चन्द्रकान्ता सन्तति 6/24.4

विकिस्रोत से
चंद्रकांता संतति भाग 6  (1896) 
द्वारा देवकीनंदन खत्री

[ २१९ ]

4

रात आधी से ज्यादा जा चुकी है। महाराज सुरेन्द्रसिंह के कमरे में राजा वीरेन्द्र-सिंह, राजा गोपालसिंह, कुंअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, तारासिंह,भैरोंसिंह, भूतनाथ और इन्द्रदेव बैठे आपस में धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं। वृद्ध महाराज, सुरेन्द्रसिंह मसहरी पर लेटे हुए हैं ।

सुरेन्द्रसिंह--दिलीपशाह की जीवनी ने दारोगा की शैतानी और भी अच्छी तरह से झलका दी है।

जीतसिंह--बेशक ऐसा ही है । सच तो यह है कि ईश्वर ही ने पांचों कैदियों की रक्षा की, नहीं तो दारोगा ने कोई बात उठा नहीं रखी थी।

भूतनाथ--साथ ही इसके यह भी है कि सबसे ज्यादा दिलीपशाह के किस्से ने दरबार में मुझे शर्मिन्दा किया, मगर क्या करूं लाचार था कि चालबाज दारोगा ने दिलीपशाह की चिट्ठियों का मुझे ऐसा मतलब समझाया कि मैं अपने आपे से बाहर हो गया, बल्कि यह कहना चाहिए कि अन्धा हो गया !

तेजसिंह--वह जमाना ही चालबाजियों का था और चारों तरफ ऐसी ही बातें हो रही थीं। भूतनाथ, तुम अब उन बातों को एकदम से भूल जाओ और जिस नेक रास्ते पर चल रहे हो, उसी का ध्यान रखो।

जीतसिंह--अच्छा, तो अब कैदियों के बारे में जो कुछ हो फैसला कर ही देना चाहिये, जिसमें अगले दरबार में उन्हें हुक्म सुना दिया जाये।

सुरेन्द्रसिंह--(गोपालसिंह से)कहो साहब, तुम्हारी क्या राय है, किस-किस कैदी को क्या-क्या सजा देनी चाहिए?

गोपालसिंह--जो दादाजी(महाराज)की इच्छा हो, हुक्म दें ! मेरी प्रार्थना केवल इतनी ही है कि कम्बख्त दारोगा मेरे हवाले किया जाये और मुझे हुक्म हो जाये कि जो [ २२० ]मैं चाहूं, उसे सजा हूँ।

सुरेन्द्रसिंह--केवल दारोगा ही नहीं, बल्कि तुम्हारे और कैदी भी तुम्हारे हवाले किये जायेंगे।

गोपालसिंह--और दिलीपशाह, अर्जुनसिंह, भरतसिंह, हरदीन और गिरिजा-कुमार भी मुझे दे दिए जायें, क्योंकि ये सबलोग मेरे सहायक हैं और इनके साथ रहकर मेरा दिन बड़ी खुशी के साथ बीतेगा !

सुरेन्द्रसिंह--(जीतसिंह से) ऐसा ही किया जाये।

जीतसिंह--बहुत अच्छा, मैं नम्बरवार कैदियों के बारे में जो कुछ हुक्म होता है, लिखता जाता हूँ।

इतना कहकर जीतसिंह ने कलम-दवात और कागज ले लिया और महाराज की आज्ञानुसार इस तरह लिखने लगे--

(1) कम्बख्त दारोगा को सजा पाने के लिए राजा गोपालसिंह के हवाले किया जाये । राजा साहब जो मुनासिब समझें उसे सजा दें।

(2) शिखण्डी (दारोगा का चचेरा भाई) मायाप्रसाद, जयपाल, हरनामसिंह,बिहारीसिंह, हरनामसिंह की लड़की, लीला, मनोरमा, नागर, वेगम, नौरतन और जमालो वगैरह भी जिन्हें जमानिया से घना सम्बन्ध है, राजा गोपालसिंह के हवाले कर दिए जायें।

(3) बेगम के घर से निकली हुई दौलत, जो काशिराज ने यहाँ भिजवा दी है,बलभद्रसिंह को दे दी जाये।

(4) गौहर और गिल्सन शेरअलीखों के पास भेज दी जायें।

(5) किशोरी से पूछकर भीमसेन को छोड़ दिया जाये और उसे पुनः शिवदत्त की गद्दी पर बिठाया जाये।

(6) कुबेरसिंह, बाकरअली, अजायबसिंह, खुदाबख्श, यारअली, धरमसिंह,गोविन्दसिंह, भवगनिया, ललिता और धन्नूसिंह, तथा वे कैदी जो कमलिनी के तालाब वाले मकान से आये थे, सब जन्म-भर के लिए कैदखाने में भेज दिए जायें, इसके अतिरिक्त और जो भी कोई कैदी हों, (नानक इत्यादि) कैरखाने भेज दिए जायें।

(7) दिलीपशाह, अर्जुनसिंह, हरदीन, भरतसिंह और गिरिजाकुमार को राजा गोपालसिंह ले जायें और इन सबको बड़ी खातिर और आराम के साथ रखें। कैदियों के विषय में इस तरह का हुक्म देकर महाराज चुप हो गये और फिर आपस में दूसरे ढंग की बातें होने लगीं। थोड़ी देर के बाद दरबार बर्खास्त और सज लोग अपने-अपने ठिकाने चले गये।