कुरल-काव्य/परिच्छेद ७४ देश

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परिच्छेद ७४
देश

बढ़ी चढ़ी कृषि हो जहाँ, धार्मिक हों धनवान।
ज्ञानमूर्ति ऋषिवर्ग हो, वह ही देश महान॥१॥
धन से मोहे विश्व को, होवे स्वास्थ्यनिदान।
अन्नवृद्धि को ख्यात जो, वह ही देश महान॥२॥
सहे धैर्य से वार को, कर को पूर्ण निधान।
वीरों की जो भूमि हो, वह ही देश महान॥३॥
रोग-मरी-दुर्भिक्ष का, जहाँ न आता ध्यान।
रक्षित हो सब ओर से, वह ही देश महान॥४॥
बटा नही जो फूट से, खण्ड-खण्ड में देश।
विपलबकारी क्रूरजन, बसे नहीं जिस देश॥
और न देशद्रोह ही, होता हो कुछ भान।
जिस में ऐसी श्रेष्ठता, वह ही देश महान॥५॥ (युग्म)
नहीं लुटा जो शत्रु से, वह ही रत्न समान
लुटकर भी या भाग्यवश, रखता आय महान॥६॥
आवश्यक ज्यों देश को, कूप नदी नदनीर।
त्यों ही उसको चाहिए, पर्वत दुर्ग सवीर॥७॥
स्वास्थ्य विभव उत्तम मही, रक्षा हर्षप्रभात।
ये पाँचों प्रतिदेश को, भूषणसम हैं ख्यात॥८॥
सहज जहाँ आजीविका, वह ही उत्तम देश।
तुलना में उसकी नहीं, जुड़ते अन्य प्रदेश॥९॥
यद्यपि होवें देश में, अन्य सभी वरदान।
पर उत्तम नृपके बिना, नहीं रखें वे मान॥१०॥

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परिच्छेद ७४
देश

१—यह महान देश है जो फसल की पैदावार मे कभी नहीं चूकता और जोऋषि-मुनियो तथा धार्मिक धनिको का निवासस्थान हो।

२—वही श्रेष्ठ देश है जो धन की विपुलता से जनता का प्रीतिभाजन हो और घृणित रोगो से मुक्त होकर समृद्धिशाली हो।

३—उस महान राष्ट्र की ओर देखो, उस पर कितने ही बोझ के ऊपर बोझ पड़े वह उन्हें धैर्य के साथ सहन करेगा और साथ ही सारे कर अर्पण करेगा।

४—वही देश उच्च है जो अकाल और महामारी जैसे रोगो से उन्मुक्त है तथा जो शत्रुओं के आक्रमणों से सुरक्षित है।

५—वही उत्तम देश है जो परस्पर युद्ध करने वाले दलो में विभक्त नहीं है, जो हत्यारे क्रान्तिकारियों से रहित है और जिसके भीतर राष्ट्र का सर्वनाश करने वाला कोई देशद्रोही नही है।

६—जो देश शत्रुओं के हाथ से कभी विध्वस्त नहीं हुआ और यदि कदाचित् हो भी गया तो भी जिसकी पैदावार में थोड़ी सी भी कमी नही आती, वह देश जगत के सब देशों में रत्न माना जायगा।

७—पृथ्वी के ऊपर और भीतर बहने वाला जल, वर्षाजल, उपयुक्त-स्थान को प्राप्त पर्वत और सुदृढ़ दुग ये प्रत्येक देश के लिए अनिवार्य है।

८—धन सम्पत्ति, उर्वराभूमि, प्रजा को सुख, निरोगिता और शत्रुश्री के आक्रमणों से सुरक्षा, ये पाँच बातें राष्ट्र के लिए आभूषण- स्वरूप है।

९—वही अकेला, देश कहलाने योग्य है जहाँ मनुष्यों के परिश्रम किये बिना ही प्रचुर पैदावारहोती है। जिसमे आदमियों के परिश्रम करने पर ही पैदावार हो वह इस पद का अधिकारी नहीं है।

१०—यदि किसी देश में ये सब उत्तम बात विद्यमान भी हो फिर भी वे किसी काम की नही यदि उस देश का राजा ठीक न हो।