चन्द्रकान्ता सन्तति 6/23.6

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चंद्रकांता संतति भाग 6  (1896) 
द्वारा देवकीनंदन खत्री

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नानक जब चुनारगढ़ की सरहद पर पहुंचा, तब सोचने लगा कि दुश्मनों से क्यों कर बदला लेना चाहिए। वह पांच आदमियों को अपना शिकार समझे हुए था और उन्हीं पांचों की जान लेने का विचार करता था। एक तो राजा गोपालसिंह, दूसरे इन्द्रदेव, तीसरा भूतनाथ, चौथा हरनाम सिंह और पांचवीं शान्ता । बस, ये ही पाँच उसकी आँखों में खटक रहे थे, मगर इनमें से दो अर्थात् राजा गोपालसिंह और इन्द्रदेव के पास फटकने की तो उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी और वह समझता था कि ये दोनों तिलिस्मी आदमी हैं, इनके काम जादू की तरह हुआ करते हैं और इनमें लोगों के दिल की बात समझ जाने की कुदरत है। मगर बाकी तीनों को वह निरा शिकार ही समझता था और विश्वास करता था कि इन तीनों को किसी न किसी तरह फंसा लेंगे। अतः चुनारगढ़ की सरहद में आ पहुँचने के बाद उसने गोपालसिंह और इन्द्रदेव का खयाल तो छोड़ दिया और भूतनाथ की स्त्री और उसके लड़के हरनामसिंह की जान लेने के फेर में पड़ा। साथ ही इसके यह भी समझ लेना चाहिए कि नानक यहाँ अकेला नहीं आया था, बल्कि समय पर मदद पहुँचाने के लायक सात-आठ आदमी और भी अपने साथ लाया था, जिसमें से चार-पाँच तो उसके शागिर्द ही थे।

दोनों कुमारों की शादी में जिस तरह दूर-दूर के मेहमान और तमाशबीन लोग आये थे, उसी तरह साधु-महात्मा तथा साधु वेषधारी पाखण्डी लोग भी बहुत से इकट्ठे हो गये थे, जिन्हें सरकार की तरफ से खाने-पीने को भरपूर मिलता था और इस लालच में पड़े हुए उन लोगों ने अभी तक चुनारगढ़ का पीछा नहीं छोड़ा था तथा तिलिस्मी मकान के चारों तरफ तथा आस-पास के जंगलों में डेरा डाले हुए पड़े थे। नानक और उसके साथी लोग भी साधुओं ही के वेष में वहाँ पहुंचे और उसी मंडली में मिल-जुलकर रहने लगे। [ १४४ ]नानक को यह बात मालूम थी कि भूतनाथ का डेरा तिलिरमी इमारत के अन्दर है और वह वहाँ बड़ी कड़ी हिफाजत के साथ रहता है । इसलिए वह कभी-कभी यह सोचता था कि मेरा काम सहज ही में नहीं हो जायेगा, बल्कि उसके लिए बड़ी भारी मेहनत करनी पड़ेगी। मगर वहाँ पहुँचने के कुछ ही दिन बाद (जब शादी-ब्याह से सब कोई निश्चिन्त होकर तिलिस्मी इमारत में आ गए) उसने सुना और देखा कि महाराज की आज्ञानुसार भूतनाथ ने स्त्री और लड़के सहित तिलिस्मी इमारत के बाहर एक बहुत बड़े और खूबसूरत खेमे में डेरा डाला है, अतएव वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसे विश्वास हो गया कि मैं अपना काम शीघ्र और सुभीते के साथ निकाल लूंगा।

नानक ने और भी दो-तीन रोज तक इन्तजार किया और इस बीच में यह भी जान लिया कि भूतनाथ के खेमे की कुछ विशेष हिफाजत नहीं होती और पहरे वगैरह का इन्तजाम भी साधारण-सा ही है तथा उसके शागिर्द लोग भी आजकल मौजूद नहीं हैं।

