चन्द्रकान्ता सन्तति 5/20.12

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चंद्रकांता संतति भाग 5  (1896) 
द्वारा देवकीनन्दन खत्री

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दूसरे दिन अपने मामूली समय पर पुनः दोनों नकाबपोशों के आने की इत्तिला मिली। उस समय जीतसिंह, वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह, राजा गोपालसिंह, बलभद्रसिंह, इन्द्रदेव और बद्रीनाथ वगैरह अपने यहाँ के कुछ ऐयार लोग भी महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास बैठे हुए थे और उन्हीं नकावपोशों के बारे में तरह-तरह की बातें हो रही थीं। आज्ञानुसार दोनों नकाबपोश हाजिर किए गए और फिर इस तरह बातचीत होने लगी––

तेजसिंह—(नकाबपोशों की तरफ देखकर) तारासिंह की जुबानी सुनने में आया कि भूतनाथ ने आपके दो आदमियों को ऐयारी करके गिरफ्तार कर लिया है।

एक नकाबपोश––जी हाँ, हम लोगों को भी इस बात की खबर लग चुकी है मगर कोई चिन्ता की बात नहीं है। गिरफ्तार होने और बेइज्जती उठाने पर भी वे दोनों भूतनाथ को किसी भी तरह की कोई नहीं तकलीफ न देंगे और न भूतनाथ ही उन्हें किसी तरह की तकलीफ दे सकेगा। यद्यपि उस समय भूतनाथ ने उन दोनों को नहीं पहचाना मगर जब उनका परिचय पायेगा और पहचानेगा तो उसे बड़ा ही ताज्जुब होगा। जो हो मगर भूतनाथ को ऐसा करने की जरूरत न थी। ताज्जुब है कि ऐसे फजूल के कामों में भूतनाथ का जी क्योंकर लगता है। ऐयारी करके जिस समय भूतनाथ ने दोनों को गिरफ्तार किया था उस समय उन दोनों की सूरत देखने के साथ ही छोड़ देना चाहिए था क्योंकि एक दफे भूतनाथ इस दरबार में उन दोनों सूरतों को देख चुका था और जानता था कि आखिर इन दोनों का हाल मालूम होगा ही। अब दोनों को गिरफ्तार करके ले जाने से भूतनाथ की बेचैनी कम न होगी बल्कि और ज्यादा बढ़ जायगी।

तेजसिंह––हाँ हम लोगों ने भी यही सुना था कि जिन सूरतों को देखकर मायारानी का दारोगा और जयपाल बदहवास हो गए थे उन्हीं दोनों को भूतनाथ ने गिरफ्तार किया है।

नकाबपोश––जी हाँ, ऐसा ही है।

तेजसिंह––तो क्या वे दोनों स्वयं इस दरबार में आये थे या आप लोगों ने उन दोनों के जैसी सूरत बनाई थी? [ २२८ ]नकाबपोश––वे लोग स्वयं यहाँ नहीं आये थे, बल्कि हम ही दोनों उन दोनों की तरह सूरत बनाए हुए थे। दारोगा और जयपाल इस बात को समझ न सके।

तेजसिंह––असल में वे दोनों कौन हैं जिन्हें भूतनाथ ने गिरफ्तार किया है?

नकाबपोश––(कुछ सोचकर) आज नहीं अगर हो सकेगा तो दो-एक दिन में मैं आपकी इस बात का जवाब दूँगा क्योंकि इस समय हम लोग ज्यादा देर तक यहाँ ठहरना नहीं चाहते। इसके अतिरिक्त सम्भव है कि कल तक भूतनाथ भी उन दोनों को लिए हुए यहीं आ जाय। अगर वह अकेला ही आवे तो हुक्म दीजिएगा कि उन दोनों को भी यहाँ ले आवे, उस समय कम्बख्त दारोगा और जयपाल के सामने उन दोनों का हाल सुनने से आप लोगों को विशेष आनन्द मिलेगा। मैं भी...(कुछ रुककर) मौजूद ही रहूँगा, जो बात समझ में न आवेगी समझा दूंगा। (कुछ रुककर) हाँ, भैरोंसिंह और तारासिंह के विषय में क्या आज्ञा होती है? क्या आज वे दोनों हमारे साथ भेजे जायेंगे? क्योंकि इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को उन दोनों के बिना सख्त तकलीफ है।

सुरेन्द्रसिंह––हाँ, भैरों और तारासिंह तुम दोनों के साथ जाने के लिए तैयार हैं।

इतना कहकर महाराज ने भैरोंसिंह और तारासिंह की तरफ देखा जो उसी दरबार में बैठे हुए नकाबपोशों की बातें सुन रहे थे। महाराज को अपनी तरफ देखते देख दोनों भाई उठ खड़े हुए और महाराज को सलाम करने के बाद दोनों नकाबपोशों के पास आकर बैठ गये।

नकाबपोश––(महाराज से) तो अब हम लोगों का आज्ञा मिलनी चाहिए।

सुरेन्द्रसिंह––क्या आज दोनों लड़कों का हाल हम लोगों को न सुनाओगे!

नकाबपोश––(हाथ जोड़कर) जी नहीं, क्योंकि देर हो जाने से आज भैरोंसिंह और तारासिंह को इन्द्रजीतसिंह के पास हम लोग पहुँचा न सकेंगे।

सुरेन्द्रसिंह––खैर, क्या हर्ज है, कल तो तुम लोगों का आना होगा ही?

नकाबपोश––अवश्य।

इतना कहकर दोनों नकाबपोश उठ खड़े हुए और सलाम करके बिदा हुए। भैरोंसिंह और तारासिंह भी उनके साथ रवाना हुए।