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कुरल-काव्य/परिच्छेद ८६ उद्धतता

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कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ २८० से – २८१ तक

 

 

परिच्छेद ८६'
उद्धतता

उद्धतता से अन्य का, जो करता उपहास।
उस में इस ही दोष से, लोककृणा का वास॥१॥
कोई पड़ौसी जानकर, कलह-दृष्टि से त्रास।
देवे तो, उत्तम यही, मत जूझो दे त्रास॥२॥
कलहवृत्ति भी एक है, दुःखद बड़ी उपाधि।
उसकी कीर्ति अनन्त जो, छोड़सका यह व्याधि॥३॥
दुःखभरा औद्धत्य यह, जिसने त्यागा दूर।
उसका मन आह्लाद से, रहे सदा भरपूर॥४॥
मुक्त सदा विद्वेष से, जिनका मनोनियोग।
सर्व प्रिय इस लोक में, होते वे ही लोग॥५॥
जिसे पड़ौसी दूंष में, आता आनन्द।
अधःपतन उसका यहाँ, होगा शीघ्र अमन्द॥६॥
जो नृप मत्सर-भाव से, सब को करे विरुद्ध।
झगड़ालू उस भूप की, राज्यवृद्धि अवरुद्ध॥७॥
टाले से विग्रह सदा, ऋद्धि बड़े भरपूर।
और बढ़ाने से अहो, नहीं पतन अतिदूर॥८॥
बचे सभी आवेश से, जब हो पुण्यविशेष।
और वही हतभाग्य नर, करे पड़ौसी-द्वेष॥९॥
मानव को विद्वंष सेपल मिलता विद्वष।
शिष्टत्ति में शान्तियुत, रहे समन्वय शेष॥१०॥

 

परिच्छेद ८६
उद्धृतता

१—उजड़पन से दूसरों की हँसी उड़ाना ऐसा दुर्गुण है जिससे सभी व्यक्तियों को भीतर घृणा पैदा होती है।

२—यदि तुम्हारा पड़ोसी जानबूझकर झगड़ा करने की भावना से तुम्हें सताता है तो भी सर्वोत्तम बात यही है कि तुम अपने हृदय में बदले की भावना न रक्खो और न उसे बदले में चोट पहुँचाओ।

३—दूसरो से झगड़ा करने की आदत वास्तव में एक दुखद व्याधि है। यदि कोई व्यक्ति अपने को उससे मुक्त करले तो उसे शाश्वत प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

४—यदि तुम अपने हृदय से सबसे बड़ी बुराई अर्थात् उजड्डपन की भावना को दूर कर दो तो तुम्हे सर्वोच्च आनन्द प्राप्त होगा।

५—ऐसे व्यक्ति को कौन न चाहेगा, जिसमे विद्वेष की भावना को दूर करने की योग्यता है?

६—जो आदमी अपने पड़ोसियों के प्रति विद्वेष करने में आनन्द प्राप्त करता है उसका कुछ ही दिनो में अध पतन हो जायगा।

७—वह झगडालू स्वभाव का राजा जो सदा झगड़े में लिप्त रहता है उस नीति पर प्राचरण नहीं कर सकता जिससे राष्ट्र का अभ्युत्थान होना है।

८—झगड़े से बचने से समृद्धि प्राप्त होती है और यदि तुम झगड़े को बढ़ाने का मौका दोगे तो शीघ्र ही तुम्हारा पतन हो जायगा।

९—जब भाग्यदेवी किसी आदमी पर प्रसन्न होती है तो वह सब प्रकार की उत्तेजनाओं से बचता है, परन्तु उसके भाग्य में यदि विनाश होना बदा है तो वह अपने पड़ोसियों के प्रति विद्वेष की भावना पैदा करने से नहीं चूकता।

१०—विद्वेष का फल बुरा होता है, लेकिन भलाई का परिणाम शान्ति और समन्वयकार्य होता है।