तितली/4.2

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तितली - उपन्यास - जयशंकर प्रसाद  (1934) 
द्वारा जयशंकर प्रसाद

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2.

नील-कोठी में इधर कई दिनों से भीड़ लगी रहती है। शैला की तत्परता से चकबंदी का काम बहुत रुकावटों में भी चलने लगा। महंगू इस बदले के लिए प्रस्तुत न था। उसकी समझ में यह बात न आती थी। उसके कई खेत बहुत ही उपजाऊ थे। रामजस का खेत उसके घर से दूर था, पर वह तीन फसल उसमें काटता था। उसको बदलना पड़ेगा। यह असंभव है। वह लाठी टेकता हुआ भीड़ में घुसा।

वाट्सन के साथ बैठी हुई शैला मेज पर फैले गांव के नक्शे को देख रही थी! किसानों का झुण्ड सामने खड़ा था। महंगू ने कहा—दुहाई सरकार मर जाएंगे।

शैला ने चौंककर उसकी ओर देखा।

मेरा खेत! उसी से बाल-बच्चों की रोटी चलती है। उस टुकड़े को मैं न बदलूंगा।

महंगू की आखों में आंस तो अब बहत शीघ्र यं ही आते थे। वृद्धावस्था में मोह और भी प्रबल हो जाता है। आज जैसे आंसू की धारा ही नहीं रुकती थी।

शैला ने वाट्सन की ओर देखा। उस देखने में एक प्रश्न था। किंतु वाट्सन ने कहानहीं, तुम्हारा वह खेत तुम्हारी चरनी और कोल्हू से बहुत दूर है। उसको तो तुम्हें छोड़ना ही पड़ेगा। तुम अपने समीप का एक टुकड़ा क्यों नहीं पसन्द करते। वाट्सन ने नक्शे पर उंगली रखी। शैला चुप रही। इतने में तितली एक छोटा-सा बच्चा गोद में लिये यहां आई। उसे देखते ही दूसरी कुर्सी पर बैठने का संकेत करते हुए शैला ने कहा- वाट्सन! यही मेरी बहन 'तितली' है। जिसके लिए मैंने तुमसे कहा था। कन्या-पाठशाला की यही अध्यापिका है। बीस लड़कियां तो उसमें बोर्ड की हिंदी-परीक्षा के लिए इस साल प्रस्तुत हो रही हैं। और छोटी-छोटी कक्षाओं में कुल मिलाकर चालीस होगी।

ओहो, आप बैठिए। मुझे तो यह पाठशाला देखनी ही होगी। यह सुनकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ।—कहते हुए वाट्सन ने फिर बैठने के लिए कहा।

किन्तु तितली वैसी ही खड़ी रही। उसने कहा—आपकी कृपा है। किंतु मैं इस समय आपके पास एक दूसरे काम से आई हूं। मेरा कुछ खेत महंगू महतो जोत रहे हैं। मैं नहीं जानती कि मेरे पति ने वह खेत किन शर्तों पर उन्हें दिया है। किन्तु मुझे आवश्यकता है अपने स्कूल के लिए और भी विस्तृत भूमि की। बनजरिया पर लगान तो लग ही गया है। उसमें लड़कियों के खेलने की जगह बनाने से मेरी खेती की भूमि कम हो गई है। मैं चाहती हूं महंगू के पास जो मेरा खेत है, वह महंगू को दे दिया जाये।

वाट्सन ने घूमकर शैला से कहा—मैं तो समझता हूं कि उस बदले से यह अच्छा [ १३७ ]होगा। क्यों महंगू? तुमको तो यह प्रस्ताव मान लेना चाहिए।

शैला चुपचाप तितली और अपने संबंध को विचार रही थी। वह सोच रही थी कि तितली क्यों मुझसे इतना अलग रहना चाहती है। मैं कहती हूं कि 'यहां बैठ जाओ' तो वह बैठना ही अपमान समझती है।

वाट्सन ने शैला के कान में धीरे-से कहा—तुम चुप क्यों हो? यह तो वही लड़की मालूम होती है, जिसके ब्याह में मैं उपस्थित था। ठीक है न?

