चन्द्रकान्ता सन्तति 5/17.9

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चंद्रकांता संतति भाग 5  (1896) 
द्वारा देवकीनन्दन खत्री

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जिस समय राजा गोपालसिंह खास बाग के दरवाजे पर पहुँचे, उस समय उनके दीवान साहब भी वहाँ हाजिर थे। नकली रामदीन अर्थात् लीला उनके हवाले कर दी गई। भैरोंसिंह के सवाल करने पर उन्होंने कहा कि "इस लीला ने चार आदमियों को खास बाग के अन्दर पहुँचाया है, मगर हम नहीं कह सकते कि वास्तव में वे कौन थे।" अब राजा साहब और भैरोंसिंह को यह तो मालूम हो गया कि चार आदमी भी इस बाग के अन्दर घुसे हैं जो हमारे दुश्मन ही होंगे, मगर उन्हें उन पाँच सौ फौजी सिपाहियों की शायद ही खबर हो जिन्हें मायारानी ने गुप्त रीति से बाग के अन्दर कर लिया था। पहली दफे जब मायारानी को गोपालसिंह ने छकाया था, तब वह खुले तौर पर बाग में रहती थी, मगर अबकी दफे तो वह उस भूलभूलैया बाग में जाकर ऐसा गायब हुई है कि उसका पता लगाना भी कठिन होगा। दीवान साहब ने पूछा भी कि "अगर हुक्म हो तो बाग में तलाशी ली जाय और उन आदमियों का पता लगाया जाय जिन्हें लीला ने इस बाग में पहुँचाया है।" मगर राजा साहब ने इसके जवाब में सिर हिलाकर जाहिर कर दिया कि यह बात उन्हें स्वीकार नहीं है।

कुछ दिन रहते ही राजा गोपालसिंह बाग के दूसरे दर्जे में केवल भैरोंसिंह को साथ लेकर गये और बाग के अन्दर चारों तरफ सन्नाटा पाया। इस समय भैरोंसिंह और राजा गोपालसिंह दोनों के ही हाथ में तिलिस्मी खंजर मौजूद थे।

खास बाग के दूसरे दर्जे में दो कुएँ थे जिनमें पानी बहुत ज्यादा रहता था, यहाँ तक कि इस बाग के पेड़-पत्तों को सींचने और छिड़काव का काम इन दोनों में से किसी एक कुएँ ही से चल सकता था, मगर सींचने के समय दूर और नजदीक का खयाल करके या शायद और किसी सबब से बनवाने वाले ने दो बड़े-बड़े जंगी कुएँ बनवाये थे, परन्तु ये दोनों कुएँ भी कारीगरी और ऐयारी से खाली न थे।

भैरोंसिंह और गोपालसिंह छिपते और घूमते हुए पूरब की तरफ वाले कुएँ पर पहुँचे जिसका घेरा बहुत बड़ा था और नीचे उतरने तथा चढ़ने के लिए कुएँ की दीवार [ ३४ ]में लोहे की कड़ियाँ लगी हुई थीं। भैरोंसिंह और गोपालसिंह दोनों आदमी कड़ियों के सहारे इस कुएँ में उतर गये।

किसी ठिकाने पर छिपी हुई मायारानी इस तमाशे को देख रही थी। गोपालसिंह और भैरोंसिंह को आते देख वह बहुत खुश हुई और उसे निश्चय हो गया कि अब हम लोग गोपालसिंह को मार लेंगे। जिस जगह वह बैठी हुई थी। वहाँ पर माधवी कुबेरसिंह, भीमसेन और ऐयारों के अतिरिक्त बीस आदमी फौजी सिपाहियों में से भी मौजूद थे और बाकी फौजी सिपाही तहखानों में छिपाये हुए थे। पहले तो मायारानी ने चाहा कि केवल हम ही लोग बीस सिपाहियों के साथ जाकर गोपालसिंह को गिरफ्तार कर लें, मगर जब उसे कृष्ण जिन्न वाली बात याद आई और यह खयाल हुआ कि गोपालसिंह के पास वह तिलिस्मी खंजर और कवच जरूर होगा जो रोहतासगढ़ में उनके पास उस समय मौजूद था जब शेरअली और दारोगा के साथ हम लोग वहाँ गये थे, तब उसकी हिम्मत टूट गई और बिना कुछ फौजी सिपाहियों को साथ लिए गोपालसिंह के पास जाना उचित न जाना। इसी बीच में उसके देखते-देखते गोपालसिंह कुएँ के भीतर चले गये।

