चन्द्रकान्ता सन्तति 5/19.2

विकिस्रोत से
चंद्रकांता संतति भाग 5  (1896) 
द्वारा देवकीनन्दन खत्री
[ १२८ ]

2

कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने एक लम्बी साँस लेकर भैरोंसिंह से कहा, "भैरोंसिंह, इस बात का तो मुझे गुमान भी नहीं हो सकता कि तुम स्वप्न में भी हम लोगों के साथ बुराई करने का इरादा करोगे मगर तुम्हारे झूठ बोलने ने हम लोगों को दुःखी कर दिया है। अगर तुमने झूठ बोल कर हम लोगों को धोखे न डाला होता तो आज इन्द्रानी और आनन्दी वाले मामले में पड़ कर हमने अपने मुँह पर अपने हाथ से स्याही न मली होती। यद्यपि इन दोनों औरतों के बारे में तरह-तरह के विचार मन में उठते थे, मगर इस बात का गुमान कब हो सकता था कि ये दोनों मायारानी और माधवी होंगी! ईश्वर ने बड़ी कुशल की कि शादी होने के बाद आधी घड़ी के लिए भी उन दोनों कम्बख्तों का साथ न हुआ, अगर होता तो बड़े ही धर्म-संकट में जान फँस जाती। मैं यह समझता हूँ कि राजा गोपालसिंह की आज्ञानुसार आज-कल तुम कमलिनी वगैरह का साथ दे रहे हो, शायद ऐसा करने में भी कोई फायदा ही होगा, मगर इस बात पर हमारा खयाल कभी नहीं जम सकता कि इतनी बढ़ी-चढ़ी दिल्लगी करने की किसी ने तुम्हें इजाजत दी होगी। नहीं-नहीं, इसे दिल्लगी नहीं कहना चाहिए, यह तो इज्जत औ हुर्मत को मिट्टी में मिला देने वाला काम है। भला तुम ही बताओ कि किशोरी और कमलिनी वगैरह तथा और लोगों के सामने अब हम अपना मुँह क्योंकर दिखायेंगे!

भैरोंसिंह––और लोगों की बातें तो जाने दीजिए, क्योंकि इस तिलिस्म के जो कुछ हो रहा है इसकी खबर बाहर वालों को हो ही नहीं सकती, हाँ किशोरी, कामिनी और कमला वगैरह अवश्य ताना मारेंगी क्योंकि उनको इस मामले की पूरी खबर है और वे लोग इसी बगल वाले बाग में मौजूद भी हैं, मगर मैं सच कहता हूँ कि इस मामले में मैं बिल्कुल बेकसूर हूँ! इसमें कोई शक नहीं कि कमलिनी की इच्छानुसार मैं बहुत-सी बातें आप लोगों से छिपा गया हूँ मगर इन्द्रानी के मामले में मैं भी धोखा खा गया। मैंने ही नहीं, बल्कि कमलिनी ने भी यही समझा था कि इन्द्रानी और आनन्दी इस तिलिस्म की रानी हैं। खैर, अब तो जो कुछ होना था वह हो चुका, रंज को दूर कीजिए और चलिए, मैं आपकी कमलिनी वगैरह से मुलाकात कराऊँ।

इन्द्रजीतसिंह––नहीं, अभी मैं उन लोगों से मुलाकात नहीं हाँ करूँगा, बाद देखा जाएगा।

आनन्दसिंह––जी हाँ, मेरी भी यही राय है। अफसोस, माधवी की बनावटी कलाई पर भी उस समय कुछ ध्यान नहीं गया, यद्यपि एक मामूली और छोटी बात थी!

भैरोंसिंह––नहीं-नहीं ऐसा खयाल न कीजिए, जब आप अपना दिल इतना छोटा कर लेंगे तब किसी भारी काम को क्योंकर करेंगे? इसे भी जाने दीजिए, आप यह बताइये कि इसमें किशोरी या कमलिनी वगैरह का क्या कसूर है जो आप उनसे मुलाकात तक भी न करेंगे? शादी-ब्याह का शौक बढ़ा आपको और भूल हुई आपसे, कमलिनी ने भला क्या किया? (चौंक कर) खैर, आप उनके पास न जाइए, वह देखिए [ १२९ ]कमलिनी खुद ही आपके पास चली आ रही हैं!

कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने अफसोस और रंज से झुका सिर उठा कर देखा तो कमलिनी पर निगाह पड़ी जो धीरे-धीरे चलती और मुस्कराती हुई इन्हीं लोगों की तरफ आ रही थीं।


3

नानक को लिए हुए मायारानी दूसरी तरफ चली गई। मगर जिस जगह जाना चाहती थी, वहाँ पहुँचने के पहले ही उसने पुनः एक गोपालसिंह को अपने से कुछ दूर पर देखा और उसी समय तिलिस्मी तमंचे में गोली भर कर निशाना सर किया। गोली उसके घुटने पर लग कर फूट गई और उसमें से निकला हुआ बेहोशी का धुआँ उसके चारों तरफ फैल गया, मगर उसका असर गोपालसिंह पर कुछ भी न हुआ। गोपालसिंह तेजी के साथ लपक मायारानी के पास चले आये और बोले, "मैं वह नकली गोपालसिंह नहीं हूँ जिस पर इस तमंचे का कुछ असर हो, मैं असली गोपालसिंह हूँ और तुझसे यह पूछने के लिए आया हूँ कि बता अब तेरे साथ क्या सलूक किया जाय?"

यह कैफियत देख कर मायारानी घबरा गई और उसे निश्चय हो गया कि अब उसकी मौत उसके सामने आ खड़ी हुई है जो एक पल के लिए भी उसका मुलाहिजा न करेगी, अतः वह गोपालसिंह की बात का कुछ जवाब न दे सकी और नानक की तरफ देखने लगी। गोपालसिंह ने यह कहकर कि 'नानक की तरफ क्या देख रही है मेरी तरफ देख!' एक तमाचा उसके गाल पर इस जोर से मारा कि वह इस सदमे को बर्दाश्त न कर सकी और चक्कर खाकर जमीन पर बैठ गई। गोपालसिंह ने अपनी जेब में से कुछ निकाल कर उसे जबर्दस्ती सुँघाया, जिससे वह बेहोश होकर जमीन पर लेट गई।

इसके बाद गोपालसिंह ने नानक की तरफ, जो डर के मारे खड़ा काँप रहा था, देखा और कहा––

गोपालसिंह––कहो नानक, तुम यहाँ कैसे आ गये? क्या उस भुवनमोहिनी के प्रेम में कमी तो नहीं हो गई या मनोरमा को खोजते हुए तो नहीं आ गए?

नानक––(डरता हुआ हाथ जोड़कर) जी मैं कमलिनीजी से मिलने के लिए आया था। क्योंकि वे मुझ पर कृपा रखती हैं और जब-जब मुझे ग्रहदशा आकर घेरती है तब-तब सहायता करती हैं। मुझे यह खबर लगी थी कि वे इस बाग में आई हुई हैं।

गोपालसिंह––मगर यहाँ आकर कमलिनी की जगह मायारानी से मदद माँगने की नौबत आ गई। बल्कि क्या ताज्जुब कि इसी के साथ तुम यहाँ आये भी हो।

नानक––जी नहीं, मेरा इसका साथ भला क्योंकर हो सकता है, क्योंकि यह मेरी पुरानी दुश्मन है और इसने धोखा देकर मेरे बाप को ऐसी आफत में डाल दिया है कि अभी तक उसे किसी तरह छुटकारा नहीं मिलता।