शैला ने दुःख से कहा-हां, इसका शेरकोट तो जमींदार ने बेदखल करा लिया। अब बनजरिया बची है; उस पर भी लगान लग गया। पहले माफी थी! और वाट्सन! तुमने तो यह न सुना होगा कि इसके पति को डकैती के अपराध में कारावास का दंड मिला है।

वाट्सन ने एक बार फिर उस तेजस्विनी तितली को देखा। वही एक किसान थी, जिसने सबके पहले बदले को प्रसन्नता से स्वीकार किया है। महंगू तो इस प्रस्ताव को सुनकर और भी क्रुद्ध हो गया। उसे अपने खेत जहां पर हैं वहीं रहना अच्छा मालूम होता है; क्योंकि उसके अंतर में यह अज्ञात भावना है कि उसके लड़के-पोते एक में न रहेंगे, फिर एक जगह खेत इकट्ठा लेकर क्या होगा। उसने गुर्राकर कहा—साहब! आप मालिक हैं; जो चाहें कीजिए। कहिए तो गांव ही छोड़कर चले जाएं।

वाट्सन इस उत्तर से अव्यवस्थित हो गए। उसके मन में झटका लगा क्या हम किसानों के हित के विरुद्ध कुछ करने जा रहे हैं?—तुरंत ही उन्होंने तितली से घूमकर पूछा-

क्या दूसरा खेत तुम नहीं पसंद कर सकती? और भी तो खेत तुम्हारे पास हैं?

नहीं, दूसरे खेत मेरे काम के नहीं! यदि बदलना हो तो उसी से बदल लूंगी?

वाट्सन ने देखा कि यही पहला अवसर है कि एक किसान बदलने का प्रस्ताव करता है—वह भी उचित; तो फिर अस्वीकार कैसे किया जाए।

वाट्सन ने कहा—यह बदला फिर मान लिया जाए; क्योंकि खेत के परते में भी कोई अंतर नहीं है।

महंगू खिसिया गया। उसकी आंखो में फिर औसू निकलने लगे। तब तितली ने अपने बच्चे को लहराते हुए कहा तो मैं जाती हूं, बच्चा भूखा है! धन्यवाद!

शैला ने देखा कि एक ठोकर खाया हुआ हृदय अपनी दुरावस्था में उपेक्षा से उनका तिरस्कार कर रहा है, शैला इंद्रदेव से ब्याह कर लेने पर बहुत दिनों तक धामपुर नहीं आई। लिखा-पढ़ी करने पर इस सर्दी में वाट्सन अपना काम पूरा करने आए। तब तो उसको आना ही पड़ा, और आकर भी वह तितली से मिलने का अवसर न पा सकी; क्योंकि वाट्सन साथ ही आए थे। इधर इंद्रदेव ने भी बड़े दिनों में वहीं आने के लिए कह दिया था। शैला कछ-कछ मानसिक चंचलता में थी। तितली को यह अखर गया। वह दुर्बल थी, असहाय थी। उसकी खोज लेना बड़े लोगों का धर्म हो जाता है इसीलिए तितली काम करके तुरंत लौट जाना चाहती थी। उसने जो वाक्य अपने जाने के लिए कहा, वह भी सीधे शैला से नहीं। तब भी शैला कुर्सी से उठकर तितली के पास आई। उसका हाथ पकड़े हुए दूसरे कमरे में चली गई।

वाट्सन ने तितली को एक शभ लक्षण समझा। भला इस स्त्री ने पहले-पहल उस काम की महत्ता को समझा तो। काम आरंभ हो गया। अब धीरे-धीरे वह किसानों को सांचे में [ १३८ ]ढाल लेगा। उसे शैला की मनस्तुष्टि के लिए क्या-क्या नहीं कर लेना चाहिए। उसने काम को आगे बढ़ाया।

शैला ने तितली के बच्चे को उसकी गोद से लेकर कहा—बड़ा सुंदर और प्यारा बच्चा है!

