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इतिहास तिमिरनाशक 2/लार्ड केनिंग

विकिस्रोत से
इतिहास तिमिरनाशक भाग 2
राजा शिवप्रसाद 'सितारे हिंद'

लखनऊ: नवलकिशोर प्रेस, पृष्ठ ८७ से – १०० तक

 

लार्ड केनिंग

माग्न लार्ड डलहौसी अपनी माझाद खतम होने पर विला: सत चले गये। और यहां उनकी जगह पर लाई केनिंग आये। अब मुख़्तसर सा कुछ हाल बलवे का लिखते हैं। अंगरेज़ लोग अब तक इस के असली सबब. पर बहस करते हैं। उन को शायद इस से बढ़ कर कभी कोई तअज्जूब न हुआ होगा

और हुआही चाहै। जिनके मुल्क इंगलैंड में ज़ियादा आदमी एकही कोम और एकही मज़हब के बसते है कानून मुताबिक बकालतन् बादशाही करते हैं अपने मुल्क के लिये जान देने को तैयार रहते हैं औरतें भी मुल्कदारी के मुसामलों में दखल देती हे गोया सो स्याने एक मत को मसल पर चलते हैं यह क्यों न इस बात से तअज्जुब मैं आवें कि सिर्फ एक चिकनाई लगे कारतूस काममें लाने के हुक्म से बंगाले की सारी फौज बिगड़ जावे। वह फौनजो सैकड़ों लड़ाइयों में सर्कारके अलग की शर्त बजा लायी और अपने अफसरों को मा बाप समझता रहो अब उन्हीं अफसरों का पला काटे । फोज के बिगड़तेही पारे हिन्दुस्तानमै खलबली पड़ जावे बदमाश हरतरफ लूट मार मचा देवें। रईस अमीर जो अंगरेजों के बढ़ाये बढ़े ओर जिनके बुलाये अंगरेज़ आये कुछ परवा न करें बल्कि जिनको ऐसे वक्त में सकार के लिये जान माल सत्र निछावर, करना चाहिये था बहुतेरे उन में से अलग रह कर तमाशा देखा करें । लेकिन हम लोगों के लिये इस में कोई तमन्नुब की बात नहीं हे फ़ोज में तो सिपाहियों को यकीन हो पया था कि इस तरह पर कारतूगों के काम में लाने का हुक्म जान बूझकर सिर्फ उनको जात लेने के लिये दिया गया है। सन नये कारतूसों में इस लिये कि बंदूक की नली में फंसन रहें चर्बी की चिकनाई लगायी जाती थी और चर्बी को छूना हिन्दुओं को मना है । ये बेसबरे सिपाही इतना कहां सोच सकते थे कि वह कारतूस दूसरी तरह पर भी काम में सकता है जिस में उनकी बात न जावें । ओर जहर कुछ लिहाज़ होगा, अगर अच्छी तरह इन मुकिलों की खबर सकार तक पहुंचाई जावे ॥ सिपाहियों ने समझो कि बड़ी बे. इज्जती हुई । ग़रज़मंद और मतलबी यारों ने उनको योर भी भड़काया कि यह उनको बे इज्ज़ती जान-बूझ के को गयो । निदान देखते ही देखते यह बसवे को हवा सारे हिन्दुस्तान में फेलो बिरती ही छावतियां तो इसके चहर मे बची रहीं

