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कुरल-काव्य/परिच्छेद ५९ गुप्तचर

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कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ २२६ से – २२७ तक

 

 

परिच्छेद ५९
गुप्तचर

राज्यस्थिति के ज्ञान को, भूपति के दो नेत्र।
पहिला उनमें 'नीति' है, दूजा 'चर' है नेत्र॥१॥
राजा के कर्तव्य में, यह भी निश्चित काम।
देखे नृप चरचक्षु से, नरचर्या प्रतियाम॥२॥
चर से या निज दूत से, घटनाएँ विज्ञात।
जिस नृप को होती नही, उसे विजय क्या तात॥३॥
रिपु, बान्धव या भृत्य की, गति मति के बोधार्थ।
रक्खे चर को नित्य नृप, जो दे बाव यथार्थं॥४॥
जिसकी मुखमुद्रा नहीं, करती कुछ सन्देह।
वाक्यचतुर, निजमर्म का रक्षक चर गुणगेह॥५॥
साधु तपस्वीवेश में, रक्षित करके मर्म।
भाँति भाँति के यत्न से, साधे चर निजकर्म॥६॥
लेने में परमर्म को, जो है सहज प्रवीण।
जिसकी खोजें सत्य हों, वह ही प्रणिधि-धुरीण॥७॥
पूर्व प्रणिधि[] की सूचना, करे नृपति तब मान्य।
उसमें परचर-उक्ति से, जत्र आवे प्रामाण्य॥८॥
आपस में अज्ञात हों, ऐसे चर दें कार्य।
तीन कहें जब एक से, तन समझो सच आर्य॥९॥
पुरस्कार निजराज्य के, चर का करो न ख्यात।
सर्वराज्य ही अन्यथा, होगा पर को ज्ञात॥१०।॥

 

परिच्छेद ५९
गुप्तचर

१—राजा को यह ध्यान में रखना चाहिए कि राजनीति और गुप्तचर ये दो आँखे है जिनसे वह देखता है।

२—राजा का काम है कि कभी कभी प्रत्येक मनुष्य की प्रत्येक बात की प्रतिदिन खबर रक्खे।

३—जो राजा गुप्तचरों और दूतों के द्वारा अपने चारों ओर होने वाली घटनाओ की खबर नही रखता उसके लिए दिग्विजय नहीं है।

४—राजा को चाहिए कि अपने राज्य के कर्मचारियों, अपने बन्धु-बान्धवों और शत्रुओं की गतिमति को देखने के लिए गुप्तचर नियत कर रक्खे।

५—जो आदमी अपनी मुखमुद्रा का ऐसा भाव बना सके कि जिससे किसी को सन्देह न हो और किसी भी आदमी के सामने गड़बड़ाये नही तथा जो अपने गुप्त भेदो को किसी तरह प्रगट न होने दे, भेदिया का काम करने के लिए वही ठीक आदमी है।

६—गुप्तचरों और दूतों को चाहिए कि वे साधु-सन्तो का वेश धारण करे और खोजकर सच्चा भेद निकाल ले, किन्तु चाहे कुछ भी हो जाय वे अपना भेद न बतावे।

७—जो मनुष्य दूसरों के पेट से भेद की बाते निकाल सकता है और जिसकी गवेषणा सदा शुद्ध तथा निस्सन्दिग्ध होती है वही भेद लगाने का काम करने लायक है।

८—एक गुप्तचर के द्वारा जो सूचना मिलती है, उसको दूसरे चर की सूचना से मिलाकर जाचना चाहिए।

९—इस बात का ध्यान रखो कि कोई गुप्तचर उसी काम में लगे हुए दूसरे गुप्तचर को न जानने पावे और जब तीन चरो की सूचनाएँ एक दूसरे से मिलती हो, तब उन्हें सच्चा मानना चाहिए।

१०—अपने गुप्तचरों को उजागर रूप मे पुरस्कार मत दो, क्योकि यदि तुम ऐसा करोगे तो अपने सारे राज्य का गुप्त रहस्य खोल दोगे।

  1. गुप्तचर।