परंतु अभागा है—तितली ने कहा।

तुम क्या अभी उसको प्यार करती हो? वह...। शैला आगे कुछ बुरे शब्द मधुबन के लिए न कह सकी।

तितली ने कहा—वह! डाकू, हत्यारा और चोर था या नहीं, सो तो मैं नहीं कह सकती; क्योंकि चौबीसों घंटे मैं साथ रही; फिर भी शैला! वह...।

आगे वह भी कुछ न बोल सकी, उसकी आंखो से आंसू बहने लगे। शैला ने बात का ढंग बदलने के लिए कहा—अच्छा, तुमसे एक बात पूछती हूं।

क्या?

यही कि उस दिन तुम बिना कहे-सुने क्यों चली आईं। इंद्रदेव ने तो तुम्हारी सहायता करने के लिए कहा था न?

मैं यह सब समझती हूं। वे कुछ करते भी, इसका मुझे विश्वास है; परंतु मैंने यही समझा कि मुझे दूसरों के महत्त्व-प्रदर्शन के सामने अपनी लघुता न दिखानी चाहिए। मैं भाग्य के विधान से पीसी जा रही हूं। फिर उसमें तुमको, तुम्हारे सुख से घसीट कर, क्यों अपने दुख का दृश्य देखने के लिए बाध्य करूं? मुझे अपनी शक्तियों पर अवलम्ब करके भयानक संसार से लड़ना अच्छा लगा। जितनी सुविधा उसने दी है, उसी की सीमा में लडूंगी, अपने अस्तित्व के लिए। तुमको साल पर पर अब यहां आने का अवसर मिला है। तो मेरे समीप जो है उसी को न मैं पकड़ सकूँगी। वह बनजरिया! वे ही थोड़े-से वृक्ष! और साधारण-सी खेती! तब मुझे यहां पाठशाला चलानी पड़ी। जानती हो, आज मेरे परिवार में कितने प्राणी हैं? दो तुम यहीं देख रही हो। राजो, मलिया और तीन छोटी-छोटी अनाथ लड्कियां; जिनमें कोई भी छ: माह से अधिक बड़ी नहीं है! और अभी जेल से छूटकर आया हुआ रामजस, जिसके लिए न एक बित्ता भूमि है और न एक दाना अन्न!

तीन छोटी-छोटी लड्कियां हैं? वे कहां से आ गईं? शैला ने आश्चर्य से पूछा।

संसार पर में परम अछूत! समाज की निर्दय महत्ता के काल्पनिक दम्भ का निदर्शन! छिपाकर उत्पन्न किए जाने योग्य सृष्टि के बहुमूल्य प्राणी, जिन्हें उनकी माताएं भी छूने में पाप समझती हैं। व्यभिचार की सन्तान!

शैला की आंखे जैसे बढ़ गईं। उसने तितली का हाथ पकड़कर कहा—बहन! तुम यथार्थ में बाबाजी की बेटी हो। तुम्हारा काम प्रशंसनीय है; यहां वाले क्या तुम्हारे काम से प्रसन्न हैं?

हों या न हों, मुझे इसकी चिंता नहीं। मैंने अपनी पाठशाला चलाने का दृढ़ निश्चय

किया है। कुछ लोगों ने इन लड़कियों के रख लेने पर प्रवाद फैलाया। परंतु वे इसमें असफल रहे। मैं तो कहती हूं कि यदि सब लड़कियां पढ़ना बंद कर दें, तो मैं साल भर में ही ऐसे कितनी ही छोटी-बड़ी अनाथ लड़कियां एकत्र कर लूंगी, जिनसे मेरी पाठशाला और खेती-बाड़ी बराबर चलती रहेगी। मैं इसे कन्या-गुरुकुल बना दूंगी! तितली का मुंह उत्साह से दमकने लगा, और शैला विमुग्ध होकर उसकी मन-ही-मन सराहना कर रही थी। फिर [ १३९ ]शैला ने कहा—तितली! मेरी एक बात मानोगी? मैं इंद्रदेव के आने पर तुमको बुलाऊंगी। मैं चाहती हूं कि तुम उनसे एक बार कहो कि वे मधुबन के लिए अपील करें।

