कामना/2.6

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कामना  (1927) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

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छठा दृश्य

स्थान-शांतिदेव का घर

लालसा-मेरा कोई नहीं है, साथी, जीवन का संगी और दुख मे सहायक कोई नहीं है। अब यह

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कामना

जीवन बोझ हो रहा है। क्या करूँ, अकेली बैठी हूँ, इतना सोना है, परंतु इसका भोग नही, इसका सुख नहीं । ओह । ( उठती और मदिरा का पात्र भरकर पीती है ) परंतु नहीं, यह जीवन, जिसके लिए अनंत सुख-साधन है, रोकर बिता देने के लिए नहीं है। सब सुखी हैं, सब सुख की चेष्टा में है, फिर मैं ही क्यों कोने में बैठकर रुदन करूँ ? देखो, कामना रानी है। वह भी तो इसी द्वीप की एक लड़की है। फिर कौन-सी बात ऐसी है, नो मेरे रानी होने मे बाधक है ? मै भी रानी हो सकती हूँ, यदि विलास को-हॉ, क्यो नही । ( अपने आभूषणों को देखती है, वेश-भूषा सँवारती है, और गाती है)-

किसे नहीं चुभ जाय, नैनों के तीर नुकीले ?
पलकों के प्याले रसीले, अलकों के फंदे गॅसीले,
कौन देखूँ बच जाय, नैनों के तीर नुकीले ।

(विलास का प्रवेश)

विलास-लालसा । लालसा ! यह कैसा संगीत है ? यह अमृत-वर्षा ! मुझे नही विदित था कि इस मरुभूमि में मीठे पानी का सोता छिपा हुआ बह रहा है। इधर से चला जा रहा था, अकस्मात् यह मनोहर

७२ [ ७३ ] ध्वनि सुनाई पड़ी। मैं आगे न जा सका, लौट आया।

लालसा-(बड़ी रुखाई से देखती हुई) आप ! आप कौन है ? हॉ, आप हैं । अच्छा, आ ही गये तो बैठ जाइये।

विलास-सुंदरी ! इतना निष्ठुर विभ्रम | इतनी अंतरात्मा को मसलकर निचोड़ लेने वाली रुखाई ! तभी तुम्हारे सामने हार मानने की इच्छा होती है ।

लालसा-इच्छा होती है, हुआ करे, मै किसी की इच्छा को रोक सकती हूँ।

विलास-परंतु पूरी कर सकती हो ।

लालसा-स्वयं रानी पर जिसका अधिकार है, उसकी कौन-सी अपूर्ण इच्छा होगी ?

विलास-अब मुझी पर मेरा अधिकार नही रहा।

लालसा-देखती हूँ, बहुत-सी बाते भी आपसे सीखी जा सकती हैं

विलास-इसका मुझे गर्व था, परंतु आज जाता रहा । मेरी जीवन-यात्रा मे इसी बात का सुख था कि मुझ पर किसी स्त्री ने विजय नहीं पाई, परंतु वह झूठा गर्व था। आज-

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[ ७४ ]

कामना

लालसा-तो क्या मै सचमुच सुंदरी हूँ ?

विलास-इसमे प्रमाण की आवश्यकता नहीं ।

लालसा-परंतु मै इसको जॉच लूंगी, तब मानूंगी । दो-एक लोगो से पूछ लूं। कही मुझे झूठा प्रलोभन तो नहीं दिया जा रहा है ।

विलास-लालसा, मैं मानता हूँ। (स्वगत) अब तो भाव और भाषा मे कृत्रिमता आ चली।

लालसा-फिर किसी दिन, मुझे अपना मूल्य लगा लेने दीजिये।

विलास-अच्छा, एक बार वही गान तो सुना दो।

लालसा-जब मंत्री महाशय की आज्ञा है, तब तो पूरी करनी ही पड़ेगी। अच्छा, एक पात्र तो ले लीजिये।

(गाती है-पिलाती है)-

किसे नहीं चुभ जाय 'इत्यादि

विलास-कोई नहीं, कोई नहीं, इस अस्त्र से कौन बच सकता है ? अच्छा तो फिर किसी दिन ।

(लालसा विचित्र भाव से सिर हिला देती है। विलास जाता है)

(लीला का प्रवेश)

लालसा-आओ सखी, बहुत दिनों में दिखाई पड़ी।

७४ [ ७५ ] लीला-नित्य आने-आने करती हूँ, परंतु-

लालसा-परंतु विनोद से छुट्टी नही मिलती।

लीला-विनोद, वह तो एक निष्ठुर हत्यारा हो उठा है। उसको मृगया से अवकाश नहीं ।

लालसा-तब भी तुम्हारी तो चैन से कटती है।

(सकेत करती है)

लीला-चुप, तू भी वही-

लालसा-आह, यह लो-

लीला--मन नहीं लगा, तो तेरे पास चली आई।

लालसा-तो मेरे पास मन लगने की कौन-सी वस्तु है ? अकेली बैठी हुई दिन बिताती हूँ। गाती हूँ, रोती हूँ, और सोती हूँ।

लीला-तेरे आभूषणो की तो द्वीप-भर मे धूम है।

लालसा-परंतु दुर्भाग्य की तो न कहोगी।

लीला-तू तो बात भी लम्बी-चौड़ी करने लगी। अभी-अभी तो देखा, विलास चले जा रहे हैं।

लालसा-और तू कहाँ से आ रही है, वह भी बताना पड़ेगा।

लीला-चुप, देख, रानी आ रही हैं।

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कामना

(रक्षकों के साथ रानी का प्रवेश । लालसा और लीला स्वागत करती हैं। संकेत करने पर सैनिक बाहर चले जाते हैं)

कामना-लालसा, तू लोगो से अब कम मिलती है, यह क्यो ?

लालसा-रानी, जी नहीं चाहता।

कामना-इसी से तो मै स्वयं चली आई।

लालसा-यह आपकी कृपा है कि प्रजा पर इतना अनुग्रह है।

लीला-रानी, इसे बड़ा दुःख है ।

कामना-मेरे राज्य मे दुःख ।

लालसा-हॉ रानी । मै अकेली हूँ। अपने स्वर्ण के लिए दिन-रात भयभीत रहती हूँ।

कामना-लालसा, सबके पास जब आवश्यकता- नुसार स्वर्ण हो जायगा, तभी यह अशांति दबेगी।

लालसा-रानी, यदि क्षमा मिले, तो एक उपाय बताऊँ।

रानी-हॉ-हाँ, कहो।

लालसा-यह तो सबको विदित है कि शांति- देव के पास बहुत सोना है। परंतु यह कोई नहीं जानता कि वह कहाँ से आया ।

७६ [ ७७ ] लीला-हॉ-हॉ, बताओ, वह कहाँ से आया ?

लालसा-नदी-पार के देश से। आज तक इधर के लोग न-जाने कब से यही जानते थे कि उस पार न जाना, उधर अज्ञात प्रदेश है। परंतु शांतिदेव ने साहस करके उधर की यात्रा की थी, वह बहुत-से पशुओ और असभ्य मनुष्यों से बचते हुए वहाँ से यह सोना ले आये। जब नदी के इस पार आये, तो लोगो ने देख लिया, और इसी से उनकी हत्या भी हुई।

कामना-हाँ । ( आश्चर्य प्रगट करती है)

लालसा-हॉ रानी, और उन हत्यारो को आन तक दंड भी नहीं मिला।

लीला-रानी, उसमे तो व्यर्थ विलम्ब हो रहा है। अवश्य कोई कठोर दंड उन्हे मिलना चाहिये । बेचारा शांतिदेव ।

कामना-अच्छा, चलो, आज मृगया का महो- त्सव है, वही सब प्रबंध हो जायगा।

(सब जाते है)

[पट-परिवर्तन]