बांकी सब में सिपाहियों ने आफ़त मचायी जब सिपाही बिगड़े तो फिर बदमाशों का उमड़ना क्या ताज्जुब हैं। हाकिम का डर न रहने से लूट मार में कोन सा तरद्दुद है। जब ऊंची जात वाले सिपाहियों ने मेरट में अपने अफसरों पर गोली चलाकर जेलखाना खोल दिया। तो गूजरों का क्या कसूर है जिसकी लाठी उसकी भैंस सब ने इसीपर अमल किया। ओर अगर पूछों कि शरीफों ने रईसों ने बड़े आदमियों ने बलवा दबाने में सर्कार की मदद क्यों नहीं दी। तो हम यही कहेंगे कि इनमें ऐसी हिम्मत और बहादुरी किसने पायो? भला यह बनिये महाजन लाला बाबू हथियार चलाने लाइक हैं? अनज बेवपार रुपये पैसे का काम जो चाहो इन से ले लो। राजा महाराजा अपने इलाकों की आमदनी ऐश आराम में खर्च करते हैं हिफ़ाज़त का भरोसा सर्कार पर रखते हैं जुलूस के लिये कुछ सवार पियादे रख लिये तो क्या वह सर्कार के क्रवाइल सीखे सिपाहियों से लड़ सकते है ज़राग़ोर करो। ये लोग अपनी ही जान बचाने की फिकर में पड़ गये थे। हां सर्कार की फिर सलतनत जमने को दुआ दिल से मांगते थे। सिवाय इसके लायलटी यानी सर्कार को खैरखाही के मानी में फरंगिस्तान और हिंदुस्तान के दर्मियान बड़ा फ़र्क है जिसके नाम की डोड़ी पिटे उसका हुक्म मानना यही यहां की खेरखाही है। सैकड़ों बरस से जो बादशाहियों का उलट पुलट देखा किये हे अब उसको परवाही नहीं है । पठान मुग़ल मरहठों के जुलम ज़ियादती में इन को ऐशा बिगाड़ दिया। कि वेट्रिाटिजम के लिये हम को यहाँ की बोलीमें कोई लफ़ज़ ही नहीं मिला। इन के ख़याल ही में वह आज़ादी नहीं आ सती जिसके लिये अंगरेजों ने स्टुआर्ट के स्थानदान को तखत से उतारा। न वह इटालीवालों को खुद मुखतार होने की खुशी या जर्मनीवालों को कोमो हमदर्दी इनके ख़यालमें आस- कती है जिस से यह मुलक एक होकर ऐसी बड़ो इमगाएर, यामी शाहनशाही बन गया।
ग़रज़ यह सन् १८५० के बलवे की जड़ सिर्फ हिन्दुस्तानी फौज की बिगड़ जाना है कि जिस का इलाज उस वक्त विलायती यानी गोरों की फौज यहां कम रहने के सबब जैसा चाहिये तुर्तन हो सका। और बग़ावत के मानी तो कुल इतने ही लग सकते हैं कि बदमाश और मुससिदों को जैसे अंधे के हाथ बटेर लग जाय मन मानता मौका मिल जाने से ग़दर मच गया।

अब कुछ थोड़ा थोड़ा सा हाल इस बलवे के बड़े बड़े १८५० ई० हंगामों का लिखा जाता है बाईसवीं जनवरी सन् १८५० को कलकत्ते के पास दमदम में जहां तोपखाना और फ़ौज रहती हे सत्तरहवीं हिन्दुस्तानी पल्टन के कमान अफ्सर (कमांडिंग अफिसर) को मालूम हुआ कि सिपाही लोग यह अफवाह सुनकर कि कारतूसों में गाय और सूअर की चरबी लगी है निहायत घबरा गये हैं और जड़ इस अफवाह को यह बतलाते हैं कि तोपख़ाने के किसी ख़लासी ने वहां किसी सिपाही से पानी पीने का लोटा मांगा जब सिपाही ने अपना लोटा देने से इन्कार किया तो खलासी मे कहा “खैर हमको लोटा देने से तो तुम्हारी जात जाती है। लेकिन जब गाय और सूअर की चरबी भले कारतूस दांत से काटोगे तब देखेंगे तुम्हारी जात क्या होती है। सिपाहियों से यह भी मालूम हुआ कि इस तरह की खबर तमाम हिन्दुस्तान में फैल गयी है। और अब छुट्टी लेकर घरजाने पर घरवाले काहे को साथ खायें पीयेंगे यह बड़ी दहशत लगी है। इस बात की तहकीकात हुई और उसी महीने की सत्ताईसवी को गवर्नर जेनरल ने हुक्म दे दिया कि चरबी की जगह जो सरकारी मेगज़ीनों में लगायी जाती थी सिपाही खुद बाज़ार से तेल और मोम ख़रीद कर अपने हाथ से कारतूसों में लगा लेवें पंजाब को भी यही हुक्म भेजा गया। लेकिन अफसोस है कि न गज़ट में छापा गया और न तमाम छावनियों में फ़ोन को समझाया गया।

यह हवा दमदम से बहरामपुर पहुंची। वहां उन्नीसवीं हिन्दुस्तानी पल्टन थी। उन्नीसवीं फरवरी को रात के वक्त