मुझे पहले ही जब लोगों ने यह समाचार नहीं मिलने दिया कि उनका मुकद्दमा चल रहा है, तो अब मैं दूसरों के उपकार का बोझ क्यों लूं? मैं! कदापि नहीं। बहन शैला अब उसमें क्या धरा है? उनके यदि अपराध न भी होंगे, तो चार-छ: बरस ब्रह्मा के दिन नहीं। आंच में तपकर सोना और भी शुद्ध हो जाएगा।—कहकर तितली उठने लगी।

तो फिर बात और मैं कह लूं। बैठ जाओ। मैं कहती हूं कि मेरे साथ आकर यहीं नीलकोठी में काम करो। यहीं मैं बालिकाओं की पाठशाला भी अलग खुलवा दूंगी।

तितली बैठी नहीं, उसने चलते-चलते कहा—मुझे अपना दुख-सुख अकेली भोग लेने दो। मैं द्वार-द्वार पर सहायता के लिए घूमकर निराश हो चुकी हूं। मुझे अपनी निस्सहायता और दरिद्रता का सुख लेने दो। मैं जानती हूं कि तुम्हारे हृदय में मेरे लिए एक स्थान है। परंतु मैं नहीं चाहती कि मुझे कोई प्यार करे। मुझसे धृणा करो बहन! शैला आश्चर्य से देखती रह गई और तितली चली गई। दूसरी ओर से इंद्रदेव ने प्रवेश किया। शैला ने मीठी मुस्कान से उनका स्वागत किया।

इसके कई दिन बाद बनजरिया की खपरैल में जब लड़कियां पढ़ रही थीं, तब उसी के पास एक छोटे-से मिट्टी के टीले को काटकर ईंटें बन रही थीं। मलिया मिट्टी का लोंदा बनाकर सांचे में भर रही थी और रामजस उससे ईंटें निकालता जा रहा था। राजो एक मजूर से बैलों के लिए जोन्हरी का ठेंठा कटवा रही थी। सिरस से पेड़ में एक झूला पड़ा था, उसमें तीन भाग थे। छोटे-छोटे निरीह शिशु उसमें पड़े हुए धूप खा रहे थे; और तितली अपने बच्चों को गोद में लिए लड़कियों को पहाड़ा रटा रही थी। उसी समय वाट्सन, शैला और इंद्रदेव वहां आए। वाट्सन ने टाट पर बैठकर पढ़ती हुई लड़कियों को देखा। उनको देखते ही तितली उठ खड़ी हुई। अपने हाथ से बनाए हुए मोटे लाकर लड़कियों ने रख दिए। सब लोगों के पास बैठने पर इंद्रदेव ने कहा शैला! तुमने प्रबंध में इस पाठशाला के लिए कोई व्यवस्था नहीं की है?

नहीं, यह सहायता लेना ही नहीं चाहती।

क्यों?

वह तो मैं नहीं कह सकती।

सचमुच यह सराहनीय उधोग है। वाट्सन ने कहा मुझे तो यह अद्भुत मालूम पड़ता है, बड़ा ही मधुर और प्रभावशाली भी। क्यों तुम कोई सहायता नहीं लेना चाहती? मुझे कुछ बता सकती हो?

आप उसे सुनकर क्या करेंगे? वह बात अच्छी न लगे तो मुझे और भी दुख होगा। आप लोगों की सहानुभूति ही मेरे लिए बड़ी भारी सहायता है— तितली ने सिर नीचा कर कृतज्ञ-भाव से कहा।

परंतु ऐसी अच्छी संस्था थोड़े-से धनाभाव के कारण अच्छी तरह न चले सके, तो बुरी बात है। मैं क्या इस उदासीनता का कारण नहीं सुन सकता?

