इतिहास तिमिरनाशक 2/लार्ड क्लाइव

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लार्डक्लाइव

तीसरी मई को लार्ड क्लाइव गवर्नर और कमांडर इनचीफ होकर फिर कलकत्तेमें पहुंचा। और इंतिज़ामकीदुरुस्तीकेलिये रायदुल्लम ओर जगतसेठ खुशहालचंदको मुहम्मदरज़ाखां नाइब सुबेदारके शामिल किया। जिसरोज़ लार्ड क्लाइव कलकत्ते में पहुंचा। उसीरोज़ शुजाउद्दौला कोड़े में अंगरेज़ोंसे शिकस्त खाकर और सिवाय अंगरेज़ों पर भरोसारखनेके ओर कुछइलाज न देखकर जेनरल कार्नल के पास चलाआया। अंगरेज़ोंनेउसकी बहुत ख़ातिरदारी की। और पचासलाख रुपया लड़ाईका ख़र्च लेकर और इलाहाबाद और कोड़ाबादशाहको दिलवाकर सुलह करली। बनारस का राजा बलवंतसिंह बक्सर की लड़ाई में अंगरेज़ों से मिल गया था। वल्कि कहते कि नव्याबवज़ीर का जो मारचा इसके सुपुर्द था इसने उस मैं अंगरेज़ी लशकर चला आने दिया और यही नब्वाब वज़ीरकी शिकस्तका बड़ा सबबहुआ। इसी लिये इन्होंने सुलहनामे में यहभी लिखवा लिया कि शुजाउद्दौला बलवंतसिंह को किसीतरहपर न छेड़ें। और कुछ नुक्सान न पहुंचावे।

बादशाह से इस वादेपर कि छब्बीस लाख रुपया सालाना जिसका क़ौल क़रार मीरजाफ़र से हुआ था अब बराबर पहुंचा चला जायगा लार्ड क्लाइव ने कम्पनी के लिये बंगाला बिहार और उड़िसा तीनों सूबों की दीवानी का फ़र्मान लिख- वालिया। नाज़िम नाम को नज़मुद्दोला बनारहा। लेकिनउस से यह अ़ह्द मान होगया कि सिवाय पचास लाख रुपया सालाना लेने के ओर कुछ सरोकार मुल्क से न रक्खे मुल्का काकामसब अंगरेज़ों के हाथमें रहे लार्ड क्लाइव लिखता
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है कि नजमुद्दौला इस बातसे निहायत खुशहुआ और रुख़्सत के वक़्त कहने लगा“अलहमदु लिल्लाह अब तो जितने चाहेंगे महल बनावेंगे"। सन् १७६६ में नजमुद्दौला मरगया और उस १७६६ ई० का भाई सैफुद्दौला उस की जगह बैठा। सन १७६० में लार्ड १७६० ई० क्लाइब इंगलिस्तान को चला गया।

सन् १७६३ में जब इंगलिस्तान और फ़रासीस के दर्मियान सुलह हुई यहभी शर्त ठहर गयी कि सन् १७४९ में यहां जो सब फ़रासीसियों की कोठियां थीं उनके हवाले करदी जावें। लेकिन बंगाले की सूबेदारी के इलाक़े में न वह कुछ फ़ौज रक्खें और न कोई किला बनावें। हिंदुस्तान में इसगयी बला को फिर जगह देना कुछ इंगलिस्तान वालों को दानाईका काम न था। सन् १७६५ में दखन के सूबेदार निज़ामअ़ली ने जो सन् १७६१ में अपने भाई सलाबतजंग को क़ैद करके मस्नद पर बैठा था कर्नाटक के मुल्क पर चढ़ाई को लेकिन मुहम्मद अ़ली की मदद पर अंगरेज़ी फ़ौज को मैदान में देख करपीछे हटा। लार्ड क्लाइव ने मुहम्मदअ़ली को बादशाह से कर्नाटक को जुदा सनद दिलवा दी और गंतूर छोड़कर शिमाली सर्कार* की वैसी ही एक सनद कम्पनी के नाम लेली। परमंदराज की गवर्नमेंट ने ख़ौफ में आकर निज़ामअ़ली का सालाना ख़राज देनेका क़रार कर लिया और यहभी लिख दिया कि अंगरेज़ी फ़ौज निज़ामअली की मदद करेगी। इस ज़माने में मैसूर के राज पर हैदरअ़ली का इख्तियार होगया था। इस का बाप सिरेके नवाब की चाकरी में पियादे से फ़ौजदार बनगयाथा‌। और यह ख़ुद मैसूर के दीवान ननजीराज को फ़ौज में रहते रहते और बहादुरी और जिगरे के काम करते करते ऐसाबढ़ा। कि वहां के राजा के लिये तो खाने को पिंशन मुकर्रर करदिया और आप सारे मुल्क का मालिक हो गया। बिदनौर में गड़ा ख़ज़ाना यानी दफ़ीना भी पाया। चारों तरफ़अपनी अम्लदारी