परेड पर जमा हुई। कमान अफसर १८० सवार और दो तोपें लेकर आया सिपाहियों ने कहा कि साहिब यह सुनकर कि हम लोगों से ज़बर्दस्ती कारतूस कटवाने को गोरे बुलवाये गये हैं अड़ा डर पैदा हुआ है कर्नल मिचिल ने समझाया कि अब कारतूस दांतसे नहीं काटने पड़ेंगे हाथसे तोड़कर बंदूक में भरे जावेंगे पलटन अपनी लेनको चली गयी। लार्ड केनिंग ने इस ख़याल से कि दूसरी पलटनें भी उन्नीसवीं का तरीका न इख़तियारकरें उन्नीसवीं पलटनको कलकत्ते के पास बारकपुर की छावनीमें बुलवाकर उसकानाम कटवा दिया। इसीके बाद वहां बारकपुर में चौतीसवीं पलटन के किसी सिपाही ने अपने किसी अफसर पर चोट चलायी उसके साथियों ने उसे गिरफ्तार तक न किया। सज़ा में इस चौतीसवीं पलटन की भी सात कम्पनियों का नाम काटा गया। और दो आदमियों के लिये फांसी का हुकम हुआ। सतरहवीं को दो आदमी काले पानी भेजे गये गवर्नमेंट का इरादा था कि इस तरह पर झटपट सज़ा देदिलाकर सरकशी दबादेवे लेकिन सिपाही उलटे और भी बिगड़गये॥ पांचवी मईको मेरटमें तीसरे रिसालेके पचासी सवारों ने कारतूस काममें लाने से इन्कार किया। और नबों को कोर्टमार्शलसे उन्हेंसख़्त मिहनतकेसाथ जुदा जुदा मीआद की केदका हुक्म मिला। दूसरेही दिन तमाम हिंदुस्तानी फौज ने जो उस वक्त वहां छावनी में थी यानी उस रिसाले के साथ दो पलटनों ने मिल कर बलवा किया। कैदियों को जेलखानेसे निकाल दिया। अपने अफसरों पर गोली चलायी। छावनी में आग लगायी। फरंगी जो हाथ लगे सब को मार डाला। न ओरत म बच्चा उन पापियों के हाथसे बचा। और तअज्जुब यह कि बाईस सौ गोरों की फ़ोज़ वहां मौजूद थी लेकिन कमान अफसर ने कुछ हाथ पैर न हिलाया। तमाम बलवाइयों को मज़ेसे दिल्ली चले जाने दिया। इन्होंने दिल्ली में भी, वही मेरट का सा हाल किया। शाह आलम के पोते बहादुरशाह को जो वहां किले में गवर्नमेंट से पिंशन पाताथा

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बादशाह बनाया। बलवाई अपने जोश में बावले बन रहे

थे। भला बुरा या वाजिब गैर बाजिब कुछ नहीं देखतेथे। दिल्ली में गोरों की फ़ौज नथी। यही बड़ी आफ़तों की जड़ हुई बहुतेरे मुसल्मान दिल्ली की बादशाही फिर काइम होना चाहते थे। वे ईसाइयों की हुकूमत से निकल कर फिर पुराने लंबे चोड़े खिताब और बड़ी बड़ी जागीरों के मिलने का ऐसे वक्त में पूरा भरोसा रखते थे बाजे अा के पूरे हिन्दू भी उनमे शामिल होगये॥ निदान देखते ही देखते यह बदले की आग ऐसी फैली। कि एक दफा थी गोमा दुआब अवध और बुंदेलखंड सिमाध मेरटकी छावनी लखनऊ की रज़ीडंटी और अध्यारे और इलाहाबाद के किले के बिलकुल अंगरेज़ी अमल्दारी ही उठ गयो। कान्हपुरमें सिपाहियों ने पांचवींजून को बलवा किया। और नान्हाराव को अपना सर्दार बनाया। नान्हा को सर्कार से अपना एबज़ लेने का यह अच्छा मौका मिला। जेनरल हीलर बारकों में मोरचे लगाकर सातसो अंगरेज़ी के साथ कि जिसमें ज़ियादा मेमबच्चे भोर न लड़नेवाले साहिब लोग थे बंद हुआ। बाईस दिन तक बड़ी बहादुरी के साथ लड़कर जबखाने और लड़नेका सामान न रहा जानकी अमान का कोल करारलेकर सबने अपने तई नान्हाकेहवाले करदिया। उस कमबख़त ने सबको कदवा डाला मेम और बच्चों का भी कुछ ख़याल न किया॥ नव्वाब तफज्जुल हुसेनखांको बग़ावत के सबब जी साहिब लोग फतहगढ़ (फर्रुखाबाद) से निकल आये थे उनकी भी सने जानली। जो मेम और बच्चे बचरहे थे जुलाई में सर्कारी फ़ौज पास पहुंचने पर उन सब बेचारों की गर्दन मारी॥ सिर्फ दो साहिब इसके हाथसे बच निकले। गाया इस मुसीबत की कहानी सुनाने को जीते रहे।