इस तिलिस्मी बाग के अन्दर आने तथा यहाँ से बाहर जाने वाला दरवाजा जिस तरह बन्द होता है, इसका हाल उस समय लिखा जा चुका है जब पहली दफा इस बाग में मायारानी के ऊपर आफत आई थी और मायारानी ने सिपाहियों के बागी हो जाने पर बाहर जाने का रास्ता बन्द कर दिया था, अब इस समय भी उसी ढंग से मायायानी ने बाग का दरवाजा बन्द कर दिया और इसके बाद कुल सिपाहियों को तहखाने में से निकालकर माधवी, भीमसेन और कुबेरसिंह तथा ऐयारों को साथ लिए उस कुएँ पर पहुँची जिसके अन्दर भैरोंसिंह को साथ लिए हुए राजा गोपालसिंह उतर गये थे।

मायारानी ने सोचा था कि आखिर गोपालसिंह उस कुएँ के बाहर निकलेंगे ही, उस समय हम लोग उन्हें सहज ही में मार लेंगे, बल्कि कुएँ से बाहर निकलने की मोहलत ही न देंगे––इत्यादि, मगर जब बहुत देर हो गई और रात हो जाने पर भी गोपालसिंह कुएँ के बाहर न निकले, तो उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ। वह खुद कुएँ के अन्दर झाँककर देखने लगी और उसी समय चौंक कर माधवी से बोली––

मायारानी––क्यों बहिन, आज ही तुमने भी देखा था कि इस कुएँ में पानी कितना ज्यादा था!

माधवी––बेशक मैंने देखा था कि बीस हाथ से ज्यादा दूरी पर पानी नहीं है, तो क्या इस समय पानी कम जान पड़ता है?

मायारानी––कम क्या मैं तो समझती हूँ कि इस समय इसमें कुछ भी पानी नहीं है और कुआँ सूखा पड़ा है।

माधवी––(ताज्जुब से) ऐसा नहीं हो सकता। एक पत्थर इसमें फेंक कर देखो।

मायारानी––आओ, तुम ही देखो।

माधवी ने अपने हाथ से ईंट का टुकड़ा कुएँ के अन्दर फेंका और उसकी आवाज पर गौर करके बोली–– [ ३५ ]माधवी––बेशक इसमें पानी कुछ भी नहीं है, केवल कीचड़ मात्र है। तो क्या तुम नहीं जानतीं कि इसके अन्दर पानी के निकास का कोई रास्ता तथा आदमियों के आने जाने के लिए कोई सुरंग या दरवाजा है या नहीं?

मायारानी––मुझे एक दफे गोपालसिंह ने कहा था कि इस कुएँ के नीचे एक तहखाना है, जिसमें तरह-तरह के तिलिस्मी हर्वे और ऐयारों के काम की अपूर्व चीजें हैं।

माधवी––बेशक, यही बात ठीक होगी और उन्हीं चीजों में से कुछ लाने के लिए गोपालसिंह गये होंगे।

मायारानी––शायद ऐसा ही हो!

माधवी––तो बस इससे बढ़कर और कोई तरकीब नहीं हो सकती कि यह कुआँ पाट दिया जाये, जिसमें गोपालसिंह को फिर दुनिया का मुँह देखना नसीब न हो।

मायारानी––निःसन्देह यह बहुत अच्छी राय है, अतः जहाँ तक हो सके इसे कर ही देना चाहिए।

इस समय कुबेरसिंह की फौज टिड्डियों की तरह इस बाग में सब तरफ फैली हुई हुक्म का इन्तजार कर रही थी। माधवी ने अपनी राय भीमसेन और कुबेरसिंह से कही और उनकी आज्ञानुसार फौजी आदमियों ने जमीन खोद कर मिट्टी निकालने और कुआँ पाटने में हाथ लगा दिया।

पहर रात जाते तक कुआँ बखूबी पट गया और उस समय मायारानी के दिल में यह बात पैदा हुई कि अब मुझे गोपालसिंह का कुछ भी डर न रहा।

फौजी सिपाहियों को खुले मैदान या बाग में पड़े रहने की आज्ञा देकर भीमसेन, कुबेरसिंह और माधवी तथा ऐयारों को साथ लिए हुए मायारानी अपने उस खास कमरे की छत पर बेफिक्री और खुशी के साथ चली गई, जिसमें आज के कुछ दिन पहले मालिकाना ढंग से रहती थी।