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चन्द्रकान्ता सन्तति 5/19.3

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चंद्रकांता संतति भाग 5
देवकीनन्दन खत्री

दिल्ली: भारती भाषा प्रकाशन, पृष्ठ १२९ से – १३१ तक

 

3

नानक को लिए हुए मायारानी दूसरी तरफ चली गई। मगर जिस जगह जाना चाहती थी, वहाँ पहुँचने के पहले ही उसने पुनः एक गोपालसिंह को अपने से कुछ दूर पर देखा और उसी समय तिलिस्मी तमंचे में गोली भर कर निशाना सर किया। गोली उसके घुटने पर लग कर फूट गई और उसमें से निकला हुआ बेहोशी का धुआँ उसके चारों तरफ फैल गया, मगर उसका असर गोपालसिंह पर कुछ भी न हुआ। गोपालसिंह तेजी के साथ लपक मायारानी के पास चले आये और बोले, "मैं वह नकली गोपालसिंह नहीं हूँ जिस पर इस तमंचे का कुछ असर हो, मैं असली गोपालसिंह हूँ और तुझसे यह पूछने के लिए आया हूँ कि बता अब तेरे साथ क्या सलूक किया जाय?"

यह कैफियत देख कर मायारानी घबरा गई और उसे निश्चय हो गया कि अब उसकी मौत उसके सामने आ खड़ी हुई है जो एक पल के लिए भी उसका मुलाहिजा न करेगी, अतः वह गोपालसिंह की बात का कुछ जवाब न दे सकी और नानक की तरफ देखने लगी। गोपालसिंह ने यह कहकर कि 'नानक की तरफ क्या देख रही है मेरी तरफ देख!' एक तमाचा उसके गाल पर इस जोर से मारा कि वह इस सदमे को बर्दाश्त न कर सकी और चक्कर खाकर जमीन पर बैठ गई। गोपालसिंह ने अपनी जेब में से कुछ निकाल कर उसे जबर्दस्ती सुँघाया, जिससे वह बेहोश होकर जमीन पर लेट गई।

इसके बाद गोपालसिंह ने नानक की तरफ, जो डर के मारे खड़ा काँप रहा था, देखा और कहा––

गोपालसिंह––कहो नानक, तुम यहाँ कैसे आ गये? क्या उस भुवनमोहिनी के प्रेम में कमी तो नहीं हो गई या मनोरमा को खोजते हुए तो नहीं आ गए?

नानक––(डरता हुआ हाथ जोड़कर) जी मैं कमलिनीजी से मिलने के लिए आया था। क्योंकि वे मुझ पर कृपा रखती हैं और जब-जब मुझे ग्रहदशा आकर घेरती है तब-तब सहायता करती हैं। मुझे यह खबर लगी थी कि वे इस बाग में आई हुई हैं।

गोपालसिंह––मगर यहाँ आकर कमलिनी की जगह मायारानी से मदद माँगने की नौबत आ गई। बल्कि क्या ताज्जुब कि इसी के साथ तुम यहाँ आये भी हो।

नानक––जी नहीं, मेरा इसका साथ भला क्योंकर हो सकता है, क्योंकि यह मेरी पुरानी दुश्मन है और इसने धोखा देकर मेरे बाप को ऐसी आफत में डाल दिया है कि अभी तक उसे किसी तरह छुटकारा नहीं मिलता। गोपालसिंह––वह सब जो कुछ है, मैं खूब जानता हूँ। तुमने अपने बाप के लिए जो कुछ कोशिश की, वह भी किसी से छिपी नहीं है तथा तारासिंह ने तुम्हारे यहाँ जाकर जो कुछ तुम्हारा हाल मालूम किया है, वह भी मुझे मालूम है। अच्छा, अब मैं समझा कि तुम तारासिंह से बदला लेने यहां आये हो। मगर यह तो बताओ कि किस राह से तुम यहां आये?

नानक जी नहीं, यह बात नहीं है, भला मैं तारासिंह से क्या बदला ले सकूँगा? तारासिंह ही से नहीं बल्कि राजा वीरेन्द्रसिंह के किसी भी ऐयार का मुकाबला करने की हिम्मत मेरे में नहीं, मगर तारासिंह ने जो कुछ सलूक मेरे साथ किया है उसका रंज जरूर है और मैं कमलिनी से इसी बात की शिकायत करने यहाँ आया था, क्योंकि मुझे उनका बड़ा भरोसा रहता है और यहाँ आने का रास्ता भी उन्होंने ही उस समय मुझे बताया था जब कम्बख्त मायारानी की बदौलत आप यहाँ कैद थे और पागल बने हुए तेजसिंह यहां आए हुए थे।

गोपालसिंह––हाँ ठीक है, मगर मैं समझता हूँ कि साथ ही इसके तुम उन भेदों के जानने का भी इरादा करके आए होंगे जो गूँगी रामभोली की बदौलत यहाँ आने पर तुमने देखा था...