अवध की फौज जून के शुरूहीमें बिगड़गयी। और बाद शाह बेगम उस के लड़के बिर्जीसकदर के नाम से फिर पुरानी नब्बाबी चमकी। तअल्लुकेदारोंका ज़ोर जुलम अंगरेज़ी अमल्द्वारी में दुबारहा। अब निर्जीसकदर के झंडे वले फिर

सिर उठाने का अच्छा मौका आया। सर हेनरी लारंस रज़ी- 'डंटो यामी बेलीगारद में अंगरेजों के साथ बंदहुए। कुछ उन में लड़नेवाले थे और कुछ न लड़नेवाले।

बुंदेलखंड के नवाब खां बहादुर खां ने दवाया। मऊ नीमच नसीराबाद की फोजें और हुलकर और संधिया के कटिजेंटों ने भी बलवा मचाया। झांसी की रानी और बांदे के भवाष ने बुंदेलखंड पर कबजा किया। दिल्ली तो गया बलवे का मर्कज़ था जो फौज जहां जिगड़ी सबने सोचा दिल्ली का रस्ता लिया।

जेसा बड़ा बलवा हुआ† वैसाही लार्ड केनिंग भी बड़ा गवर्नर जेनरल था। तुर्त मंदराज और बम्बई से फोजें इधर को एखाना कराई। जो गोरों की पल्टने चीन को जाती थी रास्तेही से सब यहां मगाली। लेकिन सकार का बड़ा सहारा पंजाब था। सरहद होने के संबब और जगहों से वहां गारों को फोन जियादाथी सर जान लारस * को जिन हिन्दुस्तानी पल्टनों को नमकहलाली और बफादारी का भक्षेसा न हुआ तुर्त सब से हथियार रखवा लिया।

कमांडर इमचीफ़ने सातहनार फोज† से आठवीं जूनको दिल्ली की पहाड़ी पर मोरचा जा जमाया। बलवाइयोंका ज़ोर था धीरे धीरे मुहासरा बढ़ा के चौदहवीं सितम्बर को धावा कर दिया। कदम कदमपर, लड़ाई हुई और लहू बहा। यहाँ तक कि उन्नीसवीं को किला भी हाथ आगया और दिल्ली में


  • एक रोज़ शिमला में मुझे कुछ काग़ज़ पढ़ने के लिये बुलाया अब काम होगया खुशीमें आकर फ़र्मानेलगे तू जानता है हम को ये बाफशानी या महते हैं अर्ज लिया हुजूर नहीं बोले जबर्दस्त जाम लारस! इस में किसी बरहका शक यदि कि वह सच मुच ज़बर्दस्त थे।

ज़ियादा इस फौज में गोरे थे और पंजाब से लिये गये थें लेकिन हिंदुस्तानियों में सिरमौर वाली गोरखों की पल्टन ओर गाइड कारने बड़ा नाम पाया।

फिर सारी अमल हुआ। आदमी दोनों तरफ़ बहुतकाम आये। शायद सन १०३६ की नादिरशाही में भी शहर के अंदर इस से बढ़ कर नहीं मारे गये। बहादुरशाह कुनबे समेत कैद किये गये। औररंगून जाकर कुछदिनांबाद उसोकेदमेंमरे।

