चन्द्रकांता सन्तति 3/9.3
कुँवर आनन्दसिंह के जाने के बाद इन्द्रजीतसिंह देर तक उनके आने की राह देखते रहे। जैसे-जैसे देर होती थी, जी बेचैन होता जाता था। यहाँ तक कि तमाम बीत गई, सवेरा हो गया, और पूरब तरफ से सूर्य भगवान दर्शन देकर धीरे-धीरे आसमान पर चढ़ने लगे। जब पहर भर से ज्यादा दिन चढ़ गया, तब इन्द्रजीतसिंह नदी बेताब हुए और उन्हें निश्चय हो गया कि आनन्दसिंह जरूर किसी आफत में फंस गये।
कुँवर इन्द्रजीतसिंह सोच ही रहे थे कि स्वयं चल के आनन्दसिंह का पता लगाना कि इतने ही में लाड़िली को साथ लिए हुए कमलिनी वहाँ आ पहुँची। इन्हें देख की बेचैनी कुछ कम हुई और आशा की सूरत दिखाई देने लगी। कमलिनी ने जब कुमार को उस जगह अकेले और उदास देखा तो उसे ताज्जुब हुआ, मगर वह बुध्दिमान औरत तुरत ही समझ गई कि इनके छोटे भाई आनन्दसिंह इनके साथ नहीं दिखाई देते जरूर वे किसी मुसीबत में पड़ गए हैं, और ऐसा होना कोई ताज्जुब की बात क्योंकि यह तिलिस्म का मौका है, और यहाँ का रहने वाला थोड़ी भूल में तकलीफ उठा सकता है।
कमलिनी ने कुँवर इन्द्रजीतसिंह से उदासी का कारण और कुंअर आनन्दसिंह के का सबब पूछा, जिसके जवाब में इन्द्रजीतसिंह ने जो कुछ हुआ था, बयान करके कहा कि "आनन्द को गए हुए नौ घंटे के लगभग हो गये।"
समय कोई लाड़िली की सूरत गौर से देखता तो बेशक समझ जाता कि आनन्दसिंह का हाल सुनकर उसको हद से ज्यादा रंज हुआ है। ताज्जुब नहीं कि कम और इन्द्रजीतसिंह भी उसके दिल की हालत जान गये हों, क्योंकि वह अपनी आंखों को डबडबाने और आंसू के निकलने को बड़े परिश्रमपूर्वक रोक रही थी। यद्यपि उसे निश्चय था कि दोनों कुमार इस तिलिस्म को अवश्य तोड़ेंगे, तथापि उसका दिल दख गया था। कौन ऐसा है जो अपने प्यारे पर आई हुई मुसीबत का हाल सुनकर बेचैन न हो?
कमलिनी-(सब बातें सुनकर) किसी का आना ताज्जुब नहीं है, हाँ, किसी औरत का आना बेशक ताज्जुब है, क्योंकि (इन्द्रजीतसिंह की तरफ इशारा करके) आप कहते हैं कि एक औरत के रोने की आवाज आई थी।
लाड़ली-ठीक है, जहाँ तक मैं समझती हूँ सिवाय तुम्हारे, मायारानी के और मेरे किसी चौथी औरत को यहां आने का रास्ता मालूम नहीं है, हाँ, मर्दो में कई जरूर ऐसे हैं, जो यहाँ आ सकते हैं।
कमलिनी-मगर इस देवमन्दिर के अन्दर हम लोगों के अतिरिक्त राजा गोपालसिंह के सिवाय और कोई भी नहीं आ सकता। खैर, इन सब बातों को जाने दो, अब यहाँ से चलकर कुँवर साहब का पता लगाना बहुत जरूरी है। यद्यपि यहाँ किसी दुश्मन का आना बहुत कठिन है, तथापि खुटका लगा ही रहता है। जब दोनों कुमारों को मायारानी के कैदखाने से छुड़ाकर हम लोग सुरंग ही सुरंग तिलिस्मी बाग से बाहर हो रहे थे, तो उस हरामजादे के आ पहुँचने की कौन उम्मीद थी, जिसने कुमार को जख्मी किया था! इसी तरह कौन ठिकाना यहाँ भी कोई दुष्ट आ पहुँचा हो!
