कामना/1.6

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कामना  (1927) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद
[ ३७ ]

छठा दृश्य

स्थान-कामना का मंदिर और नवीन ढंग का उपवन

(कामना और विलास)

विलास-बहुत-से लोग पेया मांगते है कामना !

कामना-तो कैसे बनेगी?

विलास-लीला स्वर्ण-पट्ट के लिए अत्यंत उत्सुक है।

कामना-उसे तो देना ही होगा।

विलास-स्वर्ण तो मैने एकत्र कर लिया है, अब उसे बनाना है।

कामना-फिर शीघ्रता करो।

विलास-जब तक तुम रानी नहीं हो जाती, तब तक मै दूसरे को स्वर्ण-पट्ट नहीं पहनाऊँगा। केवल उपासना मे प्रधान बनने से काम न चलेगा। परंतु रानी बनने मे अभी देर है, क्योकि अपराध अभी प्रकट नहीं है । उसका बीज सबके हृदयो मे है।

कामना-फिर क्या होना चाहिये ?

विलास-आज सब को पिलाऊँगा । कुछ स्त्रियाँ भी रहेगी न ? [ ३८ ]कामना-क्यो नहीं।

विलास-कितनी देर मे सब एकत्र होगे ?

कामना-आते ही होगे । मुझे तो दिखलाओ, तुमने क्या बनाया है, और कैसे बनाया ?

विलास-देखो, परंतु किसी से कहना मत ।

(कामना आश्चर्य से देखती है। पर्दा हटाकर शराब की भट्टी और सुनार की धौंकनी दिखलाता है। गलाया हुआ बहुत-सा. सोना रक्खा है । मंजूषा में से एक कंकण निकालकर कामना को दिखाता है)

लीला-(सहसा प्रवेश करके) सब लोग आ रहे है।

(विलास सब बंद कर लेता है, लीला की ओर क्रोध से देखता है। लीला संकुचित हो जाती है)

विलास-जब कह दिया गया कि तुम्हें भी मिलेगा, तब इतनी उतावली क्यों है ?

(विनोद भी आ जाता है)

कामना-विनोद और लीला हमारे अभिन्न है प्रिय विलास ।

विलास-ईश्वर का यह ऐश्वर्य है, उसका अंग है। जब उसकी इच्छा होगी, तभी मिलेगा। जल्दी का काम नहीं । विनोद ! तुम्हें भी इसकी[ ३९ ]विनोद-मैने भी बहुत-सी रेत इकट्ठी की है, परंतु बना न सका-मुझे नहीं, लीला को चाहिये।

विलास-( आश्चर्य और क्रोध प्रकट करते हुए) अच्छा, प्रतिज्ञा करो कि कामना जो कहेगी, वही तुम लोग करोगे, आज का रहस्य किसी से न कहोगे।

विनोद और लीला-हम दोनो दास हैं। किसी से न कहेगे।

कामना-क्या कहा ?

दोनो -दास हैं। आपके दास है।

कामना-नहीं, नहीं, तुम इतने दीन होकर इस ज्वाला की भीख मत लो। इस द्वीप के निवासी-

विलास-ठहरो कामना, (विनोद से ) तो तुम अपनी बात पर दृढ़ हो ? झूठ तो नहीं बोलते ?

लीला-झूठ क्या ?

विलास-यही कि जो कहते हो, उसे फिर न कर सको।

कामना-ऐसा तो हम लोग कभी नहीं करते । क्यो विनोद ।

विलास-मै तुमसे नही पूछ रहा हूँ कामना । विनोद-हॉ-हॉ, वही होगा। [ ४० ](विलास एक छोटा-सा हार निकालकर लीला को पहनाता है। कामना क्षोभ से देखती है। विलास पर्दा खीचकर खड़ा हुआ मुसकिराता है। सब लोग आ जाते हैं। कामना सबका स्वागत करती है। युवक और युवतियो का झुंड बैठता है)

विलास-आज आप लोग मेरे अतिथि है, यदि कोई अपराध हो तो क्षमा कीजियेगा ।

एक युवक-अतिथि क्या ?

विलास-यही कि मेरे घर पधारे है।

एक युवती-हम लोग तो इसे अपना ही घर समझते है।

विनोद -वास्तव मे तो घर विलासनी का है।

विलास-ऐसा कहना तो शिष्टाचार-मात्र है। अच्छे लोग तो ऐसा कहते ही है।

युवक-क्या इस घर के आप ही सब कुछ हैं ? हम लोग कुछ नहीं?