जुलाई के शुरू में जेनरल हैवलाक साहिब दो हज़ार आदमी और कुछ तोपें लेकर कान्हपुर और लखनऊ लेने को चले। बारहवों और पंदरहवीं को नान्हा की फौज फ़तहपुर ओर पांडू नदी से भगा कर सत्तरहवीं को कान्हपुर में दाखिल हुए। लेकिन लखनऊ में बेलीगारदवालों को चौबीसवी सितम्बर तक मदद न पहुंचा सके। नवा नवम्बर को नये कमांडर इन चीफ़ सर कालिन कैम्बल तीन हज़ार आदमियों के साथ लखनऊ जाकर 'बेलीगारदवालों को कान्हपुर लाये। बाग़ी और बलवाई सब देखते के देखतेही रहगये। जेनरल ऊटरम को कुछ फ़ौज के साथ लखनऊ के बाहर आलमबाग़ में छोड़ आये थे। कान्हपुर में एक भारी लशकर १८५० ई० इकट्ठा करके मार्च सन १८५० के शुरू में फिर लखनऊ गये। एक हफ्ते की बड़ो कड़ी लड़ाई के बाद सोलहवाँको लखनऊ हाथ आया। महाराज सरजंगबहादुर ने जो अपने गोरखोंको फौज लेकर नयपाल से मदद को आये थे अच्छा काम दिख्लाया। बेगम और बिर्जीसकदर नान्हा समेत तराई की तरफ भागे। और फिर न सुनाई दिये।

निदान दिल्ली और लखनऊ के हाथ आने से बलवा ख़तम हुआ। और जब इधर रुहेलखंड भोलेलिया और इधरझांसी को सर ह्यू रोज़ ने साफ किया सब जगह अमन चैन होगया।

पर विलायत में पार्लामेंटवालों की यह राय ठहरी कि अब हिंदुस्तान को हुकमत कम्पनी से ले ली जाय सच हे पैदा- करनेवाले मालिक को जो कुछ काम इस कम्पनी से लेना था वह पूरा हो चुका । देखो पलासी की लड़ाई से इस सो बरस के अंदर सकार कम्पनी बहादुर ने क्या क्या कामकरदिखलाया और हमारे हिंदुस्तान के मुलक को कहां से कहाँपहुंचाया।

जिस जमीन में लोग गाय भी नहीं चराते थे वहीं जबसुन्दर खेतियां होती हैं। जहां जमींदार नित बाकी मालगुज़ारीको इल्लत में पकड़े बांधे जाते थे वहां अब पक्के बन्दोबस्त को बदौलत किस्त ब किस्त मालगुज़ारी अदा करके पांव फैलाये सोते हैं। जिन रास्तों में बकरी का गुज़र न था वहांबग्गियां दोड़ती हैं। जहां अश्रफियों को बहली मयस्सर न थी वहां भानों पररेल गाड़ियां हाज़िर हैं। जहांकासिद नहींचलसकता था वहाँ तारकीडाक लगगई है। जहां काफ़िलों की हिम्मत नहीं पड़ती थी वहां अब एक एक बुढ़ियासोनाडछालतीचली जाती है। जहां हज़ारों की तिज़ारत होतीथी वहांकरोडौंको नोबत पहुंच गयी है। जिन्हें दिन भर मज़दूरी करने पर भी पाव भर सत्तू या चना मिलना कठिन था उनकी उजतमब चार पाने रोज़ ओर आठ पाने रोज़ से कम नहीं है। जिन किसानों की कमर में लंगोटी दिखलायी नहीं देतीथी उनकी घरवालियां गहने झमकाती फिरती हैं क्यापुल और क्या नहर पंया मुसाफिरखाने और क्या दारुश्शिफ़ा क्या पुलिसओर क्या कचहरी क्या इंसाफ़ और क्या कानून क्या इलम और क्या हुनर क्या जिंदगी काज़रूरी असबाब और क्या ऐश का सामान जो कुछ इस कम्पनी के राज में देखा गया न पहले किसी के ख़याल में आया था न पान तक कहींसुना गया। गोया जंगलपहाड़ झाड़ झंखाड़ से इस देश को बांग हमेशाबहार बना दिया। क्या महिमा. हे अपरम्पार सबै शक्तिमान जगदीश्वर की कि इंगलिस्तान के जिन सौदागरोंने और दुकानदारोंनेकम्पनीबन कर अपने बादशाह से हिंदुस्तान में तिजारत करनेको सनद ली । आज उन्होंने इससारे हिंदुस्तान 'जन्नत निशान"खुलासे जहान की पूरी सलतनत अपने बादशाह शाहनशाह कैसर- हिंद एमपरेस विकटोरिया को (ईश्वर दिन दिन बढ़ावे प्रताप उसका ) नज़र को दूसरी अगस्त १८५८ को पार्लामेंटने यह हुक्म दिया कि अब आगे को ईस्ट इंडिया कम्पनीके साझी हिंदुस्तान से कुछ इलाका न रक्खें। जो कुछ उनका रुपया

