चन्द्रकांता सन्तति 3/9.12

विकिस्रोत से
चंद्रकांता संतति भाग 3  (1896) 
द्वारा देवकीनंदन खत्री

[ ५९ ]

12

शाम होने में कुछ भी बिलम्ब नहीं है। सूर्य भगवान अस्त हो गये केवल उनकी लालिमा आसमान के पश्चिम तरफ दिखाई दे रही है। दारोगा वाले बंगले में रहने वालों के लिए यह अच्छा समय है परन्तु आज उस बँगले में जितने आदमी दिखाई दे रहे हैं वे सब इस योग्य नहीं हैं कि बेफिक्री के साथ इधर-उधर घूमें और इस अनूठे समय का आनन्द लें। यद्यपि राजा गोपालसिंह, कमलिनी और लाड़िली की तरफ से मायारानी निश्चिन्त हो गई बल्कि उनके साथ ही साथ दो ऐयारों को भी उसने गिरफ्तार कर लिया है मगर अभी तक उसका जी ठिकाने नहीं हुआ। वह नहर के किनारे बैठी हुई बाबाजी से बातें कर रही है और इस फिक्र में है कि कोई ऐसी तरकीब निकल आवे कि जमानिया की गद्दी पर बैठ कर उसी शान के साथ हुकूमत करे, जैसा कि आज के कुछ दिन पहले कर रही थी। उसके पास केवल नागर बैठी हुई दोनों की बातें सुन रही है।

मायारानी—जिस दिन से आपको वीरेन्द्रसिंह ने गिरफ्तार कर लिया उसी दिन से मेरी किस्मत ने ऐसा पलटा खाया कि जिसका कोई हदहिसाब नहीं, मानो मेरे लिए जमाना ही और हो गया। एक दिन भी सुख के साथ सोना नसीब न हुआ। मुझ पर मसीबतें आई और तिलिस्मी बाग के अन्दर जो-जो अनहोनी बातें हुईं उनका खुलासा हाल आज मैं आपसे कह चुकी हूँ। इस समय यद्यपि राजा गोपालसिंह, कमलिनी और लाड़िली की तरफ से निश्चिन्त हूँ मगर फिर भी अपनी अमलदारी में या तिलिस्मी बाग के अन्दर जाकर रहने का हौसला नहीं पड़ता, क्योंकि तिलिस्मी बाग के अन्दर दोनों नकाबपोशों के आने और धनतपत का भेद खुल जाने से हमारे सिपाहियों की हालत बिल्कुल ही बदल गई है और मुझे उनके हाथों से दुःख भोगने के सिवाय और किसी तरह की उम्मीद नहीं है। यह भी सुनने में आया है कि दीवान साहब मुझे गिरफ्तार करने की फिक्र में पड़े हुए हैं।

बाबा-दीवान जो कुछ कर रहा है उससे मालूम होता है कि या तो उसे राजा गोपालसिंह का असल-असल हाल मालूम हो गया है और वह उन्हें फिर जमानिया की [ ६० ] गद्दी पर बैठाना चाहता है, या वह स्वयं राजा साहब के बारे में धोखा खा रहा है और चाहता है कि तुम्हें गिरफ्तार कर राजा वीरेन्द्रसिंह के हवाले करे और उनकी मेहरबानी के भरोसे पर स्वयं जमानिया का राजा बन बैठे। तुम कह चुकी हो कि राजा वीरेन्द्रसिंह की बीस हजार फौज मुकाबले में आ चुकी है जिसका अफसर नाहरसिंह है। अब सोचना चाहिए कि नाहरसिंह के मुकाबले में आ जाने पर भी चुपचाप बैठे रहना बेसबब नहीं है और..

मायारानी-शायद इसका सबब यह हो कि दीवान ने मुझको गिरफ्तार करके वीरेन्द्रसिंह के हवाले कर देने की शर्त पर उनसे सुलह कर ली हो?

बाबा-ताज्जुब नहीं, ऐसा ही हो, मगर घबराओ नहीं मैं दीवान के पास जाऊँगा और देखूँगा कि वह किस ढंग पर चलने का इरादा करता है। अगर बदमाशी करने पर उतारू है तो मैं उसे ठीक करूँगा। हाँ यह तो बताओ कि दीवान को तुम्हारी तिलिस्मी बातों या तिलिस्मी कारखाने का भेद तो किसी ने नहीं दिया?

मायारानी-जहाँ तक मैं समझती हूँ उसे तिलिस्मी कारखाने में कुछ दखल नहीं है, मगर इस बात को मैं जोर देकर नहीं कह सकती क्योंकि वे दोनों नकाबपोश हमारे तिलिस्मी बाग के भेदों से बखूबी वाफिक हैं जिनका हाल मैं आपसे कह चुकी हूँ, बल्कि ऐसा कहना चाहिए कि बनिस्बत मेरे वे ज्यादा जानकार हैं क्योंकि अगर ऐसा न होता तो वे मेरी उन तरकीबों को रद्द न कर सकते, जो उनके फंसाने के लिए की गई थीं। ताज्जुब नहीं कि उन दोनों ने दीवान से मिलकर तिलिस्म का कुछ हाल भी उससे कहा हो।

बाबा-खैर कोई हर्ज नहीं, देखा जायेगा। मैं कल जरूर वहाँ जाऊँगा और दीवान से मिलूँगा।

