तितली/2.9

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तितली - उपन्यास - जयशंकर प्रसाद  (1934) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

[ ७० ]

9.

बनजरिया का रूप आज बदला हुआ है। झोंपड़ी के मुंह पर चूना, धूल-भरी धरा पर पानी का छिड़काव, और स्वच्छता से बना हआ तोरण और कदली के खम्भों से सजा हा छोटासा मंडप, जिसमें प्रज्वलित अग्नि के चारों ओर बाबा रामनाथ, तितली, शैला और मधुबन बैठे हुए हवन-विधि पूरी कर रहे थे। दीक्षा हो चुकी थी। रामनाथ के साथ शैला ने प्रार्थना की-

'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतंगमय।'

एक दरी पर सामने बैठे हए मिस्टर वाटसन. इंद्रदेव. अनवरी और सखदेव चौबे चकित होकर यह दृश्य देख रहे थे। शैला सचमुच अपनी पीली रेशमी साड़ी में चम्पा की कली-सी बहुत भली लग रही थी। उसके मस्तक पर रोली का अरुण बिंदु जैसे प्रमुख होकर अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर रहा था। किंतु मधुबन और तितली भी पीले रेशमी वस्त्र पहने हुए थे। तितली के मुख पर सहज लज्जा और गौरव था। मधुबन का खुला हुआ दाहिना कंधा अपनी पुष्टि में बड़ा सुंदर दिखाई पड़ता था। उसका मुख हवन के धुएं से मजे हुए तांबे के रंग का हो रहा था। छोटी-मूछे कुछ ताव में चढ़ी थीं। किसी आने वाली प्रसन्नता की प्रतीक्षा में औखें हंस रही थीं। वही गंवार मधुबन जैसे आज दूसरा हो गया था! इंद्रदेव उसे आश्चर्य से देख रहे थे और तितली अपनी सलज्ज कांति में जैसे शिशिर-कणों से लदी हुई कुंदकली की मालिका-सी गंभीर सौंदर्य का सौरभ बिखेर रही थी। इंद्रदेव उसको भी परख लेते थे।

उधर मिस्टर वाट्सन शैला को कुतूहल से देख रहे थे। मन में सोचते थे कि 'यह कैसा है?' शैला के चारों ओर जो भारतीय वायुमंडल हवन-धूम, फूलों और हरियाली की सुगंध में स्निग्ध हो रहा था, उसने वाट्सन के हृदय पर से विरोध का आवरण हटा दिया था; उसके सौंदर्य में वह श्रद्धा और मित्रता को आमंत्रित करने लगा। उन्होंने इंद्रदेव से पूछा-कुंवर साहब! यह जो कुछ हो रहा है, उसमें आप विश्वास करते हैं न? [ ७१ ] इंद्रदेव ने अपने गौरव पर और भी रंग चढ़ाने के लिए उपेक्षा से मुस्कुराकर कहा-तनिक भी नहीं। हां, मिस शैला की प्रसन्नता के लिए उनके उत्साह में भाग लेना मेरे लिए आदर की बात है। मुझे इस गुरुडम में कोई कल्याण की बात समझ में नहीं आती। मनुष्य को अपने व्यक्तित्व में पूर्ण विकास करने की क्षमता होनी चाहिए। उसे बाहरी सहायता की आवश्यकता नहीं।

आपकी यह बात मेरी समझ में नहीं आई। विकास अव्यवस्थित तो होगा नहीं। उसे एक सरल मार्ग से चलना चाहिए। आपका यही कहना है न कि मनुष्य पर मानसिक नियंत्रण उसकी विचार-धारा को एक संकरे पथ से ले चलता है—वह जीवन के मुक्त विकास से परिचित नहीं होता? किंतु जिसके व्यक्तित्व में अदृष्ट ने अपने हाथों से सहायता दी है, वह उन बाधाओं से अनजान है, जो संसार के जंगल में भटकने वाले निस्संबल प्राणी के सामने आती हैं।

फिर मुस्कुराकर वाट्सन ने कहा—स्वतंत्र इंग्लैंड में रह आने के कारण आप वाट्सन को हौवा नहीं समझते; किंतु मैं अनुभव करता हूं कि यहां के अन्य लोग मेरी कितनी धाक मानते हैं। उनके लिए मैं देवता हूं या राक्षस, साधारण मनुष्य नहीं। यह विषमता क्या परिस्थितियों से उत्पन्न नहीं हुई है?