लगता है उसका सूद ख़ज़ाने से ले लिया करें। बादशाही हिंदुस्तानमें बादशाह की रहे। यहभीखुशनश्यीबी हिंदुस्तान की थी सोदागरों के तहत से निकल कर ख़ास बादशाह के तहत में आया झाले पानी भी एम्परेस विक्टोरिया के खास रअय्यत कहलाये। कोई मुसलमान बादशाह होता इसबलबे के बाद यहां कतल आम और शहरों को लाह कर मथे का हल चलाने के लिये हुक्म देता। लेकिन कृपानिधान दयाघान क्षमासागर जगतउजागर श्रीमती महारानी एम्परेस विक्टोरिया ने जो इश्तिहार भेजा और पहला नवम्बर को लाई केनिंग गवर्नर जेनरल ने आप पढ़कर इलाहाबाद में सब लोगों को सुनाया उसके सुनने से सारी प्रजाका मन काल को छली सा खिल गया । उसको नकल नीचेलिखोजातीहै ये पढ़नेवालोपने पैदा करनेवाले मालिक से यही दुआ मांगो कि हमारीपरेस विक्टोरिया क्रसर हिंदको सल्तनत लाज़वालहोवे । औरऐसी रअय्यतः पर्वर शहनशाह हम लोगों के विरपर सदाबनीरहे।

इख्तिहार

(जेसा पहली नवम्बर १८५८ ई० के गवर्नमेंट बज़ट में छपा है।)

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श्री महारानी का कोसल के इजलास में हिंदुस्तान के रईस ओर सर्दार और सब लोगों के लिये।

श्री महारानी विक्टोरिया ईश्वर की कृपासे समीग्रेट ब्रि टेन और आयर्लेन्ड और उन सब देशों को जो यूरप और एशिया और अफरीकर और अमरीका और पास्टे शेशिया में उर के आधीन हैं और स्वमत प्रतिपालक।

ज्योकि कई तरह के भारी सबबों से हमने धर्म सम्बन्धी और राज्य सम्बन्धो प्रधानों और प्रजा के मुखताल को दो पार्लामेंट में जमा हुए सलाह और मंजरी के साथ इरादा किया है कि हिंदुस्तान क मुल्क का बन्दोबस्त जो हमने आजतका अनरेवल ईस्ट इमडिया कम्पनी को अमानत सौंप एकलाथा अपन प्रकार में लावें।
इसलिये अब हम इश्तिहार देते हैं और प्रगट करते है कि ऊपर लिखी हुई सलाह और मंजूरी के बमुजिब उक्त अधिकार अपने हाथ में ले लिया और इस इश्तिहार की रूसे भगमो सन प्रजा को जो उस मुल्क में है ताकीद फ़र्माते हैं कि हमारे और हमारे बारिस और जानशीनों के साथ वफ़ा दारी ओर सच्ची ताबदारी करे और जिस किसी को हम अपने भाम और अपनी तरफ से अपने उस मुल्क के बंदोबस्त के लिये वक्त ब वक्त आगे मुकर्रर करना मुनासिब समझे उसका हुन मानती रहे।

ओर ज्योंकि फर्जन्द अर्ज मन्द और मोतबर सलाहकार चार्लस जान कोंट केनिंग साहिब बहादुर को वफ़ादारी जियाकत और समझ पर हमको खास करके पूरा भरोसा और दिलचमई हासिल है इसलिये उक्त वेकौंट केनिंग साहिब बहादुर को हमारे उस मुल्कका बंदोबस्त हमारे नाम से और ममन सब काम हमारी ओर और हमारे नाम से करने के लिये हमारे उनसब हुकम और कानूनों के वजिब जो हमारे किसी बड़े वज़ीर को मारिफ़त उसके पास वक्त ब वक्त पहुंचे हमने उस मुल्क का अपना पहला वैसराय अर्थात् काइम मुकाम और गवर्नर जेनरल मुकर्रर फ़ाया।