मायारानी-नहीं, बल्कि आप आज ही जाइये और जहाँ तक जल्दी हो सके, कुछ बन्दोबस्त कीजिये, क्योंकि अगर दीवान के भेजे हुए सौ-पचास आदमी मुझे ढूंढते हुए यहाँ आ जायेंगे, तो सख्त मुश्किल होगी। यद्यपि यह तिलिस्मी खंजर मुझे मिल गया है और तिलिस्मी गोली से भी मैं सैकड़ों की जान ले सकती हूँ मगर उस समय मेरे किए कुछ भी न होगा जब किसी ऐसे से मुकाबला हो जाये जिसके पास कमलिनी का दिया हुआ इसी प्रकार का खंजर मौजूद होगा।

बाबा-तथापि इस बँगले में आकर तुम्हें कोई सता नहीं सकता।

मायारानी--ठीक है मगर मैं कब तक इसके अन्दर छिप कर बैठी रहूँगी? आखिर भूख-प्यास भी तो कोई चीज है!

बाबा-मगर ऐसा होना बहुत मुश्किल है!

मायारानी-तो हर्ज ही क्या है अगर आप इसी समय दीवान के पास जायें? मैं खूब जानती हूँ कि वह आपकी सूरत देखते ही डर जायेगा।

बाबा-क्या तुम्हारी यही मर्जी है कि मैं इसी समय जाऊँ?

मायारानी- हाँ, जाइए और अवश्य जाइए।

बाबा-अच्छा यही सही, मैं जाता हूँ। [ ६१ ] बाबाजी उसी समय उठ खड़े हुए और जमानिया की तरफ रवाना हो गए। मायारानी तब तक बराबर देखती रही जब तक कि वे पेड़ों की आड़ में होकर नजरों से गायब न हो गये। इसके बाद हँसकर नागर की तरफ देखा और कहा

मायारानी-तुम समझती हो कि बाबाजी को मैंने जिद करके इसी समय यहाँ से क्यों धता बतायी?

नागर-जाहिर में जो कुछ तुमने बाबाजी से कहा है और जिस काम के लिए उन्हें भेजा है यदि उसके सिवाय और कोई मतलब है तो मैं कह सकती हूँ कि मेरी समझ में कुछ न आया।

मायारानी-(हँस कर) अच्छा तो अब मैं समझा देती हूँ। बाबाजी के सामने मैंने अपने को जितना बताया वास्तव में मेरे दिल में उतना दुःख और रंज नहीं है, क्योंकि जिसका डर था, जिसके निकल जाने से मैं परेशान थी, जिसका प्रकट होना मेरे लिए मौत का सबब था और जो मुझसे बदला लिए बिना मानने वाला न था, अर्थात् गोपालसिंह, वह मेरे कब्जे में आ चुका। अब अगर दुःख है तो इतना ही कि कम्बख्त दारोगा ने उसे मारने न दिया। मगर मैं बिना उसकी जान लिए कब मानने वाली हूँ, इसलिए मैंने किसी तरह बाबाजी को यहाँ से धता बतायी।

नागर–तो क्या तुम्हारा मतलब यह था कि बाबाजी यहाँ से बिदा हो जायें तो अपने कैदियों को मार डालो?

मायारानी-बेशक इसी मतलब से मैंने बाबाजी को यहाँ से निकाल बाहर किया क्योंकि अगर वह रहता तो कैदियों को मारने न देता और उसमें जो कुछ करामात है सो तुम देख ही चुकी हो। अगर ऐसा न होता तो मैं सुरंग ही में उन सभी को मारकर निश्चिन्त हो जाती।

नागर-मगर बाबाजी ने उस कोठरी की ताली तो तुम्हें दी नहीं जिसमें कैदियों को रखा है।

मायारानी–ठीक है बाबाजी इस एक बात में चालाकी कर गए। कैदखाने की कोठरी क्योंकर खुलती है सो मुझे नहीं बताया और न कोई ताली वहाँ की मुझे दी, मगर यह मैं पहले ही समझे हुई थी कि बाबाजी कैदियों को जरूर किसी ऐसी जगह रखेंगे, जहाँ मैं जा नहीं सकती, इसलिए तो बाबाजी से मैंने कहा कि कैदियों को मैगजीन के बगल वाली कोठरी में कैद करो। बाबाबाजी मेरा मतलब नहीं समझ सके और धोखे में आ गये।

नागर-इस से तो यही जाहिर होता है कि उस कोठरी में तुम जा सकती हो।

मायारानी- नहीं, उस कोठरी में मैं नहीं जा सकती, मगर मैगजीन की कोठरी तक जा सकती हूँ।

नागर-(जोर से हँसकर) अहा हा, अब मैं समझी! तुम्हारा मतलब यह कि मैगजीन में जहाँ बारूद रखा है वहाँ जाओ और उसमें आग लगाकर इस..


1. अर्थात् बिदा किया। [ ६२ ]मायारानी-बस-बस यही है, कैदी और कैदखाने की क्या बात इस बंगले का ही सत्यानाश कर दूँगी। कैदियों की हड्डी तक का तो पता लगेगा ही नहीं! अच्छा अब इस काम में विलम्ब न करना चाहिए, उठो और मेरे साथ चलकर उस कोठरी में अर्थात् मैगजीन में कोई ऐसी चीज रखो जो उस वक्त बारूद में आग लगावे, जब हम लोग यहाँ से निकल कर कुछ दूर चली जायें।

नागर-ऐसा ही होगा, यह कोई मुश्किल बात नहीं है।