इंद्रदेव को अपने सांपत्तिक आधार पर खड़ा करके जो वाट्सन ने व्यंग्य किया, वह उन्हें तीखा लगा। इन्द्रदेव ने खीझकर कहा मेरी सुविधाएं मुझे मनुष्य बनाने में समर्थ हुई हैं कि नहीं, यह तो मैं नहीं कह सकता; किंतु मेरी संपत्ति में जीवन को सब तरह की सुविधा मिलनी चाहिए। यह मैं नहीं मानता कि मनुष्य अपने संतोष से ही सम्राट हो जाता है और अभिलाषाओं से दरिद्र। मानव-जीवन लालसाओं से बना हुआ सुंदर चित्र है। उसका रंग छीनकर उसे रेखा-चित्र बना देने से मुझे संतोष नहीं होगा। उसमें कहे जाने वाले पुण्य-पाप की सुवर्ण कालिमा, सुख-दुःख को आलोक-छाया और लज्जा-प्रसन्नता की लाली-हरियाली उद्भासित हो। और चाहिए उसके लिए विस्तृत भूमिका, जिसमें रेखाएं उनुक्त होकर विकसित हों।

वाट्सन अपने अध्ययन और साहित्यिक विचारों के कारण ही शासन-विभाग से बदलकर प्रबंध में भेज दिए गए थे। उन्होंने इंद्रदेव का उत्तर देने के लिए मुंह खोला ही था कि शैला अपनी दीक्षा समाप्त करके प्रणाम करने आ गई। वाट्सन ने हंसकर कहा-मिस शैला, मैं तुमको बधाई देता हूं। तुम्हारा और भी मानसिक विकास हो, इसके लिए आशीर्वाद भी।

इंद्रदेव कुछ कहने नहीं पाए थे कि अनवरी ने कहा—और मैं तो मिस शैला की चेली बनूंगी! बहुत जल्द!

इंद्रदेव ने उसकी चपलता पर खीझकर कहा—उसके लिए अभी बहुत देर है मिस अनवरी।

फिर उसने अपने हाथ का फलों का गुच्छा आशीर्वाद-स्वरूप शैला की ओर बढ़ा दिया। शैला ने कृतज्ञतापूर्वक उसे लेकर माथे से लगा किया और इंद्रदेव के पास ही बैठ गई।

रामनाथ ने एक-एक माला सबको पहना दी और कहा आप लोगों से मेरी एक और भी प्रार्थना है। कुछ समय तो लगेगा; किंतु आप लोग भी ठहरकर मेरे शिष्य मधुबन और [ ७२ ] तितली के विवाह में आशीर्वाद देंगे तो मुझे अनुगृहीत करेंगे।

इंद्रदेव तो चुप रहे। उनके मन में इस प्रसंग से न जाने क्यों विरक्ति हुई। अनवरी चुप रहने वाली न थी। उसने हंसकर कहा-वाह! तब तो ब्याह की मिठाई खाकर ही जाऊंगी।

तितली और मधुबन अभी वेदी के पास बैठे थे, सुखदेव किसी की प्रतीक्षा में इधरउधर देख रहे थे कि तहसीलदार साहब आते हुए दिखाई पड़े।

सुखदेव ने उठकर उनके कानों में कुछ कहा। तहसीलदार की कुतरी हुई छोटी-छोटी मूछे, कुछ फूले हुए तेल से चुपड़े गाल-जैसा कि उतरती हुई अवस्था के सुखी मनुष्यों का प्राय: दिखाई पड़ता है, नीचे का मोटा लटकता हुआ होंठ, बनावटी हंसी हंसने की चेष्टा में व्यस्त, पट्टेदार बालों पर तेल से भरी पुरानी काली टोपी, कुटिलता से भरी गोल-गोल औखें किसी विकट भविष्य की सूचना दे रही थीं। उन्होंने लम्बा सलाम करते हुए इंद्रदेव से कहा—मैं एक जरूरी काम से चला गया था। इसी से...