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी थी । यद्यपि चन्द्रदेव के दर्शन नहीं होते थे, मगर आसमान साफ होने के कारण टुटपूंजिया तारागण अपनी नामवरी पैदा करने का उद्योग कर रहे और नानक जैसे बुद्धिमान लोगों से पूछ रहे थे कि यदि हम लोग इकट्ठ हो जाये तो क्या चन्द्रमा से चौगुनी और पांचगुनी चमक-दमक नहीं दिखा सकते तथा जवाब में यह भी सुनना चाहते थे कि 'निःसन्देह !' ऐसे समय में एक आदमी स्याह लवादा ओढ़े रहने पर भी लोगों की निगाहों से अपने को बचाता हुआ भूतनाथ के खेमे की तरफ जा रहा है। पाठक समझ ही गए होंगे कि यह नानक है, अतः जब वह खेमे के पास पहुंचा तो अपने मतलव का सन्नाटा देखकर खड़ा हो गया और किसी के आने का इन्तजार करने लगा। थोड़ी ही देर में एक दूसरा आदमी भी उसके पास आया और दो-चार सायत तक बातें करके चला मया। उस समय नानक जमीन पर लेट गया और धीरे-धीरे खिसकता हुआ खेमे की कनात के पास जा पहूँचा, तब उसे धीरे से उठाकर अन्दर चला गया। यहाँ उसने अपने को गुलामगर्दिश में पाया, मगर यहाँ बिल्कुल ही अंधकार था, हाँ यह जरूर मालूम होता था कि आगे वाली कनात के अन्दर अर्थात् खेमे में कुछ रोशनी हो रही है । नानक फिर वहाँ लेट गया और पहले की तरह यह दूसरी कनात भी उठाकर खेमे के अन्दर जाने का विचार कर ही रहा था कि दाहिनी तरफ से कुछ खड़खड़ाहट की आवाज मालूम पड़ी। वह चौंका और उसी अँधेरे में तीन-चार कदम बाईं तरफ हटकर पुनः कोई आवाज सुनने और उसे जाँचने की नीयत से ठहर गया । जब थोड़ी देर तक किसी तरह की आहट नहीं मालूम हुई तो पहले की तरह ही जमीन पर लेट गया और कनात उठाकर अन्दर जाना ही चाहता था कि दाहिनी तरफ फिर किसी के पैर पटक-पटक कर चलने की आहट मालूम हुई। वह खड़ा हो गया और पुनः चार-पाँच कदम पीछे की तरफ (बाईं तरफ) हट गया, मगर इसके बाद फिर किसी तरह की आहट मालूम न हुई। कुछ देर तक इन्तजार करने के बाद वह पुनः जमीन पर लेट गया और कनात के अन्दर सिर डाल कर देखने लगा। कोने की तरफ एक मामूली शमादान जल रहा था, जिसकी मद्धिम रोशनी में दो चारपाई बिछी हुई दिखाई पड़ी। कुछ देर तक गौर करने पर नानक को निश्चय हो गया कि इन दोनों चारपाइयों पर भूतनाथ तथा उसकी स्त्री [ १४५ ]शान्ता सोई हुई है । परन्तु उनका लड़का हरामसिंह खेमे के अन्दर दिखाई न दिया और उसके लिए नानक को कुछ चिन्ता हुई, तथापि वह साहस करके खेमे के अन्दर चला ही गया।

डरता-काँपता नानक धीरे-धीरे चारपाई के पास पहुंच गया, चाहा कि खंजर से इन दोनों का गला काट डाले, मगर फिर यह सोचने लगा कि पहले किस पर वार करूं, भूतनाथ पर या शान्ता पर? वे दोनों सिर से पैर तक चादर ताने पड़े हुए थे, इससे यह मालूम करने की जरूरत थी कि किस चारपाई पर कौन सो रहा है, साथ ही इसके नानक इस बात पर भी गौर कर रहा था कि रोशनी बुझा दी जाये या नहीं। यद्यपि वह वार करने के लिए खंजर हाथ में ले चुका था, मगर उसकी दिली कमजोरी ने उसका पीछा नहीं छोड़ा था और उसका हाथ कांप रहा था।