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चन्द्रकान्ता सन्तति 5/20.3

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चंद्रकांता संतति भाग 5
देवकीनन्दन खत्री

दिल्ली: भारती भाषा प्रकाशन, पृष्ठ १९५ से – १९७ तक

 

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महाराज से जुदा होकर देवीसिंह और बलभद्रसिंह से बिदा होकर भूतनाथ ये दोनों ही नकाबपोशों का पता लगाने के लिए चले गये। बचा हुआ दिन और तमाम रात तो किसी ने इन दोनों की खोज न की मगर दूसरे दिन सवेरा होने के साथ ही इन दोनों की तलबी हुई और थोड़ी ही देर में जवाब मिला कि उन दोनों का पता नहीं है कि कहाँ गये और अभी तक क्यों नहीं आये। हमारे महाराज समझ गये कि देवीसिंह की तरह भूतनाथ भी उन्हीं दोनों नकाबपोशों का पता लगाने चला गया, मगर उन दोनों के न लौटने से एक तरह की चिन्ता पैदा हो गई और लाचार होकर आज दरबार-आम का जलसा बन्द रखना पड़ा।

दरबारे-आम के बन्द होने की खबर वहाँ वालों को तो मिल गई, मगर वे दोनों नकाबपोश अपने मामूली समय पर आ ही गये और उनके आने की इत्तिला तुरंत राजा वीरेन्द्रसिंह से की गई। उस समय राजा वीरेन्द्रसिंह एकान्त में तेजसिंह तथा और भी कई ऐयारों के साथ बैठ हुए देवीसिंह और भूतनाथ के बारे ही में बातें कर रहे थे। उन्होंने ताज्जुब के साथ नकाबपोशों का आना सुना और उसी जगह हाजिर करने का हुक्म दिया।

हाजिर होकर दोनों नकाबपोशों ने बड़े अदब से सलाम किया और आज्ञा पाकर महाराज से थोड़ी दूर पर तेजसिंह के बगल में बैठ गये। इस समय तखलिये का दरबार था तथा गिनती के मामूली आदमी बैठे हुए थे। राजा वीरेन्द्रसिंह को नकाबपोश की बातें सुनने का शौक था, इसलिए तेजसिंह के बगल ही में बैठने की आज्ञा दी और स्वयं बातचीत करने लगे।

वीरेन्द्रसिंह––आज भूतनाथ के न होने से मुकदमे की कार्रवाई रोक देनी पड़ी।

नकाबपोश––(अदब से हाथ जोड़कर)जी हाँ; मैंने यहाँ पहुँचने के साथ ही सुना कि "कल से देवीसिंहजी और भूतनाथ का पता नहीं है, इसलिए आज दरबार न होगा।" मगर ताज्जुब की बात है कि भूतनाथ और देवीसिंहजी एकसाथ कहाँ चले गये। मैं तो यही समझता हूँ कि भूतनाथ हम लोगों का पता लगाने को निकला है और उसका ऐसा करना कोई ताज्जुब की बात भी नहीं, मगर देवीसिंहजी बिना मर्जी के चले गये इस बात का ताज्जुब है।

वीरेन्द्रसिंह––देवीसिंह बिना मर्जी के नहीं चले गये बल्कि हमसे पूछ के गये हैं।

नकाबपोश––तो उन्हें महाराज ने हम लोगों का पीछा करने की आज्ञा क्यों दी? हम लोग तो महाराज के ताबेदार स्वयं ही अपना भेद कहने के लिए तैयार हैं और शीघ्र ही समय पाकर अपने को प्रकट ही करेंगे, केवल मुकदमे की उलझन खोलने और कैदियों को निरुत्तर करने के लिए अपने को छिपाये हुए हैं।

तेजसिंह––आप लोगों को शायद यह मालूम नहीं है कि भूतनाथ ने देवीसिंह को अपना दोस्त बना लिया है। जिस समय भूतनाथ के मुकदमे का बीज रोपा गया था उसके कई घण्टे पहले ही देवीसिंह ने उसकी सहायता करने की प्रतिज्ञा कर दी थी, क्योंकि वह भूतनाथ की चालाकी, ऐयारी तथा उसके अच्छे कामों से प्रसन्न थे।

नकाबपोश––ठीक है, तब तो ऐसा होना ही चाहिए परन्तु कोई चिन्ता नहीं, भूतनाथ वास्तव में अच्छा आदमी है और उसे महाराज की सेवा का उत्साह भी है।

तेजसिंह––इसके अतिरिक्त उसने हमारे कई काम भी बड़ी खूबी के साथ पूरे किये हैं।

नकाबपोश––ठीक है।

तेजसिंह––हाँ, मैं एक बात आपसे पूछना चाहता हूँ।

नकाबपोश––आज्ञा!