इंद्रदेव को इस विवरण की आवश्यकता न थी। उन्होंने पूछा—नील-कोठी से आप हो आए? वहां का प्रबंध सब ठीक है न।

हां-एक बात आपसे कहना चाहता हूं।

इंद्रदेव उठकर तहसीलदार की बात सुनने लगे। उधर वेदी के पास ब्याह की विधि आरंभ हई। शैला भी वहां चली गई थी। मधबन आहतियां दे रहा था और तितली निष्कंप दीप-शिखा-सी उसकी बगल में बैठी हुई थी।

सहसा दो स्त्रियां वहां आकर खड़ी हो गईं। आगे तो राजकुमारी थी। उसके पीछे कौन थी, यह अभी किसी को नहीं मालूम। राजकुमारी की आखें जल रही थीं। उसने क्रोध से कहा, बाबाजी, किसी का घर बिगाड़ना अच्छा नहीं। मेरे मना करने पर भी आप ब्याह करा रहे हैं। किसी लड़के को फसलाना आपको शोभा नहीं देता।

दूसरी स्त्री चादर के चूंघट में से ही बिलखकर कहने लगी—क्या इस गांव में कोई किसी की सुनने वाला नहीं? मेरी भतीजी का ब्याह मुझसे बिना पूछे करने वाला यह बाबा कौन होता है? हे राम! यह अंधेर!

मिस्टर वाट्सन उठकर खड़े हो गए। अनवरी के मुख पर व्यंग्यपूर्ण आश्चर्य था और सुखदेव के क्रोध का तो जैसे कुछ ठिकाना ही न था। उन्होंने चिल्लाकर कहा—सरकार, आप लोगों के रहते ऐसा अन्याय न होना चाहिए।

क्षण-भर के लिए मधुबन रुककर क्रोध से सुखदेव की ओर देखने लगा। वह आसन छोड़कर उठने ही वाला था। वह जैसे नींद से सपना देखकर बोलने का प्रयत्न करते हुए मनुष्य के समान अपने क्रोध से असमर्थ हो रहा था।

उधर रामनाथ ने चारों ओर देखकर गंभीर स्वर से कहा-शांत हो मधुबन! अपना काम समाप्त करो। यह सब तो जो हो रहा है, उसे होने दो।

और तितली की दशा, ठीक गांव के समीप रेवले-लाइन के तार को पकड़े हुए उस बालक-सी थी, जिसके सामने से डाक-गाड़ी भक्-भक् करती हुई निकल जाती है— सैकड़ों सिर खिड़कियों से निकले रहते हैं, पर पहचान में एक भी नहीं आते, न तो उनकी आकृति या वर्णरेखाओं का ही कुछ पता चलता है। वह अपनी सारी विडम्बना को हटाकर अपनी दृढ़ता में खड़ी रहने का प्रयत्न करने लगी थी। [ ७३ ] तो भी रामनाथ की आज्ञाओं का—आदेशों का अक्षरश:-पालन हो रहा था! तहसीलदार और इंद्रदेव वापस चले आए थे। तहसीलदार ने कहा—बाबाजी! आप यह काम अच्छा नहीं कर रहे हैं। तितली के घरवालों की संमति के बिना उसका ब्याह अपराध तो है ही, उसका कोई अर्थ भी नहीं।

इंद्रदेव को चुप देखकर रामनाथ ने कहा—क्या आपकी भी यही संमति है?

हां-नहीं-उन लोगों से तो आपको पूछ लेना...

किन लोगों से? तितली की बुआ! कहां थी वह जब तितली मर रही थी पानी के बिना? और फिर आपको भी विश्वास है कि यह तितली की बुआ ही है? मैं भी इस गांव की सब बातें जानता हूं। रह गई मधुबन की बात, सो अब वह लड़का नहीं है; उसे कोई भुलावा नहीं दे सकता।

रामनाथ ने फिर अपनी शेष विधि पूरी की। उधर दोनों स्त्रियां उछल-कूद मचा रही थीं।

अनवरी ने धीरे-से वाट्सन से कहा—क्या आपको इसमें कुछ न बोलना चाहिए?

