चन्द्रकांता सन्तति २/५.१०

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चंद्रकांता संतति भाग 2  (1896) 
द्वारा देवकीनन्दन खत्री
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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुँच कर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम करेंगे और रोहतासगढ़ का सत्यानाश करके छोड़ेंगे।

जिस दिन दिग्विजयसिंह की मुलाकात गौहर से हुई थी, उसके दूसरे ही दिन दरबार के समय दिग्विजयसिंह को खबर पहुँची कि शहर में कई जगह हाथ के लिखे हुए कागज दीवारों पर चिपके हुए दिखाई देते हैं जिनमें लिखा है––"वीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग इस किले में आ पहुँचे। यदि दिग्विजयसिंह अपनी भलाई चाहें तो चौबीस घण्टे के अन्दर राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह को छोड़ दें, नहीं तो देखते-देखते रोहतासगढ़ का सत्यानाश हो जायगा और यहाँ का एक आदमी जीता न बचेगा।"

राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का हाल दिग्विजयसिंह अच्छी तरह जानता था। उसे विश्वास था कि उन लोगों का मुकाबला करने वाला दुनिया भर में कोई नहीं है। विज्ञापन का हाल सुनते ही वह काँप उठा और सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए। इन विज्ञापन की बात शहर भर में तुरंत फैल गई। मारे डर के वहाँ की रियाआ का दम निकला जाता था। सब कोई अपने राजा दिग्विजयसिंह की शिकायत करते थे और कहते थे कि कम्बख्त ने बेफायदा राजा वीरेन्द्रसिंह से वैर बाँध कर हम लोगों की जान ली।

तीनों ऐयारों ने तीन काम बाँट लिए। रामनारायण ने इस बात का जिम्मा लिया कि किसी लोहार के यहाँ चोरी करके बहुत-सी कीलें इकट्ठी करेंगे और रोहतागसढ़ में जितनी तोपें है सभी में कीलें ठोंक देंगे,[१] चुन्नीलाल ने वादा किया कि तीन दिन के अन्दर रामानन्द ऐयार का सिर काट शहर के चौमुहाने पर रक्खेंगे, और भैरोंसिंह ने तो रोहतासगढ़ ही को चौपट करने का प्रण किया था।

हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय कुन्दन (धनपति) ने तहखाने में से किशोरी को निकाल ले जाने का इरादा किया था तो बारह नम्बर की कोठरी में पहुँचने के पहले तहखाने के दरवाजे में ताला लगा दिया था। मगर रोहतासगढ़ दखल होने के बाद तहखाने वाली किताब की मदद से, जो दारोगा के पास रहा करती थी, वे दरवाजे पुनः खोल दिए गए थे और इसलिए दीवानखाने की राह से तहखाने में फिर आमद-रफ्त शुरू हो गई थी।

एक दिन आधी रात के बाद राजा दिग्विजयसिंह के पलंग पर बैठी हुई गौहर ने इच्छा प्रकट की कि मैं तहखाने में चलकर राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह को देखा चाहती [ ४९ ]हूँ। राजा दिग्विजयसिंह उसकी मुहब्बत में चूर हो रहे थे, दीन-दुनिया की खबर भूले हुए थे, तहखाने के कायदे पर ध्यान न देकर गौहर को तहखाने में ले चले।

अभी पहला दरवाजा भी न खोला था कि यकायक एक भयानक आवाज आई। मालूम हुआ कि मानों हजारों तोपें एक साथ छूटी हैं। तमाम किला हिल उठा। गौहर बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़ी, दिग्विजयसिंह भी खड़ा न रह सका।

जब दिग्विजयसिंह को होश आया, छत पर चढ़ गया और शहर की तरफ देखने लगा। शहर में बेहिसाब आग लगी हुई थी, सैकड़ों घर जल रहे थे, अग्निदेव ने अपना पूरा दखल जमा लिया था, आग के बड़े-बड़े शोले आसमान की तरफ उठ रहे थे। यह हाल देखते ही दिग्विजयसिंह ने सिर पीटा और कहा, "यह सब फसाद वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का है! बेशक उन लोगों ने मैगजीन में आग लगा दी और वह भयंकर आवाज मैगजीन के उड़ने की ही थी। हाय, आज सैकड़ों घर तबाह हो गये होंगे! इस समय वह कम्बख्त साधू अगर मेरे सामने होता तो मैं उसकी दाढ़ी नोंच लेता, जिसके बहकाने से वीरेन्द्रसिंह वगैरह को कैद किया!"

