चन्द्रगुप्त मौर्य्य/चाणक्य

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चन्द्रगुप्त मौर्य्य  (1932) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

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चाणक्य

इनके बहुत-से नाम मिलते है--विष्णुगुप्त, कौटिल्य, चाणक्य, वात्स्यायन, द्रु मिल इत्यादि इनके प्रसिद्ध नाम है । भारतीय पर्यटक इन्हे दक्षिण देशीय कोकणस्थ ब्राह्मण लिखते हैं और इसके प्रमाण में चे लिखते हैं कि दक्षिणदेशीय ब्राह्मण प्राय कूटनीतिपटु होते है । चाणक्य की कथाओ में मिलता है कि वह श्यामवर्ण के पुरुष तथा कुरूप थे, क्योकि इसी कारण से वह नन्द की सभा से श्राद्ध के समय हटाये गए। जैनियों के मत से चाणक्य गोल्ल-ग्रामवासी थे और जैनधर्मावलम्बी थे । वह नन्द द्वारा अपमानित होने पर नन्द-वश का नाश

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[ ४८ ]करने की प्रतिज्ञा करके बाहर निकल पडे़ और चन्द्रगुप्त से मिलकर उसे कौशल से नन्द-राज्य का स्वामी बना दिया।

बौद्ध लोग उन्हे तक्षशिला-निवासी ब्राह्मण बतलाते हैं और कहते हैं कि धनानन्द को मार कर चाणक्य ही ने चन्द्रगुप्त को राज्य दिया। पुराणों में मिलता है "कौटिल्यो नाम ब्राह्मण समुद्धरिष्यति।" अस्तु। सब की कथाओं का अनुमान करने से जाना जाता हैं कि चाणक्य ही चन्द्रगुप्त की उन्नति के मूल हैं।

कामदकीय नीतिसार में लिखा है―


यस्याभिचारबज्रेण बज्रज्वलनतेजस।
पपात मूलतः श्रीमान्सुपर्वानन्दपर्वत॥
एकाकी मंत्रशक्त्या य शक्त शक्तिधरोपम।
आजहार नृचन्द्राय चन्द्रगुप्ताय मेदिनीम्॥
नीतिशास्त्रामृत धीमानर्थशास्त्रमहोदधे।
य उद्दध्रे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे॥


चन्द्रगुप्त का प्रधान सहायक मंत्री चाणक्य ही था। पर यह ठीक नहीं ज्ञात होता कि वह कहाँ का रहने वाला था। जैनियों के इतिहास से बौद्धों के इतिहास को लोग प्रामाणिक मानते हैं। हेमचन्द्र ने जिस भाव में चाणक्य का चित्र अंकित किया हैं, वह प्रायः अस्वाभाविक घटनाओं से पूर्ण है।

जैन-ग्रन्थों और प्रबन्धों में प्रायः सभी को जैनधर्म में किसी-न-किसी प्रकार आश्रय लेते हुए दिखाया गया है। यही बात चन्द्रगुप्त के सम्बन्ध में भी है। श्रवण बोलगोलावालें लेख के द्वारा जो किसी जैन मुनि का हैं, चन्द्रगुप्त को राज छोड़ कर यति-धर्म ग्रहण करने का प्रमाण दिया जाता है। अनेको ने तो यहाँ तक कह डाला हैं कि उसका साथी चाणक्य भी जैन था।

अर्थशास्त्र के मंगलाचरण का प्रमाण देकर यह कहा जाता हैं कि (नमः शुक्रवृहस्पतिभ्या) ऐसा मंगलाचरण आचार्यों के प्रति कृतज्ञता[ ४९ ]
सूचक वैदिक हिन्दुओ का नही हो सकता , क्योकि वे प्राय ईश्वर को नमस्कार करते है। किन्तु कामसूत्र के मगलाचरण के सम्बन्ध में क्या होगा, जिसका मगलाचरण है “नमो धर्मार्थकामेभ्यो ।" इसमे भी तो ईश्वर की वदना नही की गई है । तो क्या वात्स्यायन भी जैन थे ? इसलिए यह सब बाते व्यर्थ है। जैनो के अतिरिक्त जिन लोगो का चरित्र उन लोगो ने लिखा है, उसे अद्भुत, कुत्सित और अप्रासंगिक बना डाला है । स्पष्ट प्रतीत होता है कि कुछ भारतीय चरित्रो को जैन ढाँचे में ढालने का जैन संस्कृत-साहित्य द्वारा असफल प्रयत्न किया गया है । यहाँ तक उन लोगो ने लिख डाला हैं कि चन्द्रगुप्त को भूख लगी तो चाणक्य ने एक ब्राह्मण के पेट से गुलगुले निकाल कर खिलाए । ऐसी अनेक आश्चर्यजनक कपोलकल्पनाओं के आधार पर चन्द्रगुप्त और चाणक्य को जैन बनाने का प्रयत्न किया जाता है ।