कामना-आप लोग जब आ गये है, तब तक आप लोग भी है, परंतु विलासजी की आज्ञानुसार।

विलास-(हँसकर) हमारे देश मे इसको शिष्टाचार कहते है। यद्यपि आप लोगो का इस [ ४१ ]समय हमारे घर पर पूर्ण अधिकार है, परंतु स्वत्व हमारा ही है; क्योकि जब आप लोग यहाँ से चले जायेंगे, तब तो हमी न इसका उपभोग करेंगे।

लीला-कैसी सुंदर बात है, कैसा ऊँचा विचार है।

(सब आश्चर्य से एक दूसरे का मुंह देखते है)

विलास-आप लोग कुछ थके होगे, इसलिए थोड़ी-थोड़ी पेया पी लीजिये, तब खेल होगा। कामना और लीला पिलावेगी । देखिये, आप लोगो को आज एक नया खेल खिलाया जायगा। जो मै कहूँ, वही करते चलिये।

युवक-ऐसा ?

विलास-हॉ, आप लोग गाते हुए घूमते और नाचते भी तो हैं ?

युवक और युवती—क्यो नहीं; परंतु उसका समय दूसरा होता है।

विलास-आज हम जैसा कहे, वैसा करना होगा।

कामना-अच्छी बात है। नया खेल देखा जायगा।

(कामना और लीला मदिरा ले आती हैं। विलास सबको पंक्ति से बैठाता और कामना को संकेत करता है। [ ४२ ]दोनों नाचती हुई सबको मद्य पिलाती है।सच प्रसन्न होते है)

एक-(नशे मे) अब खेल होना चाहिये ।

सब-(मद-विह्वल होकर ) हॉ-हॉ, होना चाहिये।

विलास-अच्छा-(एक से पूछता है ) क्यों, तुमको कौन स्त्री अच्छी लगती है ? देखो, उसके मुख पर कैसा प्रकाश है।

(एक दूसरे की स्त्री को दिखाता है)

वह युवक-हॉ, इसमें तो कुछ विचित्र विशे- पता है।

विलास-अच्छा, तो इनमे से सब लोग इसी प्रकार एक-एक स्त्री को चुन लो ।

(नशे मे एक दूसरे की स्त्री को अच्छी समझते हुए उनका हाथ पकडते है। विलास सबको मंडलाकार खडा करता है)

कामना-अब क्या होगा?

विलास-इस खेल मे एक व्यक्ति बीच मे रहेगा, जो सबकी देख-रेख करेगा।

कामना-तुम्हीं रहो।

विलास-नही, मुझको तो आन अभी बताना पड़ेगा। [ ४३ ]सब—तब हमलोग तो खेलेगे, देखें कोई दूसरा-

विलास-अच्छा कामना, आन तुम्ही देखो। और, तुम तो इन लोगों में मुख्य हो भी।

सब-ठीक कहा।

वलास-अच्छा,तो कामना ? इस खेल की तुम रानी बनोगी। जब तुम कहोगी तभी यह खेल बंद होगा-समझी ?

सब-अच्छी बात है।

(विलास चंद्रहार और कंकण लाकर कामना को पहनाता है । सब आश्चर्य से देखते हैं)

विनोद और लीला-कामना रानी है।

विलास-सचमुच रानी है।

(कामना के संकेत करने पर नृत्य आरम्भ होता है, और विलास गाता है । सब उसका अनुकरण करते हैं)

पी ले प्रेम का प्याला ।

भर ले जीवन-पात्र में यह अमृतमय हाला।

सृष्टि विकासित हो आँखों में, मन हो मतवाला।

मधुप पी रहे मधुर मधु, फूलो का सानंद ;

तारा-मद्यप-मंडली चषक भरा यह चंद ।

सजा आपानक निराला । पी ले०। [ ४४ ](सब उन्मत्त होकर नाचते-नाचते मद्यप की चेष्टा करते है । विवेक का प्रवेश । आश्चर्य चकित होकर देखता है )

क्लिास-कौन?

विवेक-यह नरक है या स्वर्ग ?

विलास-बुड्डे इसे स्वर्ग कहते हैं। तुम कैसे जान गये?

विवेक-तो इसी स्वर्ग में नरक की सृष्टि होगी। भागो-मागो।

विलास-पागल है।

सब-(उन्मत्त होकर विवेक क्षोभ से भागता है)

[यवनिका-पतन]