्लाआफ़- मीर्निगटन जो फिर पीछे से ख़िताब पाकर मार्किस आफ़ विलिज़ली कहलाया गवर्नर जेनरल होकर आया।

अगर्चि टीपू ने मुश्किल के वक्त़ अंगरेज़ों से सुलह करलीं थी। पर लागकी आगसे उसकी छाती बराबर जलती रही। मार्निगटन को साबित होगया कि वह फ़रासीसियों से ख़त कितावत रखता है। और उनकेमुल्कसे मदद मंगानेकीफ़िक करता है। यह बड़ा ज़बर्दस्त गवर्नर जेनरल था। झट पट मंदराज में फ़ौज जमा होनेका हुक्म दे दिया। और टीपूको लिख भेजा कि या तो मलीबार की तरफ़ समुद्र कनारके सब इलाक़े दे कर और फ़ौज जमाहाने में जो ख़र्च पड़े उसे चुका कर आगे को अ़ह्द नामा लिखदो कि फरासीसियों से कभी किसी तरहका कुछ सरोकार न रक्खोगे जो फरसीसी तुम्हारी अमलदारी में हों तुर्त निकाल बाहरकरो और सारी रज़ीडंट को अपने यहां रहनेको जगह दो। नहीं तो सर्कार को अपनादुश्मन समझो। जब टीपूने इसका कुछ जवाब न दिया मंदराज और बम्बई दोनों तरफ सेअंगरेज़ी फ़ौज ने उस के मुलक पर चढ़ाई की। हैदराबाद के नवाब को फ़ौज भी अंगरेजों के साथ थी। पेशवा सेंधिया की बहकावट से अलग रहा। श्रीरंगपट्टनसे बीसकोस इधर अंगरेज़ोंको टीपूमेलड़ाईहुई टीपू शिकस्त खाकर पीछेहटा‌। और यहसोच कर कि अंगरेज़ी फ़ौज उसी राह से आवेगी जिस से पहले आयोथो बिलकुल घास और चारा जो उसमेंथा नास करवादिया। लेकिन जब सुना कि अंगरेज़ों ने दूसरी राहली उसका जी बिल्कुल टूट गया। और अपने सिपाहियों से साफ कहा कि अब मेरे दिन पान पहुंचे उन्होंने यही जवाब दिया कि आप के साथ हम भी कट मरेंगे। निदान अंगरेज़ोंनेजाकर श्रीरंगपट्टन घेर लिया नबाब ओर पेशवा की फ़ौज तो तमाशा देखती थी लेकिन
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गवर्नर जेनरल सिपाहियों का काम करता था। चौथी मई को १७९९ ई० क़िलेपर हमलाहुआ। और अंगरेज़ी निशान फहराया। टीपूकी लाश हाथ लगी लड़के उसके हाज़िर होगये ९२९ तोंप एक लाख बंदूक़ साज़ सामान समेत ओर एक करोड़ एक लाख के करीब नक़द और जवाहिर अंगरेज़ों के हाथ लगा। क़ाइदे के बमूजिब टीपूका सारामुल्क सर्कार और नव्वाब के दर्मियान बटजाना चाहिये था। लेकिन गवर्नर जेनरल ने मुनासिब न समझा कि नव्वाब को अमल्दारी ज़ियादा बढ़ाई जाय इसी लिये तो आपस में बांट लिया। और बाकी मेसूर के पुराने राजा के वारिसों में से जिसे हैदरअली ने वहां से बेदखल कर दिया था चुनकर उसके हवाले किया। और शर्त यह कर ली कि हिफाज़त के लिये फ़ौज उसमें सारी रहेगी खर्च साल लाख साल ज़िम्मे राजा के। और जब ज़रूरतपड़े तो इन्तिज़ाम भी मुल्कका सकार अपने तौर पर करें।

तंजोर का राजा तुलजाजी लावल्द होने के सबब एक दस बरस के लड़के सवाजी को गोद लेकर मर गया था उसके १८०० ई० भाई अमरसिंह ने गट्टीका दावा किया। सर्कार ने बहुततहकात के बाद गट्टी संवौजीकोदी लेकिनमुल्क की आमदनी से उसके लिये एक अच्छा सा पिंशन मुकरर करके दीवानी फोजदारीका इखतियार आपले लिया।