दिग्विजयसिंह घबरा कर राजमहल के बाहर निकला और तब उसे निश्चय हो गया कि जो कुछ उसने सोचा था, ठीक निकला। नौकरों ने खबर दी कि न मालूम किसने मैगजीन में आग लगा दी, जिसके सबब से सैकड़ों घर तबाह हो गए। उसी समय शहर में ऐसी आग लग गई जो अभी तक बुझाए नहीं बुझती। खबर के सुनते ही दिग्विजयसिंह अपने कमरे में लौट गया और बदहवास होकर गद्दी पर गिर पड़ा।

बेशक यह सब काम वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का ही था। इस आग-लगी में रामनारायण को भी तोपों में कीलें ठोंकने का खूब मौका हाथ लगा। रामानन्द दीवान घबरा कर घर से बाहर निकला और तहकीकात करने के लिए अकेला ही शहर की तरफ चला। रास्ते में चुन्नीलाल ने हाथ पकड़ लिया और कहा, "दीवानजी, बन्दगी!" बेमौके की बन्दगी से रामानन्द कुढ़ उठा और उसने चुन्नीलाल पर तलवार चलाई। चुन्नीलाल उछल कर दूर जा खड़ा हुआ और उस वार को बचा गया, मगर चुन्नीलाल के वार ने रामानन्द का काम तमाम कर दिया। उसकी भुजाली रामानन्द की गर्दन पर ऐसी बैठी कि सिर कट कर दूर जा गिरा।

अब हमको यह भी लिखना चाहिए कि भैरोंसिंह ने किस तरह मैगजीन में आग लगाई। भैरोंसिंह ने एक मोमबत्ती ऐसी तैयार की जो केवल दो घण्टे तक जल सकती थी अर्थात् उसमें दो घण्टे से ज्यादे देर तक जलने लायक मोम न था, और उस मोमबत्ती के बीचों-बीच में आतिशबाजी का एक अनार बनाया जिसमें आधी मोमबत्ती जब जल जाय तो आप से आप अनार में आग लगे। जब इस तरह की मोमबत्ती तैयार हो गई तो उसने अपने दोनों साथियों से कहा कि "मैं मैगजीन में आग लगाने जाता हूँ, अपनी फिक्र आप कर लूँगा। तुम लोग किसी ऐसी जगह जाकर छिपो जहाँ मैदान या किले की मजबूत दीवार हो, मगर इसके पहले शहर में आग लगा दो।" इसके बाद भैरोंसिंह मैगजीन के पास पहुँचे और इस फिक्र में लगे कि मौका मिले तो कमन्द लगा कर उसके अन्दर जायँ। [ ५० ]यह इमारत बहुत बड़ी तो न थी, मगर मजबूत थी। दीवार बहुत चौड़ी और ऊँची थी। फाटक बहुत बड़ा और लोहे का था। पहरे पर पचास आदमी नंगी तलवारें लिये हर वक्त मुस्तैद रहते थे। इस मैगजीन के चारों तरफ से कोई आदमी आग लेकर नहीं जाने पाता था।