ओर जो सब लोग कि अब किसी उहदे पर क्या मुल्की और क्या फ़ोजी सकार अनरेबल ईस्ट इन्डिया कम्पनी की नोकरी में दाखिल हैं इस इश्तिहार की ससे हम उन सब को अपने ठहदों पर बहाल और काइम रखते हैं लेकिन वह सब लोग हमारी प्रायन्दा मर्जी और उन सब आईन और कानूनों के ताबे रहेंगे जो इसके बाद जारी किये जावें।

और हिंदुस्तान के रईस और सदारों को हम इसिला देते है कि जो कोल करार और अहदनामे अनरेबल ईस्ट इनडिया कम्पनी ने उनके साथ किये, या उसकी इजाज़त से किये गयेहें हम इन सबको कबूल और मंजर फातेहैं और बहुत छहतियात से बहाल और बकरार रक्खेंगे और उमेद है कि उन

सब रईस और सर्दारों की ओर से भी ऐसाही लिहाज़ रहेगा।

सबमुल्क कि अब हमारे कबजे मेंहें हम उन्हें बढ़ाना नहीं चाहते और जब कि हम ऐसा न होने देवेंगे कि दूसरे लोग हमारे मुल्क या अधिकारों पर नि:शंक हाथ बढ़ावें तो हम भी दूसरों के मुल्क या अधिकारों पर हाथ बढ़ाये जाने की इजाज़त न देखेंगे हम हिन्दुस्तान के रईस और सर्दारों के अधिकार और दर्ज भोर उनकी प्रतिष्ठा ऐसी ही समझेगे जैसी अपनी समझते हैं और हमारी इच्छा है कि वे सब और हमारी अपनी प्रजा भो उस बढ़ती ओर चाल चलन की दुरुस्ती को हासिल करें कि जो केवल मुल्क अच्छा बंदोबस्त रहने से हो सकती है।

जो काम कि हमको अपनी ओर सब प्रजाके वास्ते करने उचित और कर्तव्यह वही हिंदुस्तानवालों के लिये भी हम अपने ऊपर वाजिब समझेंगे और सर्वशक्तिमान परमेश्वरकी कृपासेउन सबकामों को वफादारी के साथ सच्चे दिलसे करते रहेंगे।

यद्यपि हमको ईसाई मतके सच्चे होने का दृढ़ निश्चय है और उस मतसे जो तसल्ली कि हासिल होती है उसको हम शुकरगुज़ारी के साथ स्वीकार करते हैं तथापि न अपना हम इस बात में अधिकार समझते हैं और न हमको इस बात की इच्छा है कि ज़बर्दस्ती अपनी प्रजा को भी उसका निश्चय दिलावें यह हमारा बादशाही हुक्म और मर्जी है कि न किसी को उसके मतके कारन पच्छकी जावे और न किसी को उसके कारन तकलीफ़ दी जावे बरन सब लोग बराबर एक ही तौर पर बिना पक्षपात कानून के बजिब रक्षो पावें और जो लोग कि हमारे तहत में इतियार रखते हैं हम उनको बड़ी ताकीद से हुक्म देते हैं कि वे हमारी किसी प्रजो के मतके निश्चय और पूजा में कभी कुछ दस्तन्दानी न करें नहीं तो उनपर हमारा अत्यन्त कोप होगा।

और यहभी हमारा हुक्म है कि जहां तक बन पड़े हमारी प्रजा को चाहे जिस मात और चाहे जिस मत की

क्यों न हो उनकी विद्या योग्यता और दियानतदारी के बमूब जिब जिन उहदों का काम कि वे हमारी नौकरी में अनजाम दे सके उनको बे रोकटोक और बिना पक्षपात के दियेजावें।

हिंदुस्तान के लोग धरती के साथ जो उनके पुरखाओं से उनके अधिकार में चली आयी है, बड़ी मुहब्बत रखते हैं यह बात हमको बखूबी मालूम है और हमको इस बात का बड़ा लिहाज़ है और हमको मंजूरहे कि वानिबी मुतालबे सर्कारी अदा करने पर उनके उस धरली के सारे अधिकारों की रक्षा करें और हम हुक्म देते हैं कि कानून बनाने और जारी करने में हिंदुस्तान के पुराने अधिकार और दस्तूर और रीत रसमों का उमूमन ठीक लिहाज रक्खा जावे।