सूरत के नवाब मरने के पर यही हाल वहांका भी हुआ और कर्नाटक के नवाब उमदतुलउमरा के मरने पर जब उसके बेटे अलीहुसेन ने इन शीसे इंकार किया। तोउसके १०१ ई० चचेरे भाई अज़ीमुद्दीला को इन्हीं शतीपर नव्वाब बमादिया।

वज़ीरअली अवधसे निकाल कर बनारस में रक्खागयाथा।- जब मालूम हुआ कि काबुल के बादशाह जमांशाह से खत किताबत रखता है और फसाद उठाया चाहता हे ता से कलकते जानेका हुकममिला। वह इसबात से जलकरएकदिन सुबह को चेरी साहिब अजंट के यहां जब चायपीनेको गया। बातों ही बातों में उन्हें काट डाला मामान कानबे सहित
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और ग्रेहम साहिब कोभी क़त्ल किया। फिर वहां से झपट कर डेविस साहिब जज की कोठी * पर पहुंचा। यह कोठी दुमंजिली है साहिब एकबछांं लेकर इस जवांमर्दीसे सीढ़ी पर आ खड़े हुए कि कोई कदम न बढ़ासका। इसी अर्से में फ़ौज आ गयी डेविस साहिब बचगये वज़ीरअली भागा जयपुर चला गया। वहां के राजा ने उसे पकड़ कर अंगरेज़ों के हवाले कर दिया। लेकिन इतना करार करलिया। किन वह मारा जावे न उस के पैर में बेड़ी डाली जावे। अंगरेज़ों ने कलकत्ते ले जा कर क़िले में ऐसी एक कोठरी के अंदर क़ैद किया कि उस को पिंजरा ही कहना चाहिये†।

सआ़दतअ़लीखां फ़ौजखर्च न अदा कर सका इसी लिये सर्कार ने फ़ौजख़र्च के बदले दुआबे का मुल्क और रुहेलखण्ड उस से ले लिया। नया अ़हदनामा लिख गया कि नवाब रज़ीडंट की सलाह मुताबिक अपने मुल्क का इंतिज़ाम दुरुस्त करे ओर इस इंतिज़ामछे फर्रुख़ावाद का नवाब भी सर्कारी पिंशनदार बन गया।

टीपूपर फ़तह पानेके इनाममें गवर्नर जेनरलको मार्किस काखिताबमिला इसी अर्समें फरासीसियों के हमलेसे मिसर को १८०२ ई० बचाने के लिये गोगेंके साथ कुछ हिंदुस्तानी फ़ौज भी यहांसे जहाज़ों पर भेजी गयी। और बड़ा नाम पैदा कर आयी।

पेशवा अब तक गवर्नर जेबरल के कहने से बाहर रहा था लेकिन जब जसवंतगव हुल्कर ने बड़ी धूम धाम से उस पर चढ़ाई की तो उस ने घबरा कर गवर्नर जेनरल के कहने बजिब इस बात का अहदनामा लिख दिया कि किसी कदर ६००००), सारी फ़ौज उस के मुल्क में रहा करे। और उसका