मैं विवश होकर कहती हूं। मैं अपनी रोटियां इससे लेती हूं। तब मुझे किसी की सहायता लेने का क्या अधिकार है? मैं दो आने महीना लड़कियों से पाती हूं। और उतने से [ १४० ]पाठशाला का काम अच्छी तरह चलता है। कुछ मुझे बच भी जाता है। जमींदार ने मेरी पुरखों की डीह ले ली। मुझे माफी पर भी लगान देना पड़ रहा है। और मुझे इस विपत्ति में डालने वाले हैं यहां के जमींदार और तहसीलदार साहब! तब भी आप लोग कहते हैं कि मैं उन्हीं लोगों से सहायता लूँ!

हां, मैं तो उचित समझता हूं। इस अवस्था में तो तुम्हें और भी सहायता मिलनी चाहिए और तुमने तो मेरे चकबंदी के काम में...।

सहायता की है—यही न आप कहना चाहते हैं? वह तो मेरे हित की बात थी, मेरा स्वार्थ था। देखिए, उस खेत के मिल जाने से मैं अपना पुराना टीला खुदवाकर उसकी मिट्टी से ईंटें बनवा रही हूं। उधर समतल होकर वह बनजरिया को रामजस वाले खेत से मिला देगा।

तुमसे मैं और भी सहायता चाहता हूं।

मैं क्या सहायता दे सकूंगी?

तुम कम-से-कम स्त्री-किसानों को बदले के लिए समझा सकती हो, जिससे गांव में सुधार का काम सुगमता से चले।

जमींदार साहब के रहते वह सब कुछ नहीं हो सकेगा। सरकार कुछ कर नहीं सकती। उन्हें अपने स्वार्थ के लिए किसानों में कलह कराना पड़ेगा। अभी-अभी देखिए न, घूर के लिए मुकदमा हाईकोर्ट में लड़ रहा है! तहसीलदार को कुछ मिला! उसने वहां से एक किसान को उभारकर घूर न फेंकने के लिए मार-पीट करा दी। वह घूर फेंकना बंद कर उस टुकड़े को नजराना लेकर दूसरे के साथ बंदोबस्त करना चाहता है। यदि आप लोग वास्तविक सुधार करना चाहते हों, तो खेतों के टुकड़ों को निश्चित रूप में बांट दीजिए और सरकार उन पर मालगुजारी लिया करे।—कहते हुए तितली ने व्यंग्य से इंद्रदेव की ओर देखा और फिर उसने कहा—क्षमा कीजिए, मैंने विवश होकर यह सब कहा।

इंद्रदेव हतप्रभ हो रहे थे, उन्होंने कहा—अरे, मैं तो अब जमींदार नहीं हूं। हां, आप जमींदार नहीं हैं तो क्या, आपने त्याग किया होगा। किंतु उससे किसानों को तो लाभ नहीं हुआ।—घुटते ही तितली ने कहा। उसका बच्चा रोने लगा था। एक बड़ी-सी लड़की उसे ले कर राजो के पास चली गई। किंतु तुम तो ऐसा स्वप्न देख रही हो जिसमें आंख खुलने की देर है। वाट्सन ने कहा।

यह ठीक है कि मरने वाले को कोई जिला नहीं सकता। पर उसे जिलाना ही हो, तो कहीं अमृत खोजने के लिए जाना पड़ेगा।—तितली ने कहा।

उधर शैला मौन होकर तितली के उस प्रतिवाद करने वाले रूप को चकित होकर देख रही थी। और इंद्रदेव सोच रहे थे—तितली! यही तो है, एक दिन मेरे साथ इसी के ब्याह का प्रस्ताव हुआ था। उस समय मैं हंस पड़ा था, संभवत: मन-ही-मन। आज अपनी दुर्बलता में, अभावों और लघुता में, दृढ़ होकर खड़ी रहने में यह कितनी तत्पर है! यही तो हम खोज रहे थे न। मनुष्य गिरता है। उसका अंतिम पक्ष दुर्बल है—सम्भव है कि वह इसीलिए मर जाता है। परंतु...परंतु जितने समय तक वह ऐसी दृढ़ता दिखा सके, अपने अस्तित्व का प्रदर्शन कर सके, उतने क्षण तक क्या जिया नहीं। मैं तो समझता हूं कि उसके जन्म लेने का उद्देश्य सफल हो गया। तितली वास्तव में महीयसी है, गरिमामयी है। शैला! वह अपने लिए सब [ १४१ ]कुछ कर लेगी। स्वावलम्बन! हां, वह उसे भी पूरा कर लेगी। किंतु स्त्री का दूसरा पक्ष पति! उसके न रहने पर भी उसकी भावना को पूरी करते रहना, शैला से भी न हो सकेगा। वह अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है; किंतु दूसरे को अवलम्ब नहीं दे सकती।