चन्द्रमा अस्त हो गया और पिछली रात की अँधेरी चारों तरफ फैल गई। निद्रादेवी की हुकूमत में सभी पड़े हुए थे यहाँ तक कि पहरे वालों की आँखें भी झिपी पडती थीं। उसी समय मौका पाकर भैरोंसिंह ने मैगजीन के पिछली तरफ कमन्द लगाई। दीवार के ऊपर चढ़ जाने के बाद कमन्द खींच ली और फिर उसी के सहारे उतर गए। मैगजीन के अन्दर हजारों थैले बारूद के गँजे हुए पड़े थे, तोप के गोलों का ढेर लगा हुआ था, बहुत-सी तोपें भी पड़ी हुई थीं। भैरोंसिंह ने यह मोमबत्ती जलाई और बारूद के थैलों के पास जमीन पर लगाकर खड़ी कर दी, इसके बाद फुर्ती से मैगजीन के बाहर हो गए और जहाँ तक दूर निकल जाते बना, निकल गए। उसी के घण्टे भर बाद (जब मोमबत्ती का अनार छूटा होगा) बारूद में आग लगी और मैगजीन की इमारत जड़ बुनियाद से नष्ट हो गई। हजारों आदमी मरे और सैकड़ों मकान गिर पड़े, बल्कि यों कहना चाहिए कि उसकी आवाज से रोहतासढ़ का किला दहल उठा, जरूर कई कोस तक इसकी भयानक आवाज गई होगी। पहाड़ी के नीचे वीरेन्द्रसिंह के लश्कर में जब यह आवाज पहुँची तो दोनों सेनापति समझ गए कि मैगजीन में आग लगी, क्योंकि ऐसी भयानक आवाज सिवाय मैगजीन उड़ने के और किसी तरह से नहीं हो सकती। बेशक यह काम भैरोंसिंह का है।

मैगजीन उड़ने का विश्वास होते ही दोनों सेनापति बहुत प्रसन्न हुए और समझ गए कि अब रोहतासगढ़ का किला फतह कर लिया, क्योंकि जब बारूद का खजाना ही उड़ गया तो किले वाले तोपों के जरिये से हमें कैसे रोक सकते हैं। दोनों सेनापतियों ने यह सोचकर, कि अब विलम्ब करना मुनासिब नहीं है, किले पर चढ़ाई कर दी और दो हजार आदमियों को साथ ले नाहरसिंह पहाड़ पर चढ़ने लगा। यद्यपि दोनों सेनापति इस बात को समझते थे कि मैगजीन उड़ गई है, तो भी कुछ बारूद तोपखाने में जरूर होगी, मगर यह खयाल उनके बढ़े हुए हौसले को किसी तरह रोक न सका।

इधर दिग्विजयसिंह अपनी जिन्दगी से बिल्कुल नाउम्मीद हो बैठा। जब उसे यह खबर पहुँची कि रामानन्द दीवान (या ऐयार) भी मारा गया और बहुत-सी तोपें भी कील ठुक जाने के कारण बर्बाद हो गईं, तब वह और बेचैन हो गया और मालूम होने लगा कि मौत नंगी तलवार लिए सामने खड़ी है। वह पहर दिन चढ़े तक पागलों की तरह चारों तरफ दौड़ता रहा और तब एकान्त में बैठकर सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए। जब उसे जान बचाने की कोई तरकीब न सूझी और यह निश्चय हो गया कि अब रोहतासगढ़ का किला किसी तरह नहीं रह सकता और दुश्मन लोग भी मुझे किसी तरह जीता नहीं छोड़ सकते, तब वह हाथ में नंगी तलवार लेकर उठा और तहखाने की ताली निकाल कर यह कहता हुआ तहखाने की तरफ चला कि "जब मेरी जान बच ही नहीं सकती तो वीरेन्द्रसिंह और उनके लड़कों वगैरह को क्यों जीता छोडूँ? [ ५१ ]आज मैं अपने हाथ से उन लोगों के सिर काटूँगा!"

दिग्विजयसिंह हाथ में नंगी तलवार लिए हुए अकेला ही तहखाने में गया, मगर जब उस दालान में पहुँचा जिसमें हथकड़ियों और बेड़ियों से कसे हुए वीरेन्द्रसिंह वगैरह रखे गए थे, तो उसको खाली पाया। वह ताज्जुब में आकर चारों तरफ देखने और सोचने लगा कि कैदी लोग कहाँ गायब हो गए। मालूम होता है कि यहाँ भी ऐयार लोग आ पहुँचे, मगर देखना चाहिए कि किस राह से पहुँचे?

दिग्विजयसिंह उस सुरंग में गया जो कब्रिस्तान की तरफ निकल गई थी। वहाँ का दरवाजा उसी तरह बन्द पाया जैसा कि उसने अपने हाथ से बन्द किया था। आखिर लाचार सिर पीटता हुआ लौट आया और दीवानखाने में बदहवास होकर गद्दी पर गिर पड़ा।

  1. तोप में रंजक देने की जो प्याली होती है, उसके छेद में कील ठोंक देने से तोप बेकाम हो जाती है।