तेजसिंह––निःसन्देह भूतनाथ और देवीसिंह आप लोगों का भेद लेने के लिए गये हैं, अत: आश्चर्य नहीं कि वे दोनों उस ठिकाने तक पहुँच गये हों जहाँ आप लोग रहते हैं और आपको उनका कुछ हाल भी मालूम हुआ हो!

नकाबपोश––न तो ये हम लोगों के डेरे तक पहुँचे और न हम लोगों को उनका कुछ हाल ही मालूम है। हम लोगों के विषय में हजारों आदमी बल्कि यों कहना चाहिए कि आजकल यहाँ जितने लोग इकट्ठे हो रहे हैं, सभी आश्चर्य करते हैं और इसलिए जब हम लोग यहाँ आते हैं तो सैकड़ों आदमी चारों तरफ से घेर लेते हैं और जाते समय तो कोसों तक का पीछा करते हैं इसलिए हम लोगों को भी बहुत घूम-फिर तथा लोगों को भुलावा देते हुए अपने डेरे की तरफ जाना पड़ता है।

तेजसिंह––तब तो उन दोनों का न लौटना आश्चर्य है।

नकाबपोश––बेशक, अच्छा तो आज हम लोग कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह का कुछ हाल महाराज को सुनाते जायँ, आखिर आ गये हैं तो कुछ काम करना ही चाहिए।

वीरेन्द्रसिंह––(ताज्जुब से) उनका कौन-सा हाल?

नकाबपोश––वही तिलिस्म के अन्दर का हाल। जब तक राजा गोपालसिंह वहाँ थे तब तक का हाल तो उनकी जुबानी आपने सुना ही होगा मगर उसके बाद क्या हुआ और तिलिस्म में उन दोनों भाइयों ने क्या किया, सो न सुना होगा। यह सब हाल हम लोग सुना सकते हैं, यदि आज्ञा हो तो...

वीरेन्द्रसिंह––(ज्यादा ताज्जुब के साथ) कब तक का हाल आप सुना सकते हैं?

नकाबपोश––आज तक का हाल, बल्कि आज के बाद भी रोज-रोज का हाल तब तक बराबर सुना सकते हैं जब तक उनके यहाँ आने में दो घण्टे की देर हो।

वीरेन्द्रसिंह––हम बड़ी प्रसन्नता से उनका हाल सुनने के लिए तैयार हैं, बल्कि हम चाहते हैं कि गोपालसिंह और अपने पिताजी के सामने वह हाल सुनें।

च॰ स॰-5-17

नकाबपोश––जो आज्ञा, मैं सुनाने के लिए तैयार हूँ।

वीरेन्द्रसिंह––मगर वह सब हाल आप लोगों को कैसे मालूम हुआ होता है, और होगा?

नकाबपोश––(हाथ जोड़कर) इसका जवाब देने के लिए मैं अभी तैयार नहीं हूँ, लेकिन यदि महाराज मजबूर करेंगे तो लाचारी है, क्योंकि हम लोग महाराज को अप्रसन्न भी नहीं किया चाहते हैं।

वीरेन्द्रसिंह––(मुस्कराकर) हम तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध कोई काम करना भी नहीं चाहते।

इतना कहकर वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह की तरफ देखा। तेजसिंह स्वयं उठकर महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास गये और थोड़ी ही देर में लौटकर बोले, "चलिए, महाराज बैठे हैं और आप लोगों का इन्तजार कर रहे हैं।" सुनते ही सब लोग उठ खड़े हुए और राजा सुरेन्द्रसिंह की तरफ चले। उसी समय तेजसिंह ने एक ऐयार राजा गोपालसिंह के पास भेज दिया।