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दीवान-ए-ग़ालिब/६ शौक़ हर रंग, रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला

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दीवान-ए-ग़ालिब
द्वारा मिर्जा ग़ालिब, अनुवादक अली सरदार जाफ़री

शौक़ हर रंग, रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला
क़ैस तस्वीर के पर्दे में भी 'अुरियाँ निकला
ज़ख़्म ने दाद न दी तंगि-ए-दिल की यारब
तीर भी सीनः-ए-बिस्मिल से परअफ़शाँ निकला
बू-ए-गुल, नालः-ए-दिल, दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल
जो तिरी बज़्म से निकला, सो परीशाँ निकला
दिल-ए-हसरतज़दः था मायद-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द
काम यारों का, बक़द्र-ए-लब-ओ-दन्दाँ निकला
थी नौआमोज़-ए-फ़ना, हिम्मत-ए-दुश्वार पसन्द
सख़्त मुश्किल है, कि यह काम भी आसाँ निकला
दिल में फिर गिरिये ने इक शोर उठाया, ग़ालिब
आह जो क़तरः न निकला था, सो तूफ़ाँ निकला