  • गंजाम बिजिगापट्टन राजमहेन्द्री मछलीबंदर और गंतर

यह पांचों ज़िले शिमाली सर्कार कहलाते हैं। [ २० ]
बढ़ाने लगा। सन् १७६७ में निज़ामअ़ली ने मैसूर परचढ़ाईकी। अंगरेज़ी फ़ौज भी इक्रार के मुबाफ़िक़ उसके साथहुई। तीसरी सितम्बर को हैदरअली ने अंँगरेज़ी फ़ौज से लड़ कर शिकस्त खा़यी हैदऱअली निज़ामअलीसे मिल गया। दोनों ने अंगरेजों का मुक़ाबला किया। उन की भीड़ भाड़ सत्तर हज़ार आद- मियों की थी और इनकी तरफ़ कुल बारह हज़ार लेकिनदुश- मनों ने शिकस्त खायीं और उनको ६४ तोप अंगरेजों के हाथ आयीं निदान निज़ामअली ने तो कुछ दे दिलाकर अंगरेज़ों से सुलह कर ली और हैदऱअली लड़ता रहा। कभी उसका कुछ नुक्सान हो जाता कभी अंग्रेज़ों का कभी इनका कोई क़िला उसके हाथ चला जाता और कभीउसका इनके हाथाजाता। १७६८ ई० यहां तक कि सन् १७६८ में हैदर अ़लीनेभी अंगरेजों सेमेलकर लिया। इन्होंने उसको जगहें उसे लोटा दीं उस ने इन की इन्हें दे दीं दोनों ने आपस में बचावके लिये यक दूसरेकीमदद करने का क़रार किया।

१७७०ई० सन् १७७० में सैफुद्दौला के मरने पर उस का भाई मुवारकुद्दौला बंगाले का सूबेदार हुआ। नाबालिग था कम्पनीनेकहा कि इस के लिये ख़ाली सोलह लाख रूपया साल देनाकाफ़ीहै इससे ज़ियादा देना कुछ ज़रुर नहीं चौंतीस लाख किफ़ायत १७७३ ई० में आया। सन् १७७३ में जब इंगलिस्तान की पार्ली मेंटवालों ने देखा कि कम्पनी लालच में आ कर और अपने नौकरों को कम तनखाहें देकर मुल्क का इंतिज़ामबिगाड़ती है और कर्ज भी बढ़ाती जाती है एक कानून ऐसा जारीकिया कि जिस से अढ़ाई लाख रूपये सालपर एक गवर्नर जेनरल मुकर्ररहो और उसकी कौंसल में चार मिम्बर अस्सी अस्सी हज़ार रुपयेसालाने के रहें। कम्पनी को गवर्नर जेनरलके मुकर्ररकरनेका इखतियार करले लेकिन मंजूरी उसको बादशाह के हाथ रहे पांचवेंसाल गवर्नर जेनरल बदला जाय और कलकत्ते में एक सुग्निम कोर्ट काइम की जाय उसके तीनों जजबादशाह के हजूरसे मुकर्रर हुआ करें।