यह वही काठी है जो अब महाराजाधिराज काशी नरेश बहादुर की है और नंदेसर को कहलाती है।

†सन् १८५२ ई० में हमने देखी थी लेकिन अब कुछ तोड़ फोड़ होकर नयी इमारत बन जाने के सबब पता जाता रहा हम जो क़िले में गये कोई बतला न सका। [ ३४ ]
ख़र्च उसी के मुल्क से लिया जावे। इधरतों यह अ़हदनामा लिखा गया। उधर पूना के बाहर हुल्कर से शिकस्त खाकर पेशवा को समुद्र की तरफ़ भागना पड़ा। अंगरेज़ोंने उसे अपने जहाज़ में पनाह दी ओर फिर बहुत सी फौज इकट्ठा करके १८०३ ई० पूना में पहुंचाया। हुल्कर ने सारी सिपाह का मुक़ाबला न किया अपने मुल्क को चला आया। गवर्नर जेनरल ने बहु- तेरा चाहा कि पेशवा की तरह सेंधिया और बराड़ यानी नागपुर के राजा से भी अ़हदनामे हो जावें लेकिन जब देखा कि यह लोग सीधी तरह से न मानेंगे तो अपने भाई जेन- रल विलिज्ली को जो फिर पीछेसे ऐसानामी ईगलिस्तान का कमांडर इनचीफ़ ड्यूक आफ़ वलिंगटन हुआ दखन से और लार्ड लेक कमांडर इनचीफ़ को उत्तर से इन दोनों के मुल्क पर चढ़ाई करने का हुक्मदिया दखन में अहमदनगर सार्कारी फ़ौज के हाथ आजाने से गोदावरी पार सँधिया का बिल्कुल अ़मल जाता रहा। और उसी महीने में भड़ोंच भी सर्कार के कबज़े में आ गया। इधर लार्डलेक ने क़न्नौज से कूच करके अ़लीगढ़ में सेंधिया की फ़ौज को जो पोरन साहिब फरासीसी के तहत में थी शिकस्त देकर दिल्ली की तरफ कदम बढ़ाया। 'पोरन सेंधिया की नौकरी छोड़ कर अंगरेजों की हिमायत में चला आया। दिल्ली में भी सेंधिया को फ़ौज एक फ़ौज रासीसी की तहत में लड़ी। और तीन हज़ार आदमी काम आने के बाद खेत छोड़ भागी। यहाँ लार्डलेक ने नाम के बादशाह अंधे शाहआलमसे मुलाक़ात को वह एक फटे पुराने छोटेसे शामियाने के नीचे बैठा था। लार्ड लेक को बहुत लंबा चौड़ा खिताब इनायत किया और उस बेचारे के पास देने को बाकी क्या रहा था। निदान कर्नल अकटरलोनी साहिब को जिन्हें अक्सर यहां वाले लोनी अख़तर भो कहते हैं कुछ सिपाहियों के साथ दिल्ली में छोड़ कर लार्ड लेक ने आगरा मरहठों से जालिया और फिर लसवारी *मैं पहुंच कर मरहठों को फ़ौज


  • या, लेसवाड़ी आगरे से ७३ मील वायुकोन है। [ ३५ ]
    तो ऐसी भारी शिकस्त दी। कि सात हज़ार मार गये और

दो हजार कैद में आये गोया सैंधिमा की कमर तोड़ डाली। उधर दखन में सार्कारी फ़ौज ने अहमदनगर लेने के बाद असौई की लड़ाई में मरहठों को बड़ी भारी शिकस्त देकर बुर्हानपुर और असीरगढ़ का मशहूर क़िला ले लिया। और फिर अरगांव की लड़ाई जीतकर और माविलगढ़ का मज़बूत किला काबले में लाकर नागपुर के राजा को बाई को पचा दिया। निदान नागपुर के राजा ने कटक का इलाका दे कर सर्कार से सुलह कर ली और साथ ही सेंधिया ने भी अहमद- नगर और भड़ोंचसे वस्त्रबर्दरहोकर अ़हदनामा लिखदिया कि फिर कभी किसीफ़रासीसीको नौकर न रक्खे। पेशवाकोबुंदेलखंड पर दावा था इस लिये सर्कार ने वह इलाके जो दखन ओर गुजरात में उस से पाये थे बुंदेलखंड के बदलउसे लौटादिये।

अब ख़ाली एक जसवंत व हुल्कर इंदौर का राजाबाकी १८०४ ई० रह गया। कि जिस ने सर्कार के साम्हने सिर नहीं वह अक्सर सारी इ़लाकों को लूटा किया। और कोईवकील भी अपनी तरफ से नहीं भेजा। इस लिये उसपर चढ़ाई हुई पहले कुछ थोड़े से सिपाही कर्नल मानसन साहिब के तहतक्षमें उस के मुकाबले को गये और टोंक का क़िला दार्वाज़ा उड़ा कर फतह कर लिया लेकिन मुकंदरे के घाटे में यह सारी फ़ौज का टुकड़ा धोखे में आ कर बेतरह हुलकर को फ़ौजसे घिर गया। और बड़ी बड़ी मुश्किलोंसे वहांसे निकलकरलड़ता भिड़ता गर्मी और बरसात के सबब सैकड़ों तकलीफें उठाता और नुकसान सहता तीनतेरह हो कर आगरेपहुंचा। हुलकर कूब फूला। अब उसको शेखी का क्या ठिकाना था। समझा कि जो हूं। में ही हूं। बोस हज़ार सिपाह और एकसोतीस तोपों से दिल्ली का शहर जा घेरा वहां सर्कारी फ़ौज कुलपाठ थी और तोप ग्यारह पर दिल्ली के रज़ीडंट अफरलोनी ने इसी मुट्ठी भर फोज से खूब मरहठों के दांत खट्टे किये। नौ दिन सिर पटक कर आखिर चल दिये। [ ३६ ]हुल्करकी बहादुरी भागने में थी नामही इन का मरहठा है। यानी मारना और हट जाना किसी ने हुल्कर से पूछा था कि आप का राज कहाँ है जिसके छीनने का हम उपाय करें उसने जवाब दिया कि उतनी ज़मीन जिस पर मेरे घोड़े का साया पड़ता है। अगर मक़दूर हो। आओ छीन लो। निदान लेक तो इस आर्जू में था कि किसी तरह उस से दो चार हो तो फिर तमाशा दिखला दे। ओर वह इस के नाम से हवा होता था यहाँ वाले अक्सर अपनी बेवकूफ़ी से इस भगोड़े लुटेरेको बीर समझ कर जीते जी मन्नत की दहेड़ियाँ चढ़ाने लगे थे। एक दिन लेक ने चौबीस घंटे में तीस कोस का धावा मार कर फ़र्रुख़ाबाद के पास इसेजा दबाया। और उस लड़ाई में कम से कम तीन हज़ार आदमी उस के मारे गये लेकिन वह हाथ न लगा डीग की तरफ़भाग गया। डीग भरतपुर को अमल्दारी में है भरतपुरके जाट राजा सूरजमल के बेटे रंजीतसिंह ने हुल्कर को पनाह दी। इस कसूर की उसे भी, सज़ा दीजानी मुनासिब समझी गयी। डीग का क़िला लेक ने फ़तह कर लिया। और जो कुछ उस में था अपनी फौज़ को बांट दिया।