नानक––जी हाँ, इसमें कोई शक नहीं कि मैं उन भेदों को भी जानना चाहता हूँ, परन्तु यह बात बिना आपकी कृपा के...

गोपालसिंह––नहीं-नहीं, उन भेदों का जानना तुम्हारे लिए बहुत ही मुश्किल है क्योंकि तुम्हारी गिनती ईमानदार ऐयारों में नहीं हो सकती। यद्यपि वह सब हाल मुझे मालूम है, लाड़िली ने तुम्हारा अनूठा हाल पूरा-पूरा बयान किया था और उसी को रामभोली समझ कर तुम यहाँ आए भी थे, मगर जो कुछ तुमने यहाँ आकर देखा उसका सबब बयान करना मैं उचित नहीं समझता, फिर भी इतना जरूर कहूँगा कि वह अनोखी तस्वीर जो दारोगा वाले अजायबघर के बंगले में तुमने देखी थी, वास्तव में कुछ न थी या अगर थी तो केवल तुम्हारी रामभोली की निरी शरारत।

नानक––और वह कुएँ वाला हाथ?

गोपालसिंह––वह तुम्हारे बुजुर्ग धनपत का साया था। (कुछ सोच कर) मगर नानक, मुझे इस बात का अफसोस है कि तुम अपनी जवानी, हिम्मत, लियाकत और ऐयारी तथा बुद्धिमानी का खून बुरी तरह कर रहे हो। इसमें कोई शक नहीं कि अगर तुम इश्क और मुहम्मत के झगड़ों में न पड़े होते तो समय पर अपने बाप की सहायता करने लायक होते। अब भी तुम्हारे लिए उचित यही है कि तुम अपने खयालों को सुधार कर इज्जत पैदा करने की कोशिश करो और किसी के साथ दुश्मनी करने या बदला लेने का खयाल दिल से दूर कर दो। इस थोड़ी-सी जिन्दगी में मामूली ऐशोआराम के लिए अपना परलोक बिगाड़ना पढ़े-लिखे बुद्धिमानों का काम नहीं है। अच्छे लोग मौत और जिन्दगी का फैसला एक अनूठे ढंग पर करते हैं। उनका खयाल है कि दुनिया में वह कभी मरा हुआ तब तक न समझा जायगा जब तक उसका नाम नेकी के साथ सुना या लिया जायगा, और जिसने अपने माथे पर बुराई का टीका लगा लिया, वह मुर्दे से भी बढ़ कर है। दुष्ट लोग यदि किसी कारण मनुष्य को चींटी समझने लायक हो भी जाये तो भी कोई बात नहीं। मगर ईश्वर की तरफ से वे किसी तरह निश्चिन्त नहीं हो सकते और अपने बुरे कामों का फल अवश्य पाते हैं। क्या इन्हीं राजा वीरेन्द्रसिंह और मेरे किस्से से तुम यह नसीहत नहीं ले सकते? क्या तुम मायारानी, माधवी, अग्निदत्त और शिवदत्त वगैरह से भी अपने को बढ़कर समझते हो और नहीं जानते कि उन लोगों का अन्त किस तरह हुआ और हो रहा है? फिर किस भरोसे पर तुम अपने को बुरी राह चलाना चाहते हो? निःसंदेह तुम्हारा बाप बुद्धिमान है जो एक नामी और अद्भुत शक्ति रखने वाला अमीर ऐयार होने और हर तरह की बेइज्जती सहने पर भी राजा वीरेन्द्रसिंह का कृपा-पात्र बनने का ध्यान अपने दिल से दूर नहीं करता और तुम उसी भूतनाथ के लड़के हो जो अपने दिल को भी काबू में नहीं रख सकते!

इस तरह की बहुत-सी नसीहत-भरी बातें राजा गोपालसिंह ने इस ढंग से नानक को कहीं कि उसके दिल पर असर कर गईं। वह राजा गोपालसिंह के पैरों पर गिर पड़ा और जब उन्होंने उसे दिलासा देकर उठाया तो हाथ जोड़ कर अपनी डबडबाई हुई आँखें नीचे किए हुए बोला, "मेरा अपराध क्षमा कीजिए! यद्यपि मैं क्षमा माँगने योग्य नहीं हूँ। परन्तु आपकी उदारता मुझे क्षमा देने योग्य है। अब मुझे अपनी ताबेदारी में लीजिए और हर तरह से आजमा कर देखिए कि आपकी नसीहत का असर मुझ पर कैसा पड़ा और अब मैं किस तरह आपकी खिदमत करता हूँ।"

इसके जवाब में गोपालसिंह ने कहा, "अच्छा, हम तुम्हारा कसूर माफ करके तुम्हारी दर्खास्त कबूल करते हैं। तुम मेरे साथ आओ और जो कुछ मैं कहूँ, सो करो।"