पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२२८

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नकाबपोश––वे लोग स्वयं यहाँ नहीं आये थे, बल्कि हम ही दोनों उन दोनों की तरह सूरत बनाए हुए थे। दारोगा और जयपाल इस बात को समझ न सके।

तेजसिंह––असल में वे दोनों कौन हैं जिन्हें भूतनाथ ने गिरफ्तार किया है?

नकाबपोश––(कुछ सोचकर) आज नहीं अगर हो सकेगा तो दो-एक दिन में मैं आपकी इस बात का जवाब दूँगा क्योंकि इस समय हम लोग ज्यादा देर तक यहाँ ठहरना नहीं चाहते। इसके अतिरिक्त सम्भव है कि कल तक भूतनाथ भी उन दोनों को लिए हुए यहीं आ जाय। अगर वह अकेला ही आवे तो हुक्म दीजिएगा कि उन दोनों को भी यहाँ ले आवे, उस समय कम्बख्त दारोगा और जयपाल के सामने उन दोनों का हाल सुनने से आप लोगों को विशेष आनन्द मिलेगा। मैं भी...(कुछ रुककर) मौजूद ही रहूँगा, जो बात समझ में न आवेगी समझा दूंगा। (कुछ रुककर) हाँ, भैरोंसिंह और तारासिंह के विषय में क्या आज्ञा होती है? क्या आज वे दोनों हमारे साथ भेजे जायेंगे? क्योंकि इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को उन दोनों के बिना सख्त तकलीफ है।

सुरेन्द्रसिंह––हाँ, भैरों और तारासिंह तुम दोनों के साथ जाने के लिए तैयार हैं।

इतना कहकर महाराज ने भैरोंसिंह और तारासिंह की तरफ देखा जो उसी दरबार में बैठे हुए नकाबपोशों की बातें सुन रहे थे। महाराज को अपनी तरफ देखते देख दोनों भाई उठ खड़े हुए और महाराज को सलाम करने के बाद दोनों नकाबपोशों के पास आकर बैठ गये।

नकाबपोश––(महाराज से) तो अब हम लोगों का आज्ञा मिलनी चाहिए।

सुरेन्द्रसिंह––क्या आज दोनों लड़कों का हाल हम लोगों को न सुनाओगे!

नकाबपोश––(हाथ जोड़कर) जी नहीं, क्योंकि देर हो जाने से आज भैरोंसिंह और तारासिंह को इन्द्रजीतसिंह के पास हम लोग पहुँचा न सकेंगे।

सुरेन्द्रसिंह––खैर, क्या हर्ज है, कल तो तुम लोगों का आना होगा ही?

नकाबपोश––अवश्य।

इतना कहकर दोनों नकाबपोश उठ खड़े हुए और सलाम करके बिदा हुए। भैरोंसिंह और तारासिंह भी उनके साथ रवाना हुए।


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रात घण्टे भर से कुछ ज्यादा जा चुकी है। पहाड़ के एक सुनसान दर्रे में जहाँ किसी आदमी का जाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव जान पड़ता है, सात आदमी बैठे हुए किसी के आने का इन्तजार कर रहे हैं और उन लोगों के पास ही एक लालटेन जल रही है। यह स्थान चुनारगढ़ के तिलिस्मी मकान से लगभग छः-सात कोस की दूरी पर होगा। यह दो पहाड़ों के बीच वाला दर्रा बहुत बड़ा, पेचीला, ऊँचा-नीचा और ऐसा भयानक था कि साधारण मनुष्य एक सायत के लिए भी यहाँ खड़ा रहकर अपने उछलते

च॰ स॰-5-14