१८०५ ई० तीसरी जनवरी को लेक ने भरतपुर घेरा नवीं को हमला किया लेकिन जब ख़ंदक़ के कनारे पहुंचे। तो मालूम हुआ कि पानी छाती भर गहरा है आदमी बहुत काम आये। इक्कीसवीं को दूसरी तरफ़ से हमला किया लेकिन वहांख़ंदक़ चौड़ी इतनी थी कि पुल जो बना लाये थे छोटा पड़ा। और जब सीढ़ी जोड़ कर बढ़ाना चाहा पानी में गिर पड़ा। इस में भी बहुत आदमी काम आये बाईसवीं को तीसरी तरफ से हमला किया हिंदुस्ता हसिपाही ख़ंदक़ पार हो कर दीवार पर चढ़ गये। लेकिन गोरों ने उस वक्त साथ देनेसे इन्कार किया इस लिये उन्हें भी लौटआना पड़ा ८९४ आदमी खेतरहे। दूसरे दिन लेकने उन गोरों को जिन्होंने उदूलहुक्मी की थी बहुत शर्मदाकिया उन्होंने गै़रतमें आकर बड़ेज़ोर शोरसेचौथा
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हमला किया लेकिन इस अ़र्से में क़िलेवालों ने बुर्ज और दीवार की मरम्मत कर ली थी। राह न मिली। हज़ारसे ऊपर आदमी, मारे गये। निदान इन चार हमलों में तीन हज़ार से ऊपर सर्कारी फ़ौज का नुकसान हुआ लोग थके मांदे और बे दिल होगये। गोला बारूद भी बाकी न रहा। रसदका सामान खर्चमें आ गया। नाचार लेक की फ़ौज हटानी पड़ी। यह एक ही क़िला है कि जिस के साम्हने से किसी सबब से भी कभी सारी फ़ौज हटी। हमने भरतपुरवालों की जुबानी सुनाहै कि लड़ाई के वक्त यह राजा रंजीतसिंह दोहर ओढ़े ओर हाथमें लट्ठ लिये क़िले की दीवारोंपर घूमता था और गोलंदाज़ और सिपाहियों से यही कहता रहता कि भाई “किल्ला तिहारो ही है और जब वे कहते कि आपयहाँ से हटजायें गोले ओले की तरह बरस रहे हैं तो जवाबदेता कि "भय्या जाके नामकी चीठी भगवान के घर से वामें बंधी; आवतु है वाही को गोता लगतु हे" और जब सुना कि लेक ने फ़ौज हटाली। बड़ी दूरंदेशी की अपने सब सर्दारों को जमा करके कहा कि भाइयो यह हम सब को ताकत न थी कि अंगरेज़ों को हटा सके यह निरी ईश्वर की कृपा है कि मेरी बात रह गयो। पर अब मुनासिब यह है कि हुल्फर से कह दो किसी तरफ़ को राह ले मेरा बता नहीं कि अंग- रेजों के दुश्मन को पनाह दूं और अपने लड़के कुंवर रणधी- रसिंह को किले की कुञ्जी देकर लेक के पास भेज दिया लेक भरतपुर वालों की बड़ी ख़ातिदारी को राजाने बीस लाख रुपया लड़ाई का खर्च अदा करने का वादा किया। लेक ने सुलहमामे पर दस्तख़त कर दिया।