इसलिए बौद्धों के विवरण की ओर ही ध्यान आकर्षित होता है ? बौद्ध लोग कहते हैं कि "चाणक्य तक्षशिला-निवासी थे" और इधर हम देखते है कि तक्षशिला * में उस समय विद्यालय था जहाँ कि पाणिनि, जीवक आदि पढ़ चुके थे । अस्तु, सम्भवत चाणक्य, जैसा कि बौद्ध लोग कहते हैं, तक्षशिला में रहते या पढ़ते थे । जब हम चन्द्रगुप्त की सहायक सेना की ओर ध्यान देते हैं, तो यह प्रत्यक्ष ज्ञात होता है कि चाणक्य का तक्षशिला से अवश्य सम्बन्ध था, क्योकि चाणक्य अवश्य उनसे परिचित थे। नही तो वे लोग चन्द्रगुप्त को क्या जानते ? हमारा यही अनुमान है कि चाणक्य मगध के ब्राह्मण थे । क्योकि मगध में
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  • कनिंगहम साहब वर्तमान शाह देहरी के समीप में तक्षशिला, का होना मानते है । रामचन्द्र के भाई भरत के दो पुत्रों के नाम से उसी ओर दो नगरियाँ बसाई गई थी, तक्ष के नाम से तक्षशिला और पुष्कल के नाम से पुष्कलावती । तक्षशिला का विद्यालय उस समय भारत के प्रसिद्ध विद्यालयों में से एक था ।
च॰ ४

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[ ५० ]नन्द की सभा में वे अपमानित हुए थें। उनकी जन्मभूमि पाटलीपुत्र ही थी।

पाटलीपुत्र इस समय प्रधान नगरी थी, चाणक्य तक्षशिला में विद्याध्ययन करके वहाँ से लौट आये। किसी कारणवश वह राजा पर कुपित हो गए, जिसके बारे में प्राय सब विवरण मिलते-जुलते है। वह ब्राह्मण भी प्रतिज्ञा करके उठा कि आज से जब तक नन्दवंश का नाश न कर लूँगा, शिखा न बाँधूँगा और फिर चन्द्रगुप्त को मिलाकर जो-जो कार्य उन्होने किए, वह पाठको को ज्ञात ही है।

जहाँ तक ज्ञात होता है, चाणक्य वेदधमविलम्वी, कूटराजनीतिज्ञ, प्रखर प्रतिभावान और हठी थें।

उनकी नीति अनोखी होती थी और उनमें अलौकिक क्षमता थी, नीति-शास्त्र के आचार्यों में उनकी गणना हैं। उनके बनाये नीचे लिखे हुए ग्रन्थ बतलाये जाते है―चाणक्यनीति, अर्थशास्त्र, कामसूत्र और न्यायभाष्य।

यह अवश्य कहना होगा कि वह मनुष्य बड़ा प्रतिभाशाली या जिसके बुद्धिबल-द्वारा, प्रशसित राजकार्य-क्रम से चन्द्रगुप्त ने भारत का साम्राज्य स्थापित करके उस पर राज्य किया।

अर्थशास्त्र में स्वंय चाणक्य ने लिखा है---

येन शस्त्र च शास्त्र च नन्दराजागता च भू।
अमर्षेणोद्धृतान्याशु तन शास्त्रमिद कृतम्॥

काशी जयशंकर प्रसाद
सं॰ १९६६
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चन्द्रगुप्त मौर्य्य


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