आखिर कुँवर आनन्दसिंह को खोजने के लिए तीनों वहाँ से रवाना हुए और देवमन्दिर के नीचे उतर उसी तरफ चले जिधर आनन्दसिंह गये थे। जब एक मकान के दरवाजे पर पहुँचे तो कमलिनी रुकी और बड़े गौर से उस दरवाजे को जो बन्द था, देखने लगी। इसके बाद फिर आगे बढ़ी, दूसरे मकान के दरवाजे पर पहुँच कर उसे भी गौर से देखा और सिर हिलाती हुई फिर आगे बढ़ी। इसी तरह कुँअर इन्द्रजीतसिंह और लाड़िली को साथ लिए हए, कमलिनी सात-आठ मकानों के दरवाजे पर गई। हर एक मकान का दरवाजा बन्द था और हर एक दरवाजे को कमलिनी ने गौर से देखा लेकिन कुछ काम न चला, मगर जब उस मकान के दरवाजे पर पहुँची, जिसमें कुँवर आनन्दसिंह गये थे तो रुककर मामूली तौर पर उसके दरवाजे को भी बड़े गौर से देखने लगी और थोड़ी ही देर में बोल उठी, "वेशक कुँवर आनन्दसिंह इसी मकान के अन्दर हैं। (उँगली से दरवाजे के ऊपर वाले चौखटे की तरफ इशारा करके) देखिये, यह स्याह पत्थर की तीन खूटियाँ नीचे की तरफ झुक गई हैं।"
कुमार-इन खूटियों से क्या मतलब है?
कमलिनी-इस मकान के अन्दर जितने आदमी जायेंगे, उतनी खूटियाँ नीचे की तरफ झुक जायँगी।
कुमार-(ऊपर वाले चौखटे की तरफ इशारा करके) ऊपर कुल बारह खूटियाँ हैं, मान लिया जाय कि बारहों खंटियाँ उस समय झुक जायेंगी, जब बारह आदमी इस मकान के अन्दर जा पहुँचेंगे, मगर जब बारह से ज्यादा आदमी इस मकान के अन्दर जायेंगे, तब क्या होगा?
कमलिनी-बारह से ज्यादा आदमी इस मकान के अन्दर जा ही नहीं सकते! तिलिस्मी बातों में किसी की जबर्दस्ती नहीं चल सकती।
कुमार-ठीक है, मगर तुमने यह कैसे जाना कि आनन्दसिंह इसी मकान के अन्दर हैं?
कमलिनी–सिर्फ अन्दाज से समझती हूँ कि आनन्दसिंह इसी मकान में होंगे, क्योंकि इस बाग में एक आदमी का का आना आपने बयान किया था, इसके बाद कहा था किसी औरत के रोने की आवाज आई थी, दो हो तो चुके, तीसरे आनन्दसिंह भी पीछा किये हुए इधर ही आये हैं और इस तरह इस मकान के अन्दर तीन आदमियों का होना साबित होता है। इन्हीं सब बातों से मुझे विश्वास होता है कि वे ही तीन आदमी इस मकान के अन्दर हैं।
कुमार—तुम्हारा सोचना बहुत ठीक है, मगर जहाँ तक जल्द हो सके, इस बात का निश्चय करके आनन्द को छुड़ाना चाहिए, न मालूम वह किस आफत में फंस गया है।
कमलिनी–देखिये, मैं बहुत जल्द इसका बन्दोबस्त करती हूँ।
इसके बाद कमलिनी ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह से कहा, "इस मकान का दरवाजा खोलना तो जरा मुश्किल है, मगर चौखट के ऊपर जो बारह खूटियाँ हैं उनमें से तीन नीचे की तरफ झुक गई हैं, और बाकी नौ ऊपर की तरफ उठी हुई हैं, उनमें से किसी एक को आप उछल कर थाम लीजिए और जोर करके नीचे की तरफ झुकाइए, देखिये, क्या होता है।" कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने वैसा ही किया। उछल कर एक खूटी को थाम लिया और झटका देकर उसे नीचे की तरफ झुकाया तथा जब वह नीचे को झुक गई तो उसे छोड़कर अलग हो गये। यकायक मकान के अन्दर से इस तरह की आवाज आने लगी, जैसे बड़े-बड़े कल पुर्जे और चरखे घूमते हों, या कई गाड़ियाँ मकान के अन्दर दौड़ रही हों। तीनों आदमी दरवाजे से हटकर खड़े हो गये और राह देखने लगे कि अब क्या होता है।