लार्ड विलिज़्ली के इस भारी मंसूबे की क़दर कि हिंदु- स्तानी फ़सादी रईसों को ज़ेर करके यकबारगी झगड़े फ़साद को जड़ मिटादे। और सारे मुल्क में अमन चैन जमा दे इंगलिस्तान में न हुई कम्पनी के शरीक आख़िर सोदागर थे। लड़ाई के ख़र्च से घबरा गये। इस बड़े नामी गवर्नरजेनरला
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का इस्तिफा मंज़र कर लिया। और लार्ड कार्नवालिस को जो सन् १७६३ में इस उहदे से इस्तीफ़ा देकर गया था फिर गव- र्नर जेनरल मुक़र्रर कर के कलकत्ते को रवाना किया। लार्ड कार्नवालिस की राय मार्कस विलिज़्ली से बिल्कुल बर्ख़िलाफ़ थी। बल्कि हम तो यही कहेंगे कि उस मालिक पैदा करने- वाले की राय के भी बर्ख़िलाफ़ थी। क्योंकि मार्किस विलिज़्ली तो यहां के इन फसादी रईसों को ज़ेर कर के अखण्ड राज अपनी सर्कार का जमाना चाहता था। और लार्ड कार्नवालिस इन्हें बचाना बल्कि अक्सर इलाके जो सर्कारी तहतमेंआगये थे उम को भी लौटा देना। कौन जाने यही सबब था कि तीसवीं जुलाई को तो वह कलकत्ते में पहुंचा। और पांचवीं अक्तूबर को ग़ाज़ीपुर में इस दुनियां से चलबसा। मक़बरा इस का वहां देखने लाइक है सरजार्ज बार्लि जो उस वक्त कौंसल के अव्वल मिम्बर थे गवर्नर जेनरल के उहदे का काम अंजाम देने लगे। और वही फिर उस उदे पर बोर्ड आफ कंट्रोल की मंजूरी से मुक़र्रर हुए।

सेंधिया से फौरन सुलह हो गयी और हुल्कर से पंजाब में व्यासा के कनारे जहाँ वह सिक्खों से मदद लेने को गया था अहदनामा लिखवा लिया। जयपुर और बूंदी पर से कि वहां के राजा सार के वफ़ादार दोस्त थे हिफाज़त काहाथ बिलकुल खींच लिया और मरहठों का गोया इन्हें शिकारबना दिया। जयपुर के वकील ने खूब कहा था। कि सर्कार ने अपना ईमान अपनी जरूरत के ताबे कर लिया।

१८०६ इसी अर्स में कहीं मंदराज के कमांडर इनचीफ ने कोई हुक्म इस ढब का जारी कर दिया था कि पल्टन के सिपाही परेड पर कान में बाली पहन कर या माथे में तिलक लगाकर न जाया करें। और पोशाक भी कुछ नये किस्म को पहनें। सिपाहियों ने यह झूठा शुबहा करके कि सकारकोहमारेधर्म में दखल देना मंजूर है बिल्लूर के किले में जहाँ टोपू का घर बार नज़र्बन्द रक्खा गया था। अंगरेज़ी अफ़सर और गोरों पर
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यकायक हमला कर दिया। लेकिन जबकर्नल जिलस्पीअरकाट से हिन्दुस्तानी और अंगरेज़ी रिसालोंके सवार ओर तोपेंलेकर बिल्लूर में पहुंचा सिपाही कोई ४०० तो मारेगये। और बाक़ी कुछ क़ैद हुए और कुछ मुआफ करदिये गये। दोनों पल्टनों का नाम जिनके सिपाहियों ने यह बलवा किया था फ़ौज की फ़िहरिस्त से कट गया। बाज़े ऐसा भी गुमान करते हैं कि इस में टीपू सुल्तानके घरवालों की साज़िसथी पर सुबूत नहीं मिला। जी हो टीपू के घरवाले नज़र्बन्द रहने को कलकत्ते भेजे गये और उसके पिंशन घटाये गये। मंदरान के गवर्नर लाईविलियमबेंटिंक जिसे यहांवाले लार्डबिंटिक कहतेहैं और कमांडर इन्चीफ़ की बदनामी हुई दोनों विलायत चले गये *।