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कपालकुण्डला/प्रथम खण्ड/७

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कपालकुण्डला
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, अनुवादक Not mentioned, tr. published in 1900.

वाराणसी: हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय, पृष्ठ २९

 

:७:

खोजमें!

“And the great Lord of Luna Fell at that deadly stroKe;
As falls on most Alvervus A thunder–smitter oaK”.
–Layo of Ancient Rome

[]

इधर कपालिकने घरमें कोना-कोना खोजा, लेकिन न तो खड्ग मिला और न कपालकुण्डला ही दिखाई दी। अतः वह सन्देहमें भरा हुआ फिर वापस हुआ। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि वहाँ नवकुमार नहीं है। इससे उसे बड़ा अचरज हुआ। एक क्षण बाद ही निगाह कटी हुई लताओंपर गयी। अब स्वरूपका अनुभवकर कापालिक नवकुमारकी खोजमें लगा। लेकिन घोर अरण्यमें भागनेवाला किस राहसे किधर गया है, यह जान लेना बहुत ही कठिन है। अन्धकारके कारण किसीको राह भी दिखाई दे नहीं सकती। अतः वह वाक्य शब्द लक्ष्यकर पहले इधर-उधर भटका, लेकिन हर समय कण्ठ-ध्वनि भी सुनाई पड़ती न थी। अतएव चारों तरफ देख सकनेके लिये वह पासके ही एक बालियाड़ीके शिखर पर चढ़ गया। कापालिक एक बाजूसे चढ़ा था, किन्तु उसे यह मालूम नहीं था कि वर्षाके कारण पानीने बहकर उसके दूसरे बाजूको प्रायः गला दिया है। शिखरपर आरोहण करनेके साथ वह गला हुआ ढूहा भार पाकर बड़े जोरके शब्दके साथ गिरा। गिरनेके समय उसके साथ ही पर्वत शिखर च्युत महिषकी तरह कापालिक भी गिरा।

 


  1. अनुवादक की भ्रान्ति। मूलमें है:

    And the great lord of Luna
    Fell at that deadly stroke;
    As falls on Mount Alvernus
    A thunder-smitten oak.
    Lays of Ancient Rome.