वाट्सन भी चुपचाप होकर सोच रहे थे। उन्होंने कहा—मैंने कागज-पत्र देखकर निश्चय कर लिया है कि शेरकोट पर तुम्हारा स्वत्व है। क्या तुम उसके बदले यह सटी हुई परती ले लोगी मैं जमींदार को इसके लिए बाध्य करूंगा।

बिना रुके हुए तितली ने कहा—वह मेरा घर है, खेत नहीं, उसको मैं उसके ही स्वरूप में ले सकती हूं। उससे बदला नहीं हो सकता।

वाट्सन हतबुद्धि होकर चुप हो गये। शैला ने तितली को ईर्ष्या से देखा। यह गंवार लड़की। अपनी वास्तविक स्थिति में कितनी सरलता से निर्वाह कर रही है। सो भी पूरी स्वतन्त्रता के साथ! और मैं, मैंने अपना जीवन, थोड़ा-सा काल्पनिक सुख पाने के लिए, जैसे बेच दिया। उस दरिद्र भूतकाल ने मुझे सुख के लिए लोलुप बना दिया। क्या मैं सचमुच इंद्रदेव को प्यार करती हूं। मैं उतना ही कर सकती हूं जितना मधुबन के लिए तितली कर रही है! उसके भीतर से जैसे किसी ने कहा 'ना'। वह अपनी नग्न मूर्ति देखकर भयभीत हो गई। उसने चारों ओर अवलम्ब खोजने के लिए आंख उठाकर देखा। ओह! वह कितनी दुर्बल है। यह वाटसन! इस संदर व्यापार में कहां से आ गया। और अब तो मेरे जीवन के गणित में यह प्रधान अंक है। तो? उसने इंद्रदेव को और भयभीत होकर देखा, क्या वह कुछ समझने लगा है।

इंद्रदेव ने कहा—मैं तो समझता हूं कि अब हम लोगों को चलना चाहिए; क्योंकि

आज ही रात को मुझे शहर लौट जाना है। कल एक अपील में मेरा वहां रहना आवश्यक है।

शैला ने समझा कि यह पिण्ड छुड़ाना चाहता है। उसे क्या संदेह होने लगा है? हो सकता है। एक बार इसी वाट्सन को लेकर भ्रम फैल चुका है। किंतु यह कितनी बुरी बात है। जिसने मेरे लिए सब त्याग किया...!

वाट्सन ने बीच में कहा—अच्छा, तो मैं इस समय जाता हूं। हां, सुनो, परती के लिए एक बात और भी कह देना चाहता हूं। क्या उसे थोड़े-से लगान पर तुम ले लेना स्वीकार करोगी इससे तुम्हारा यह खेत पूरा बन जाएगा। चाहोगी तो थोड़ा-सा परिश्रम करने पर यहां पेड़ लगाये जा सकेंगे और तब तुम्हारी खेती-बाड़ी दोनों अच्छी तरह होने लगेगी।

हां, तब मैं ले सकूँगी। आपको इस न्यायपूर्ण सम्मति के लिए मैं धन्यवाद देती हूं।

तितली ने नमस्कार किया। इंद्रदेव, वाट्सन और शैला, सबने एक बार उस स्वावलम्ब के नीड़ बनजरिया–को देखा, और देखा उस गर्व से भरी अबला को! सब लोग चले गए। तितली सांस फेंककर एक विश्राम का अनुभव करने लगी। इस मानसिक युद्ध में वह जैसे थक गई थी। उसने लड़कियों को छुट्टी देकर विश्राम किया।