जो आफ़तें और खराबियां कि हिंदुस्तान पर उन फ़सादी लोगों के कर्तब से पड़ी हैं जिन्हों ने झूठी झूठी अफवाहों से अपने देशवालों को बहकाकर उन से खुले बन्दों बलवा करवा दिया हमको उनका बड़ा अफसोस है हमारी शक्ति तो रण- भूमि में उस बलवे के दबाने से प्रगट हो गयी अब हम उन लोगों के अपराध क्षमा करके जो इस ढब से बहकावट में आगये लेकिन फिर इताअत की राह पर चलना चाहते हैं अपनी दया प्रगट करते हैं।

इस बिचार से नि अब अधिक खूनरेजो न होवे और हमारे हिंदुस्तान के देशों में झटपट अमन चैन हो जावे हमारे वैसराय और गवर्नर जेनरल बहादुर ने एक इलाके में जिन सब लोगों ने कि इस दुखरूप बलवे में हमारी सर्कार के विरुद्ध अपराधकिये हैं बहुतों को उन में से कईएक शर्तीपर अपराध लमा होने की भासा दी है और जिनके अपराध कि क्षमा होने की पहुंच से बाहर हैं उन्हें जो सज़ा दी जायगी वाह भी ज़ाहिर कर दी है हम अपने वैसराय और गवर्नर जनरल का यह काम मंज़र और कबूल करते हैं और उसके सिवाय.. नीचे और भी हुकम जाहिर फ़र्माते हैं।

साबित हो कि उन्हों ने आप सकीर अंगरेज़ की प्रजा के क़त्ल में शराकत की बाकी सारे अपराधियों पर हमारी दया होगी क्योंकि जिन्हों ने आप सकार अंगरेजको प्रजा के क़त्ल में शराकत की उन पर दया करना इन्साफ़की रूसे मना है।

जिन लोगों ने कतल करनेवालों को जान बूझ कर पनाह दी या बलवाइयों के सर्दार और उनके बहकानेवाले बने उनके केवल जीवदान का वादा हो सकता है लेकिन ऐसे आदमियों को वाजिब सजादेनेमें उनसब बातोंका जिनके सबसे बहक कर अपनी इताअत से फिरगधे पूरा लिहाज़ किया जायगा और उनलोगों के वास्ते जो बिना सोचे बिचारे फसाड़ियों की झूठी बातों को मानकर गुनहगार बनें बड़ी रिआयत की जावेगी।

बाक़ी और सभेमें जो सौर के मुकाबलेमें हथियार बांधे इस इश्तिहार में हम वादा करते हैं कि जब वे अपने डेरों को लोट जावें और सुलह के कामों में हाथ लगावें उनके बिलकुल कसूर हमारी निस्बत और हमारी सल्तनत और हमारे मतबे को निस्बत बेशर्त माफ़ और दरगुज़र और फरामोश कर दिये जायेंगे।

और हमारी ग्रह बादशाही मर्जीहे किये रहम और माफ़ करने की शर्त उन सब लोगों के वास्ते हैं जो पहली तारीख जनवरी सन् १८५६ ई०. से पहले उनकी तामील करें

हमारी मह जी से अभिलाषा है कि जब परमेश्वरकी कृपा से हिंदुस्तान में फिर अमन चैन हो जावे तो वहां सुलह के उद्यमों को उन्नति देवे और प्रजा के सुख की चीजें बनार्वे और ऐसा बंदोबस्त करें कि वहां की सारी हमारी प्रनाको लाभ हो उनकी वृद्धि से हमारी शक्ति है उनकी संतुष्टता से हमारी रक्षा और उनकी शुकरगुज़ारी यहीहमको बड़ी प्राप्ति हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमको और जो लोग कि हमारतहत में इतियार रखते हैं सबको ऐसी शक्तिदे कि जिससे हमारीयह अभिलाषाहमारी प्रजा को भलाई के लिये भलीभांति परिपर्वहो॥

॥इति॥