दीवान-ए-ग़ालिब/५ दिल मिरा, सोज़-ए-निहाँ से, बेमहाबा जल गया
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दिल मिरा, सोज़-ए-निहाँ से, बेमहाबा जल गया
आतश-ए-खामोश की मानिन्द गोया जल गया
दिल में, जौक़-ए-वस्ल-ओ-याद-ए-यार तक, बाक़ी नहीं
आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया
मैं ‘अदम से भी परे हूँ, वन: ग़ाफिल, बारहा
मेरी आह-ए-आतशीं से, बाल-ए-‘अंका जल गया
अर्ज़ कीजे, जौहर-ए-अन्देशः की गर्मी कहाँ
कुछ खयाल आया था वहशत का, कि सहरा जल गया
दिल नहीं, तुझको दिखाता वर्न:, दाग़ों की बहार
इस चराग़ाँ का, करूँ क्या, कारफरमा जल गया
मैं हूँ और अफ़सुर्दगी की आरज़, ग़ालिब, कि दिल
देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया