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कुरल-काव्य/परिच्छेद ३९ राजा

विकिस्रोत से
कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ १८६ से – १८७ तक

 

 

परिच्छेद ३९
राजा

राष्ट्र, दुर्ग, मंत्री, सखा, धन, सैनिक नरसिंह।
ये छै जिसके पास हैं, भूपों में वह सिंह॥१॥
साहस, बुद्धि, उदारता, कार्यशक्ति आधार।
आवश्यक ये सर्वथा, भूपति में गुण चार॥२॥
शासक में ये जन्म से, होते अतिशय तीन।
छानवीन, विद्याविपुल, निर्णयशक्ति प्रवीन॥३॥
कभी न चूके धर्म से, पापों को अरि रूप।
हठ से रक्षक मान का, वीर वही सच भूप॥४॥
शासन के प्रति अंग में, कैसे हो विस्फूर्ति।
और वृद्धि निज कोष की, क्योंकर होगी पूर्ति॥
धन का कैसा आय व्यय, क्या रक्षा कर्तव्य।
निजहितकांक्षी भूप को, ये सब हैं ज्ञातव्य॥५॥ (युग्म)
जिस भूपति के पास में, पहुँच सके सब राज्य।
परुष वचन जिसके नहीं, उसका उन्नत राज्य॥६॥
जिसका शासन प्रेममय, तथा उचित प्रियदान।
उस नृप की शुभ कीर्ति का, भूभर में सम्मान॥७॥
न्याय करे निष्पक्ष हो, पालन की रख देव।
ऐसा भूपति धन्य है, पृथ्वी में वह देव॥८॥
कर्णकटुक भी शब्द जो, सुन सकता भूपाल।
छत्रतले वसुधा बसे, उस नृप के सब काल॥९॥
जो नृप न्याय, उदारता, सेवा, करुणाज्योति।
भूपों में उस भूप की, सब से उज्ज्वल ज्योति॥१०॥

 

परिच्छेद ३९
राजा

१—जिसके सेना, लोकसंख्या, धन, मंत्रिमण्डल, सहायकमित्र, और दुर्ग ये छै यथेष्ट रूप में है, वह नृपमण्डल में सिंह है।

२—राजा में साहस, उदारता, बुद्धिमानी और कार्यशक्ति, इन बातों का कभी अभाव नहीं होना चाहिए।

३—जो पुरुष इस पृथ्वी पर शासन करने के लिए उत्पन्न हुए है उन्हें चौकसी, जानकारी और निश्चयबुद्धि, ये तीनों खूबियाँ कभी नही छोड़ती।

४—राजा को धर्म करने में कभी न चूकना चाहिए और अधर्म को सदा दूर करना चाहिए। उसे स्पर्धापूर्वक अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करनी चाहिए, परन्तु वीरता के नियमों के विरुद्ध दुराचार कभी न करना चाहिए।

५—राजा को इस बात का ज्ञान रखना चाहिए कि अपने राज्य के साधनों की विस्फूर्ति और वृद्धि किस प्रकार की जाय और खजाने की पूर्ति किस प्रकार हो, धन की रक्षा किस रीति से की जावे और किस प्रकार समुचित रूप से उसका व्यय किया जावे।

६—यदि समस्त प्रजा की पहुँच राजा तक हो और राजा कभी कठोर वचन न बोले तो उसका राज्य सबसे ऊपर रहेगा।

७—जो राजा प्रीति के साथ दान दे सकता है और प्रेम के साथ शासन करता है उसका यश जगत भर में फैल जायगा।

८—धन्य है वह राजा, जो निष्पक्ष होकर न्याय करता है और अपनी प्रजा की रक्षा करता है। वह मनुष्यों में देवता समझा जायगा।

९—देखो, जिस राजा में कानो को अप्रिय लगने वाले वचनों को सहन करने का गुण है, पृथ्वी निरन्तर उसकी छत्रछाया में रहेगी।

१०—जो राजा उदार, दयालु तथा न्यायनिष्ठ है और जो अपनी प्रजा की प्रेमपूर्वक सेवा करता है, वह राजाश्री के मध्य में ज्योतिस्वरूप है।