कुछ सोचकर वाट्सन ने कहा—नहीं, मैं इन बातों को अच्छी तरह जानता भी नहीं, और देखता हूं तो दोनों ही अपना भला-बुरा समझने लायक हैं। फिर मैं क्यों...?

आह! यह मेरा मतलब नहीं था। मैं तो प्राणी का प्राणी से जीवन-भर के संबंध में बंध जाना दासता समझती हूं; उसमें आगे चलकर दोनों के मन में मालिक बनने की विद्रोहभावना छिपी रहती है। विवाहित जीवन में, अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हुए स्त्री-पुरुष दोनों ही देखे जाते हैं। यह तो एक झगड़ा मोल लेना है।

ओह! तब आप एक सिद्धांत की बात कर रही थीं—वाट्सन ने मुस्कुराकर कहा।

कुछ भी हो, बाबाजी! आपको इसमें समझ-बूझकर हाथ डालना चाहिए। न जाने किस भावना से प्रेरित होकर वेदी के पास ही खड़े हुए इंद्रदेव ने कहा। उनके मुख पर झुंझलाहट और संतोष की रेखाएं स्पष्ट हो उठीं।

रामनाथ ने उनको और तितली को देखते हुए कहा—कुंवर साहब! मधुबन ही तितली के उपयुक्त वर है। मैं अपना दायित्व अच्छी तरह समझकर ही इसमें पड़ा हूं। कम-से-कम जो लोग संबंध में यहां बातचीत कर रहे हैं, उनसे मेरा अधिक न्यायपूर्ण अधिकार है।

इंद्रदेव तिलमिला उठे। भीतर की बात वह नहीं समझ रहे थे; किंतु मन के ऊपर सतह पर तो यह आया कि यह बाबा प्रकारांतर से मेरा अपमान कर रहा है।

उधर से चौबे ने कहा—अधिकार! यह कैसा हठीला मनुष्य है, जो इतने बड़े अफसर और जमींदार के सामने भी अपने को अधिकारी समझता है! सरकार! यह धर्म का ढोंग है। इसके भीतर बड़ी कतरनी है! इसने सारे गांव में ऐसी बुरी हवा फैला दी है कि किसी दिन इसके लिए बहुत पछताना होगा, यदि समय रहते इसका उपाय न किया गया।

इंद्रदेव की कनपटी लाल हो उठी। वह क्रोध को दबाना चाहते थे शैला के कारण। परंतु उन्हें असहय हो रहा था।

शैला ने खड़ी होकर कहा—एक पल-भर रुक जाइए। क्यों मधुबन! तुम पूरी तरह से विचार करके यह ब्याह कर रहे हो न? कोई तुमको बहका तो नहीं रहा है? इसमें तुम प्रसन्न हो? [ ७४ ] संपूर्ण चेतनता से मधुबन ने कहा—हां?

और तुम तितली?

मैं भी।

उसका नारीत्व अपने पूर्ण अभिमान में था।

अनवरी झल्ला उठी। सुखदेव दांत पीसकर उठ गए। तहसीलदार मन-ही-मन बुदबुदाने लगे। वाट्सन मुस्कुराकर रह गए। शैला ने गंभीर स्वर में इंद्रदेव से कहा—अब आप लोगों से यह नवविवाहित दंपती आशीर्वाद की आशा करता है। और मैं समझती हूं कि यहां का काम हो चुका है। अब आप लोग नील-कोठी चलिए। अस्पताल खोलने का उत्सव भी इसी समय होगा और तितली के ब्याह का जलपान भी वहीं करना होगा। सब लोग मेरी ओर से निमंत्रित हैं।

इंद्रदेव ने सिर झुकाकर जैसे सब स्वीकार कर लिया। और वाट्सन ने हंसकर कहामिस शैला! मैं तुमको धन्यवाद पहले ही से देता हूं।

सिंदूर से भरी हुई तितली की मांग दमक उठी।