थोड़ी ही देर बाद मकान की छत पर से एक आवाज आई-"इधर देखो" जिसे सुनते ही तीनों आदमी चौंके और ऊपर की तरफ देखने लगे। एक आदमी, जो अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए था, छत से नीचे की तरफ झाँकता हुआ दिखाई दिया। उसने कमलिनी, लाड़िली और कुँवर इन्द्रजीतसिंह को अपनी तरफ देखते देख एक लपेटा हुआ कागज नीचे गिरा दिया, जिसे झट कमलिनी ने उठा लिया और बढ़कर कुँअर इन्द्रजीतसिंह से कहा, "बस अब जिस तरह हो सके आप इस खूटी को, जिसे झुकाया है, ज्यों-की-त्यों सीधी कर दीजिए।"
इन्द्रजीतसिंह-आखिर इसका क्या सबब है? इस पुर्जे में क्या लिखा हुआ है?
कमलिनी-पहले आप उसे कीजिए, जो मैं कह चुकी हूँ। देर करने में हमारा ही हर्ज होगा।
लाचार कुँवर इन्द्रजीतसिंह ने वैसा ही किया। उछलकर नीचे की तरफ से एक झटका ऐसा दिया कि वह खूटी सीधी हो गई और इसके साथ ही मकान के अन्दर सन्नाटा छा गया, अर्थात् वह जोर-शोर की आवाज, जो खूटी झुकने के साथ ही आने लगी थी, एकदम बन्द हो गई। इसके बाद कमलिनी ने वह कागज का पुर्जा जो मकान की छत पर से गिराया गया था, कुमार के हाथ में दे दिया। कुमार ने उसे देखा, यह लिखा हुआ था-
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एच | मेमचे | काटनो | केआरेयाँ | डेह | नेपो |
7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 |
किमटू | च्वाला | मेम | कुम | नीपो | इच्चो |
13 | लव | ||||
14 | कचीचा | ||||
15 | टेप |
इस चिट्ठी का मतलब तो कुमार तुरत समझ गए, क्योंकि यह ऐयारी भाषा में लिखी हुई थी और कुमार ऐयारी भाषा बखूबी जानते थे, मगर यह उनकी समझ में न आया कि चिट्ठी लिखने वाला कौन है, क्योंकि उसने अपना नाम टेप लिखा था। कुमार ने कमलिनी से 'टेप' का अर्थ पूछा, जिसके जवाब में उसने कहा, "थोड़ी देर सब्र कीजिए, आप-से-आप उस आदमी का पता लग जायगा।" कुमार चुप हो रहे और दरवाजे की तरफ देखने लगे। हमारे पाठक महाशय ऐयारी भाषा शायद न जानते होंगे, अस्तु उन्हें समझाने के लिए उस चिट्ठी का अर्थ हम नीच लिखे देते हैं––
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 |
यहाँ | मैं हूँ | डरो मत | कुमार को | तकलीफ | न होगी |
7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 |
थोड़ी देर | सब्र करो | मैं | स्वयं | नीचे | आता हूँ |
13 | वही | ||||
14 | दिलजला | ||||
15 | टेप |